गलत फैसलों की जिम्मेवारी?

द्वितीय सुंदरी द्रुति के रूप से मोहित होकर पाँचों भाई—युद्धवीर, भीम सिंह, अर्जुन सिंह, रकुल और रहदेव ने निर्णय लिया कि वे पाँचों आपसी सहमति के साथ द्रुति के सामने विवाह का प्रस्ताव रखेंगे, यानी एक स्त्री के पाँच पति। उचित अवसर बनते ही उन पाँचों भाइयों ने द्रुति के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया। किंतु अमीर पिता की बेटी द्रुति इस प्रस्ताव से चौंक गई, उसने संयम का परिचय दिया और उन पाँचों भाइयों से पूछा, “बुरा मत मानना, मैं जानना चाहूँगी कि यदि तुम्हारी मम्मी के पाँच पति होते तो तुम्हें कैसा लगता?”
“लड़की, जुबान सँभालकर बात कर।” भीम सिंह गुस्से से काँपने लगा।
“अच्छा, मम्मी की बात छोड़ो। चलो, यह बताओ कि इस विवाह से यदि मुझे संतान के रूप में पुत्री प्राप्त हुई और मैं उसका विवाह एक की बजाय पाँच युवकों से करना चाहूँ तो तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं होगी?”
“गुस्सा मत दिला, नहीं तो तेरी जुबान खींच लूँगा।” रकुल आपे से बाहर होने लगा। लेकिन युद्धवीर ने उसे शांत होने का इशारा दिया।
“ठीक...मम्मी भी नहीं, बेटी भी नहीं। लेकिन तुम पाँचों भाई एक स्त्री से विवाह करने को व्याकुल हो। क्या इससे रिश्ते, नातों की मर्यादा, गरिमा बनी रह सकेगी? क्या तुम्हारे अंदर इतना बोध नहीं है कि यह सही फैसला नहीं है? या तुम्हारे गलत फैसलों की जिम्मेवारी तुम्हारी नहीं?” 


म. नं. १४२, सेक्टर पाँच, पार्ट छह, 
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