लेखक-संपादक। अलग प्रकृति की मासिकी ‘ट्रू-मीडिया’ के संपादक। अब तक देश-विदेश के साहित्य, कला एवं संस्कृति से जुड़े सौ से अधिक व्यक्तियों के व्यक्तित्व-कृतित्व पर विशेषांक प्रकाशित। ऑल इंडिया रेडियो पर अनेक साहित्यकारों के साक्षात्कार। उत्कृष्ट कार्यों के लिए ‘संपादक शिरोमणि’, ‘संपादक रत्न सम्मान’, ‘गणेशशंकर विद्यार्थी पत्रकारिता सम्मान’ एवं अन्य अनेक सम्मान।
: एक :
रोज़ हवा देते हैं पेड़
साफ़ फजा देते हैं पेड़
हम मानें या न मानें
हमको दवा देते हैं पेड़
पेड़ के नीचे बैठें तो
रोग मिटा देते हैं पेड़
ये तो काम नहीं अच्छा
लोग कटा देते हैं पेड़
पेड़ पे पत्थर मारो तो
फल मीठा देते हैं पेड़
ये मत कहना ‘ओम’ कभी
हमको क्या देते हैं पेड़
: दो :
पेड़ पौधे बहार लाते हैं
ये तो हममें निखार लाते हैं
हमको पेड़ों को पानी देना है
ठंडी ठंडी बयार लाते हैं
पेड़ भरते हैं पेट हम सबका
ये तो फल बेशुमार लाते हैं
पेड़ होते हैं दोस्त हम सबके
ये तो पल खुशगवार लाते हैं
पेड़ तो ज़िंदगी हैं हम सबकी
ये तो खुशियाँ हजार लाते हैं
हम तो पेड़ों के साथ बैठेंगे
ये तो दिल में क़रार लाते हैं
: तीन :
ख्वाब में तेरे ऐसे खोया हूँ
एक मुद्दत से जैसे सोया हूँ
मैं तुझे क्या बताऊँ जान ए जाँ
हिज्र में तेरे कितना रोया हूँ
रात दिन तू ही है तसव्वुर में
इश्क में तेरे खोया-खोया हूँ
चा रा गर ने नहीं किया कुछ भी
जख्म ए दिल खुद ही अपने धोया हूँ
ये मुझे खुद पता नहीं है ‘ओम’
बोझ गम का मैं कितना ढोया हूँ
: चार :
अपने बिछड़ों की कसक रहती है,
उनकी यादों की महक रहती है।
प्यार को कैसे भुला दें तेरे,
उसकी सीने में दहक रहती है।
कुछ तो अंदाज अलग हो अपना,
इससे जीवन में ठसक रहती है।
प्यार करना है हमें जीवन में,
इससे जीवन में चमक रहती है।
झुक के मिलना है हमें सबसे ‘ओम’,
इससे जीवन में लचक रहती है।
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