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बाल कविता
काला अक्षर भैंस बराबर
पढ़ते-पढ़ते ऊबी बबली,
खूब पढ़ी वह ध्यान लगाकर,
समझ न पाई थककर बोली,
काला अक्षर भैंस बराबर?... और आगे
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यात्रा-वृत्तांत
३७७ सीटोंवाले विमान से यह हमारी पहली यात्रा थी। गेट खुलने से पहले विमान यात्रियों की हचलच से भर गया। ... और आगे
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साहित्य का विश्व परिपार्श्व
ताबूतसाज आद्रियान प्रोखोरोव के घरेलू सामान की आखिरी चीजें भी गाड़ी पर लद गईं।... और आगे
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व्यंग्य
दुकान के बाहर लिखा था, चमचों की दुकान, चमचे ही चमचे... बस एक चमचा ही तो चाहिए था रसोई के लिए।... और आगे
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साहित्य का भारतीय परिपार्श्व
जीवात्मा के शरीर त्यागने के पश्चात् यदि विधिपूर्वक क्रिया-कर्म हो जाए तो सूक्ष्म देह भवसागर पार हो जाती है और आत्मा मुक्ति पा जाती है। ... और आगे
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ललित निबंध
सबकुछ जैसे थम सा गया है। सब तालाबंदी में हैं। लोगों से संगरोध या शारीरिक दूरी बनाए रखने का अनुरोध किया जा रहा है। सब अपने घर में रहें। ... और आगे
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उपन्यास अंश
अगले दिन सूचना केंद्र में ग्यारह बजे विश्लेषण-सत्र आरंभ हुआ। सूचना केंद्र निःशुल्क उपलब्ध हुआ था।... और आगे
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राम झरोखे बैठ के
दिसंबर की आधी रात से जो शुरू होता है, वह भारतीय नववर्ष न होकर एक अंग्रेजी उत्सव है, जो अंग्रेज हमें अपनी भाषा की गुलामी के साथ बाई वन, गैट वन फ्री में दे गए हैं। ... और आगे
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पुस्तक-अंश
दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी पहले ऐसे भारतीय हैं, जिनकी जन्मभूमि भारत है और कर्मभूमि भी।... और आगे
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कविता
उसकी पसंद की कौन सी नई ड्रेस खरीदी है,
न सिर्फ उसके लिए, उसके स्वामी के लिए
बल्कि उसके सास-ससुर और करीबी रिश्तेदारों,
पड़ोसियों व पड़ोसियों के बच्चों के लिए भी।... और आगे
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लघुकथा
सुपरिचित लेखिका। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। संस्थापक एवं महासचिव उदीषा साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था, कार्यकारी सदस्य इंडियन ऑथर्स सोसाइटी।... और आगे
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आलेख
भारतीय संस्कृति में मानवीय संबंधों में माँ की सत्ता और महत्ता को सर्वश्रेष्ठ माना गया। माँ सृष्टि का आधार है और वह सबसे अधिक पवित्र एवं श्रद्धास्पद है।... और आगे
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कहानी
मेरी आँखें खुल गईं। नींद टूट गई थी या पूरी हो गई थी। शायद पूरी हो गई थी। तंद्रा का भी कोई लक्षण नहीं था। ... और आगे
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प्रतिस्मृति
यह बात आज की नहीं है, बल्कि बहुत दिन पहले की बात है, जब हम अपने गाँव की एक पाठशाला में एक ही क्लास में पढ़ते थे। ... और आगे
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संपादकीय
ऐसा प्रायः हर वर्ष ही होता रहा है। किसी भी जाते हुए वर्ष को हमने अपनी अनेक दुर्घटनाओं, परेशानियों, कमियों के लिए दोषी ठहरा दिया तथा सारी आशाएँ आनेवाले नए वर्ष पर केंद्रित कर दीं, जैसेकि नया वर्ष कोई सर्वशक्तिमान देवता है, जो हर किसी की हर इच्छा पूरी कर देगा! ... और आगे
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