रामू काका एक छोटे से गाँव में रहने वाले गरीब और ईमानदार व्यक्ति थे। उनकी उम्र पचास के पार थी और वह गाँव के अमीर घरों में काम करके अपना गुजारा करते थे। हालाँकि रामू काका खुद पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उन्होंने मेहनत और ईमानदारी से हर काम किया।
गाँव में एक स्कूल था, जहाँ पर शीला मैडम पढ़ाती थीं। शीला मैडम एक पढ़ी-लिखी, समझदार और दयालु महिला थीं। वह गाँव के बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ गरीबों की मदद भी करती थीं। रामू काका के परिवार के हालात बहुत खराब थे। उनकी पत्नी का देहांत हो चुका था और उनके दो छोटे बच्चे थे, जिनकी देखभाल करने वाला और कोई नहीं था।
एक दिन शीला मैडम को पता चला कि रामू काका के बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं, क्योंकि रामू काका की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। यह सुनकर शीला मैडम ने रामू काका के बच्चों की फीस माफ करवाकर उन्हें स्कूल में दाखिला दिलवाया। इसके अलावा शीला मैडम ने रामू काका से कहा कि वह स्कूल में सफाई का काम कर लिया करें, जिससे उन्हें कुछ तथा पैसा मिल सके तथा बच्चों की पढ़ाई का खर्चा उठाने में मदद मिले।
रामू काका के लिए यह बहुत बड़ी मदद थी। वह दिन-रात मेहनत करते और स्कूल के सफाई के काम के साथ-साथ दूसरे कामों में भी लग जाते। शीला मैडम की इस मदद ने रामू काका के जीवन को बदल दिया। उनके बच्चे पढ़ाई में अच्छे नंबर लाने लगे और धीरे-धीरे परिवार की स्थिति भी सुधरने लगी।
समय बीतता गया और रामू काका के बच्चे बड़े हो गए। उन्होंने अच्छी नौकरी पाई और अपने पिता के संघर्ष को याद रखकर हमेशा ईमानदारी और मेहनत से काम किया। इस बीच, रामू काका और शीला मैडम की दोस्ती और सम्मान भी और गहरा हो गया।
एक दिन जब रामू काका के बेटे की शादी हुई तो उन्होंने सबसे पहले शीला मैडम को ही बुलाया। रामू काका ने सबके सामने कृतज्ञता जताते हुए शीला मैडम का धन्यवाद किया और कहा, “अगर उस दिन आपने मेरे बच्चों को स्कूल भेजने की पहल न की होती तो शायद आज हम इस खुशी के पल को नहीं देख पाते।”
शीला मैडम ने मुसकराते हुए कहा, “रामू काका, यह सब आपकी मेहनत और ईमानदारी का परिणाम है। मैं तो सिर्फ एक माध्यम थी।”
इस तरह रामू काका और शीला मैडम की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी की मदद करना और ईमानदारी से काम करना जीवन में कितनी बड़ी सफलता और खुशी ला सकता है।
उप निरीक्षक, इंदौर (मध्य प्रदेश)
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