‘बाहर धूप खड़ी है’, ‘चुप की आवाज’, ‘जैसे कोई लौटेगा’, ‘तब तक हूँ’, ‘मैं जहाँ हूँ’, ‘लेकिन गायब रोशनदान’, ‘याद आना चाहता हूँ’, (गजल-संग्रह); ‘खिड़की भर आकाश’ (दोहा-संग्रह); ‘नेपथ्यों में कोलाहल’ (नवगीत-संग्रह), ‘अक्कड़-बक्कड़ इल्ली-गिल्ली’ (बालगीत-संग्रह)। ‘अंतरराष्ट्रीय वातायन सम्मान’, ‘सुरुचि सम्मान’, ‘परंपरा सम्मान’, ‘आधारशिला कलाभूषण सम्मान’, ‘हिंदी गौरव सम्मान’, ‘कंवल सरहदी सम्मान’ एवं अन्य अनेक सम्मान।
: एक :
टूट कर भी सच कहा
आइना है आइना
जिंदगी का फ़लसफ़ा
आज तक उलझा हुआ
आपका अंदाज़ हूँ
मैं भला ख़ुद क्या रहा
आप भी चुप हो गए
आपसे है ये गिला
नामवर थे जो कभी
आज हैं वो लापता
: दो :
उनका रोज़ बहाना भी
रोज़ाना आ जाना भी
बस्ती भी वीराना भी
अपना हूँ बेगाना भी
तुमसे ही तो जाना है
ना होना हो जाना भी
आप मुझे गैर समझें तो
जो समझें समझाना भी
दैरो हरम के रस्ते में
काश रहे मैख़ाना भी
: तीन :
तेरा ही तो हिस्सा हूँ
ये तू जाने कितना हूँ
अपने हाथों हारा हूँ
वरना किसके बस का हूँ
ख़ुद को ही खो बैठा हूँ
मैं अब क्या खो सकता हूँ
जब से अपने जैसा हूँ
सब कहते हैं धोखा हूँ
आमादा हूँ जीने पर
यों रोज़ाना मरता हूँ
: चार :
कब से मन में रखे हो
जाने दो जाने भी दो
मैं पहचान गया तुमको
तुम भी औरों जैसे हो
ऐसे देख रहा है वो
जैसे कोई अपना हो
कैसे समझाऊँ तुमको
तुम मुझको समझाओ तो
नामुमकिन है जीत सको
कैसे हारूँ बतला दो
: पाँच :
सुन लो जो सय्याद करेगा
वो मुझको आज़ाद करेगा
आँखों ने ही कह डाला है
तू जो कुछ इरशाद करेगा
एक ज़माना भूला मुझको
एक ज़माना याद करेगा
काम अभी कुछ ऐसे भी हैं
जो तू अपने बाद करेगा
तुझको बिल्कुल भूल गया हूँ
जा तू भी क्या याद करेगा
: छह :
उसने कुछ न कहा था लेकिन
मैंने साफ़ सुना था लेकिन
नींद नहीं आ पाई मुझको
कोई ख़्वाब दिखा था लेकिन
लहरों पर तस्वीर बनी थी
फिर तूफ़ान उठा था लेकिन
महफ़िल उनके नाम सजी थी
मेरा ज़िक्र रहा था लेकिन
थक कर चूर हुए थे पंछी
नीचे जाल बिछा था लेकिन
: सात :
सिर्फ़ क़िस्सों में सुना हो
काश ऐसा फ़ैसला हो
सुर्ख़ियों में जो रहा हो
क्या पता अब गुमशुदा हो
क़ुर्बतों को शर्म आए
आपसे यूँ फ़ासला हो
कौन किसको अब सुनेगा
बोलना ही जब मना हो
उस क़िले को कौन जीते
जो हवाओं में बना हो
: आठ :
मुसकराना चाहता हूँ
क्या दिखाना चाहता हूँ
याद उनको भी नहीं जो
वो भुलाना चाहता हूँ
जिस मकान में हूँ उसे अब
घर बनाना चाहता हूँ
क़र्ज़ जो मुझ पर नहीं है
क्यों चुकाना चाहता हूँ
आपकी जानिब से ख़ुद को
आज़माना चाहता हूँ
: नौ :
जो सदा से लामकाँ है
वो मुझे रखता कहाँ है
ख़ुद नहीं महफ़ूज़ है जो
क्यों हमारा पासबाँ है
तू अगर मंज़िल नहीं तो
फिर मुझे जाना कहाँ है
मिल चुका हूँ आपसे पर
आपको देखा कहाँ है
आप बोलें या न बोलें
आपका चेहरा बयाँ है
: दस :
चेहरे पर मुसकान रखूँ
क्यों फ़ानी पहचान रखूँ
जो तेरा अरमान रखूँ
ऐसी क्या पहचान रखूँ
पहचानूँ इस दुनिया को
पर ख़ुद को अंजान रखूँ
खो जाऊँ पहचानों में
क्यों इतनी पहचान रखूँ
मैं हूँ, मन है, दुनिया भी
अब किस-किसका ध्यान रखूँ
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