श्री मधुरंतकम नरेंद्र का जन्म १९५७ में आंध्र प्रदेश के दामलचेरुवु गाँव में हुआ था। वह तिरुपति स्थित श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय से २०१९ में अंग्रेजी के प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्हें कहानी-लेखन की प्रेरणा अपने पिता और प्रसिद्ध तेलुगु लेखक श्री राजाराम मधुरंतकम से मिली। उनके कई कहानी-संग्रह प्रकाशित हुए, जिनमें से ‘कुंभमेला’ और ‘अस्तीतवानीकी अटू इटू’ अत्यंत प्रसिद्ध हैं। उन्होंने कई उपन्यासों, कविताओं और नाटकों की भी रचना की। उन्होंने अपनी कहानियों में आस-पास के माहौल और वातावरण का विस्तार से वर्णन किया है। यह उनकी कहानी कला की विशेषता है।
जब तक मैं पेदम्मा चौल्ट्री पर मुड़ा, तब तक संतोषाबाद पैसेंजर कोथेरू स्टेशन पर पहुँच चुकी थी, जहाँ पर वह केवल दो मिनट के लिए ही रुकती थी। मैंने लगभग १०० मीटर की दूरी पर स्थित टिकटघर की ओर सरपट दौड़ लगा दी। मेरी साँस फूल रही थी।
‘संतोषाबाद’, मैंने हाँफते हुए कहा।
‘आप तेज दौड़ो अधिक समय नहीं है’, टिकट खिड़की पर बैठे व्यक्ति ने सहायतावश परामर्श दिया।
मैं डिब्बे के प्रवेश द्वार पर यात्रियों की भीड़ में से किसी तरह अपने शरीर को भीतर धकलने में सफल रहा। अलबत्ता मैं कह नहीं सकता कि भीतर स्वयं घुस सका या ईश्वर ने या किसी और ने मुझे वहाँ पहुँचा दिया था। गार्ड ने सीटी बजा दी। मैं अभी भी सीट के लिए यहाँ-वहाँ देख रहा था। इंजन ने एक तेज कर्कश चीख मारी। ट्रेन दो बार लड़खड़ाई, आगे-पीछे हुई, फिर पीछे की ओर लुढ़की, यात्रियों को भय हुआ कि कहीं यह रुक न जाए। हालाँकि अजीब आवाजें करती हुई यह धीरे-धीरे आगे बढ़ी। कुछ चिंता के साथ मैंने अपनी जेब थपथपाई। चिंता की बात नहीं। साक्षात्कार पत्र अंदर सुरक्षित था।
रेल ने चिंतालावानका का पुल पार कर लिया था और गति पकड़ ली थी। एक गहरी साँस भरकर मैंने डिब्बे का जायजा लिया। महिलाएँ सीट नहीं पा सकने के कारण संतोषाबाद में बेची जाने वाली सब्जियों और पान की टोकरियों के साथ डिब्बे के प्रवेश द्वार पर उकड़ूँ बैठी थीं। उस स्थान पर अपना आधिपत्य जमाते हुए उन्होंने आने-जाने वाले यात्रियों का मार्ग अवरुद्ध कर रखा था।
औरतों और उनकी टोकरियों के बीच विभिन्न मुद्राओं में लड़के खड़े थे, जो पहली दृष्टि में छात्र प्रतीत होते थे। रेल के गति पकड़ लेने के पश्चात् भी कुछ लोग खिड़की की पिट्टयों से डिब्बे से बाहर हवा में लटकते रहे और बाद में संतोषाबाद में उनके द्वारा देखी जाने वाली फिल्मों की चर्चा करते रहे। यह देखकर मुझे निराशा हुई कि रेलवे मेल सेवा के कर्मचारियों ने आधी बोगी पर कब्जा जमा रखा था। अब दो डिब्बों के बीच सीटों की केवल चार कतार ही बची हुई रह गई थीं।
प्रवेश द्वार के निकट शौचालय का दरवाजा पूरी तरह से खुला हुआ था। उसकी दुर्गंध यात्रियों के पसीने की महक में घुल-मिल गई थी। शौचालय की दीवार से टिके हुए जलाऊ लकड़ी के दो गट्ठर जोश से हिल रहे थे। इन्हें भीतर तक ढोने वाले दोनों व्यक्ति काले शरीर और झबरे बालों वाले कंकाल सरीखे लोग थे। इनके कपड़े फटे हुए थे। दोनों गट्ठर के पास खड़े होकर बीड़ी पी रहे थे। भिखारियों का एक दूसरा परिवार, जिनका सारा निजी सामान एक पुराने बोरे में भरा हुआ था, दरवाजे के दूसरी ओर डेरा डाले हुए था। इनमें पुरुष टूटे हुए दरवाजे, स्त्री अधजले कुंदे तथा उनके बच्चे क्षतिग्रस्त टेढ़े-मेढ़े अल्मुनियम के बरतनों के समान प्रतीत हो रहे थे। उनसे आगे परंतु शौचालय के द्वार से पीछे खड़े व्यक्ति के हाथों के स्थान पर दो ठूँठ थे और उसका चेहरा भी विकृत था, इसने लोगों में घृणा और कुष्ठ रोग का भय बढ़ा दिया था।
देर से आने वालों के रेले ने मुझे कुछ और भीतर धकेल दिया, मुझे आश्चर्य हुआ कि क्या मैं अचानक एक अनोखे संसार में पहुँच गया हूँ, एक अभेद्य जंगल, जिसमें विचित्र जानवर और भयावह ठग रहते हैं, जो कि रेगिस्तान से गुजरने वाले व्यापारियों के कारवाँ को लूटा करते थे।
गाड़ी सभी प्रकार के पुरुषों और महिलाओं से खचाखच भरी हुई थी, दुधमुँहे बच्चे से लेकर झुकी कमर वाले बूढ़े व्यक्ति तक। मैंने सोचा, यह जनसांख्यिकीय विविधता का एक उत्साहवर्धक तमाशा है। महिलाओं में न कोई शालीनता थी और न पुरुषों में कोई गरिमा। समय मानो हजारों साल पीछे चला गया था। कोई भी चित्रकार इन लोगों द्वारा पहने गए वस्त्रों के रंग बनाने के लिए रंगों का संयोजन नहीं बना सकता था। चिड़ियाँ इनके उलझे बालों में सरलता से अपने घोंसले बना सकती थीं। वे फेरीवालों द्वारा बेची जाने वाली हर चीज को खरीद रहे थे और खा रहे थे, जिससे सीटें कूड़ादान बन चुकी थीं। बिस्तरों और बक्सों से भरी हुई ऊपरी बर्थ पर सब अपनी प्रभुता जमाए हुए थे। इनसान और सामान इस कदर भरे हुए थे कि चींटी भी प्रवेश नहीं कर सकती थी। विचित्र चीखों-पुकार के द्वारा उन्होंने डिब्बे में हंगामा मचा रखा था।
रेल हिली, खड़खड़ाई और आगे बढ़ गई।
“तुम थोड़ा सा भी आगे क्यों नहीं बढ़ रहे हो? क्या हम ऐसे ही इन डंडियों से लटके रहेंगे?” कोई गुस्से से बाहर से चिल्लाया। मेरे शरीर को पीछे से एक और धक्का लगा। मुझे जोर से दूसरे डिब्बे में फेंक दिया गया, यह एक दूसरी ही दुनिया थी। खिड़की की ओर बैठी उपन्यास पढ़ने में लीन नवयुवती के चेहरे पर उसके चरित्रों के घटिया कारनामों का प्रभाव झलक रहा था। उसके पास ही चश्मे वाला व्यक्ति बैठा था, जो संभवत: उसका पति था, जो अपने हाथ में पकड़े लाल किनारी वाले जासूसी उपन्यास में हमलावर को खोजने का प्रयत्न कर रहा था। रेशमी कमीज पहने एक मोटा सा व्यक्ति बर्थ पर फैल-फूलकर बैठा था, जो तंबाकू का धुआँ उगलते खादी पहने एक व्यक्ति और क्रिकेट की राजनीति पर बहस करते दो युवाओं के लिए थोड़ी जगह प्रदान करने पर कुढ़ रहा था। उसके गले में पड़ी सोने की चेन चमक रही थी। बाहर सूर्य आग के गोले की तरह धधक रहा था। पूरी रेल भट्ठी में धकेली गई लोहे की छड़ की तरह तप रही थी। गति से ज्यादा गरमी अनुभव हो रही थी। जंग लगे पंखे, जो किसी को भी राहत पहुँचाने में असमर्थ थे, पराजय स्वीकार कर चुके थे। यात्री पसीने में डूबे हुए थे, वे समझ नहीं पा रहे थे कि कहाँ, कब और कैसे पहुँचेंगे।
लड़के दरवाजे की डंडियों को कसकर पकड़े, दर्जनों बोगियों को ढोने वाले आगे लगे इंजन से निकलने वाले कोयले के गर्दे से बचने के लिए आसरा चाहते थे। कुछ लड़के रेंगते हुए भीतर आने में सफल हो सके थे और बर्थ पर सोए रेशमी कमीज पहने व्यक्ति को जगाने का प्रयास कर रहे थे। धुआँ उगलते खादी वाले व्यक्ति ने संकेत से उन्हें प्रतीक्षा करने को कहा। लड़कों ने, जो अब तक कोयला खदान में काम करने वाले खनिकों के समान लग रहे थे, उसकी ओर शिकायती नजरों से देखा। “ऐसा प्रतीत होता है कि इसने पूरा टिकट लिया है। तभी वह कह रहा है कि इसका बर्थ पर पूर्ण अधिकार है। वह उठकर नहीं बैठ रहा, जबकि उसे सोने की इच्छा भी नहीं है। मैं अपने अनुभव से तुम्हें बताता हूँ, भिंड के छत्ते में हाथ डालना बुद्धिमानी नहीं है। पिछले स्टेशन पर इस मुद्दे पर एक बड़ी जंग छिड़ गई थी। हम इसे इसके प्रतिद्वंद्वियों से बचाते हुए लगभग गिर ही गए थे।” खादी वाले व्यक्ति ने कहा।
“ठीक है, बूढ़े आदमी। हम इन मामलात को सुलझाने में कोई नए नहीं हैं। हम इस यात्रा को टाल नहीं सकते हैं। क्या यह समझता है कि हमने टिकट नहीं खरीदी? मैं भी देखता हूँ यह कैसे नहीं उठता।” एक लड़के ने कहा; साथ ही उसने रेशमी कमीज वाले व्यक्ति का हाथ पकड़ उसे जबरदस्ती उठाना चाहा। दूसरे लड़के ने कपड़े के गट्ठर की तरह उसको उठाकर एक ओर धकेल दिया। तीसरे लड़के ने जबरन उसकी आँखें खोल दीं। रेशमी कमीज वाले व्यक्ति का चेहरा लाल भभूका हो उठा। वह अपने दाँतों को किचकिचाते हुए विचित्र वाद्ययंत्रों वाले ऑर्केस्ट्रा की धुनों की तरह आवाज कर रहा था। लेकिन जल्लादों के समान अपने ऊपर खड़े लड़कों को देखकर उसने हार मान ली थी।
“गुरुजी, अगर आप मुर्दे के समान मुद्रा में रहना चाहते हैं तो बैगों और बक्सों की संगत में बर्थ के नीचे चले जाएँ। हमें बुरा नहीं लगेगा,” घुँघराले बालों वाले युवा लड़के ने कहा। रेशमी कमीज वाला उन्मत्त के समान लहराते हुए अपना सूटकेस लेकर दरवाजे की ओर बढ़ा और चिल्लाया, “प्रतीक्षा करो, मैं अगले स्टेशन पर पुलिस से तुम्हारी शिकायत करूँगा।”
तीन लड़कों ने उसके द्वारा खाली की गई सीट पर कब्जा जमा लिया और मुझे भी बैठने के लिए आमंत्रित किया। मैंने उन्हें धन्यवाद दिया और धम से सीट पर बैठ गया। जासूसी उपन्यास में डूबे चश्मे वाले व्यक्ति ने लड़कों की प्रशंसा करते हुए कहा, “तुम लोगों ने बहुत अच्छा किया। बधाई और धन्यवाद।” उसकी पत्नी ने भी अपनी पुस्तक से सिर उठाया और उन्हें एक बड़ी सी मुसकान दी। इस अनपेक्षित प्रशंसा से उत्साहित होकर घुँघराले बालों वाले लड़के ने पूछा, “वह अपनी रेशमी कमीज और गले की चैन से कोई बड़ा व्यापारी प्रतीत हो रहा था, वह प्रथम श्रेणी में यात्रा क्यों नहीं करता?” चश्मा पहने वाले व्यक्ति को सुनकर आश्चर्य हुआ कि उनकी इस पैसेंजर ट्रेन में प्रथम श्रेणी भी है।
“इस ट्रेन में दो प्रथम श्रेणी के डिब्बे हैं, लेकिन रेलवे अधिकारियों को मुफ्त यात्रा करने के लिए भी उसमें मुश्किल से स्थान मिल पाता है। और फिर चुनाव के समय हमारी झोंपड़ियों में आकर थके हुए बेचारे राजनीतिक नेता भी तो हैं। उन्हें प्रथम श्रेणी में आराम करने दो।” पूरी तरह से चित्रों से ढकी हुई कमीज पहने हुए लड़के ने कहा।
एक अन्य लड़के ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “उन्होंने तृतीय श्रेणी तो समाप्त कर दी, किंतु क्या वह तृतीय श्रेणी के लोगों को बाहर रख सकते हैं! गोबर के ढेर पर मक्खियों के झुंड के समान वे हर जगह हैं, हर बोगी के प्रवेश द्वार पर और शौचालयों के इर्द-गिर्द।”
“इस ट्रेन की प्रथम श्रेणी तक में भारी भीड़-भाड़ है। सुविधाएँ न के बराबर हैं। अगर अगले स्टेशन पर इतना समय मिला तो मैं एक्सप्रेस ट्रेन पकड़ लूँगा।” खादी पहने व्यक्ति ने कहा।
एक लड़के ने याद दिलाते हुए उससे कहा कि “उस स्टेशन पर एक्सप्रेस ट्रेन के टिकट नहीं बिकते।”
“मैं उस एक्सप्रेस ट्रेन के सभी टिकट-परीक्षकों को जानता हूँ।” खादीवाले व्यक्ति ने अपनी भौंहे चढ़ाते हुए कहा।
अगले कंपार्टमेंट में अचानक हंगामा फूट पड़ा। यह सैकड़ों लाउडस्पीकरों द्वारा प्रवर्धित आवाजों के विस्फोट जैसा था। भावनाएँ बम की तरह फट पड़ीं। चिंतित, चश्मे वाले व्यक्ति और उसकी पत्नी ने अपनी आँखें घुमाते हुए आवाजों के स्रोत का पता लगाने का प्रयास किया। “सब ठीक है, श्रीमान! हमारे गैंग का एक सदस्य उन्हें अनुशासन सिखा रहा था।” चित्रों वाली कमीज पहने लड़के ने जोर से हँसते हुए कहा।
“ये झड़पें आम बात हैं। ऐसा लगता है कि कोई ईश्वर संतोषाबाद के पास अपने लिए मंदिर निर्मित करवा रहा है। हर प्रकार के लोग यहाँ आते हैं। हम उनकी भाषा नहीं समझते। कुछ की भाषा टीन के डिब्बे में पत्थरों के खड़खड़ाहट जैसे होती है, जबकि कुछ की कराहती हुई सी लगती है। यह गिरोह किसी भी डिब्बे में घुस जाते हैं और जैसे ही अंदर जाते हैं, प्रवेश द्वार को अवरुद्ध कर दरवाजा बंद कर लेते हैं। वह समझते हैं, मानो संपूर्ण बोगी उन्हीं की है। गलती से भी अगर कोई बाहरी व्यक्ति भीतर आ जाए तो वह तृतीय विश्वयुद्ध छेड़ देते हैं।” लड़के ने आगे कहा।
ट्रेन काँप उठी और रुक गई। चित्रों वाली कमीज पहने लड़के ने अपना भाषण रोक दिया और चिल्लाया, मानो उसे कोई दूरदर्शी संदेश मिला हो, “साहब! किसी ने चेन खींची है” और फिर यात्रियों की भीड़ को चीरते हुए दरवाजे तक पहुँच गया। यह जानने के लिए, क्या हुआ, युवा यात्री अपनी बोगियों से बाहर कूद पड़े। बंजर लाल मिट्टी के पार मजबूती से जमे हुए पत्थरों की बड़ी शिलाएँ तथा घास के मैदान में चरते हुए मवेशियों का दिल को छू लेने वाला दृश्य दिखाई दे रहा था। खड़ी हुई ट्रेन को घेरे खड़े यात्री ऐसे प्रतीत हो रहे थे, मानो मरे हुए साँप के आस-पास चींटियाँ।
“क्या हुआ?” बंदूक की गोली की तरह दनदनाते हुए चश्मे वाले व्यक्ति ने प्रश्न किया। जब किसी ने उत्तर न दिया तो गुस्से में वह बोला, “अनुशासन में दिन-ब-दिन गिरावट आती जा रही है। क्या कोई नहीं है, जो चेन खींचे जाने की इन घटनाओं पर ध्यान दे?”
“क्या चेन खींचे जाने के जुर्माने के बारे में आप जानते हैं? क्या आपने कभी चेन के नीचे लिखी चेतावनी देखी है?” उसने कहा। मुझे आश्चर्य हुआ कि मैं उसके गुस्से का निशाना क्यों बन गया हूँ।
“वह सब जानते हैं कि चेन किसने खींची है। कंपार्टमेंट में सब मासूमियत का नाटक करते हैं। इसी बीच अपराधी बचकर भाग जाता है।” किसी ने कहा।
चश्मे वाले व्यक्ति ने ज्ञानवान होने का प्रदर्शन करते हुए कहा कि “अगर ड्राइवर वैक्यूम बंद कर दें तो चेन खींचने पर भी रेल नहीं रुकेगी।”
“एक बार ड्राइवर ने ऐसा ही किया था। कोई व्यक्ति अचानक से बीमार हो गया और चेन खींचने पर भी ट्रेन नहीं रुकी। उन्होंने ड्राइवर की शिकायत कर दी। ड्राइवर बेचारा रोता रहा।” उसके पास बैठे हुए लड़के ने कहा।
इस घटना को सुनकर चश्मे वाले व्यक्ति को झटका सा लगा। उसने उपन्यास को वापस सूटकेस में डाल दिया और सिगरेट का पैकेट निकाल लिया। एक मिनट बाद ही धुआँ उगलती एक लंबी सिगरेट उसके होंठों से लटक रही थी। ऊबकर वह छत पर टँगे पंखे के इर्द-गिर्द छुपन-छिपाई खेल रही छिपकलियों को देखने लगा। मैंने उसको थोड़ा और सताने का निश्चय किया। “आपने चेन के नीचे लिखी सूचना को तो देखा, पर उसके किनारे पर लिखी सूचना को नहीं देखा।” मैंने कहा और खिड़की के ऊपर लिखी सूचना की ओर संकेत किया। ‘धूम्रपान निषेध है’ तख्ती पर लाल अक्षरों में चेतावनी थी। इस सूचना को देखने के पश्चात् युवा व्यक्ति का चेहरा छुईमुई की पत्ती की तरह मुरझा गया। जल्दी से उसने अपनी सिगरेट होंठों से निकाली और अपने पैरों तले कुचल दी। फिर झेंपते हुए उसने सिगरेट का टोटा उठाया और उसे खिड़की के बाहर फेंक दिया।
उपन्यास की विषयवस्तु में डूबी उसकी पत्नी ने अपना सर उपन्यास से बाहर निकाला और क्रम से हमारे चेहरे देखने लगी। पाँच मिनट बीतने के बाद पति ने मुझसे कुछ कहने के लिए अपना मुँह खोला, “वह व्यक्ति पिछले एक घंटे से सिगार सुलगा रहा है। तब तुम्हें कोई आपत्ति नहीं। फिर मुझसे ही क्यों?”
मुझे समझ नहीं आया कि क्या जवाब दूँ। इस बीच हमने यह ध्यान ही नहीं दिया कि ट्रेन अपने अनिर्धारित स्टॉप को छोड़ चुकी थी और आगे बढ़ रही थी। उसने फिर कहा, “मैं तुम्हारे जैसे लोगों को जानता हूँ। तुम किसी ऐसे आदमी को चुन लेते हो, जो सभ्य हो, परंतु यदि वह मजबूत हो तो तुम उसकी तरफ से आँखें मूँद लेते हो।”
“अरे, तुम मुझे कठोर कहते हो!” खादीवाला व्यक्ति गुस्से से बोला।
बात को अचानक बदलते हुए देखकर चश्मेवाले व्यक्ति की पत्नी ने उसे डाँटते हुए कहा, “तुम हर चीज में अपनी नाक क्यों घुसाते हो? क्या तुम कुछ देर के लिए चुप नहीं रह सकते? तुम बहुत बड़ा सरदर्द बन गए हो।” ट्रेन ने जोर से मानो जम्हाई ली और कुछ क्षण के लिए आगे-पीछे हिलने लगी। जो लोग सैर करने के लिए बाहर निकल गए थे, वे जल्दी दरवाजों की डंडियों से लटकने के लिए वापस आ गए। ट्रेन ने खिसकना आरंभ कर दिया। यह चुंबक की तरह लग रही थी, जिससे यात्री लौह चूर्ण की तरह चिपके हुए थे।
जो लड़के कंपार्टमेंट छोड़कर चले गए थे, वे वापस आकर तेल के लैंप से बनने वाली छाया के समान खामोशी से मेरे पास बैठ गए। वह छोटे बच्चों के समान एक-दूसरे से सांकेतिक भाषा में बातें कर रहे थे। “और लोग कहाँ है?” मैंने कुछ संदेह से उनसे पूछा। उन्होंने संकेतों से बताया कि टिकट कलेक्टर आसपास घूम रहा है।
इससे पहले कि मैं उनके संकेतों को समझ पाता, मैंने गलियारे के दूसरे छोर पर हलचल महसूस की। पाँच मिनट बाद टिकट कलेक्टर प्रकट हुआ, उसने पसीनों के धब्बों वाला काला कोट पहन रखा था, जिस पर उसका ओहदे का बैच पिन किया हुआ था, उसने अपने से अधिक लंबे व्यक्ति को गरदन से पकड़ा हुआ था। “साले, तूने सोचा कि तू मुझे चकमा दे सकता है। अरे, तुम्हारा बाप भी ऐसा नहीं कर सकता! तू मुझे इस तरह घूर क्यों रहा है? मैं तुम जैसे हजारों रोज देखता हूँ। तुम्हें लगता है, तुम मुझे धमका लोगे? मैं तुम सबको कूलर में डाल दूँगा! क्या टिकट कलेक्टर इतने सस्ते होते हैं? यहीं रुको। मैं तुम्हें मार डालूँगा, अगर तुम यहाँ से जरा भी हिले तो। दूसरे कंपार्टमेंट का चक्कर पूरा करने के बाद मैं वापस आकर तुम्हारा मामला सुलझाऊँगा।” टिकट कलेक्टर ने उस काले रंग के युवा को एक कोने में धकेल दिया और यात्रीसूची का क्लिपबोर्ड अपनी बगल में दबाकर चला गया।
वह बदमाश एक फँसे हुए चूहे के समान डरता हुआ वहाँ खड़ा रहा। वह २५ वर्ष से अधिक का नहीं था। उसका गहरे रंग का बलिष्ठ शरीर उसके कृषि पृष्ठभूमि से होने को दरशा रहा था।
“उसके वजन को तो देखो। वह भारोत्तोलक के समान नहीं लग रहा? वह बिना टिकट भीतर घुसा ही क्यों? ऐसे ही लोग यात्रा को कष्टकारी बना देते हैं। उन्हें बीच यात्रा में निकालकर बाहर फेंक देना चाहिए।” चश्मेवाले व्यक्ति ने भावुक होकर कहा।
“तुम फिर वही कर रहे हो। तुम्हें रास्ते में जो भी मिलता है, तुम उससे बहस करने लग जाते हो? तुम क्या करोगे अगर वह पलटकर हमला करें तो?” उसकी पत्नी ने उलाहना दिया।
“क्या, पलटवार? क्या वह मुझसे ताकतवर है? तुम मुझे जानती नहीं हो, उसकी मांसपेशियाँ मेरी नैतिक शक्ति के सामने क्या हैं?” पति ने अपनी मुिट्ठयाँ भींची और कोने वाले लड़के को देख मुँह बिचकाया।
“मैंने तुमसे भाषण देने को नहीं कहा। चुप रहो।” पत्नी ने तीखी नजरों से देखते हुए कहा।
ट्रेन की गति धीमी होने लगी। ब्रेक के पहियों पर दबाव पड़ने और इंजन के चरमराने और चीखने की आवाज के साथ धातु की खनक भी सुनी जा सकती थी। ट्रेन दोहरी पटरियों पर चलते हुए नादिमपल्ली रेलवे स्टेशन में प्रवेश कर गई। वह घुरघुराई, फुफकारी और रुक गई।
“एक्सप्रेस आने वाली है। इसलिए पैसेंजर ट्रेन को लूप में डाल दिया गया है।” घुँघराले बालों वाले आदमी ने कहा। उसके बगल में बैठे चित्रों वाली कमीज पहने लड़के ने साँस भरी, “ईश्वर जाने एक्सप्रेस कब आएगी। कुछ पता नहीं वह बाहरी सिग्नल पर है या नहीं और कितनी देर प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। चलो उतरते हैं।” वह अपने दोस्तों के साथ नीचे उतर गया।
मिट्टी के लंबे प्लेटफॉर्म के साथ ही पेड़ों की कतार थी, जिनके सारे पत्ते झड़ चुके थे। एक जीर्ण-शीर्ण आश्रय पर अंग्रेजी में लिखा CANTEEN साफ देखा जा सकता था। अंग्रेजों द्वारा वर्षों पहले बनवाए गए पुराने स्टेशन से नींद में चलता गुँजले हुए कपड़े पहने, लाल और हरे दो झंडे पकड़े स्टेशन मास्टर प्रकट हुआ। रेलवे क्वार्टर के अतिरिक्त वहाँ कोई भी रिहाइश नहीं दिख रही थी। संभवत: स्टेशन से डरकर कस्बा दूर चला गया था। कोई नहीं बता सकता कि उन्होंने यह स्टेशन यहाँ क्यों बनाया। फटे हुए कपड़ों में बच्चे और धूल-धूसरित कपड़ों में दुबली-पतली स्त्रियाँ मिठाइयाँ और स्नैक्स बेच रहे थे। भूखे यात्री हर उपलब्ध चीज खा रहे थे। एकमात्र पानी के नल के पास भारी भीड़ जमा थी।
“मैं पिछले जंक्शन तक सुपर एक्सप्रेस में यात्रा कर रहा था। क्या आरामदेह यात्रा थी! हमारा प्रथम श्रेणी भी उसके द्वितीय श्रेणी की समानता नहीं कर सकता। उसके प्रथम और ए.सी. क्लास तो स्वर्ग के जैसे हैं। रॉकेट की रफ्तार। मुझे उसी से पूरी यात्रा करनी चाहिए थी। बिना पैसे की जिंदगी वास्तव में जिंदगी ही नहीं है।” युवा व्यक्ति ने खुद से कहा।
ड्राइवर और उसका सहायक इंजन से उतर आए तथा एक पुरानी बोतल से पानी पीने लगे। युवा व्यक्ति एवं खादीवाला व्यक्ति प्रथम श्रेणी कंपार्टमेंट के पास खड़े होकर कोला गटकने और लंबी सिगरटें फूँकने लगे। टिकट कलेक्टर द्वारा भगाए जाने के पश्चात् भिखारियों का एक परिवार प्लेटफॉर्म पर बैठा था, वे दयनीय दिख रहे थे। ट्रेन को रुके हुए आधे घंटे से भी ज्यादा समय हो चुका था। प्लेटफॉर्म पर लगे नल से पानी आना भी बंद हो चुका था। यात्रियों के बार-बार पूछने से चिढ़ा हुआ स्टेशन मास्टर बता चुका था कि बिजली न होने के कारण मोटर नहीं चल सकता। फेरीवाले बिक्री से अल्पमात्रा में मिली रेजगारी गिन रहे थे।
एक्सप्रेस के हूटर की तीखी आवाज दूर से सुनाई पड़ी। पाँच मिनट बाद एक लंबी रेलगाड़ी मुख्य ट्रेक पर तेजी से गुजरी।
“आपने ध्यान दिया? यह हमारी पैसेंजर से तीन गुना बड़ी थी, पर उसमें केवल इससे एक-तिहाई ही यात्री थे।” मेरे सामने बैठे लड़के ने कहा।
यात्रियों के धैर्य की परीक्षा ले लेने के पश्चात् अंतत: गैंगमैन ने ड्राइवर को लाइन क्लीयरेंस दे ही दिया। हाॅर्न बज उठा। गार्ड ने कमजोर आवाज में सीटी बजाई। भिखारियों के परिवार को प्लेटफॉर्म पर असहाय छोड़कर ट्रेन चल पड़ी।
“१६ टिकटों पर वह २३ लोग यात्रा कर रहे थे। न तो वह जुर्माना भर रहे थे, न ही बाहर जा रहे थे। लेकिन अपनी तमाम चालाकियों के बावजूद वह मेरी दृष्टि से नहीं बच सकते।” टिकट कलेक्टर ने हमारे पास आकर हमारे टिकट देखते हुए कहा। चश्मे वाले व्यक्ति का टिकट देखकर वह खादीवाले व्यक्ति की ओर मुड़ा, पर वह हिला नहीं और धीमे खर्राटे भरने लगा।
“यह थोड़ी देर पहले जाग रहा था।” चश्मे वाले व्यक्ति ने कहा।
“बेचारा आदमी लंबी यात्रा पर निकले हुए प्रथम श्रेणी के यात्री जैसा लग रहा है। उसे रहने दो। मैं दुबारा में देख लूँगा, जब वह जगा हुआ होगा।” टिकट कलेक्टर ने कहा और युवा भीड़ की ओर मुड़ गया और टिकट माँगने लगा।
घुँघराले बालों वाले और चित्रों वाली कमीज वाले लड़कों ने अपनी चुप्पी तोड़ी और एक स्वर में कहा, “पास, पास।” टिकट कलेक्टर की आँख अब काले बलिष्ठ आदमी पर टिक गई। “बताओ तुम कहाँ से चढ़े हो?” उसने काले बलिष्ठ व्यक्ति से पूछा।
“पिछले स्टेशन से।” व्यक्ति ने कहा।
बिना एक और शब्द कहे टिकट कलेक्टर ने अपनी पुरानी पुस्तक निकाली और उससे कहा, “पिछले जंक्शन से जुर्माना भरो। एक सौ पैंतीस रुपए।” “साहब, साहब, मैं फिर कभी बिना टिकट यात्रा नहीं करूँगा, कृपया मुझे इस बार छोड़ दें।” आदमी गिड़गिड़ाया।
“अपनी कहानियाँ सुनाना बंद करो और मुझे अपना नाम बताओ। तुम्हारे साथ चुहलबाजी करने को मेरे पास समय नहीं है। ऐ चोर, तुम यहाँ आओ।” टिकट कलेक्टर ने व्यक्ति की एकमात्र जेब पर जोर से हाथ मारा और कुछ १० रुपए के नोट और पान के पत्ते इसमें से खोज निकाले।
“साहब, ये मेरे पैसे नहीं हैं।” उसने कहा और टिकट कलेक्टर के हाथ से पैसे पुन: प्राप्त कर पाने का प्रयास किया।
“मा...द, तुम मेरे हाथ से पैसे छीन रहे हो! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई!” टिकट कलेक्टर ने एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया, जो कि उँगलियों के निशान व्यक्ति के चेहरे पर छोड़ गया। व्यक्ति की आँखों में आँसुओं का समंदर उमड़ आया। “तुम समझते हो, लड़कियों की तरह रोओगे तो मैं तुम्हें छोड़ दूगाँ।” टिकट कलेक्टर ने कहा और गुस्से से भरकर अपनी किताब में प्रविष्टि भरने लगा।
चित्रों वाली कमीज पहने लड़के ने यथासंभव विनम्रता से टिकट कलेक्टर से कहा, “साहब, यह लड़का हमारे गाँव का है। इसके परिवार को दो समय का भोजन भी नसीब नहीं होता। इसके खेत में जिस तालाब से पानी आता था, वह बहुत पहले ही सूख गया था। आखिरी फसल कई साल पहले काटी गई थी। ऐसा लगता है कि वह कुछ दवाइयाँ खरीदने के लिए शहर जा रहा है। कृपया आप उसके लिए जो भी कर सकते हैं, करें।” “ठीक है, ठीक है, इसके कहने पर मैंने तुम पर केवल ७५ रुपए का जुर्माना लगाया है।” टिकट कलेक्टर ने कहा और खुले पैसे तथा रसीद व्यक्ति के हाथ में थमा दिए और पान के पत्ते अपनी जेब के हवाले किए।
“कृपया मुझे बताएँ कि यदि आप इसी तरह दया दिखाते रहेंगे तो नुकसान की भरपाई कौन करेगा?” चश्मेवाले व्यक्ति ने बंदूक की गोली की तरह प्रश्न दागा। टिकट कलेक्टर इस अप्रत्याशित प्रश्न से झल्ला गया। उसने कहा, “सच। क्या आप जानते हैं इस नौकरी में बहुत सारी कठिनाइयाँ हैं? हम नहीं चाहते, पर प्रतिदिन कम-से-कम आधा दर्जन यात्रियों को हमें परेशान करना पड़ता है। वह हमें कोसे देते हैं। घर पर हमारे बीवी-बच्चे हैं। हमें डर रहता है कि उनके कोसे हमारे परिवारों के लिए अशुभ न हो जाएँ।”
“फिर भी, यह सही नहीं है कि जुर्माना इस तरह से कम कर दिया जाए। बेहतर है कि आप उन्हें कुछ दिनों के लिए सलाखों के पीछे डाल दें।” चश्मेवाले व्यक्ति ने सुझाव देते हुए कहा।
टिकट कलेक्टर ने अनसुना करके बाहर की ओर बढ़ते हुए बुदबुदाते हुए कहा, “किसी ने फिर चेन खींच दी। मेरे लिए अच्छा है, मैं दूसरे कंपार्टमेंट की जाँच कर पाऊँगा।”
जैसे ही ट्रेन रुकी, दूर की एक बोगी से यात्रियों का एक बड़ा समूह बाहर आया और आपस में हाथापाई करने लगा। कुछ ने अपनी धोतियाँ समेट लीं और ट्रैक पर पड़े पत्थर उठाकर एक-दूसरे को मारने लगे। कुछ मिसाइल बने पत्थरों ने डिब्बों की खिड़कियों के शीशे तोड़ दिए, जिससे कुछ यात्री घायल हो गए। कुछ लोगों ने खिड़कियों के शटर गिराकर अपने कंपार्टमेंट को किलों में परिवर्तित कर लिया। बाहर हंगामा चरम पर पहुँच गया। पाँच-छह लोग खून में लथपथ लोगों को ले जाते हुए दिखाई दिए। चित्रों वाली कमीज पहने लड़का, जो उत्साह के साथ इस झड़प को देख रहा था, वापस आया और बोला, “कुछ लोगों, जो अजीब सी बोली बोल रहे थे, ने कंपार्टमेंट में दूसरों के प्रवेश का मार्ग अवरुद्ध कर उस पर कब्जा जमा लिया था। प्रतिद्वंद्वी दल जबरन कंपार्टमेंट के भीतर घुस आया और फिर जमकर खून-खराबा हुआ। उन्होंने खून से लथपथ घायलों को ट्रैक पर रख दिया है, जिससे ट्रेन रुक गई है। दोनों गुट इंजन के सामने बैठ गए हैं और कसम खा ली है कि जब तक न्याय नहीं मिलेगा, वह न तो हटेंगे और न ही ट्रेन को चलने देंगे।”
“टिकट कलेक्टर क्या कर रहा है? क्या आप-पास कोई रेलवे पुलिस का आदमी नहीं है? ड्राइवर को क्या हुआ है?” चश्मे वाले व्यक्ति की पत्नी ने अफसोस जताते हुआ कहा।
टिकट कलेक्टर की चर्चा सुनकर लकड़हारा अपने छुपने के स्थान से बाहर आकर बीड़ी फूँकते हुए काले, बलिष्ठ व्यक्ति को बहस में सम्मिलित करते हुए बोला, “तुम टिकट कलेक्टर को देखते ही गायब क्यों नहीं हो गए?”
उस आदमी ने कहा, “मैं टिकट खिड़की तक पहुँच पाता, उससे पहले ही ट्रेन आ गई, मुझे समय ही नहीं मिल पाया।”
“तुम बहुत सीधे हो, मैं यह नहीं पूछ रहा हूँ कि तुम टिकट क्यों नहीं खरीद पाए। मैंने पूछा, तुम टिकट कलेक्टर को देखकर कैसे गायब होना, यह भी नहीं जानते तो इस दुनिया में कैसे जीवित रह पाओगे?”
“यह लड़का? यह बच नहीं पाएगा, यह बेवकूफ।” चित्रों वाली कमीज पहने लड़के ने बातचीत में शामिल होते हुए कहा। जब टिकट कलेक्टर इसका जुर्माना बना रहा था, वह वहीं उसके सामने बैठा आँसू बहाता रहा। इसे नहीं पता कि टिकट कलेक्टर को कैसे मनाना है। अगर मैं बीच में न कूदता तो टिकट कलेक्टर पूरे भाड़े का बिल इस पर थोप देता।
“तुम समझते हो हमारे पास पास हैं? घुँघराले बालों वाले लड़के ने चश्मे वाले व्यक्ति को मजाकिया नजरों से देखते हुए पूछा। विशेष दस्ता तो कभी-कभी ही आता है। फिर हम क्यों अपने पैसे खर्च करें? ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जो हम इन पैसों से कर सकते हैं, जब हमने कह दिया कि हमारे पास पास है तो टिकट कलेक्टर की इतनी हिम्मत है कि वह हमारी जाँच कर सके।”
चश्मे वाले व्यक्ति के चेहरे का रंग बदलने लगा था। उसके माथे पर पसीने की बूँदे उभर आई थीं। घुँघराले बालों वाला लड़का नई खबर के साथ भागा हुआ आया। “वह खून में डूबे लोगों को नहीं हटा रहे हैं। घायल बिना चिकित्सा के मर ही जाएँगे। जो भी उन्हें समझाने जाता है, वह उस पर हमला कर देते हैं।”
“वह क्या कर सकते हैं, अगर हम सब एक हो जाएँ? आओ, हम सब चलें और इस सबको समाप्त कर दें।” भावनाओं से परिपूर्ण होकर चित्रों वाली कमीज पहने लड़के ने कहा।
मैंने सुना है, कोई कह रहा था कि उन लोगों की यह योजना है कि हमें भड़काकर बाहर निकालें और हमारी सीटों पर कब्जा कर लें। हमें वहीं रहना चाहिए, जहाँ हम हैं और अगर वे भीतर आकर झगड़ा करते तो उन्हें उचित उत्तर दें, घुँघराले बालों वाले लड़के ने डिब्बे में फिर से प्रवेश करते हुए कहा।
बीड़ी पीते हुए लकड़ी काटने वाले ने कहा, “अगर हम अपनी आँखें खुली रखें और हर कदम सावधानी से उठाएँ, तब ही इस यात्रा को सलामती से पूरा कर पाएँगे।” “जब से मेरे पिता की साँप के काटने से मृत्यु हुई है, तब से मैं बिना टिकट के इस ट्रेन में यात्रा कर रहा हूँ। मुझे नहीं पता कि टिकट कैसा होता है। यह कलियुग है, जब धर्म एक पैर पर लँगड़ा रहा है। आपके पास झगड़ालू टिकट कलेक्टर और गार्ड्स हैं। कभी-कभी कुछ नेक लोग होते हैं, जो एक या दो रुपए के लिए बगलें झाँकने लगते हैं।” बीड़ी वाले ने कहा और दूसरी बार कश लेने के लिए भीतर चला गया।
खादीवाले व्यक्ति ने भी ताजा सिगार निकाला और सौम्य मुसकान के साथ उपदेश दिया, “अगर जियो तो कोयल की तरह जियो, न कि कौए की तरह।” अब तक दो टिकट कलेक्टर आए। एक में भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि मुझे उठाकर टिकट का पूछ सकें। जादू कपड़ों में है।”
“फिर भी, तुम्हारी किस्मत अच्छी है। तुम्हें सताने वाला तो एक ही है। हमें तो फॉरेस्ट गार्ड से भी निपटना होता है, लेकिन यह ट्रेन सिर्फ उनकी नहीं है। यह हमारी भी है। बिना टिकट के चढ़ जाओ, लेकिन टिकट कलेक्टर को चकमा देना सीखो।” लकड़ी काटने वाले व्यक्ति ने आँख मारते हुए कहा।
“मेरी बात सुनो,” चश्मे वाले व्यक्ति ने गला साफ करते हुए कहा, मैं ध्यान से तुम्हारी बातें सुन रहा था। अगर टिकट कलेक्टर चाहता था कि तुम जुर्माना भरो तो क्या तुम उसे गुत्थम-गुत्था करके अपने पैसे वापस नहीं छीन सकते थे? तुमने अपना शरीर पहलवान की तरह बनाया हुआ है। तुम उससे भिड़ क्यों नहीं गए?” उसने कहा।
मैं भौचक्का था! वह आदमी अचानक अपना पाला बदलकर बहुमत में सम्मिलित हो गया था। मुझे अहसास हुआ कि मैंने यात्रा के लिए जो समय चुना था, वह शुभ नहीं था। मैं जानता था कि घिसे हुए पहियों वाले इंजन से चलने वाली यह ट्रेन जर्जर डिब्बों को खींचते हुए बड़ी कठिनाई से चल रही है। लेकिन मुझे विश्वास था कि वहाँ हमेशा ऐसे लोग मौजूद होते हैं, जो किसी भी यांत्रिक खराबी को ठीक कर सकते हैं। हालाँकि मेरा विश्वास अब उतार पर था।
क्या यह मुसीबत कभी खत्म होगी? क्या यह ट्रेन कभी चलेगी और संतोषाबाद पहुँचेगी? मैं असहाय भाव से चश्मेवाले व्यक्ति की ओर ताकने लगा।
मेरी जेब में पड़ा साक्षात्कार का कॉल लेटर मेरे दिल में काँटे के समान चुभ रहा था। क्या मैं समय पर पहुँचकर साक्षात्कार दे पाऊँगा।
सहायक प्रोफेसर
हिंदी विभाग, अ.मु.वि
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