पारिवारिक प्रवक्ता

सुबह-सुबह ‘बेड-टी’ मिलते ही सक्सेनाजी ने पूरे परिवार के समक्ष अपना बहुमूल्य विचार पेश किया, “याद रक्खो, कल चुनाव है। सब लोग समय निकालकर मतदान अवश्य करना। योग्य नागरिक पर ही देश गर्व करता है।”
“पापा, कुछ गिने-चुने लोगों को छोड़कर इस देश में कितने लोग योग्य हैं?” अमित ने अपने मन की भड़ास निकाली। 
तभी बहू अपनी योग्यता का प्रदर्शन करती बोली, “दूसरों के ऐब गिनाने से अपनी त्रुटियाँ कम नहीं हो जातीं।” 
मताधिकार तो हर भारतवासी का सिर्फ मौलिक अधिकार ही नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी भी है। मैं तो कहती हूँ, ज्यादा मीमांसा करने के बजाय मेनका, ममता, मायावती यानी नारी-शक्ति के हाथों में सत्ता सौंप दी जाए।”
तभी सक्सेना साहब बरस पड़े, “अरे! शासन करना सबके वश की बात नहीं। नेहरू एवं इंदिरा से सबको सबक लेना चाहिए।”
पुनः अमित टपक पड़ा, “अपने खानदान में तो कोई भी राजनीति में है ही नहीं, वरना वंशवाद का सहारा लेकर राजनीति के अखाड़े में मैं भी कूद पड़ता।”
अब भला मिसेज सक्सेना कैसे चुप रहतीं। चेतावनी भरे अंदाज में बोल पड़ीं, “तुम लोग सब स्वार्थी हो, सिर्फ अपनों के लिए, कुछ खास जातियों के लिए, अपनी अस्मिता के लिए ही सोचते हो। सबका साथ एवं सबका विकास होना चाहिए, तभी तो मुल्क में अमन रहेगा और चमन में फूल खिलेगा।”
विश्लेषक के बयान के बाद कुछ कहने को रहा ही नहीं, समय-सीमा समाप्त जो हो गया। 
     
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