सुपरिचित कवि एवं कथावाचक। कई काव्य-संग्रह एवं देश की पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित तथा आकाशवाणी के कई केंद्रों से प्रसारित। सामाजिक-धार्मिक कई संस्थाओं के पदाधिकारी रहे। संप्रति विभिन्न कलाओं के नवांकुर तैयार करने में संलग्न।
पात्र-परिचय
लता : मालकिन
दीना : आया
रीता : लता की सहेली
मनीष, बंटी : लता के बच्चे
स्थान : लता का निवास-स्थान
लता : दीना, मनीष कहाँ है?
दीना : मालकिन, वह अभी बाहर गया है।
लता : क्या आज वह पढ़ने नहीं जाएगा?
दीना : माँजी, उसने कल मुझे बताया था कि आज उसकी
छुट्टी है।
लता : क्यों?
दीना : आज ईद है।
लता : ठीक है, परंतु तू आज उदास क्यों है? क्या परेशानी है तुझे?
दीना : माँजी, आज जब मैं सुबह उठी तो पता नहीं, मुझे क्यों चक्कर आ गाए!
लता : (चौंककर) अरे पगली! तूने मुझे बताया क्यों नहीं? अब तबीयत कैसी है?
दीना : माँजी, अब तो ठीक हूँ।
लता : बंटी कहाँ है? वह तो दिख ही नहीं रहा है!
दीना : वह मनीष के साथ गया है।
लता : कहाँ गए हैं दोनों?
दीना : पता नहीं, बाहर कहीं खेल रहे होंगे।
लता : ठीक है, आने दे दोनों को। तू इस पिंकी को सँभाल। चैन नहीं है एक पल भी। सारे दिन रोती ही रहती है। मैं तो तंग आ गई हूँ। न जाने कब छुट्टी मिलेगी इन बच्चों से।
दीना : माँजी, आप बच्चों से नाराज क्यों होती हैं? इनका क्या कुसूर है? तंग तो मुझे होना चाहिए, जो हर समय मुझे इनका खयाल रखना पड़ता है।
लता : अब इस पिंकी को तो चुप कर।
दीना : माँजी, क्यों चिंता करती हो, बड़ी हो गई है, इसे चुप करना मेरा काम है। दूध पीकर सो जाएगी।
लता : दीना! तू बहुत समझदार है। ठीक कहती है।
दीना : माँजी, एक छोटे बच्चे का काम बड़े आदमी के काम से भी बढ़कर होता है। मेरा सारा दिन इन्हीं के कामों में बीतता है। सुबह चार बजे उठती हूँ, रात के ग्यारह बज जाते हैं। बच्चों को उठाकर नहलाना, खाना बनाना, कपड़े धोना, स्कूल के लिए तैयार करना आदि-आदि काम करना, कम काम नहीं हैं।
लता : अरे, ये काम तो घरों में करने ही पड़ते हैं, किस घर में नहीं करते? सबकुछ करना पड़ता है। बरतन भी माँजने होते हैं, खाना भी खाना-खिलाना होता है। अरे, छोटे बच्चों के काम के लिए ही तो तुम जैसे लोगों की जरूरत पड़ती है।
दीना : माँजी, आपकी बात तो ठीक है, किंतु...
लता : किंतु क्या? आदमी काम का प्यारा होता है, चाम का नहीं।
दीना : तो क्या मैं काम नहीं करती, माँजी?
लता : करती है, किंतु बहुत समय लगा देती है।
दीना : मेरे से जल्दी में नहीं होता है। मैंने तो यहाँ आपके रखने से पहले ही यह बात बता दी थी। फिर घर के आठ लोगों का खाना भी बनाना पड़ता है। (इसी बीच कॉलबेल बजती है)
लता : देखना, घंटी कौन बजा रहा है? कौन है दरवाजे पर?
दीना : (दरवाजा खोलकर) माँजी, आपकी सहेली रीता आंटी आई हैं।
रीता : (पास आकर) क्यों लता, आज क्या हुआ? और दिन तो बड़ी खुश नजर आती थी।
लता : हाँ बिहन, (कुरसी सरकाते हुए) बैठो, ठीक कहा आपने। तुम सुनाओ, कैसी हो?
दीना : (चाय परोसते हुए) आंटी, चाय लीजिए।
रीता : (चाय का घूँट लेकर) लता, लगता है, किसी ने कुछ कह दिया है आपसे?
लता : बहिन, कोई बात नहीं है, आप चाय पीओ।
रीता : लगता है, मेरे आने से तुम खुश नहीं हो? मैं चलती हूँ!
लता : (हाथ पकड़कर बैठाते हुए) अरे, मैं तुम्हारे आने से खुश कब नहीं हुई, चाय ठंडी हो जाएगी, पहले इसे पीओ।
(मनीष और बंटी का प्रवेश)
दोनों बच्चे : मौसीजी, नमस्ते! (यह कहकर दोनों रीता की गोद में बैठ गए) यह देख, पिंकी भी मचलने लगी है और उसे भी रीता ने अपनी गोद में बिठा लिया है।
दीना : आंटीजी, आपकी चाय ठंडी हो गई है, दूसरी गरम करके लाती हूँ, इसे रहने दीजिए।
रीता : नहीं बेटी, मैं चाय ठंडी ही पीती हूँ, ठंडी ही पसंद है। परंतु यह तो बताओ कि क्या तुमने लता को कुछ कह दिया है, जिसे ये छुपा रही हैं?
लता : अरे बहिन रीताजी! कुछ नहीं कहा। क्या फायदा बतलाने से? घर में अनेक परेशानियाँ होती हैं।
रीता : फायदा या समाधान तो तभी होगा, जब किसी को उसे बताओगी।
लता : क्या बताऊँ मैं? उसका समाधान भी तो नहीं दिखता है!
रीता : हो सकता है—दिखे। कोई पारिवारिक समस्या है क्या?
लता : दीना को मैंने कई बार कहा कि छोटे-छोटे कामों में समय न लगाकर उन्हें जल्दी निपटाया कर, लेकिन करते-करते इसे सुबह से शाम हो जाती है।
रीता : ठीक है। तुम्हारी समस्या पारिवारिक ही है। बड़े परिवार का परिणाम यही होता है। वैसे भी घर में ७-८ सदस्य हैं, काम भी अधिक रहेगा। बच्चे भी अभी नादान ही हैं। छह सालों में चार बच्चों की माँ भी तुम बन चुकी हो।
लता : लेकिन बहिन, जो हुआ सो हुआ, अब क्या करूँ? समस्या का उपाय तो बताओ!
रीता : लताजी, मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि सुख चाहो तो कम बच्चे पैदा करो। इससे तुम्हारा और बच्चे का स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा, साथ ही शांति भी मिल सकेगी। यही नहीं, बच्चों को अच्छा पढ़ा-लिखा भी सकोगे। अब दीना को तो तुम्हारी नौकरी करनी है। उसे तो काम निपटाने के लिए शाम होगी ही। अधिक संतान। आधिक काम। तभी तो कहते हैं—छोटा परिवार, सुख का आधार। अरे, मुझे देखो न! मेरी शादी को दस साल होने को हैं, बस दो ही बच्चे हैं। वे भी हृष्ट-पुष्ट। अच्छा खाती-पहनती हूँ और तुमसे भी हेल्दी हूँ। मुझे तो सबसे बड़ा सुख यह है कि मैं जब शाम को ऑफिस से घर लौटती हूँ तो खाना भी तैयार मिलता है।
लता : (वििस्मत होकर) खाना! कौन तैयार करता है खाना?
रीता : तुम्हारी वही बड़ी बिटिया रेनू। आठवें साल में लगी है, सबकुछ तैयार कर लेती है। बच्चों में कम-से-कम तीन साल का अंतर होना चाहिए। इससे माँ और संतान का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। क्योंकि ‘कम संतान, सुखी इनसान’ होने से सुख-शांति मिल सकती है। और तो और यही बात हमारे स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का कहना है कि ‘दो बच्चे, बहुत अच्छे’। दो ही बच्चों से सुखी और समृद्ध परिवार बनता है। इन सब जानकारियों के लिए तुम्हें स्वास्थ्य पत्रिकाएँ पढ़नी और रेडियो, टी.वी. के ऐसे कार्यक्रम देखने चाहिए।
लता : परंतु अब तो कोई उपाय बताओ, जिससे मुझे राहत मिले!
रीता : उपाय यही है कि संतान पैदा करने के बजाय इनके स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर अधिक ध्यान दो। इनसे प्यार से बोलो और अच्छे स्कूल में दािखला कराने के साथ-साथ घर में तुम स्वयं इन्हें पढ़ाने में समय दो, इनकी मदद करो। नहीं तो क्या लाभ तुम्हारे शिक्षित होने से!
लता : लेकिन यह मनीष तो मेरी सुनता ही नहीं, हर वक्त खेलता रहता है। हठीला इतना है कि कोई काम करता ही नहीं है। इसे देखकर ये बच्चे भी बिगड़ जाएँगे।
रीता : सब सुधर जाएगा, छोटा है, नादान है। इसे प्यार से समझाओ, दुत्कार से नहीं। इसे प्यार की जरूरत है। एक दिन ऐसा आएगा कि यह स्वयं दौड़-दौड़कर कार्य करेगा। अिधक परिवार न बढ़ाओ, इन्हें समृद्ध बनाओ। अच्छी शिक्षा दिलाओ। बोलो, ठीक है न? और मेरी बात मानोगी न?
लता : बहिनजी, बिल्कुल ठीक कहा है आपने। इससे तो हमारा ही नहीं, बच्चों का भविष्य भी बन सकेगा। जो आपकी बातों पर चलेगा, उनका भी जीवन सुखी बनेगा। आज तो बहिन, तुमने आकर मेरी आँखें ही खोल दी हैं। सच, तुम्हारी इस ‘सच्ची सीख’ को मैं पड़ोसियों को भी बताऊँगी।
रीता : (खड़ी होकर) ठीक है, लता बहिन! काफी समय हो गया है, अब मैं चलती हूँ।
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