रूदादे गम : सौदादे पुर्तगाल

रूदादे गम : सौदादे पुर्तगाल

गुजराती साहित्य की जानी-मानी लेखिका। ललित निबंध-संग्रह ‘क्षणोन पांदडे झाकळ छलोछल’, प्रवास निबंध-संग्रह ‘ईपिसतायन’,  ‘पगलांनां प्रतिबिंब’, उपन्यास ‘पाँखेथी खर्युं आकाश’, काव्य-संग्रह ‘हृदयलिपि’ गुजराती साहित्य परिषद् एवं गुजरात साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत। ‘वीर नर्मद’ साउथ गुजरात, यूनिवर्सिटी में एम.ए. की पाठ‍‌्यपुस्तक है। विश्व के ५५ देशों का विस्तृत परिभ्रमण।

यूरोपखंड की पश्चिम सीमा पर, एटलांटिक सागर में लंबी होती भूमिरेखा के अंतिम बिंदु पर एक स्‍‌थल है : ‘केप सेंट विंसेंट’ (संत विंसेंट का भूशिर)। इस बिंदु से आगे के समुद्र में कोई जा नहीं सकता। वहाँ से आगे का समुद्र तो अनेक डरावने पिशाच, रौद्र राक्षस और वर्णन नहीं किए जा सकें, वैसे बेशुमार जोखिमों से भरा हुआ आतंकलोक है जैसे! यहाँ से समुद्र्र-यात्रा पर गए हुए कभी वापस लौटे नहीं; कारण कि दुःसाहस करके इसमें मुसाफिरी करने वाले नासमझ नाविक सपाट धरती के किनारे तक पहुँचकर शून्‍य की सीमा में विलीन हाे जाते हैं...शताब्दियों से चली आ रही इस दंतकथा का विस्मय हमें पुर्तगाल की ओर अकर्षित कर रहा था।
एक जमाने में धरती के किनारे शून्य की सीमा तक लंबे होते माने जाते इस देश के नक्‍शे को आज देखें तो यह यूरोपखंड के स्पेन रूपी जबड़े में पकड़ा हुआ कोई छोटा सा भक्ष्य प्राणी लगता है! पर दिखता है, वैसा नगण्य यह देश नहीं। इसका अपना बेजोड़ शान-शौकत भरा अति भव्य भूतकाल है। प्रलंब समुद्र किनारे से घिरे से हुए इस देश ने समुद्र को जितना नापा, उतना ही समुद्र इसकाे फलीभूत भी हुआ है। इस देश में ऐसे नाविक हो गए हैं, जो समुद्र-मार्ग से भारत, चीन और ठेठ जापान तक पहुँचने वाले सबसे पहले यूरोपियन थे। यही वे लोग थे, जो ठेठ ई. सन् १५०० में दक्षिण अमेरिका के ब्राजील तक पहुँचे और वहाँ उन्होंने ३२२ वर्ष तक राज किया। पंद्रहवीं शताब्दी में पुर्तगाल में एक राजा हो गए, जिनका नाम था : प्रिंस हेन्री। दुनिया आज भी इनको ‘प्रिंस हेन्री, द नेविगेटर’ के नाम से पहचानती है। इन्होंने अपने देश की प्रजा की समुद्र जोतने की निसर्गदत्त काबिलीयत परख लेकर, वैैैज्ञानिक जानकारी के साथ अनुभव का ज्ञान व्यापक बनाने के लिए समुद्र जोतने-नापने-पार करने की तालीम प्रदान करने वाली नेविगेशन स्कूल ठेठ उस जमाने में शुरू की। इस शाला के दो चमकते सितारे, दो अमर प्रवासी ः एक भारत के कोची बंदरगाह में लंगर डालने वाले वास्को-डि-गामा और दूसरे केप ऑफ गुड होप सहित अफ्रीकाखंड के दक्षिणी किनारे चक्क‍र लगाने वाले प्रथम व्यक्ति, जिन्होंने फिर भारत की और दक्षिण-पूर्व एशिया की यात्रा में वास्को-डि-गामा का साथ दिया—वे बार्थोलोम्यु डियाज। अफ्रीकाखंड के दक्षिण में समुद्र चट्टानी और तूफानी था। इसे ‘केप ऑफ स्टोर्म्स’ कहा जाता था। इन पोर्तगीज साहसी वीरों ने इस दुर्गम चट्टानी समुद्र में से भी सलामत रास्ता खोज लिया और अपने जलयानों के वहाँ लंगर डाले, तब से ‘केप ऑफ स्टोर्म्स’ का नाम पड़ा, ‘केप ऑफ गुड होप’ (शुभ आशा का प्रायद्वीप), और इस रास्ते उन्होंने प्रयाण किया, सोने की मूरत जैसे हमारे देश हिंदुस्तान की तरफ। तब से अफगानिस्तान और चीन के बीच के ‘सिल्क रूट’ की तरह मिर्च-मसाला लादकर वापस लौटते इन जलयानों का मार्ग ‘स्पाइस रूट’ कहलाया।
रहस्यमय समुद्र के पार बसी अनजानी भूमियाँ खोज-खोजकर वहाँ अपनी हुकूमत स्‍थापित करने वाली, वहाँ से अथाह संपत्ति लेकर आने वाली तथा मिर्च-मसालों के ‌व्यापार से समृद्ध होने वाली इस प्रजा की शान-शौकत १६वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में चरम सीमा पर थी। सातों ही समुद्रों में यात्रा करके अनजानी भूमि को हथिया लेने के सिलसिले में यह तीन सौ वर्ष पुर्तगाल के इतिहास का सुवर्णकाल गिना जाता है। बिल्‍कुल छोटे से इस देश को विश्व की सबसे विशाल और सबसे समृद्ध राजसत्ता होने का गौरव प्राप्त था। इन वर्षों में पुर्तगाल का भोगा हुआ ऐश्वर्य समग्र विश्व के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना के रूप में अंकित हुआ है। तीन सौ वर्ष का यह सुवर्णकाल ‘न भूतो न भविष्यति’ बना रहा। प्रस्तुत देश मेें ऐसा तेजोमय युग फिर कभी नहीं आया। पोर्तुगीज प्रजा का एक स्वप्न
था ः समग्र दुनिया को छू लेना, विशाल साम्राज्य स्‍थापित करने का। यह सपना अंशतः साकार हुआ, न हुआ और सुवर्णयुग अस्त हो गया। एक समय की समृद्धतम प्रजा गरीबी, लाचारी और विफलता में लिपट गई। स्वप्नभंग हुई पुर्तगीत प्रजा के हृदय में आज भी इस सुनहरे समयखंड को खो देने का अत्यधिक रंज है। सहस्राब्दियों के बाद भी प्रजा इस विषादभाव को भूल नहीं सकी। प्रजा की आत्मा को कचोट खाती विषाद भरी रूदादे गम की इस भावना को ‘सौदादे’ कहते हैं ः इतिहास का भार ढोती प्रजा की सामूहिक ग्लानि। समय सौदादे की छाप प्रजा की वाणी-व्यवहार पर हो, वह स्वाभाविक है। परंपराओं से संचित संस्कार लोकजीवन में धड़कते हों, तो भी सही, पर पृथ्वी के कोने-कोने में घूम लेने की भ्रमणपिपासा में से जनमी हुई समग्र विश्व पर आधिपत्य स्‍थापित करने की सामूहिक महत्त्वाकांक्षा चूर-चूर हो जाए, उसका लांछन भरा विषाद सारी ही प्रजा के स्वभाव में पीढ़ी-दर-पीढ़ी उतर आए, वह घटना वि‌िशष्ट और विस्मयकारक लगी। क्या इसका कारण प्रजा की गहरी संवेदनशीलता होगी? मनुष्य जाति का इतिहास तो चढ़ाव-उतार के कितने ही स्तरों से गुजरा है; किसलिए मात्र इसी ही प्रजा के हृदय पर महाकाल ने आँसू के हस्ताक्षर किए होंगे? यह प्रश्न पुर्तगाल के प्रति मेरे आकर्षण को तीव्रतर बना रहा था।
आज भी पुर्तगाल को याद करती हूँ, तब इसके नैसर्गिक सौंदर्य की अपेक्षा लोकहृदय का विषादभाव याद आता है। वह नीलकंठ समुद्र और सौम्य-शांत शहर स्मृतिपट पर उभरे, इससे पहले हृदय को निचोड़ डालती बेचैनी मन में तड़फड़ा उठती है। अकाल वृद्धत्व प्राप्त हो, वैसे झुर्रियों वाले चेहरे तथा अनवरत प्रतीक्षा में क्षितिज को ताकती हों, वैसी धुँधली-धुँधली आँखें मनःचक्षु के समक्ष तैरने लगती हैं। पुर्तगाल के रूदादे गम की प्रतीति कराता विषादमय लोकसंगीत हृदय में गूँजने लगता है, जिसका नाम है ः ‘फाडो’। पुर्तगाल के प्रवास के दौरान हृदयद्रावक फाडो लोकगीत सुने थे। अब भी कभी मन में अकारण ग्लानि उभर आती है, तब इन दर्द भरे गीतों में अस्तित्व को पिघलने देना अच्छा लगता है।
फाडो का अर्थ होता है—प्रारब्‍ध। पोर्तुगीज प्रजा की व्यथाओं को और चाहतों को व्यक्त करता यह संगीत है। इसके गीतों में अतीत की दर्दमय स्मृतियों को और बीते हुए समय को पुनर्जीवित करने की मनोभावनाओं को गाने-सुनने की परंपरा है। गिटार के साथ गाए जाने वाले इन गीतों को लिखने वाली और गाने वाली लोकप्रिय कवयित्री-गायिका का नाम है ः मारिजा। मारिजा का रेडियो इंटरव्यू सुना था। मारिजा कहती हैं, ‘पता नहीं, कब से मैं बालक थी, तब से शायद मैं बोलना सीखी न थी, तब से जब-जब मैं फाडो सुनती, उसे मैंने अस्तित्व में उतर जाता अनुभव किया है। लाेग कहते, ये तो वृद्ध लोगों का संगीत है। मैं जवान हूँ, मुझे रॉक और ऐसा नए जमाने का संगीत गाना चाहिए। मैंने यह भी गाकर देखा, पर मेरा मन नहीं माना। अंत में पुनः फाडो गाने लगी, तब ही जैसे मेरे अस्तित्व को वापस प्राप्त कर सकी...’
मारिजा इसके फाडो गीत में एक कहानी अवश्य गाती हैं ः बुल फाइटिंग में मारे गए ‘काउंट डि आर्कोस’ की कहानी। ऐसी मृत्यु की कहानी, जिसने पुर्तगाल में बुल फाइटिंग की तासीर बदल डाली। आज का पोर्तुगीज बुल फाइटिंग ‘टोरेडास’ के रूप में पहचाना जाता है, जो स्पेन के बुल फाइटिंग जैसा रक्तरंजित नहीं। साँड़युद्ध के दरमियान घायल होकर मृत्यु पाए काउंट की मौत से राजा इतने व्यथित हो गए कि उनके आदेश से आज भी साँड़ के सींगों पर मखमल लपेटकर लड़ते व्यक्ति की सुरक्षा का खयाल रखा जाता है और खेल में घायल साँड़ की भी पूरी सेवा-टहल तथा सँभाल की जाती है। फाइटिंग के अंत में स्पेन की तरह यहाँ पूर्णाहुति के सबब से साँड़ का कत्ल नहीं किया जाता; यहाँ इसकी बलि चढ़ाने के बदले इसको फूलों की तलवार से मारने की प्रतीक विधि की जाती है।
वास्तव में पुर्तगाल की प्रजा जाँबाज होते हुए भी अत्यंत संवेदनशील है। लोग असाधारण रचनात्मक अभिगम रखते हैं। विविध व्यवसाय में लगे लोग फजिल समय में मन बहलाने के लिए कला-कारीगरीपूर्ण रचनाएँ सृजित करते हैं। इस तरह कुटीर उद्योग के रूप में विकसित ‘अजुलेजोज’ नाम से जानी जाती ब्लू और सफेद रंग की कलात्मक सिरेमिक टाइल्स बनाने की उनकी कारीगरी विश्वविख्यात है। पुर्तगाली लोगों की नावें भी सुंदर होती हैं। उनका अगला सिरा ऊँचा और नोकदार होता है तथा उस पर से उड़ आकर आँखों को छुए वैसे आकर्षक रंगों से सुंदर स्त्रियों एवं समुद्र से संबद्ध चित्राकृतियाँ चित्रित होती हैं।
स्पेन और पुर्तगाल को आवरित कर लेता द्वीपकल्प आइबीरियन पेनिनसुला के नाम से जाना जाता है। पुर्तगाल का मात्र एक ही पड़ा‍ेसी है—स्पेन। पुर्तगाल का तापमान कुल मिलाकर बारहों महीने गरम रहता है। इसके मुख्य शहर हैं ः लिस्बन (स्‍थानीय उच्चारण-लिशबोआ), ओपोर्टो और कोइम्ब्रा। देश की दो मुख्य नदियाँ हैं ः टेगस और दुओरो। दुओरो नदी के उद्गम स्‍थान के आसपास की छोटी पहाड़ियों के ढलानों पर और वादियों में अंगूरों की असंख्य बा‌िड़याँ हैं। यह प्रदेश विश्वविख्यात मदिरा ‘पोर्टवाइन’ का पीहर है। यहाँ बनते पोर्टवाइन को ओक की लकड़ी के पीपों में भरकर, पालों वाले जलयानों द्वारा दुओरो नदी के जलमार्ग से ओपोर्टो पहुँचाया जाता है। यहीं यह वर्षों पुरानी हो, तब तक इसको गुफाओं में संगृहीत रखा जाता है, कालक्रम से इसे योग्य रंग और सुगंध प्राप्त होती है, तब अटलांटिक समुद्री मार्ग से इसे दुनिया के काेने-कोने में पहुँचाया जाता है, यह परंपरा सदियों पुरानी है। कोइम्ब्रा पुर्तगाल का विद्याधाम है। आधुनिक राष्ट्र का निर्माण जहाँ हो रहा है, उस गाँव को ‘आशाओं के पंख’ भी कहा जाता है। यूरोप की तुलना में पिछड़े और गरीब रह चुके इस देश के उजले भविष्य का यह पालना है। यहाँ का एक उत्सव उल्लेखनीय है ः पढ़ाई के अंत में मनाए जाने वाले उत्सव में ताजा ग्रेजुएट विद्यार्थी जुलूस के रूप में गाँव में घूमते-घूमते कॉलेज के भवन की छोटी प्रतिकृति को तोड़ते हैं। कॉपी, पेन, बस्ता—सब तोड़-ताड़कर फेंकते हैं अथवा इन्हें जलाकर पढ़ाई से मिली मुक्ति का उत्सव मनाते हैं।
देश के दक्षिण में फैला हुआ आलगार्व का समुद्र तट मनमोहक है। यह समुद्र का किनारा स्पेन के समुद्र-तट की तरह लगातार रेतीला नहीं। क्षणिक यह रेतीला होता है और फिर तुरंत ही समुद्र को छूकर हरियाली से आवृत्त ऊँचे-ऊँचे ढूह उभर आए हुए दिखाई देते हैं, जैसे किसी ने साड़ी की कोर पर बूटे की कढ़ाई का काम किया हो! निरंतर सूर्य के उजाले में सराबोर रहता यहाँ का समुद्र इसके तट की हरियाली के कारण हरित आभास देता रहता है। यहाँ के समुद्र में जैसे प्राण हैं। यात्रा की दास्तान सुनाने के लिए यह आपको सतत आमंत्रण देता हो, वैसा लगता है।
मनुष्य की साहसप्रियता, इसकी प्रवासपिपासा दृष्टि के दायरे को तोड़कर क्षितिजों के पार फैल जाने की चाहत को आत्मसात् करने की आशा के साथ हमने वास्को-डि-गामा के देश पुर्तगाल की ओर कदम बढ़ाए। पुर्तगाल में प्रवास करते सतत अनुभव हुआ कि पोर्तुगीज लोग आज भी दर्द को और समुद्र को खूब चाहते हैं। नए क्षितिज छूने निकल पड़ते नाविक का घर के लिए तरसना और प्रियजन के साथ के उसके विरह की दुःख भरी दास्तान ‘रूदादे गम’ आज भी जैसे इसकी प्रजा के लहू में बहता है।

 
वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय, 
उधना मगदल्ला रोड, सूरत-३९५००७ (गुजरात)
दूरभाष : ९४०९५६५००५

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