नागरिक सम्मान से नरसेवा तक

एडिटर राज्यसभा सचिवालय। भारतीय संसद् की लेखिका एक चिर-परिचित स्तंभकार और कथाकार हैं। वे गद्य और पद्य दोनों में समान रूप से अधिकार रखती हैं। इनकी अब तक तीन पुस्तकें प्रकाशित। कई वर्षों से अनुवाद कर्म में सक्रिय। राष्ट्रीय समाचार-पत्रों में महिला अधिकारों और समसामयिक विषयों पर लगातार लेखन।

मनुष्य किस्मत के हाथ का खिलौना नहीं है, जिसके किए गए श्रम का उपयोग कोई दूसरा करे। व्यक्ति के चुनाव का क्षेत्र भले ही संकुचित हो, किंतु चुनाव की आजादी उसे सदैव होनी चाहिए। जब तक मनुष्य के अंदर स्वतंत्र आत्मा का वास है, तब तक वह अपनी मुक्ति का मार्ग खोजने में समर्थ रहेगा। फिर वह मुक्ति चाहे समाज के बनाए नियमों की हो या फिर अपने जीवन को रोगों से मुक्त रखने की। जिस तरह प्रकृति के तीन प्रमुख तत्त्व हैं—जल, जंगल और जमीन—जिनके बिना प्रकृति अधूरी है और तीनों ही तत्त्वों के असंतुलन से प्रकृति का संतुलन बिगड़ने लगा है, ठीक उसी तरह हमारे जीवन में भी स्वास्थ्य का एक अनिर्वचनीय स्थान है। यह वह अमूल्य वस्तु है, जो विकास की अंधी दौड़ और भौतिक सुविधाओं की जद में लगातार खराब हो रही है। हम स्वयं उसका दोहन करने पर तुले हैं। अपनी सेहत के प्रति उदासीनता के चलते हम अपने खुद के भविष्य को खतरे में डाल रहे हैं। इससे हमें उबरना होगा। 
मनुष्य जब-जब अपनी राह से पथभ्रष्ट हुआ है, समाज में कुछ ऐसे दत्तचित्त किरदारों का आगमन हुआ है, जिन्होंने अपनी प्रेरणा और पुनीत कार्यों से मनुष्य को सँभाला है। ऐसे में परमार्थ सेवा में रत कुछ ऐसे चिकित्सकों को निश्चित ही विस्मृत नहीं किया जा सकता, जिनकी कोशिशों ने समाज में नई चेतना फैलाई और स्वास्थ्य की पूँजी लोगों को लौटाने में सहायता की। पिछले कुछ वर्षों में लगातार ऐसे पद्मश्री हमारे समक्ष आ रहे हैं, जिनके कार्यों की किंचित् भी उपेक्षा नहीं की जा सकती। जमीन से जुड़े इन नागरिक सम्मान प्राप्तकर्ताओं ने समय, साधना और तप से लोगों में उम्मीद की एक नई रोशनी भरी है। 
कहते हैं, समग्र संसार का कल्याण करने वाले कुछ मनुष्य नीति और मर्यादा में तत्पर रहकर अपने मनुष्योचित धर्म का पालन करते हैं। जैसे नदियाँ श्रेष्ठ, शीतल और निर्मल जल बहाती है तो धरती सदा खेती से भरी रहती है। शीतल मंद पवन बेफिक्र होकर चलता है, ठीक उसी तरह हमें पीड़ा से बचाने और हमें जीवनदान देने के लिए समाज की ये विभूतियाँ सकारात्मक परिवर्तन लाने की बात कर रही हैं। ये लोग ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ की राह पर चल रहे हैं। दूसरों की सेवा और परपीड़ा की पुकार से प्रेरित होकर वे सेवा को अपना धर्म बना रहे हैं। ऐसे ही दूरदर्शी, सत्यदर्शी और संदर्शी लोगों में शामिल 
हैं : लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के पेडियाट्रिक सर्जन डॉ. एस.एन. कुरील, देहरादून के ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. भूपेंद्र सिंह संजय और दिल्ली डॉ. नीरू कुमार। जो पूरी प्रतिबद्धता से लोगों की सेहत का खयाल रखते हैं। 
इसमें महत्त्वपूर्ण नाम आता है, पद्मश्री डॉ. संजय सिंह भूपेंद्र और दिल्ली की डॉ. नीरू कुमार, जो न केवल अपने मेडिकल प्रैक्टिस के जरिए, बल्कि सामाजिक सेवा के जरिए समाज में नजीर बन रहे हैं। इनके उत्कृष्ट कार्यों को देखते हुए सरकार ने इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया है। स्वहित और अर्थलोलुपता को दरकिनार कर जन स्वास्थ्य के मुद्दे को सर्वोच्चता देना इनकी प्राथमिकता रही है। जागरूक और मूल्यपरक नागरिकों का भी राष्ट्र के उन्नयन में महत्त्व है। क्योंकि उनकी रुचि मानवमात्र का कल्याण करने में है। डॉ. संजय ऑर्थोपेडिक सर्जन हैं और एक गोल्ड मेडलिस्ट के तौर पर उन्होंने लंबे समय तक अपनी सेवाएँ दी हैं। तीन दशक पहले शुरू हुआ उनका कॅरियर आज भी बदस्तूर जारी है। इस दौरान उन्होंने अनेक मील के पत्थर स्थापित किया है। निरंतरता, अखंडता और परस्पर संबद्धता सदैव उनमें प्राणवान रही। 
वर्तमान में वे देहरादून के अपने संजय ऑर्थोपेडिक सेंटर के जरिए मरीजों का इलाज कर रहे हैं। उनके नाम दुनिया के सबसे बड़े फीमर ट्‍यूमर को निकालने का भी रिकॉर्ड दर्ज है। न केवल अपने चिकित्सा पेशे में अपितु सड़क सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दे पर भी वे लगातार अपनी बात रखते हैं। उन्होंने चिकित्सा की अपनी उपलब्धियों के दम पर इस समाज में विशेष स्थान बनाया है। 
ठीक इसी तरह डॉ. नीरू महिला सशक्तीकरण की पैरोकार, ने अपने चिकित्सीय पेशे से समाज के लोगों की खूब सेवा की है। प्रशासनिक सेवा के जरिए मेडिकल पेशे को अपना कॅरियर बनाने वाली डॉ. नीरू ने दो दशक से भी ज्यादा तक सरकारी डॉक्टर के रूप में अपनी सेवाएँ दी हैं। बाद में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने विभिन्न संगठनों में महिला लीडर्स का न केवल सफल नेतृत्व किया, बल्कि अस्तित्व स्थापना की समस्या से जूझ रही युवा महत्त्वाकांक्षी महिला इंजीनियरों की प्रवक्ता भी बनीं। अपनी असाधारण विशेषज्ञता और रचनात्मकता के द्वारा संगठन में समानता और समता से लाखों महिलाओं को अपने प्रेरक संवाद के जरिए जागरूक किया। अपने प्रेरक वक्तव्य के जरिए उन्होंने हिंडालको, वेदांता ग्रुप, डिजाजियो और पेरिसको जैसे संगठनों को लैंगिक भेदभाव से इतर समानता की तुला पर कस दिया। उन्होंने ‘महिलाएँ मैनुफैक्चरिंग इकाइयों में काम नहीं कर सकतीं’, जैसी पुरातन सोच को अपने प्रेरक वक्तव्यों से जड़ से उखाड़ फेंका। डॉ. नीरू की कार्यकुशलता ने उन्हें दुनिया के बड़े विविधतापूर्ण और समावेशी सम्मेलनों में से एक ‘दि फोरम ऑफ वर्करलेस इंक्लूजन’, मिनीपोलिस जैसे बड़े मंच पर स्थान दिलाया। 
ये अकेली ऐसी भारतीय महिला हैं, जिन्हें ‘सेंटर फॉर ग्लोबल इंक्लूजन’, अमेरिका के नेतृत्व वाली एक वैश्विक परियोजना ‘डी.ई.आई. फ्यूचर्स’ में एक विशेषज्ञ के तौर पर आमंत्रित किया गया। लखनऊ के किंगजॉर्ज मेडिकल कॉलेज के विश्व प्रतिष्ठित डॉक्टर एस.एन. कुरील भी इसी कड़ी में अगला नाम है, जिन्हें बच्चों की सर्जरी के क्षेत्र में स्वर्ण पदक भी हासिल है। लखनऊ के चिकित्सा संस्थान देश-विदेश के मरीजों को बेहतर इलाज देकर दुनिया भर में अपना नाम बुलंदियों पर पहुँचा रहे हैं। शिव नारायण कुरील ने एक भारतीय बाल रोग सर्जन, मेडिकल अकादमिक और लेखक के तौर पर दुनिया भर में महशूर रहे हैं। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ (यू.पी.) में बाल चिकित्सा सर्जरी विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख के पद पर रहते हुए उन्होंने कई जटिल सर्जरी को अंजाम दिया है। भारत सरकार ने उन्हें चिकित्सा में उनके योगदान के लिए २०१६ में चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया। उन्हें भारत में पहली बाल चिकित्सा योनि पुनर्निर्माण सर्जरी के प्रदर्शन का श्रेय दिया जाता है, जो ११ साल की लड़की पर की गई थी और मूत्राशय की एक्सस्ट्रोफी, एक दुर्लभ जन्मजात असामान्यता मानी जाती है। इसे सफलतापूर्वक अंजाम देकर उन्होंने इतिहास रच दिया। 
भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में अब वैसी विभूतियाँ स्थान पा रही हैं, जिन्होंने समाज और राष्ट्र के लिए अद्भुत कार्य किया है। देश के ये वास्तविक नायक समाज को एक नई दिशा दे रहे हैं। देश के स्वास्थ्य के ये प्रहरी निस्स्वार्थ भाव से जन-कल्याण का कार्य कर रहे हैं। स्वास्थ्य हमारी सबसे बड़ी पूँजी है। देश स्वस्थ रहेगा तो आर्थिक प्रगति की राह पर तेज दौड़ेगा। इसलिए इन विभूतियों की प्रेरणा पाकर हमें अपनी इस अमूल्य संपदा को संरक्षित करने का प्रण लेना चाहिए। 

दिल्ली विश्वविद्यालय, 
नई दिल्ली
दूरभाष : ८९२०४५८२४१

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