शरद ऋतु

सुपरिचित साहित्यकार। साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन। अब तक पैंतीस पुस्तकें प्रकाशित। संप्रति बैंक कार्यपालक के पद से सेवा-निवृति के बाद स्वतंत्र लेखन।

फसलें अब पकने लगीं, और साथ में ख्वाब।
कठिन कर्म अनुरूप ही, कुदरत देत जवाब॥

पावन दिन नवरात में, पूजें माँ के पाँव।
पूजन भावों से करें, मिलती माँ की छाँव॥

रात भर जागरण करें, माँ का हो गुणगान।
माता के आशीष से, पूरे हों अरमान॥

भजन-डांडिया रात को, नृत्य करें नर-नार।
नन्हे पग थकते नहीं, माया अपरंपार॥

कौओं को पुकार रहे, छत पर चढ़कर लोग।
देखो इनके दिन फिरे, पाएँ पहले भोग॥

जिनके फसल ठीक हुई, हुए मुदित किसान।
लगे मानने वे सभी, प्रभु का फिर अहसान॥

तपन जलन बढ़ने लगी, जब से आया क्वार।
खेतों में पकने लगे, मोठ बाजरा ग्वार॥

सुनो क्वार में आ गया, ज्येष्ठ सरीखा ताप।
अंग-अंग जलने लगा, अरे! बाप रे बाप॥

ले अनाज घर आ गए, नाच रहे अरमान।
दिल में सपने पल रहे, मुख पर है मुसकान॥


कार्तिक-दीपावली
दिन में अब गरमी रहे, पड़े रात में ठंड।
जी मौसम का क्या कहें, हो गया यह उद्दंड॥

भोर नहाती नारियाँ, गाएँ मंगल गीत।
यह देश की परंपरा, यही देश की रीत॥


करवाचौथ मना रहीं, स्त्रियाँ रख उपवास।
लंबी वय की कामना, यह इनका विश्वास॥

मौसम बड़ा सुहावना, सम शीत और ताप।
इससे कुछ शिकवा नहीं, नहीं कोई प्रलाप॥

बच्चे बड़े प्रसन्न हैं, लिये पटाखे हाथ।
इनको तब ही फोड़ना, रहें बड़े जब साथ॥

साफ-सफाई सब रखें, देता है संदेश।
रोग-दोष व्यापे नहीं, स्वस्थ रहे परिवेश॥

लक्ष्मी पूजन सब करे, निर्धन अरु धनवान।
मुँह मीठा सब जन करें, घर-घर में पकवान॥

हर घर में ही हो रहा, लक्ष्मी का सत्कार।
पूजा अर्चन आरती, माँ की जय-जयकार॥

नई फसल उमंग नई, है नव लोकाचार।
माँ के आशीर्वाद से, भरे रहें भंडार॥

करते मंगलकामना, सुख बरसे चहुँओर।
तन-मन नित निरोग रहे, रह लें आत्मविभोर॥

झिलमिल कर दीपक जले, घी बाती ले संग।
हर मन में भरते सदा, हर दिन नई उमंग॥

लक्ष्मी मात पधारिए, ले गणेश को संग।
पूजा अर्चन हम करें, चाहे पता न ढंग॥

चाहत घर करने लगी, बाहर हो उजियार।
तब-तब ही मैंने किया, नित दीपक से प्यार॥

मैं करता शुभकामना, जीवन हो सुखधाम।
दीवाली हर दिन रहे, क्या सुबह और शाम॥

दीप पर्व लाना सदा, सुख वैभव सम्मान।
भीतर का तम मेटकर, भरो वहाँ नित ज्ञान॥

दीपक इक लड़ता रहा, सारी-सारी रात।
जहाँ मनोबल नित रहे, तब बन पाती बात॥

दीपक से बाती कहे, मुझे न जाना भूल।
मुझसे ही है रोशनी, कर तू इसे कबूल॥

माँ लक्ष्मी पूरी करे, हम सबकी जो आस।
सबका दुःख वह जानती, मन में हो विश्वास॥

दीपक नित हमसे कहे, जीओ सीना तान।
बिन प्रयास संसार में, कब होती पहचान॥
  
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