विश्व का इतना बड़ा आयोजन, हर रोज लाखों श्रद्धालुओं का स्वागत और चलने वाला महायज्ञ, एक नया नगर बसाने का महा-अभियान, प्रयागराज की धरती पर एक नया इतिहास रचा जा रहा है। २०२५ के प्रारंभ में महाकुंभ का आयोजन देश की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक पहचान को नए शिखर पर स्थापित करेगा। मैं तो बड़े विश्वास के साथ कहता हूँ, बड़ी श्रद्धा के साथ कहता हूँ, अगर मुझे इस महाकुंभ का वर्णन एक वाक्य में करना हो तो मैं कहूँगा—यह ‘एकता का महायज्ञ’ होगा।
हमारा भारत पवित्र स्थलों और तीर्थों का देश है। गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी, नर्मदा जैसी अनेक पवित्र नदियों का देश है। इन नदियों के प्रवाह की जो पवित्रता है, इन अनेकानेक तीर्थों का जो महत्त्व है, जो माहात्म्य है, उनका संगम, उनका समुच्चय, उनका योग, उनका संयोग, उनका प्रभाव, उनका प्रताप यह प्रयागराज है। यह केवल तीन पवित्र नदियों का ही संगम नहीं है। प्रयाग के बारे में कहा गया है—माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई॥ अर्थात् जब सूर्य मकर में प्रवेश करते हैं, सभी दैवीय शक्तियाँ, सभी तीर्थ, सभी ऋषि, महर्षि, मनीषी प्रयाग में आ जाते हैं। यह वह स्थान है, जिसके प्रभाव के बिना पुराण पूरे नहीं होते। प्रयागराज वह स्थान है, जिसकी प्रशंसा वेद की ऋचाओं ने की है।
प्रयाग में पग-पग पर पवित्र स्थान हैं, पग-पग पर पुण्य क्षेत्र हैं। त्रिवेणीं माधवं सोमं, भरद्वाजं च वासुकिम्। वन्दे अक्षय-वटं शेषं, प्रयागं तीर्थनायकम्॥ अर्थात् त्रिवेणी का त्रिकाल प्रभाव, वेणी माधव की महिमा, सोमेश्वर के आशीर्वाद, ऋषि भरद्वाज की तपोभूमि, नागराज वासुकि का विशेष स्थान, अक्षय वट की अमरता और शेष की अशेष कृपा—ऐसा है हमारा तीर्थराज प्रयाग! तीर्थराज प्रयाग यानी ‘चारि पदारथ भरा भँडारू। पुन्य प्रदेस देस अति चारू’॥ अर्थात् जहाँ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पदार्थ सुलभ हैं, वह प्रयाग है। प्रयागराज केवल एक भौगोलिक भूखंड नहीं है। यह एक आध्यात्मिक अनुभव क्षेत्र है। पिछले कुंभ में भी मुझे संगम में स्नान करने का सौभाग्य मिला था। २०२५ कुंभ के आरंभ से पहले मैंने एक बार फिर माँ गंगा के चरणों में आकर आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त किया है। मैंने संगम घाट के लेटे हुए हनुमानजी के दर्शन किए। अक्षयवट वृक्ष का आशीर्वाद भी प्राप्त किया। इन दोनों स्थलों पर श्रद्धालुओं की सहूलियत के लिए हनुमान कॉरिडोर और अक्षयवट कॉरिडोर का निर्माण हो रहा है।
महाकुंभ हजारों वर्ष पहले से चली आ रही हमारे देश की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक यात्रा का पुण्य और जीवंत प्रतीक है। एक ऐसा आयोजन, जहाँ हर बार धर्म, ज्ञान, भक्ति और कला का दिव्य समागम होता है। हमारे यहाँ कहा गया है—दश तीर्थ सहस्राणि, तिस्रः कोट्यस्तथा अपराः। सम आगच्छन्ति माघ्यां तु प्रयागे भरतर्षभ॥ अर्थात् संगम में स्नान से करोड़ों तीर्थ के बराबर पुण्य मिल जाता है। जो व्यक्ति प्रयाग में स्नान करता है, वह हर पाप से मुक्त हो जाता है। राजा-महाराजाओं का दौर हो या फिर सैकड़ों वर्षों की गुलामी का कालखंड, आस्था का यह प्रवाह कभी नहीं रुका। इसकी एक बड़ी वजह यह रही है कि कुंभ का कारक कोई बाह्य शक्ति नहीं है। किसी बाहरी व्यवस्था के बजाय कुंभ मनुष्य के अंतर्मन की चेतना का नाम है। यह चेतना स्वत: जाग्रत् होती है। यही चेतना भारत के कोने-कोने से लोगों को संगम के तट तक खींच लाती है। गाँव, कस्बों, शहरों से लोग प्रयागराज की ओर निकल पड़ते हैं। सामूहिकता की ऐसी शक्ति, ऐसा समागम शायद ही कहीं और देखने को मिले। यहाँ आकर संत-महंत, ऋषि-मुनि, ज्ञानी-विद्वान्, सामान्य मानवी सब एक हो जाते हैं; सब एक साथ त्रिवेणी में डुबकी लगाते हैं। यहाँ जातियों का भेद खत्म हो जाता है, संप्रदायों का टकराव मिट जाता है। करोड़ों लोग एक ध्येय, एक विचार से जुड़ जाते हैं। इस बार भी महाकुंभ के दौरान यहाँ अलग-अलग राज्यों से करोड़ों स्नानार्थी जुटेंगे। उनकी भाषा अलग होगी, जातियाँ अलग होंगी, मान्यताएँ अलग होंगी, लेकिन संगम नगरी में आकर वे सब एक हो जाएँगे। इसलिए मैं फिर एक बार कहता हूँ कि महाकुंभ एकता का महायज्ञ है, जिसमें हर तरह के भेदभाव की आहुति दे दी जाती है। संगम में डुबकी लगाने वाला हर भारतीय ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की अद्भुत तसवीर प्रस्तुत करता है।
महाकुंभ की परंपरा का सबसे अहम पहलू यह है कि इस दौरान देश को दिशा मिलती है। कुंभ के दौरान संतों के वाद में, संवाद में, शास्त्रार्थ में, देश के सामने उपस्थित अहम विषयों और आसन्न चुनौतियों पर व्यापक चर्चा होती थी और फिर संतजन मिलकर राष्ट्र के विचारों को एक नई ऊर्जा देते थे, नई राह भी दिखाते थे। संत-महात्माओं ने देश से जुड़े कई महत्त्वपूर्ण निर्णय कुंभ जैसे आयोजन स्थल पर ही लिये हैं। जब संचार के आधुनिक माध्यम नहीं थे, तब कुंभ जैसे आयोजनों ने बड़े सामाजिक परिवर्तनों का आधार तैयार किया था। कुंभ में संत और ज्ञानी लोग मिलकर समाज के सुख-दुःख की चर्चा करते थे, वर्तमान और भविष्य को लेकर चिंतन करते थे; आज भी कुंभ जैसे बड़े आयोजनों का माहात्म्य वैसा ही है। ऐसे आयोजनों से देश के कोने-कोने में समाज में सकारात्मक संदेश जाता है, राष्ट्रचिंतन की यह धारा निरंतर प्रवाहित होती है। इन आयोजनों के नाम अलग-अलग होते हैं, पड़ाव अलग-अलग होते हैं, मार्ग अलग-अलग होते हैं, लेकिन यात्री एक होते हैं, मकसद एक होता है।
कुंभ और धार्मिक यात्राओं का इतना महत्त्व होने के बावजूद पहले की सरकारों के समय इनके माहात्म्य पर ध्यान नहीं दिया गया। श्रद्धालु ऐसे आयोजनों में कष्ट उठाते रहे, लेकिन तब की सरकारों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। इसकी वजह थी कि भारतीय संस्कृति से, भारत की आस्था से उनका लगाव नहीं था, लेकिन आज केंद्र और राज्य में भारत के प्रति आस्था, भारतीय संस्कृति को मान देने वाली सरकार है, इसलिए कुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएँ जुटाना डबल इंजन की सरकार अपना दायित्व समझती है। इसलिए यहाँ केंद्र और राज्य सरकार ने मिलकर हजारों करोड़ रुपए की योजनाएँ शुरू की हैं।
हमारी सरकार ने विकास के साथ-साथ विरासत को भी समृद्ध बनाने पर फोकस किया है। आज देश के कई हिस्सों में अलग-अलग टूरिस्ट सर्किट विकसित किए जा रहे हैं। रामायण सर्किट, श्रीकृष्ण सर्किट, बुद्धिस्ट सर्किट, तीर्थंकर सर्किट—इनके माध्यम से हम देश के उन स्थानों को महत्त्व दे रहे हैं, जिन पर पहले फोकस नहीं था। स्वदेश दर्शन योजना हो, प्रसाद योजना हो—इनके माध्यम से तीर्थस्थलों पर सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है। अयोध्या के भव्य राम मंदिर ने पूरे शहर को कैसे भव्य बना दिया है, हम सब इसके साक्षी हैं। विश्वनाथ धाम, महाकाल महालोक की चर्चा आज पूरे विश्व में है। यहाँ अक्षयवट कॉरिडोर, हनुमान मंदिर कॉरिडोर, भरद्वाज ऋषि आश्रम कॉरिडोर भी इसी विजन का प्रतिबिंब हैं। श्रद्धालुओं के लिए सरस्वती कूप, पातालपुरी, नागवासुकि, द्वादश माधव मंदिर का कायाकल्प किया जा रहा है।
पुण्य प्रयागराज निषादराज की भी भूमि है। भगवान् राम के मर्यादा पुरुषोत्तम बनने की यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव शृंगवेरपुर का भी है। भगवान् राम और केवट का प्रसंग आज भी हमें प्रेरित करता है। केवट ने अपने प्रभु को सामने पाकर उनके पैर धोए थे, उन्हें अपनी नाव से गंगा पार कराई थी। इस प्रसंग में श्रद्धा का अनन्य भाव है, इसमें भगवान् और भक्त की मित्रता का संदेश है। इस घटना का संदेश है कि भगवान् भी अपने भक्त की मदद ले सकते हैं। प्रभु श्रीराम और निषादराज की इसी मित्रता के प्रतीक के रूप में शृंगवेरपुर धाम का विकास किया जा रहा है। भगवान् राम और निषादराज की प्रतिमा भी आने वाली पीढ़ियों को समता और समरसता का संदेश देती रहेगी।
कुंभ जैसे भव्य और दिव्य आयोजन को सफल बनाने में स्वच्छता की बहुत बड़ी भूमिका है। महाकुंभ की तैयारियों के लिए ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम को तेजी से आगे बढ़ाया गया है। प्रयागराज शहर के सैनिटेशन और वेस्ट मैनेजमेंट पर फोकस किया गया है। लोगों को जागरूक करने के लिए ‘गंगा दूत’, ‘गंगा प्रहरी’ और ‘गंगा मित्रों’ की नियुक्ति की गई है। इस बार कुंभ में १५ हजार से अधिक सफाईकर्मी भाई-बहन कुंभ की स्वच्छता को सँभालने वाले हैं। कुंभ की तैयारी में जुटे अपने सफाईकर्मी भाई-बहनों का अग्रिम आभार भी व्यक्त करूँगा। करोड़ों लोग यहाँ पर जिस पवित्रता, स्वच्छता, आध्यात्मिकता के साक्षी बनेंगे, इनके योगदान से ही संभव होगा। इस नाते यहाँ हर श्रद्धालु के पुण्य में भी भागीदार बनेंगे। जैसे भगवान् कृष्ण ने जूठी पत्तल उठाकर संदेश दिया था कि हर काम का महत्त्व है, वैसे ही आप भी अपने कार्यों से इस आयोजन की महानता को और बड़ा करेंगे। आप ही हैं, जो सुबह सबसे पहले ड्यूटी पर लगते हैं और देर रात तक आपका काम चलता रहता है। २०१९ में भी कुंभ आयोजन के समय यहाँ की स्वच्छता की बहुत प्रशंसा हुई थी। जो लोग हर ६ वर्ष पर कुंभ या महाकुंभ में स्नान के लिए आते हैं, उन्होंने पहली बार इतनी साफ-सुंदर व्यवस्था देखी थी, इसलिए आपके पैर धोकर मैंने कृतज्ञता व्यक्त की थी।
कुंभ से जुड़ा एक और पक्ष है, जिसकी चर्चा उतनी नहीं हो पाती। यह पक्ष है—कुंभ से आर्थिक गतिविधियों का विस्तार। हम सभी देख रहे हैं, कैसे कुंभ से पहले इस क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ रही है। लगभग डेढ़ महीने तक संगम किनारे एक नया शहर बसा रहेगा। यहाँ हर रोज लाखों की संख्या में लोग आएँगे। पूरी व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रयागराज में बड़ी संख्या में लोगों की जरूरत पड़ेगी। ६००० से ज्यादा हमारे नाविक साथी, हजारों दुकानदार साथी, पूजा-पाठ और स्नान-ध्यान कराने में मदद करने वाले सभी का काम बहुत बढ़ेगा, यानी यहाँ बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर तैयार होंगे। सप्लाई चेन को बनाए रखने के लिए व्यापारियों को दूसरे शहरों से सामान मँगाने पड़ेंगे। प्रयागराज कुंभ का प्रभाव आसपास के जिलों पर भी पड़ेगा। देश के दूसरे राज्यों से आने वाले श्रद्धालु ट्रेन या विमान की सेवाएँ लेंगे, इससे भी अर्थव्यवस्था में गति आएगी, यानी महाकुंभ से सामाजिक मजबूती तो मिलेगी ही, लोगों का आर्थिक सशक्तीकरण भी होगा।
महाकुंभ २०२५ का आयोजन जिस दौर में हो रहा है, वह टेक्नोलॉजी के मामले में पिछले आयोजन से बहुत आगे है। आज पहले की तुलना में कई गुना ज्यादा लोगों के पास स्मार्ट फोन हैं। २०१३ में आयोजित महाकुंभ के समय डेटा आज की तरह सस्ता नहीं था। आज मोबाइल फोन में यूजर फ्रेंडली ऐप्स हैं, जिसे कम जानकार व्यक्ति भी उपयोग में ला सकता है। अभी यहाँ कुंभ सहायक चैटबॉट को लॉञ्च किया गया है। पहली बार कुंभ आयोजन में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और चैटबॉट का प्रयोग होगा। ए.आई. चैटबॉट ग्यारह भारतीय भाषाओं में संवाद करने में सक्षम है। मेरा सुझाव है कि डेटा और टेक्नोलॉजी के इस संगम से ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को जोड़ा जाए, जैसे महाकुंभ से जुड़ी फोटोग्राफी कंपटीशन का आयोजन किया जा सकता है। महाकुंभ को एकता के महायज्ञ के रूप में दिखाने वाली फोटोग्राफी की प्रतियोगिता रख सकते हैं। इस पहल से युवाओं में कुंभ का आकर्षण बढ़ेगा। कुंभ में आने वाले ज्यादातर श्रद्धालु इसमें हिस्सा लेंगे। जब ये तसवीरें सोशल मीडिया पर पहुँचेंगी तो कितना बड़ा कैनवास तैयार होगा, इसकी कल्पना नहीं कर सकते। इसमें कितने रंग, कितनी भावनाएँ मिलेंगी, यह सब गिन पाना मुश्किल होगा। आप अध्यात्म और प्रकृति से जुड़ी किसी प्रतियोगिता का आयोजन भी कर सकते हैं।
देश एक साथ विकसित भारत के संकल्प की ओर तेजी से बढ़ रहा है। मुझे विश्वास है कि इस महाकुंभ से निकली आध्यात्मिक और सामूहिक शक्ति हमारे इस संकल्प को और मजबूत बनाएगी।
प्रधानमंत्री निवास, ७ लोक कल्याण मार्ग, नई दिल्ली-११०००१