उत्सव रंगों का

उत्सव रंगों का

दीप बनकर जलो
किस अनवरत यात्रा में हो पथिक?
साथ मुझको ले चलो।
मैं तुम्हारी ऊर्जा, जिजीविषा
मेरे संग मंजिल चलो।
एक दिव्य प्रकाश बन नभ में जला
एक तपता मरुस्थल है दिलजला
दीप बनकर तुम जलो।
रेत में बनती है, मिटती है कथा
चिह्न‍ सारे मिटाती चंचल हवा
तुम अमिट कथा बनो।
क्या हुआ, जो छूट कोई साथी गया
साथ किसके कब भला कोई गया?
तुम निडर राही बनो।  
किस अनवरत यात्रा में हो पथिक?
उमंग संग में ले चलो।
कब जलेगी गंदगी?
बेदिली में सुकून
तलाशती है जिंदगी
उत्सव रंगों का
मनाती है जिंदगी।
होली-मिलन में भी
मन मिल न पा रहे
होलिका जल गई,
कब जलेगी गंदगी?
कहीं इश्क से लबरेज
कहीं खून की होली
दुनिया में हर तरह की  
होली है जिंदगी!    
चंदा से माँगे पानी
सागर
किया प्रदूषित
नदियाँ मैला ढोतीं,
धरती पर बमवर्षा।
अंतरिक्ष
में जाकर
चंदा से माँगे
पानी, मानव 
दीवाना।
सो रहा था चैन से
मैं बादलों को ओढ़कर,
यहाँ भी सताने आ गए
किसने पता बता दिया?
पहले धरती, अब यहाँ
कचरा, फिर तबाही
वहाँ हिमगिरि छोड़कर ये
खोजने जल आ गया! 
चाँद : कुछ बिंब  
यह जीवन का उजियारा
भ्रम का हर ले अँधियारा
थोड़ा प्रकाश, शीतलता भी
सुंदर सुमनोहर प्यारा। 
चाँद गगन में तैर रहा
जैसे लहरों में नैया
रूप अपरूप दिव्य हाथों
से खेता जगत् खेवैया। 
दिन में दहक, रात में जमकर
शीतलता बरसाते हो,
जीवनहीन स्वयं होकर भी
सबको अमिय पिलाते हो।
 
डी-१७ ए, प्रथम तल
कैलाश कॉलोनी, नई दिल्ली-११००४८
दूरभाष : ९२८९१४७९७५
 

अकतूबर 2024

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