उस दिन मन थोड़ा खिन्न-उदास था। अचानक फोन की घंटी घनघनाई और मेरी निगाहें फोन पर जा अटकीं।
“...हलो! हलो!” तुरंत मैंने उगला था।
“हाँ, मैं बोल रहा हूँ...” उसने तेजी से कहा।
“फोन की स्क्रीन पर आपका नाम आ गया...बोलिए!”
“सोचा, आपसे बात की जाए।”
“किस विषय में बात करना चाहेंगे आप?”
“बैठे-बैठे आप याद आने लगे थे, सो...”
“इस खूबसूरत मौके पर मेरी एक नेक सलाह है, यदि आप मानें तो...?”
“वह क्या हो सकती है?”
“आप मुझे नहीं, ईश्वर को याद करें तो आपका उद्धार होगा, समझे!”
“नाराज हो गए आप तो।”
“ना-ना...! मूलतः आपको समय की कीमत मालूम नहीं है...”
“अपनों के बीच क्या समय की कीमत होती है।”
“मगर एक बात बोलना चाहता हूँ, आप उसे समझने की कोशिश करें।”
“हाँ-हाँ, अंत-पंत, अपनों के अपने ही काम आते हैं।”
“अच्छा...”
“आप बेझिझक कह दीजिएगा।”
“अगर आप अपने मोबाइल से मेरा नाम व नंबर डिलीट कर दें तो...”
“क्या-क्या...?”
“हाँ...यह मेरे लिए जिंदगी भर आपका मेरे पर अहसान होगा, रहेगा।”
“बस, इत्ती सी बात!”
“हाँ...यह बात ही मेरे वास्ते बड़ी बात है।” कहते-कहते मैंने अपना स्विच आॅफ किया और पलों में ही बुदबुदाया, ‘ऐसों को अपनेपन का आईना दिखलाना ही था।’
साकेत नगर,
ब्यावर-३०५९०१ (राजस्थान)
दूरभाष : ९४१३६८५८२०