सुपरिचित रचनाकार। ‘यवनिका उठने तक’, ‘माँ है शब्दातीत’, ‘यहाँ तो सब बनजारे’, ‘मंजर-मंजर आग लगी है’ कृतियाँ चर्चित। पत्र-पत्रिकाओं एवं संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से प्रसारित। ‘अर्चना साहित्य पुरस्कार’, ‘अवंतिका सरस्वती सम्मान’, ‘कलाश्री सम्मान’ सहित दर्जन भर सम्मान।
साँसों महका मोगरा, होंठों खिला पलाश।
आँखों उतरी मालती, किसकी करे तलाश॥
सरसों की अंगराइयाँ, मौसम हुआ निहाल।
फलियों की सुन बाँसुरी, नाच रहा गोपाल॥
बरसाने की राधिका, गोकुल का वह ग्वाल।
मन में जब-जब नाचते, वृंदावन बेहाल॥
हवा सलोनी नाचती, पल-पल छूती गात।
पोर-पोर चिंगारियाँ, मधुर-मधुर सौगात॥
अंबर मनहर नीलिमा, पलकन पुलकित चाल।
अविचल अनुपम भावना, मुखरित मधुरिम ताल॥
छुअन सुरीली प्रेम की, फूटे गीत हजार।
खुश्बू डूबी रागिनी, उठती मन-झंकार॥
चुभती अलपिन प्यार की, मीठी टीस उभार।
रंग-बिरंगे राग पर, अनगिन बजे सितार॥
दिन से लेकर रात तक, केवल हो संगीत।
बजी प्रेम की बाँसुरी, आया है मनमीत॥
बड़ी रसीली बावरी, चलती अटपट चाल।
प्रीत डगरिया डोलती, छलती घूँघट डाल॥
आ जाते जब कान में, सम्मोहन के घोल।
दो कौड़ी के बोल भी, बोल लगे अनमोल॥
चीख-चीखकर बोलता, खड़ा हुआ बाजार।
प्रीत-गुजरिया हाट में, बिकने को तैयार॥
तितली होंठों बैठती, देती रंग उतार।
आँखों पहुँची फैलती, उसकी मीठी धार॥
मधुर मिलन की प्यास में, आकुल सबकी साँस।
दूर क्षितिज तक भागते, धरती और आकाश॥
फूलों जैसा ही लगे, चुभने वाला शूल।
तय है तब तो मानिए, हुई हृदय की भूल॥
सूरज से ज्यादा गरम, नरम कि जैसे चाँद।
प्यार नहीं तो और क्या, सबकुछ जाता फाँद॥
शिव की अपनी साधना, शिव का अपना ताप।
शैल सुता की चाहना, उनकी गहरी छाप॥
चिड़िया बैठी डाल पर, डाल रही है डोल।
गाकर कब की उड़ गई, अपने मीठे बोल॥
दोहे सुनिए प्रेम के, खुले हृदय के द्वार।
गंग विराजे रंग में, मानस पारावार॥
शिव ने देखा पार्वती, जैसे पर्वत भाल।
सारी गुरुता धूल में, पल में हुई निढाल॥
वाम न होती पार्वती, और न नंदी साथ।
तब भी क्या तुम नाचते, बोलो भोलेनाथ॥
वाणी गूँगी हो गई, अधर हुए फिर बंद।
आँखें तब मुखरित हुईं, फूटे गंधिल छंद॥
दिल के तार सितार पर, ऐसी गहरी चोट।
चाहे जैसे सुर रहे, मगर न कोई खोट॥
किसी नजर की गुदगुदी, लगी जिगर में हाय।
आह-वाह के बीच में, सबकुछ है मुसकाय॥
जिधर-जिधर मैं देखता, दिखे एक ही रूप।
बाहर-भीतर झाँकता, वह तो रूप-अनूप॥
कल तक जो गोपन रहा, आज हुआ विस्तार।
कभी छिपाए क्या छिपा, जिसको कहते प्यार॥
मन-संवेदन तब हुआ, उस पर हुआ प्रहार।
पँखुड़ियों से जब बिंधा, हुआ शूल बेजार॥
चाहत कुछ ऐसी रहे, बचे न कोई चाह।
प्रेम-डगरिया धूप में, रहती केवल छाँह॥
साँस उगलती आग हो, नयनों तैरे राग।
दिल में जलती फाग हो, रही भैरवी जाग॥
रूह लगी जब बोलने, छिपा न अंतर-भाव।
होकर भी तब देह में, बचा न कोई चाव॥
वही उजागर हो गया, जिसे छिपाया खूब।
खुशबू-ही-खुशबू मिली, वाणी बोली डूब॥
चलना था जाने कहाँ, चले कहीं फिर और।
दुनियावी सब भूलकर, प्यार हुआ सिरमौर॥
प्यार नहीं है याचना, है संवेदन भाव।
हाथ जोड़ते देवता, और बढ़ाते पाँव॥
खुद को जिसमें पा लिया, पाना यह अनमोल।
प्यार बड़ी है भावना, प्यार अनोखा बोल॥
सीता-राधा-पार्वती, नाम प्रेम-उत्कर्ष।
राम-कृष्ण-शिव में बसे, सत्य सनातन हर्ष॥
अंकित किया वसंत ने, प्यार-प्यार बस प्यार।
प्यार नाम है जिंदगी, प्यार धरा का हार॥
प्यार अनोखा रंग है, प्यार अनोखा छंद।
फागुन ने चिल्ला कहा, इसको दिया अनंत॥
सीमाएँ सब टूटतीं, जुड़ जाते सब कोर।
प्रेम-नदी है जोड़ती, जुड़ते छोर-अछोर॥
प्रेम-खजाना देखकर, भौंचक हुए कुबेर।
मीरा की दीवानगी, इकतारे की टेर॥
पूछो किसी कबीर से, क्या होता है प्रेम।
रस की ऐसी चासनी, समरस सारे नेम॥
‘शुभानंदी’, नीतीश्वर मार्ग, आमगोला
मुजफ्फरपुर-८४२००२ (बिहार)
दूरभाष : ६२००३६७५०३