गजलें

गजलें

गजल-संग्रह ‘रिश्तों के भीगे अखबार’ साहित्य अकादमी जम्मू से पुरस्कृत। नेशनल और इंटरनेशनल स्तर पर कई एकल प्रदर्शनी आयोजित। क्रिकेट की इंटरनेशनल खिलाड़ी।

:  एक :

रंजिशें इतनी बढ़ीं हम घर से बेघर हो गए

फूल जैसे हाथ में खंजर ही खंजर हो गए

यह सदा किसकी है जो टकरा के लौटी है अभी

अब कलेजे माँओं के पत्थर ही पत्थर हो गए

बर्फ के कुछ बुत बनाकर रोकर बच्चों ने कहा

तुम ही रहोगे अब यहाँ हम घर से बेघर हो गए

आस्तीनें कम पड़ीं जब साँप रखने के लिए

आदमी के जिस्म में साँपों के अब घर हो गए

कौन से रँगरेज ने लालिमा दी बर्फ को

पेड़-पौधों की जगह लाशों के बिस्तर हो गए

खेल खेला गोलियों से बच्चों ने कश्मीर के

इस धरा पर दुष्ट सारे अब सिकंदर हो गए

:  दो :

अमानत में ख्यानत हो रही है

उन्हें हमसे मोहब्बत हो रही है

यहाँ हर चीज अब बिकने लगी है

सियासत में तिजारत हो रही है

सजा कर दिल में कितने खंजरों को

खुद अपने से अदावत रही है

बहुत नादान ये मेरा चमन है

हवाओं से बगावत हो रही है

लगाकर के गले अब झूठ को ही

सच की ही खिलाफत हो रही है।

६९७/७ सेक्टर ई, सैनिक कॉलोनी,

जम्मू-१८००११ (जम्मू-कश्मीर)

दूरभाष : ७००६१५६३५८

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