जिंदगी का कायदा

:  एक :
नजर को ये कभी लगता नहीं है।
जमीं से आसमाँ मिलता नहीं है।
जहाँ जाना, वहाँ से लौट आना,
कभी ये रास्ता रुकता नहीं है।
खड़े हो आईने के सामने पर,
छुपा चहरा कभी दिखता नहीं है।
परों का बोझ है जिस पर जियादा,
वो पंछी दूर तक उड़ता नहीं है।
चला है साथ जो लेकर इरादे,
मुसाफिर वो कभी थकता नहीं है।
सियासत कर रहे हो साथ सबके,
मुझे ये कायदा जँचता नहीं है।
:  दो :
जिसे देखा कहीं, वो दूसरा है।
नजर को आपकी धोखा हुआ है।
नजारा पास इतना भी नहीं है,
कि जितना पास सबका सोचना है।
हिमायत कर रहे हैं आप उसकी,
यहाँ जो शख्श सबसे दोगला है।
सुने सबकी मगर करे मन की,
यही इस जिंदगी का कायदा है।
वहाँ मुश्किल सफर है कश्तियों का,
जहाँ उनका हवा से सामना है।
निभाता है वहाँ उतनी अकीदत,
जहाँ जितनी शराफत देखता है।
: तीन :
चलो इसमें पते की बात तो है।
सफर में इक सहारा साथ तो है।
जुबाँ ये पूछती है इन लबों से,
भला दिल में कहीं ईमान तो है।
तबीयत है बड़ी नासाज लेकिन,
चलो इसमें जरा आराम तो है।
हमारा है, हमेशा, ये जताकर,
कि हमसे शख्श वो नाराज तो है।
बनाता है सभी जो काम अपने,
किसी का सिर पे अपने हाथ तो है।
कही वैसी, रही है सोच जैसी,
हमारी शायरी बेबाक तो है।

अमझेरा, धार-४५४४४१ (म.प्र.)
दूरभाष : ९८९३११९७२४

अकतूबर 2024

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