धरती कहे पुकार

दूषित मुझको कर दिया, धरती कहे पुकार,

जंगल सारे काट कर, हीन किया शृंगार।

खनिज निकाले कर खनन, छाती मेरी चीर,

होती जाती खोखली, किया नहीं उपचार।

खेत उजाड़े जा रहे, शहर बसाने लोग,

मिट्टी मिलती है नहीं, खिसक रहा आधार।

सिमटी गमले में मृदा, दिखे सिर्फ कंक्रीट,

दूषित होती वायु ने, छीना प्राणाधार।

छिद्र हुआ ओजोन परत, रिसी विषैली गैस,

तापमान की वृद्धि से, मचता हाहाकार।

भू-जल में होती कमी, सूखी सरिता ताल,

पानी ढूँढ़ें जीव सब, प्यासे हो लाचार।

पेड़ लगा धरती बचा, कर लें पश्चात्ताप,

दोहन करना बंद कर, आदत करें सुधार।

एचआईजी १/३३, आदित्यनगर

दुर्ग-४९१००१ (छत्तीसगढ़)

दूरभाष : ९४२४१३२३५९

जुलाई 2024

   IS ANK MEN

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