साँस फिर उदास है

खत आसमान के
बादलों के साथ आए हैं खत आसमान के 
सागर ने लिख भिजवाए हैं खत तापमान के, 
नदिया उफान पर हैं पर्वत भी खिसक रहे 
भरमा गई हैं घाटियाँ अपने ही निमान से, 
उजड़े मुकाम हैं सभी बारिश के कहर भी 
कैसे रहोगे जिंदा बगैर छतऔ मकान के
आफत में महासागर लहरें भी उदास हैं
बारूद मिसाइल गिरे जब अंतरिक्ष यान से,
सुलगे है वन उजड़े कमन देखता है ‘दीवान’
क्या-क्या बताएँ दर्द हम दुनिया जहान के। 
सुलग रहा है 
जल रही जमीन भी सुलग रहा है आसमां
इस धरा की आग को उगल रहा है आसमां 
हवाओं में घुले हुए जहर के झाग‌‌-झाग हैं
घरों के आसपास भी बड़े-बड़े सुराग हैं 
सड़क-सड़क निशान है उदास बाग-बाग है
जमीर जो बचा नहीं सभी तो दाग-दाग हैं
पल सकी न जिंदगी ये साँस फिर उदास है
किसी के पास है कहाँ जहाँ जिसे तलाश है
उगल रही है आस्तीन नई-नई लहर अभी 
बिखर रहे हैं गाँव और शहर सभी
कोई तो बात है यहाँ कोई तो बात है वहाँ
वसुंधरा की चाह को निगल रहा है ये समां
छलके आँसू 
क्या हमें याद है किस बात पर छलके आँसू 
बात बेबात में हर एक बात पर छलके आँसू
कोई अपना नहीं होता है ये समझ पाए अब
जो बिताए उन्हीं लम्हात पर छलके आँसू
वक्त के साथ ढले साथ भी चलने न दिया 
कैसे भूले इन्हीं सदमात पर छलके आँसू 
कभी चुप भी रहे कहते भी गए कहानी कभी 
सुनने वालो से मुलाकात पर छलके आँसू
अपने आँसू भी छुपाए तो कैसे-कैसे ‘दीवान’ 
ऐसे हालात हर सवालात पर छलके आँसू 
 
मित्र विहार काॅलोनी 
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अकतूबर 2024

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