कॉलोनी के दंत चिकित्सक

कॉलोनी के दंत चिकित्सक

पत्र-पत्रिकाओं में विगत ३० वर्षों से व्यंग्य लेखन। हिंदी रंगमंच कला समूह में सक्रिय भागीदारी तथा दुलारी बाई, बाप रे बाप आदि नाटकों में जीवंत अभिनय। आकाशवाणी इंदौर के पत्रिका कार्यक्रम में कई वर्षों तक व्यंग्य पाठ। प्रथम रामेंद्र द्विवेदी व्यंग्य पुरस्कार। सिंगाजी सम्मान, वयम सम्मान, संचार सारथी पुरस्कार, पहला ज्ञान चतुर्वेदी सम्मान, शब्दशिल्पी सम्मान तथा म.प्र. साहित्य अकादमी का व्यंग्य पुरस्कार।

हले इस कॉलोनी में दाँत का एक भी दवाखाना नहीं था। दाँत में दर्द होने पर लोग भागकर शहर जाते थे। शहर में भी डेंटल हॉस्पिटल कम थे। दाँत के मरीजों को देर तक बैठना पड़ता था। डेंटिस्ट के वेटिंग रूम में दाँत दबाकर बैठे रहो और दीवार पर लगे दाँतों के रंगीन चित्र देखते रहो। इन चित्रों में ज्यादातर सुंदर महिलाओं की धवल दंत पंक्तियाँ दिखाई देती हैं। दीवार पर आदमियों के चित्र नदारद हैं। मानो पुरुषों के तो दाँत ही न होते हों। यह सरासर नाइनसाफी है। दाँतों के मामले में यह एकांगी और पक्षपातपूर्ण नजरिया है। लैंगिक दुराग्रह। वेटिंग रूम में दाँत दबाए देर तक बैठने से मन में बहुत नकारात्मक विचार आने लगते हैं, लेकिन क्या करें, उन दिनों दंत चिकित्सालयों की बहुत कमी हुआ करती थी। दाँत का दर्द बहुत तकलीफ देता है। दाँत के दर्द की यह खासियत होती है कि पहले से पता नहीं चलता है कि यह होने वाला है। संडे है और आप सुबह हँसते-मुसकराते हुए उठकर पोहा-जलेबी खा रहे हैं कि थोड़ी देर में दाँत का दर्द शुरू हो गया। एकदम अप्रत्याशित। दाँत का दर्द धीरे-धीरे शुरू होता है, फिर अचानक तेज हो जाता है। जैसे एरोप्लेन टेक ऑफ से पहले हौले-हौले रेंगता है और अचानक आसमान से बातें करने लगता है। दाँत का दर्द हवाईजहाज जैसा होता है। शुरुआत में व्यक्ति घर वालों को नहीं बताता कि उसके दाँत में दर्द है, वह उस स्थान पर जीभ घुमाता रहता है और बहुत हुआ तो छूकर हिलाने की भी कोशिश करता है। थोड़ी देर में दाँत का दर्द तेज हो जाता है और व्यक्ति को इसकी सार्वजनिक घोषणा करनी पड़ती है। यार, आज दाँत में दर्द हो रहा है! 
मैंने देखा है कि दाँत दर्द के मामलों में परिवार वाले ज्यादा मददगार साबित नहीं होते। आप सौजन्यतावश मुँह खोलकर ऊपरवाली दाढ़ बताना चाहते हैं, जहाँ दर्द हो रहा है, पर वे आपके मुँह में झाँकने के बजाय बाहर सड़क पर मेंगनी कर रही बकरियों को देखना पसंद करते हैं। यह सरासर बेरुखी है, लेकिन क्या किया जा सकता है। मैंने कहा न कि दाँत के दर्द में परिवार वाले ज्यादा मददगार साबित नहीं होते। आप उन्हें बाईं तरफ की ऊपर वाली दाढ़ बाताएँगे तो वे अपनी स्मृति के आधार पर सिर्फ यही कहेंगे कि इसमें पहले भी दर्द हुआ था। आप उनकी स्मृति को आदर देने के लिए चाहें तो मुंडी हिलाकर स्वीकार्यता देने का उपक्रम कर सकते हैं। इस संक्षिप्त से घरेलू वार्त्तालाप के बाद आपकी दंतकथा का लगभग समापन हो जाता है, लेकिन दाँत का दर्द हर्गिज समाप्त नहीं होता।
बहरहाल जैसा कि मैंने ऊपर कहा कि पहले इस कॉलोनी में दाँत के दवाखाने नहीं थे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में चार-पाँच खुल गए। अभी भी खुलते जा रहे हैं। हर दो-तीन महीने में एक-न-एक दंत चिकित्सालय खुलने का निमंत्रण मिल रहा है। यह राहत की बात है। सरकारी भाषा में कहें तो दाँत के अस्पतालों के बाबत हम आत्मनिर्भर हो रहे हैं। मैं सोचता हूँ, यहाँ दाँत के अस्पताल इसी गति से खुलते रहे तो इस कॉलोनी का नाम यमुना विहार से बदलकर डेंटल कॉलोनी रखा जा सकता है। दाँत के दवाखानों के आधिक्य के चलते अब लोग अपने घर का वास्तु भी बदलने लगे हैं। नया घर बनाने वाले अब अपने घर के सामने एक दस बाई दस का रूम निकालना जरूरी समझते हैं। ऐसा वे इसलिए करते हैं कि देर-सबेर कोई भी डेंटिस्ट किराए पर ले लेगा। दाँत के दवाखाने अब लैंडमार्क के लिए भी प्रयुक्त होने लगे हैं। लोग अपने पते के साथ दाँत के दवाखाने का उल्लेख करते हैं। ‘आर सी भदोरिया, डॉ. बतरा के दंत चिकित्सालय के सामने’ या डॉ. दास के डेंटल क्लीनिक के पीछे। या डॉ. फलाने के बाजू में। 
दाँत के दवाखानों की वजह से अनेक लापता लोगों के पतों को प्रतिष्ठा मिलती जा रही है। यहाँ हर गली में एक दाँत का दवाखाना है। कॉलोनी में दाँत के अस्पतालों की बाढ़-सी आ गई है। जैसे-जैसे दाँत के दवाखाने खुल रहे हैं, लोगों का दाँत दर्द बढ़ते जा रहा है। यह भी देखने में आया है कि विवाह योग्य डेंटिस्ट शादी के लिए ऐसी लड़की चुनते हैं, जो दाँत की डॉक्टर हो। पति-पत्नी दोनों दंत चिकित्सक हों तो मरीजों को भी सुविधा हो जाती है। पत्नी से दाँत न उखड़े तो वह अपने पति की मदद लेकर कैसे भी अड़ियल दाँत को उखाड़ सकती है। दाँत निकालने के दौरान यदि कोई मरीज डेंटल चेयर से उठकर भागने की कोशिश करे तो डेंटल दंपत्ती उसे आसानी से पकड़ सकते हैं। कई बार दाँत के मरीज को वश में करना एक आदमी के बूते की बात नहीं होती। दंत दंपत्ती कहने में भी अनुप्रास का मजा आता है। डेंटल कपल। वाह!
कॉलोनी में भाँति-भाँति के दंत चिकित्सक आ गए हैं। एक डॉक्टर दास हैं, जो नाम से भले ही दास हों, पर रवैये में एकदम मालिकों जैसे हैं। मरीज को डेंटल चेयर पर लिटाकर मुँह खोलने के लिए ऐसे दुत्कारते हैं, मानो अपने नौकर को डाँट रहे हों। ‘मुँह खोलो, रात को क्या खाया था? ऊपर की दाढ़ है या नीचे की?’ मरीज जवाब दे, इसके पहले ही डॉक्टर साब का मोबाइल बज उठता है। वे मोबाइल पर बात करने में लगे हैं और मुँह खोले हुए मरीज के चेहरे की मांसपेशियाँ दुखने लगी हैं। कई बार खुले हुए मुँह में मच्छर भी आवाजाही करने लगते हैं। लेकिन डॉक्टर साब की बात खत्म ही नहीं होती। डॉ. शर्मा अपने मरीजों को एक खास किस्म का मंजन देते हैं, जो इतना बदबूदार और बेस्वाद होता है कि उसे देखते ही उलटी करने का मन करता है। लेकिन डॉक्टर साब की हिदायत है कि इस मंजन को करने के बाद थूकना नहीं है। मरीज पूछता है कि डॉक्टर साब गलती से थूक दिया तो क्या होगा? डॉक्टर साब कहते हैं कि फिर से मंजन कर लो। मरीज कहने लगा कि डॉक्टर साब, फिर से भी थूकने में आ जाए तो क्या करें! डॉक्टर साब झल्ला उठते हैं, यार, तुम्हें दाँत की बीमारी  है या थूकने की? यदि थूकने की बीमारी है तो सिन्हा साब को दिखाओ, वे थूक के डॉक्टर हैं। कुछ डॉक्टर केवल रूट कैनाल के विशेषज्ञ होते हैं। उन्हें हर दाँत में बैक्टेरियल संक्रमण दिखाई देता है। वे हर दाँत की रूट कैनाल करना पसंद करते हैं। जबकि कुछ डॉक्टर केवल आड़े-तिरछे दाँतों में तार बाँधने में पारंगत होते हैं। दाँतों में कैप लगाने वाले विशेषज्ञ अलग होते हैं, जबकि लगी हुई कैप को उखाड़ने वाले अलग। दाँत की बीमारियों के विशेषज्ञ बढ़ते जा रहे हैं। 
आगे चलकर हर दाँत का एक अलग विशेषज्ञ होगा। ‘जी नहीं, मैं केवल बाईं दाढ़ निकालता हूँ, दाहिने तरफ की निकालना है तो डॉ. रेवारी से मिलो।’ दाँत केवल बत्तीस हैं, पर विशेषज्ञों की संख्या बढ़ती जा रही है। हमारे एक मित्र हैं, रामसजीवन। कल से उनके दाँत में तेज दर्द है। अपने दाँत दर्द को लेकर वे एक अजीब साँसत में फँसे हैं। कहने लगे, समझ नहीं आ रहा है, क्या करूँ। मैंने कहा, कॉलोनी में ढेरों दंत चिकित्सक हैं, कहीं भी जाकर दिखा दो। कहने लगे—भाई साब, इतना आसान नहीं है। पत्नी कहती है, डॉ. वर्मा के पास मत जाना, उसकी मिसेज बहुत अकड़बाज है। इससे अच्छा तो डॉ. दास को दिखा दो। परसों दास भाभी हल्दी कुंकुम में आई थी तो मेरी साड़ी की बहुत तारीफ कर रही थी। दास भाभी बहुत अच्छी हैं। लेकिन डॉ. दास के यहाँ जाने से बिटिया मना करती है, उसका कहना है कि दास अंकल की बेटी बहुत स्मार्ट बनती है, कल उसने मुझे स्कूटी पर लिफ्ट नहीं दी। इससे अच्छा तो सिन्हा साब को दिखा दो। लेकिन सिन्हा साब को दिखाने से बेटा मना करता है। रामसजीवन कहते हैं कि अपने घर वालों की वजह से उन्होंने दवाखाना जाने का इरादा बदल दिया है। वे सुबह से गरम पानी में पोटाश डालकर कुल्ले कर रहे हैं।
कहते हैं कि हाथी के दाँत खाने के अलग होते हैं और दिखाने के अलग, जबकि आदमी के पास यह सुविधा नहीं है। आदमी के पास खाने और दिखाने के लिए सिर्फ एक ही प्रकार के दाँत होते हैं। हाँ, यदि आपके मुँह में दाँत नहीं हैं तो आप दाँत निपोरने की हरकत से बच सकते हैं। जबकि नौकरशाही के इस दौर में दाँत निपोरने के अनेक फायदे हैं। दाँत न हों तो दाँतों तले उँगली नहीं दबाई जा सकती, जबकि इन दिनों दाँतों तले उँगली दबाने के अनेक कारनामे हो रहे हैं। प्रधानमंत्री अभी चीन में थे और पलक झपकते ही अमेरिका पहुँच गए, ऐसे में आदमी के पास दाँत हों तो कम-से-कम वह दाँतों तले उँगली तो दबा सकता है। रामचरितमानस में दाँतों का जिक्र बहुत नकारात्मक ढंग से हुआ है। हनुमानजी जब लंका जाकर विभीषण के हालचाल पूछते हैं तो वह कहता है कि उसकी स्थिति दाँतों के बीच जीभ जैसी है। आठों पहर खतरे में।    
सुनहु पवनसुत रहन हमारी। जिमि दाँतन बीच जीभ बिचारी॥ 
विभीषण की अपनी विवशताएँ हो सकती हैं, जबकि चेहरे के सौंदर्य के लिए दाँतों का होना बहुत जरूरी है। शौर्य और वीरता की प्रामाणिकता के लिए दुश्मन के दाँत खट्टे करने की परंपरा आदिकाल से ही चली आ रही है। दाँत तोड़ने के पीछे जो नजरिया है, उसके मूल में सामने वाले को सिर्फ दंत विहीन करना ही नहीं है, बल्कि चेहरे के सौंदर्य को भी नष्ट करने की अवधारणा है। वैदिक साहित्य में दाँत तोड़ने की घटना का विवरण पढ़कर लगता है कि दाँत प्राचीन युग से ही निशाने पर रहे हैं। कहते हैं कि भगवान् शंकर जब दक्ष यज्ञ का विध्वंश करने के लिए गए तब पूषण नामक देवता दाँत दिखाकर हँसने लगा। लिहाजा शिवजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने पूषण देव के दाँत तोड़ दिए।
पूषणप्तय: पिष्टदो भग्रदन्तो अभवत पुरा
दक्षाय कुपितं जहसि विवृत द्वजः।
खैर, सिद्धांत की बात यह है कि आदमी के दाँत और मसूढ़े स्वस्थ तथा मजबूत होने चाहिए। खाने को चाहे भरपेट न मिले, पर दाँतों का बचे रहना जरूरी है। हमारी कॉलोनी के दंत चिकित्सक इस काम में गंभीरता से जुटे हैं। 

१५-१६, कृष्णपुरम् कॉलोनी, जेल रोड, 
सिविल लाइंस, माता चौक, 
खंडवा-४५०००१ (म.प्र.)
दूरभाष : ९४२५०८५०८५

 

हमारे संकलन