बेला ऑफिस से घर आई तो देखा, चाय बि खरी पड़ी थी।
“माजी, आप तो दि नभर घर में रहती हैं, तो कम-से-कम सफाई तो करवा लिया करो।”
“चाय मेरे हाथ से गिर गई थी।” अरुण ने कहा। वह और कुछ कहता, इसके पूर्व ही माताजी ने आँखों से चुप रहने का इशारा किया।
बेला का व्यवहार दिन-प्रति -दि न बि गड़ता जा रहा था। सावित्री सब सुनकर मौन रहती। बेला को ऑफि स के काम से बंगलौर जाना पड़ा।
वह खुश थी, इस कारण वह अपने प्यारे पापा के साथ रह लेगी।
बेला के अचानक घर आने से विजय प्रसन्न था।
“पापा, इस बार क्या खास है?”
“कुछ खास नहीं, वही है, तुम और तुम्हारी माँ की डायरी।”
माँ की सीख
बेला फुरसत से डायरी खँगालती है, एक स्था न पर उसकी नजरें थम जाती हैं, जहाँ ‘सीख’ लिखा था।
उसकी माँ ने लिखा था, “बेटी परिवार का मुख्य सूत्र होती है,
पूरे परिवार का संबल होती है। अपनी सास में मेरी झलक देखना।”
बेला की आँखें नम थीं। घर लौटकर सबसे पहले उसने मम्मी जी के चरण स्पर्श कर अपने कि ए की क्षमा माँगी।
सावित्री ने कहा, “माँ की सीख तो अनमोल होती है।”
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