जागरूकता

एक साहित्यिक पत्रिका ने एक कहानी विशेषांक निकाला, जिसमें देश के प्रतिष्ठित लेखकों की चुनिंदा कहानियाँ व कुछ अन्य सामग्री संकलित थी। यह पत्रिका जब एक पाठक के पास पहुँची तो उसने यह पत्रिका आदि से अंत तक अनवरत पढ़ डाली। उसे लगा कि पत्रिका में संकलित अधिकतर कहानियाँ उसने पहले कहीं पढ़ रखी हैं। अपनी जागरूकता का परिचय देते हुए उसने उस पत्रिका के संपादक के नाम एक समीक्षात्मक पत्र लिख डाला।
“महोदय, आप द्वारा संपादित पत्रिका का कहानी विशेषांक आद्योपांत पढ़ा, रचना संचयन में श्रम बहुत किया गया है, जिससे यह विशेषांक उत्तम बन पड़ा है। परंतु न जाने मुझे क्यों ऐसा लगता है कि विशेषांक में शामिल हुई अधिकतर रचनाएँ कहीं पूर्व में पढ़ी हुई हैं। आशा है, आप इसे अन्यथा न लेंगे और भविष्य में इसका खयाल रखेंगे।”
संपादक महोदय ने जब वह पत्र पढ़ा तो उन्होंने तुरंत ही एक पोस्ट कार्ड उन पाठक महोदय के पते पर भेज दिया। उन्होंने लिखा—“महोदय, आपका पत्र मिला। धन्यवाद। आप एक जागरूक पाठक हैं, इसलिए आप ने विशेषांक में सामग्री चयन पर अपनी बेवाक टिप्पणी की है, परंतु यहाँ यह उद‍्धतृ करना उचित समझता हूँ कि आपकी जो कहानी उस विशेषांक में शामिल की गई है, उसे भी मैंने पूर्व में दो पत्रिकाओं में पढ़ लिया था, परंतु फिर भी इसे इस विशेषांक में शामिल कर लिया गया। इस प्रकार इस विशेषांक का मंतव्य आप समझ ही गए होंगे।
संपादक का पत्र पढ़ते ही वे लेखक महोदय अपनी ही जागरूकता पर प्रश्न करने लगे।

धीमान् गृहम् बरोली 
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