चार गजलें

चार गजलें

सुपरिचित साहित्यकार। ‘जंगल बबूलों के’, ‘हवाओं के शहर में’ (गजल-संग्रह), ‘उस गली में’ (उपन्यास), ‘अब और नहीं’ (कहानी-संग्रह)। ‘प्राची’ मासिक पत्रिका का संपादन। पत्र-पत्रिकाओं में सौ से अधिक रचनाएँ प्रकाशित। दूरदर्शन लखनऊ तथा आकाशवाणी रामपुर, जबलपुर और मुंबई से रचनाओं का प्रसारण।

: एक :
कौन कहता है जमीं-आसमाँ नहीं मिलते,
सच तो ये है कि हमें दो जहाँ नहीं मिलते। 
गैर से मिलके यकीनन सुकून आता है, 
खुलके अब लोग भी अपने यहाँ नहीं मिलते। 
हमने माँगी थी दुआ तुमने वहशतें दे दीं, 
झूठ कहते थे कि वहशी यहाँ नहीं मिलते। 
खून से अगर किसी की जिंदगी सँवरती तो, 
चलते फिरते हुए मुर्दे यहाँ नहीं मिलते।
आँधियाँ आती हैं, तूफान गले मिलते हैं, 
तंगदिल लोग हैं, बस दिल यहाँ नहीं मिलते। 
किसी से कुछ न कहो, बस निहार लो सबको, 
मीठी बातों के कदरदाँ यहाँ नहीं मिलते। 
: दो :
जर्द पत्तों को किसी ने तो जलाया होगा, 
मौत का जश्न किसी ने तो मनाया होगा। 
पेड़ सहमे हैं, हवाओं में जिरह जारी है, 
इन परिंदों को किसी ने तो डराया होगा। 
घर तो ऊँचे हैं, मगर लोग बहुत छोटे हैं, 
ऐसे रिश्तों को किसी ने तो निभाया होगा। 
बाग में फूल, न तितली, न कहीं भँवरे हैं, 
खिजाँ का गीत किसी ने तो सुनाया होगा। 
लोग महफिल में चरागों से उलझ बैठे हैं,  
सुबह का गीत किसी ने तो सुनाया होगा। 
कौन रुकता है ‘भ्रमर’ आज किसी की खातिर,  
कोई आएगा किसी ने तो बताया होगा। 
: तीन : 
कहीं पे गाँव, कहीं पे शहर बसा होगा, 
इसी तरह से ​िफजाँ में जहर घुला होगा। 
हवा के बोझ से मुमकिन है डाल टूटी हो, 
मगर सभी के लिए ये शजर मरा होगा। 
जहाँ पे आग लगी, बाढ़ और सूखा है,
वहीं गरीब का कोई बसर रहा होगा।  
इसी मकाम में अब कुछ निशान बाकी हैं,
यहीं पे गाँव का बूढ़ा शजर रहा होगा। 
शहर में मातमी माहौल कहाँ दिखता है,
गली में देख लो हर एक घर सजा होगा।
तुम्हारे बाद ‘भ्रमर’ बाग में खिजाँ होगी,
वो कारवाँ बहार का उधर रुका होगा। 
: चार :
कैसे हैं हालात गाँव के, कौन बताएगा, 
कैसे मरा किसान खेत में, कौन बताएगा। 
कहाँ गए वो बाग जहाँ पर पंछी गाते थे,
किसने जहर हवा में घोला, कौन बताएगा। 
श्मशानों में बदल गए हैं खेत और खलिहान, 
आग लगी कैसे बस्ती में, कौन बताएगा।  
आसमान सूना है, बादल कहीं नहीं बरसे, 
फिर ये बाढ़ कहाँ से आई, कौन बताएगा। 
शहर गया विधवा का बेटा, वर्षों बीत गए,  
उसकी पाती कब आएगी, कौन बताएगा। 
जिसको देखो वही मसीहा बना गरीबों का, 
फिर क्यों इतनी बढ़ी गरीबी, कौन बताएगा। 
रहबर के हम साथ चले थे, रस्ता भूल गए, 
शाम हुई, घर कैसे जाएँ, कौन बताएगा।  


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