गरीब क्या अमेरिका में नहीं?

गरीब क्या अमेरिका में नहीं?

जाने-माने व्यंग्यकार। अब तक तीन कविता-संग्रह, पंद्रह व्यंग्य-संग्रह, छह उपन्यास के अलावा प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित एवं आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से प्रसारित। म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मेलन का ‘वागीश्वरी सम्मान’, ‘व्यंग्यश्री सम्मान’, ‘गोयनका सारस्वत सम्मान’ आदि।


जैसे गरीब भारत में यत्र-तत्र बसते हैं, अमेरिकी भूमि पर भी एरिजोना, अलास्का तथा अन्य क्षेत्रों में, वैसे ही सीधे-सादे आदिवासी आज भी देखे जा सकते हैं। अमेरिका कितना भी आधुनिक हो, आज भी एरिजोना की शिक्षा और सभ्यता की तुलना भारत के बस्तर के सुदूर अंचलों से की जा सकती है। उसी प्रकार अलास्का में बर्फ से ढकी हुई अत्यंत छोटी-छोटी उपेक्षित बस्तियाँ हैं, जहाँ कुत्ते ही आपकी गाड़ी बर्फीली सतह पर खींचकर ले जाते हैं। सारी अमेरिकी भूमि ३०० वर्ष पूर्व इन्हीं नेटिव अमेरिकंस की थी, किंतु उनपर बाहरी शक्तियों ने खूँखार और आक्रामक श्वान का रूप धारण कर झपट्टा मारा, तहस-नहस किया और आराम से चारों ओर अपना आधिपत्य जमा लिया। दक्षिण अमेरिका के ब्राजील देश में तो दुनिया के सर्वाधिक कुत्ते हैं। कई करोड़। स्वतंत्र भ्रमण करने वाले तो भारत में भी लाखों हैं, किंतु ब्राजील में सर्वाधिक अनाथ श्वान सड़कों पर घूमते हुए मिल जाएँगे। भारत के कुत्तों को यह सुनकर संतोष होगा कि ब्राजील में उनके स्वजाति बंधु सबसे बुरी हालत में हैं। 
विदेशी आक्रमणकारियों के काल में कुत्ते ही उनके सिपहसालार हुआ करते थे। शिकारी कुत्ते साथ लेकर चलने से ही शिकार किया जा सकता है। जो अधिक खाने को दे देता है, उसके पक्ष में ही वे गुर्राने लगते हैं। कुत्तों का सत्संग पाकर विजय और संपन्नता दोनों अर्जित कर ली जाती हैं। धीरे-धीरे कुत्तागीरी के समर्थक गुणवानों ने सारे अमेरिका में प्रचार किया कि यदि कुत्तों को परिवार का एक सदस्य बनाकर रखा जाएगा तो घर प्रसन्नता और धनधान्य से भर जाएगा। यह भी कि समाज का सर्वाधिक उद्योगी जीव कुत्ता ही है। अतिरिक्त लाभ यह होगा, उसकी अनेक आदतें और विशेषताएँ परिवार जन उसके सत्संग में सीख जाएँगे। धीरे-धीरे यह नियम बन गया कि परिवार में बॉयफ्रेंड, गर्लफ्रेंड, एक या अधिक-से-अधिक दो बच्चे और आवश्यक रूप से एक श्वान होगा, तभी परिवार संपूर्ण माना जाएगा। अमेरिका की धरती पर यह प्रथा नई व्यवस्था के अस्तित्व में आने से ही शुरू हुई, जो आज भी प्रचलन में है। 
जो व्यक्ति अमेरिका की धरती पर पाँव रखे, उसे कुत्तों के साथ मित्र बनकर कैसे रहा जाए, इसका प्रशिक्षण लेकर आना चाहिए। इस देश में संपन्नता ऐसे ही तो नहीं आ गई? कुत्ते पारिवारिक जीवन के इतने अविभाज्य अंग हो गए हैं कि अनेक छात्र भले ही माता-पिता से दूर रहकर अध्ययन करें, छात्रावासों तक में अपने साथ अपना कुत्ता रखते हैं। भले ही कक्षाओं में कुत्तों का प्रवेश वर्जित है। कहा जा सकता है, पूरा देश कुत्तों के भरोसे ही चल रहा है। 
यहाँ परिवारों में कुत्तों का महत्त्व सबसे अधिक है। परिवार का वह केंद्रबिंदु है, जिसकी परिधि पर या कहें वृत्त पर सारे परिवारजन घूमते हैं। न पति पत्नी की सुनता है, न पत्नी पति की। बच्चे भी बड़े सदस्यों की डाँट या ऊँची आवाज नहीं सुनते, किंतु कुत्ते या कुत्तों की घर में सब सुनते हैं। फिर अमेरिका में ही क्यों, दुनिया भर के कुत्ते, पाँवों में लोटकर, भौंककर, गुर्राकर, लपककर, नोचकर अपना लक्ष्य पूरा कर ही लेते हैं। 
भारत, ब्राजील और कुछ अन्य देशों में सड़क पर कुत्ते घूमते हुए मिलेंगे, जबकि इसलामिक देश मालदीव में एक भी कुत्ता नहीं है, वहाँ शासन के आदेशानुसार कुत्ते पालना वर्जित है। इस तरह अमेरिका में फुटपाथ पर मालिक की डोर से बँधे हुए पूर्णतः अनुशासित, भारत और ब्राजील आदि कुछ देशों में सड़कों पर निर्द्वंद्व घूमते हुए, जबकि चीन में उदरस्थ होते हुए पाए जाते हैं। अरब देशों में तीतर, बटेर, मुर्गों को खाने-पकाने के लिए पाला जाता है, कुत्तों को बहुत कम। सामान्यतः तो साधारण कुत्तों को ही पाला जाता है, किंतु बड़े किसान या कुछ शिकारी, आक्रामक और खूँखार कुत्ते अवश्य पालकर रखते हैं। अलग-अलग देशों में उनकी अलग-अलग गति। भारत में मुख्यतः गायों को सम्मान दिया जाता है, कुत्ते भी पाल लिए जाते हैं। अमेरिका में गायें खाद्य पदार्थ हैं, कुत्ते पाले जाते हैं और चीन में कुत्ते हों, बंदर हों, गधे या गाय, सभी कुछ चट कर लिये जाते हैं। कुत्तों के लिए अमेरिका स्वर्ग है, किंतु चीन नरक। कहीं सद्गति, कहीं दुर्गति, कहीं अधोगति, यही है बेचारे कूकर की उत्तरोत्तर प्रगति। श्वान गतिमान है। कुत्ते इनके परिवारों को बाँधकर रखते हैं या ये कुत्तों को, यह कहना कठिन है, किंतु इन दिनों कुत्तों ने समूची दुनिया को बाँधकर रखा है।  

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