कुंभ मेला : आध्यात्मिकता और सामाजिकता का उत्सव

सुपरिचित लेखिका। पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। दूरदर्शन, अन्य चैनलों एवं आकाशवाणी तथा देश के अन्य शहरों में मंच पर काव्य-प्रस्तुति। 
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम मेमोरियल अवार्ड, राजीव गांधी एक्सीलेंस अवार्ड, आगमन सम्मान एवं डॉ. विवेकी राय सम्मान प्राप्त। संप्रति लेखन व अध्यापन।

कुंभ मेला भारतीय धर्म व संस्कृति का अनुपम आयोजन है। यह आयोजन न सिर्फ हमें हमारी विरासत से जोड़ता है बल्कि हमें समस्त विश्व के सामने गौरवान्वित भी करता है। पर्यावरण को नष्ट करने व प्रकृति की प्रत्येक वस्तु का दोहन करने के उपरांत आज मनुष्य अपनी गलती को समझ चुका है। ऐसे में हमारा यह पर्व संपूर्ण विश्व को यह संदेश देता है कि हम भारतवासी तो प्रकृति की प्रत्येक वस्तु को पुरातन काल से पूजते आए हैं, फिर चाहे वे नदियाँ हों, वृक्ष हों, पर्वत हों या सूरज-चाँद-सितारे हों। 
कुंभ मेला स्वयं में ही बड़ा गहरा शाब्दिक अर्थ रखता है। इसे हमारी युवा पीढ़ी को अवश्य समझना चाहिए। ‘कुंभ’ यानी ‘घड़ा’ और ‘कुंभ’ यानी ‘हमारा शरीर’ भी। घड़ा न केवल पौराणिक कथाओं का केंद्र रहा है बल्कि यह जीवन की ऊर्जा, शुद्धता व स्थिरता का भी प्रतीक है। जैसे किसी कुंभ (घड़े) में अमृत समान जल भरा होता है, वैसे ही हमारे कुंभ (शरीर) में भी प्रेम, ज्ञान व सद्गुणरूपी जल भरा होता है। यदि आध्यात्मिकता की दृष्टि से देखा जाए तो कुंभ मेला हमें जीवन के गूढ़ रहस्यों का परिचय देता है। कुंभ मेला, घड़ा व मानव शरीर के इस त्रिकोणीय संबंध को समझकर हम जीवन के उच्चतम सत्य तक पहुँच सकते हैं। 
यह मेला हमारी सनातन संस्कृति व अध्यात्म का उज्ज्वल प्रतीक है। यह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन मात्र नहीं है, बल्कि हमारी संस्कृति की विविधता, सामाजिक एकता और धार्मिक सहिष्णुता का भी एक बड़ा उत्सव है। हर बारह वर्ष में चार प्रमुख स्थानों—उत्तराखंड के हरिद्वार में गंगा तट पर, मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर, महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी के तट पर और उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा-यमुना-सरस्वती के तट पर आयोजित होता है। यह मेला हमेशा से ही करोड़ साधुओं, साध्वियों, नागा साधुओं, संन्यासियों, गृहस्थों व देशी-विदेशी श्रद्धालुओं का संगम स्थल रहा है। 
हिंदू धर्म में कुंभ मेले का महत्त्व अद्वितीय है। इसका संबंध समुद्र-मंथन की पौराणिक कथा से है। कथा यह है कि महर्षि दुर्वासा ने देवराज इंद्र को आशीर्वाद स्वरूप पारिजात पुष्पों की एक सुंदर माला भेंट की। इंद्र ने अभिमानपूर्वक वह माला अपने हाथी ऐरावत के गले में डाल दी। ऐरावत ने वह माला अपनी सूँड़ की सहायता से गले से निकाली और जमीन पर फेंक दी। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा क्रोध से भर उठे और उन्होंने स्वर्ग को धन व वैभव से हीन हो जाने का श्राप दे दिया। इंद्र ने सब गँवा दिया। फिर दु:खी इंद्र ने भगवान् विष्णु की आराधना की। तब भगवान् विष्णु ने इंद्र को सलाह दी कि देवता और दानव एक साथ मिलकर समुद्र मंथन करें। समुद्र को मथना था, सो मथनी और नेति भी उसी के अनुसार चाहिए थी। ऐसे में मंदराचल पर्वत मथनी बना और नाग वासुकि उसकी नेति। मंथन से चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई, जिन्हें देवताओं और असुरों ने परस्पर बाँट लिया। इन्हीं में से एक था—‘अमृत कलश,’ जिसे भगवान् धन्वंतरि लेकर प्रकट हुए थे। परंतु जब धन्वंतरि ने अमृत कलश देवताओं को दे दिया तो युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई। तब भगवान् विष्णु ने स्वयं मोहिनी रूप धारण कर सबको अमृत-पान कराने की बात कही और अमृत कलश का दायित्व इंद्रपुत्र जयंत को सौंपा। अमृत-कलश को प्राप्त कर जब जयंत दानवों से अमृत की रक्षा हेतु भाग रहे थे, तभी इसी क्रम में अमृत की बूँदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरीं। चूँकि विष्णुजी की आज्ञा से सूर्य, चंद्र, शनि एवं बृहस्पति भी अमृत कलश की रक्षा कर रहे थे और विभिन्न राशियों (सिंह, कुंभ एवं मेष) में विचरण के कारण ये सभी कुंभ पर्व के साक्षी बन गए। इस प्रकार ग्रहों एवं राशियों की सहभागिता के कारण कुंभ पर्व ज्योतिष का पर्व भी बन गया। ज्योतिष के अनुसार कुंभ मेले का आयोजन तब होता है, जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह की स्थिति एक खास तरह से होती है। इन ग्रहों की स्थिति के आधार पर ही कुंभ मेले का आयोजन अलग-अलग जगहों पर किया जाता है। जयंत को अमृत कलश स्वर्ग ले जाने में १२ दिन का समय लगा था और माना जाता है कि देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष के बराबर होता है। यही कारण है कि १२ वर्ष में कुंभ मेले का आयोजन होने लगा। प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन—इन चारों स्थान पर हर १२ वर्ष में कुंभ मेले का आयोजन होता है। 
आस्था, विश्वास व संस्कृति का यह पर्व इस वर्ष जनवरी-२०२५ में प्रयागराज में आयोजित हो रहा है। यह १३ जनवरी, २०२५ पौष पूर्णिमा से प्रारंभ होकर २६ फरवरी, २०२५ महाशिवरात्रि तक रहेगा। कुंभ मेले का मुख्य उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति है। हिंदू धर्म में यों भी पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्त्व है। इससे न सिर्फ भौतिक संसार की चिंताओं से मुक्ति मिलती है, बल्कि जन्म-मरण के गहरे अर्थों को भी समझा जा सकता है। यह हमारी आध्यात्मिक जागरूकता को भी बढ़ाता है। कुंभ मेले में लाखों लोग एकजुट होते हैं, फिर चाहे वे किसी भी जाति के हों या किसी भी देश के हों। भारत का कुंभ मेला विदेशियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होता है। 

संपूर्ण प्रकृति के प्रति अपने प्रेम को प्रदर्शित करने का हमारा यह उच्चतम ढंग है। हम भारतीय अपनी इस संस्कृति द्वारा समस्त विश्व को सिखाते हैं कि हम नदियों को भी देवतुल्य मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। मानवता की दृष्टि से कुंभ मेला हमें यह भी सिखाता है कि हम सभी एक ही ब्रह्म‍ांडीय चेतना का हिस्सा हैं। जब करोड़ों लोग एक साथ संगम में स्नान करते हैं तो यह हमें ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के विचार से भर देता है। 
इस तरह के आयोजन दान और परोपकार की भावना को भी बढ़ाते हैं। यहाँ लाखों गरीब श्रद्धालुओं को भोजन व वस्त्र दान में प्राप्त होते हैं। विभिन्न स्वयंसेवी संगठन, धार्मिक संगठन यहाँ आकर सेवा कार्य करते हैं। कुंभ मेला एक ऐसा स्थान है, जहाँ आकर लोग साधु-संतों, विचारकों और विद्वानों से मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं। साधु-संतों, भक्तों और विद्वानों की उपस्थिति इसे एक आध्यात्मिक महासभा बना देती है। उनके प्रवचन, योग और ध्यान के सत्र आम जनता के लिए आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत बनते हैं। 

ऐसे आयोजन समाज को न केवल धार्मिक रूप से समृद्ध करते हैं, बल्कि विश्वपटल पर भी स्थापित करते हैं। इनसे हमें सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, नैतिक बल प्राप्त होता है। यह आयोजन हमें याद दिलाता है कि भौतिकता के बीच भी अध्यात्म और मानवता का स्थान सर्वोपरि है। आत्मचिंतन, ध्यान व साधना के लिए ऐसे आयोजन उत्तम होते हैं। 
आधुनिक समय में कुंभ मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि संस्कृति व पर्यटन को भी बढ़ावा देने का माध्यम बन चुका है। कुंभ मेले जैसे विशाल आयोजन को सफलतापूर्वक करना एक बड़ी चुनौती है। हालाँकि आधुनिक तकनीक, डिजिटल प्लेटफॉर्म, स्मार्ट सिटी सुविधाएँ, हवाई सुविधाएँ और अंतरराष्ट्रीय प्रचार इस आयोजन को और भी भव्य बना देते हैं। ऐसे आयोजनों से संपूर्ण विश्व हमारी संस्कृति, हस्तकला, लोककला, नृत्य, संगीत आदि से भी परिचित होता है। 
कुंभ पर्व न केवल हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है बल्कि हमें भविष्य के लिए भी प्रेरित करता है। प्रतीक रूप में हमें यह सिखाता है कि जैसे एक घड़ा अपने भीतर अमृत समान जल को धारण करता है, वैसे ही हमें भी अपने शरीर और आत्मा को प्रेम, शुद्धता और ज्ञान से भरना चाहिए। ऐसे आयोजन हमें आत्मिक उन्नति, सामाजिक दायित्व व दान के माध्यम से सेवा का महत्त्व सिखाते हैं। प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ मेला-२०२५ हमारे आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश को और सशक्त करेगा। यह भारतीय संस्कृति के मूल्यों को विश्व के सामने प्रस्तुत करेगा। हमारी आस्था, परंपरा व सामाजिक मूल्यों को जीवंत बनाए रखने का यह अद्वितीय अवसर है।

१०७० भूतल, शक्तिखंड-४
इंदिरापुरम्, गाजियाबाद-२०१०१४
दूरभाष : ९९७१७११३३७

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