अब तक छह गीत/नवगीत एवं समकालीन कविताओं का एक संग्रह। अनेक समवेत संकलनों में नवगीत संकलित। देश की अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन। कादंबरी जबलपुर तथा कला मंदिर भोपाल द्वारा सम्मानित।
बन पाया न कबीर
लाख जतन कर
हार गया मैं
बन पाया न कबीर।
रोज धुनकता रहा जिंदगी
फिर भी तो उलझी,
रहा कातते रिश्ते-नाते
गाँठ नहीं सुलझी,
तन की सूनी
सी कुटिया में
मन हो रहा अधीर।
गड़ा ज्ञान की इक धूनी
गढ़े सबद से गीत,
घर चूल्हे चक्की में पिसता
लाँघ न पाया भीत,
अपने को ही रहा खोजता
बनकर मूढ़ फकीर।
झीनी चादर बुनी साखियाँ
जान न पाया मोल,
समझौतों पर रहा काटता
जीवन ये अनमोल,
पढ़ता रहा भरम की पोथी
पढ़ी न जग की पीर।
जीवन दर्शन
राम नहीं एक नाम
विचारों का मंथन है।
सरयू का जल
पीकर जिसने
मर्यादा ओढ़ी
निर्वासित हो
गया लाँघकर
महलों की ड्योढ़ी
शब्द एक अविराम
जगत् मिथ्या क्रंदन है।
शापित सी है
उम्र अहल्या
राह रचे संन्यास
संकल्पों से,
बँधे उदधि तो पूरा हो वनवास
संघर्षों के नाम
नियति गढ़ती चिंतन है।
संयम शेष-अशेष कामना
सीता का संताप
झूठ के आगे सत्य झेलता
परित्यक्ता का शाप
जारी है संग्राम
यही जीवन दर्शन है।
व्यवस्था
शहर में सँभावना को
पर लगे हैं
बन रही हैं योजनाएँ।
कहाँ कितना
तोड़ना है, बनाना है
कहाँ उद्घाटन
का पत्थर लगाना है
जुबानों पर गान यश के
स्वर सधे हैं।
भोथरी होती व्यथाएँ।
उजालों के
दर सिसकती शाम गाती
घोंसलों में
कैद चिड़िया फड़फड़ाती
दोजखों में गरीबों के
घर पड़े हैं
लँगड़ी-लूली कामनाएँ।
चकाचौंधों पर थिरकते पाँव हैं
रोशनी में सिहरते से गाँव हैं
हकीकत से दूर हो बेबस खड़े हैं
तोड़ती दम व्यवस्थाएँ।
आई.सी. ५, सैनिक सोसाइटी शक्ति नगर,
जबलपुर-४८२००१
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