व्यवसायी एवं लेखिका। ‘बट्टे से दबी तारीखों’, ‘कहानियों की लता’ पुस्तकों के साथ-साथ अब तक १,००० से ऊपर कहानियाँ लिखित व प्रकाशित, जिसके लिए समय-समय पर अनेक पुरस्कारों व सम्मानों से अलंकृत।
रैली के चेयरमैन डाॅ. जोगिंदर सिंह के विशेष आग्रह पर बसंत पंचमी के दिन मैं सुबह दस बजे अपने पति के साथ गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज पहुँची। विशाल मैदान में लगे सफेद-पीले रंगों के बैनरों ने दूर से ही हमारा स्वागत किया। सभी बैनर तथा स्वागत द्वार जे.के. टॉयर की तरफ से प्रायोजित थे, आज वहाँ विशाल कार रैली का आयोजन हो रहा है, रैली का मुख्य लक्ष्य है—कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में लोगो में जागरूकता पैदा करना।
यह देख मैं कुछ सोचने को विवश हो रही हूँ, सामने कई गाड़ियाँ अपने-अपने तरीके से सजी हैं, उनमें से कुछ थीम पर आधारित सजी हैं, जिन पर भारी मात्रा में प्रायोजकों ने अपने स्टीकर लगाए हुए हैं।
मुख्य स्टेज के सामने कई कुरसियाँ पड़ी हैं, उन पर कुछ डॉक्टर अपने परिवार के साथ सुबह आठ बजे से बैठे हैं, स्टेज से अनाउंसमेंट चल रहा है, कुरसियों के पीछे कुछ खाने-पीने के स्टाॅल लगे हैं, जब मैं एक खाली स्टाॅल के नजदीक पहुँची, श्रीमती जोगिंदर सिंह झट मेरे पास आईं और हमारा कुशल-क्षेम पूछकर, मेरा हाथ पकड़कर मुझे सजी गाड़ियाँ दिखाने चल पड़ीं, यह था उनका प्यार और आत्मीयता मेरे लिए। चार कदम चलते ही डॉ. अनिता सोनी, जो हैलट जच्चा-बच्चा अस्पताल के मैनेजमेंट में हैं, बड़े आग्रहपूर्वक बोलीं, ‘अजी हमारी गाड़ी भी देखते चलिए।’
गाड़ी वाकई खूबसूरती से सजाई गई थी, जिसमें उनके बच्चे एलियन बने बैठे थे और ऐसा लग रहा था कि यह कोई दूसरे ग्रह से आई है। गाड़ी के सामने थीम को दरशाता स्लोगन लिखा था—
“पाणिग्रहण में बदलेगा जब कन्यादान,
दहेज का तब मिटेगा नामोनिशान।
कन्याजन का जब बढ़ेगा मान,
तभी होगा भ्रूण हत्या का समाधान।
१००० : ९२८ रेशो को करो ध्यान,
अब भी चेतो हे इनसान॥”
स्लोगन में मुझे तुकबंदी के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था। दूर खड़ी दो स्त्रियों को कहते सुना—“सब कहने की बात हैं।”
मैं एक के बाद एक गाड़ियाँ सरसरी निगाह से देखती जा रही थी। सामने लाल रंग की एक माजदा कार, जो ऊपर से खुली थी, मुझे दिखाई दी। गाड़ी वाकई बड़ी सुंदर थी, जिसके सामने के शीशे को लाल रंग के फूलों तथा एक बड़ा सा हार्ट लिये भालू से सजाया गया था। अंदर ढेर सारे लाल-सफेद दिल के आकार के गुब्बारे भरे हैं, बासंती बयार को देख मन हो रहा है कि इन कारों को मैं पीले फूलों से सजा दूँ। खैर, गाड़ियाँ देखते मैं आगे बढ़ी, एक गाड़ी के बोनट पर लिखा पाया—
“गर्भ में कन्या करे पुकार
मुझको भी जीने का अधिकार”
मैं सोच रही थी, ‘आज आदमी हिसाब-किताब में कितना पक्का हो गया है!’
दो कदम बाद एक और गाड़ी सजी देखी, जिसकी छत पर एक बड़े से पिंजरे में एक कन्याभ्रूण कैद थी। मैं गाड़ी देख ही रही थी कि तभी शहर की प्रसिद्ध गॉयनेकोलाजिस्ट डॉ. गीता सिंहल बड़े जतन से अपनी कार के पीछे लगे स्लोगन को दिखाने ले गईं। स्लोगन था—
“नारी न कर सकी, नारी का सम्मान
क्या भ्रूण हत्या है एक मात्र समाधान”
स्लोगन पढ़कर मेरे नारी मन को ठेस लगी, मेरा स्वाभिमान जाग उठा—
मैंने पूछा—डाॅक्टर साहब, रात-दिन आप लोग ही इन सब कामों में संलग्न रहती हैं, फिर आपकी संवेदनाएँ कन्या भ्रूण के लिए आज कैसे अकस्मात् जाग्रत् हो गईं?
मेरा प्रश्न सुन उन्होंने अपने को सँभाला, अचकचाकर बोलीं—ये औरतें ही (सास-ननदें) कन्या भ्रूण हत्या के लिए गर्भवती स्त्री को उकसाती हैं।
मैंने कहा—क्या पति घटना का मूक साक्षी नहीं होता?
सुनकर सहमति में उन्होंने धीरे से सिर हिलाया। मैंने चुटकी लेते हुए कहा—डॉक्टर साहब, अब रैली के बाद क्या सोचा है?
डॉ. सिंहल बोली—सही अर्थों में महसूस होता है, यह गलत काम है, आज से इसे छोड़ दूँगी।
मैं मुसकराती हुई बाहर निकली। मुझे लगा—सौ चूहे खाकर उनकी संवेदनाओं का संदेह मेरे दिमाग को छू चुका था। स्थिति को भाँपते हुए मैंने मिसेज चाँदनी सिंह के साथ खड़ी कुछ लेडी डॉक्टर्स से कहा—यदि आप सभी डॉक्टर्स एकजुट हो जाएँ तो क्या मजाल कि यह कृत्य मुँह उठाकर बोल सके, जरूर कहीं-न-कहीं आपको यह काम इतना गलत भी न लगता होगा। और ईमानदारी से उन्होंने मेरी बात को स्वीकारा।
एकांत पाकर मैंने चाँदनीजी से पूछा—जब इस रैली के द्वारा ‘कन्याभ्रूण हत्या को लेकर’ समाज में कोई जागरूकता नहीं आ पाती तो दिखावा किस बात का?
मुखर हो वे बोलीं—प्रेस वाले और विज्ञापनदाता पूछते हैं, रैली का उद्देश्य क्या है? क्या केवल पैट्रोल फूँकने के लिए आप रैली का आयोजन करते हैं। मजबूरी है, क्या करें? अब तक मुझे जवाब मिल गया था।
मैं देख रही थी कि किस तरह आम आदमी के साथ ‘सेंटीमेंटल ब्लैकमेलिंग’ हो रही थी, जबकि परदे के पीछे हर व्हॉइट ब्लैक था। खैर, लगभग ग्यारह तीस पर डी.एम. प्रशाद त्रिवेदीजी ने गाड़ियों को हरी झड़ी दिखाई और गाड़ियाँ वहाँ से प्रथम चेक पोस्ट की ओर रवाना हो गईं।
मेरे विचार से मुख्य रूप से यह रैली रोजमर्रा की जिंदगी से ऊबे लोगों के मनोरंजन, ज्ञानवर्धन, रोमांच तथा पिकनिक के लिए आयोजित की गई थी। इस प्रकार एक ही व्यवसाय से जुड़े लोगों को जीवन की व्यस्तताओं के बीच मिलने-मिलाने का मौका मिलता है, आप इसे पूरा मस्ती का पैकेज कह सकते हैं। ऐसी रैलियाँ विशुद्ध मनोरंजन के लिए होती हैं, जिसका समाज-सेवा से कोई सरोकार नहीं होता।
कानपुर १९८२ में पहली कार रैली जे.सी.आई. इंडस्ट्रियल जूनियर चैंबर ने प्रसिद्ध वास्तुशास्त्री श्री विमल झाझरियाजी के नेतृत्व में आयोजित की थी।
सन् २००१ में कमला रीट्रीट में विंटेज कार रैली का आयोजन देखने का मौका मिला। देश भर से आई पुरानी मॉडल की किंतु चालू हालत की कारों को देख आँखें चमत्कृत रह गईं। गाड़ियों का हालाँकि मुझे खास शौक नहीं है, लेकिन जे.के. ग्रुप की तरफ से मिले मान-सम्मान से मैं आज भी अभिभूत हूँ।
इससे पहले आई.एम.ए. कार रैली सन् २००० में सफलतापूर्वक आयोजित की गई थी, उस समय मैंने उसका बाह्य आवरण देखा था और आज अंतरात्मा में प्रवेश कर रही हूँ।
शाम को पुरस्कार वितरण समारोह में चलते समय मैं डॉ. त्रिप्ता कौर की गाड़ी में लिफ्ट लेकर बैठ गई। अनजान बनते हुए मैंने उनके सामने अपनी बात दोहराई। वे बोलीं—अरे नहीं-नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। पिछली दफा तंबाकू, सिगरेट, शराब को लेकर जागरूकता रैली निकाली गई थी तो क्या समाज में ये सब बुराइयाँ रुक गईं।
कार में बैठी मैं सोच रही थी, एक व्यक्ति की बुरी आदत को छुड़ाना कितना मुश्किल काम है, फिर पूरे समाज की बुराइयाँ कोई कैसे इस तरह बदल सकता है? तब तक हम होटल वैलेव्यू तक पहुँच चुके थे, जहाँ पुरस्कार समारोह होना था, तभी मुझे पास खड़ी एक गाड़ी दिख गई, जिसके साइड में लिखा था—
“कार रैली तो एक बहाना है
कन्या भ्रूण को बचाना है।”
दिल किया कि जाकर इस स्लोगन को उल्टा लिख दूँ।
जहाँ तक सैद्धांतिक तथा भावनात्मक पक्ष से देखती हूँ, मुझे यह कदम गलत जान पड़ता है, लेकिन यह भी सच है कि व्यावहारिक दृष्टि से देखने पर यह कदम इतना भी गलत जान नहीं पड़ता। ऐसा एक भी दंपती जिनकी बेटी दहेज की वेदी पर होम हो गई है या कमजोर आर्थिक स्थिति वाले वे लोग, जिनके पहले से तीन बेटियाँ हैं या फिर तेजाब कांड की शिकार बेटियों के असहाय माँ-बाप इस कृत्य को कभी भी गलत साबित होने न देंगे; इन सबके पीछे है दहेज जैसी कुप्रथा।
भारत ही क्यों? पूरी दुनिया में विरले ही होंगे, जो बेटों की चाहत न करते हों।
कन्याभ्रूण हत्या इनसान का निहायत निजी मामला है, इसके लिए बड़े स्तर पर प्रयास की आवश्यकता है, अत: चाहकर भी इस विषय पर कुछ भी प्रयास करना इतना आसान काम नहीं है। यदि टेस्ट ट्यूब बेबी के रूप में हमने विज्ञान के वरदान को स्वीकारा है तो न चाहते हुए हमको विज्ञान के इस अभिशाप के साथ जीना होगा।
अपमानित मन यह सोचकर संतोष कर लेता है, शायद दहेज जैसी कुरीतियों को रोकने का यह एक साधन हो। कहा भी गया है कि विष को विष ही काटता है।
शायद बुराई पर बुराई भारी पड़ जाए।
इस विषय में वहाँ उपस्थित जाने-माने गजल गायक विजय सिंह ने अपनी बात कुछ इस अंदाज में कही—
“हमी बिस्मिल हमी कातिल, हमी मुजरिम ठहरे
यह तमाशा भी कहीं आपने देखा न होगा।”
७/२०२, स्वरूप नगर, कानपुर (उ.प्र.)
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