RNI NO - 62112/95
ISSN - 2455-1171
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शरद ऋतुसुपरिचित साहित्यकार। साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन। अब तक पैंतीस पुस्तकें प्रकाशित। संप्रति बैंक कार्यपालक के पद से सेवा-निवृति के बाद स्वतंत्र लेखन। फसलें अब पकने लगीं, और साथ में ख्वाब। पावन दिन नवरात में, पूजें माँ के पाँव। रात भर जागरण करें, माँ का हो गुणगान। भजन-डांडिया रात को, नृत्य करें नर-नार। कौओं को पुकार रहे, छत पर चढ़कर लोग। जिनके फसल ठीक हुई, हुए मुदित किसान। तपन जलन बढ़ने लगी, जब से आया क्वार। सुनो क्वार में आ गया, ज्येष्ठ सरीखा ताप। ले अनाज घर आ गए, नाच रहे अरमान।
भोर नहाती नारियाँ, गाएँ मंगल गीत।
मौसम बड़ा सुहावना, सम शीत और ताप। बच्चे बड़े प्रसन्न हैं, लिये पटाखे हाथ। साफ-सफाई सब रखें, देता है संदेश। लक्ष्मी पूजन सब करे, निर्धन अरु धनवान। हर घर में ही हो रहा, लक्ष्मी का सत्कार। नई फसल उमंग नई, है नव लोकाचार। करते मंगलकामना, सुख बरसे चहुँओर। झिलमिल कर दीपक जले, घी बाती ले संग। लक्ष्मी मात पधारिए, ले गणेश को संग। चाहत घर करने लगी, बाहर हो उजियार। मैं करता शुभकामना, जीवन हो सुखधाम। दीप पर्व लाना सदा, सुख वैभव सम्मान। दीपक इक लड़ता रहा, सारी-सारी रात। दीपक से बाती कहे, मुझे न जाना भूल। माँ लक्ष्मी पूरी करे, हम सबकी जो आस। दीपक नित हमसे कहे, जीओ सीना तान। |
अकतूबर 2024
हमारे संकलन |