पसीने के दस्तावेज
किसी कवि ने कहा था-ये ताज अजंता बोकारो...हैं दस्तावेज पसीने के! पूरे विश्व में जितनी भी विशालकाय इमारतें हैं, मीनाक्षी मंदिर या ताजमहल जैसे वास्तुकला के प्रतिमान हैं या पुल या बाँध या कारखाने आदि हैं, सब पसीने के ही दस्तावेज हैं। ...और आगे
प्रतिस्मृति
इकन्नी
"इसे रख लो। इनकार मत करो। देखने में यह इकन्नी है, पर इसकी कीमत सचमुच इससे कहीं ज्यादा है। बस, रख लो इसे। मेरे पास ले-देकर यही इकन्नी है, चाहे यह तुम्हारी मजदूरी नहीं चुका सकती..." ...और आगे
आलेख
महाराष्ट्र का सांस्कृतिक वैभव
1 मई, वर्ष २०२३, यानी महाराष्ट्र का ६३वाँ वर्धापन दिवस। १ मई, १९६० को प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के कर-कमलों से विदर्भ, मराठवाड़ा, कोंकण और ... ...और आगे
लघुकथा
लिये थे नोट
प्रमुख सलाहकार ने फुसफुसाते हुए कहा, 'जनता अब उतनी बेवकूफ नहीं रही। लालच बढ़ गया है। स्मार्ट फोन, साइकिल, लैपटॉप भी चाहिए। साथ में मुफ्त बिजली, पानी, राशन भी? सब मुफ्त चाहिए तो विकास कहाँ से होगा... ...और आगे
साहित्य का भारतीय परिपार्श्व
पीछा करता हुआ पर्वत
जाने इस पेड़ को क्या कहते हैं! छतरी-सा है यह। मेरा सिर इसकी छाया में है और बाकी जिस्म धूप में। कितनी अच्छी लगती है आजकल की यह धूप और तब जब सिर पर छतरी की छाया हो। ऐसा लगता है, माघ के कठिन जाड़े में आदमी गरम पानी में गोते लगा रहा हो। ...और आगे
साहित्य का विश्व परिपार्श्व
दिल्लगी
हमारे बुजुर्ग बिना किसी को ठेस पहुँचाए अलग ही अंदाज में दिल्लगी करते थे। हमारे बुजुर्गों द्वारा की जानेवाली दिल्लगी जैसा मजा आजकल की दिल्लगी में कहाँ! फिर भी दिल्लगी करने का अपना अलग ही मजा है। किसी को अपनी मूर्खता पर हँसने के लिए मजबूर करना, नाराज होने पर उसके साथ कोई नई दिल्लगी कर डालना। ...और आगे
यात्रा-वृत्तांत
मंदिरों का शहर है मदुरै
मदुरै का नाम काफी समय से सुनता आया था। द्रविड़ संस्कृति का केंद्र मदुरै भारतीय इतिहास में अपनी विशिष्ट अहमियत रखता है। वह इस मायने में कि अतीत में इसने अनेक राजवंशों का उत्थान-पतन झेला है। ...और आगे
कहानी
जामुनवाली अम्माँ
एक बादल बहुत नटखट था। इतना नटखट कि जामुन बेचनेवाली अम्माँ की टोकरी से जब देखो तब जामुन चुरा लेता था। आज दोपहर में जब जामुनवाली अम्माँ पेड़ के नीचे बैठी सुस्ता रही थी तो नटखट बादल ने पत्तों के झुरमुट से झाँका और टोकरी से एक या दो नहीं बल्कि पूरे दस जामुन चुरा लिये। ...और आगे
कविता
माहिये
जीवन तो तमाशा है
तू लाख जतन कर ले
पानी में बताशा है
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है कौन जो पूरा है
इस प्रेम-कसौटी पर
हर शख्स अधूरा है ...और आगे