रीत

रीत

मराठी कथालेखक, अनुवादक, कहानीकार, व्यंग्यचित्रकला के अभ्यासक-संग्राहक। आस्वाद-विषय पर किताबें प्रकाशित। इसके अलावा ललित लेखन, उर्दू शायरी पर आस्वाद पर लेखन प्रसिद्ध। कहानियों के हिंदी, गुजराती, मल्याळम भाषा में अनुवाद। ‘मालगुडी डेज’ का मराठी अनुवाद प्रसिद्ध। कहानी-संग्रह को अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए। शासन के वित्त विभाग में लेखा अधिकारी पद से सेवानिवृत्त।

बड़ी सुबह अचानक आजम की बीबी की नींद टूट गई थी; अजीब सपने से वह घबराई, उठी और पलभर यह समझ नहीं पाई कि वह कहाँ है...सपने का प्रभाव जैसे कम हुआ, सारी बात उसकी समझ में आ गई।

आजम की माँ चलबिचल करते हुए जाग गई थी। चार दुबले से बच्चे गहरी नींद सो रहे थे, जो अस्तव्यस्त और डरावने लग रहे थे। एक बच्चे की अधखुली आँखें उससे देखी नहीं गईं, उसने उठकर गुदड़ी उठाई और चारों बच्चों पर ठीक से डाल दी, वह उठी।

आजम को अपने बीबी-बच्चों को यहाँ लाए हुए महीना होने को आया। वह गया तो आजतक लौटा नहीं था। बूढ़ी माँ और विक्षिप्त बाप आजम की बीबी को खोद-खोदकर उसके बारे में पूछते, तो वह झट से कह देती—“कामां रयते उनके वहाँ! ट्रेजरी बोले तो हिसाब-किताब के कामां रयते, मामूली रहयता क्या रात-रात नै आते थे घर कू!” कहते हुए अनजाने में ही उसकी आवाज ऊँची हो जाती। वह बारीकी से सारी बातें बताने लगती, कि वहाँ मकान रखना कितना मुश्किल हो गया था, ऑफिस के काम की वजह से बच्चों की तरफ ध्यान नहीं दे पाता था, बच्चे बिगड़ने लगे थे, इसलिए बच्चों को इधर के स्कूल में शरीक किया था।

पर आजम का बाप इन बातों पर अविश्वास जतलाते हुए कहता— “अब लोग क्या नौकरी नहीं करते क्या? के इसकोच दुनिया का काम है? ऐसा कौन सा तुर्रम खाँ है ये, कि सब जिम्मेदारी इस पर है, आं? और पूछा तो बोलता भी नई!”

“और मदरसे में कब शरीक करना बच्चों को?” आजम की माँ पूछती। “बच्चे वैसेच जा रे मदरसे में।”

“वोईच कागजात—वो टीसी लाना पड़ता न, अब इनको फुर्सत मिलनाऽऽऽ फिर वो टीसी लानाऽऽऽ” आजम की बीबी का कहना बहुत देर तक चलता रहता और फिर से आजम के काम के बारे में वह कहती रहती—“जोखिम है भोत उनको, पैसे के कामां है, नौ-नौ हजार रुपिया कभी ला के मीरे हवाले करते थे! जिम्मेदारी की नौकरी बोले तोऽऽऽ”

पर आजम के बाप को उसके व्यवहार की भनक लग गई थी, “जिम्मेदारी! ...की जिम्मेदारी! मटका खेलने कू टाईम मिलता, शराब की तो बू आती भड़वे की!” वह बड़बड़ाता।

आजम की बीबी आँगन में ज्वार साफ करने बैठी। उसी में अपना ध्यान लगाने लगी। घर की याद आने के लिए उसे कोई भी बहाना काफी होता, तुरंत वह घर याद आता! ऐसे में आजम का उसको प्यार करना, बच्चों को प्यार करना भी याद आने लगता, पर इन दिनों आजम घर आया ही नहीं था। जाते वक्त खर्चापानी के लिए पाँच-पच्चीस माँगते ही जेब से नोटों का बंडल निकालकर बिना गिने ही उसने दिया था। खूब सारे रुपए देखते ही आजम की बीबी का दिल बैठने लगता और इनका क्या करे, समझ में नहीं आता था। एक बार तो सौ रुपिया की चूड़ियाँ ही ले आई वह...आजम ने खूब गालियाँ दी थीं तब।

मख्दूम की खाला कब आई, इसका आजम की बीबी को पता ही नहीं चला, वह नीचे देखकर ज्वार साफ करने में लगी थी।

“आए नहीं क्या आजम मियाँ?” मख्दूम की खाला के पूछने पर उसका ध्यान गया, हर रोज उन्हीं बातों की चर्चा से ऊबने लगी थी वह।

पर आज मख्दूम की खाला एक नई खबर लाई थी। सास-बहू का अंदाज लेते हुए, चेहरे पे चिंता जताते, पर सर्तकता के साथ उसने बातचीत शुरू की—

“मख्दूम बोल रहा था, आजम मियाँ नायगाँव के बसस्टैंड पर दिखे थे।”

“किस कू?” आजम की अम्मा ने पूछा; आजम की बीबी देखने लगी।

“वो नै क्या सुलतान, उसका दोस्त है, वो बोल रहा था...”

“गए होंगे वहाँ, उनके कामा रहयते।” तुनककर आजम की बीबी ने कहा, उसके आसपास दाने बीनकर खाने वाली बच्चेवाली मुरगी झट से दूर हो गई।

आजम की बीबी के कानों में ऐसी ही खबरें आने लगी थीं। कोई कहता, पिछले एक महीने से वह ऑफिस में गया ही नहीं। कोई कहता, उसने बड़ी छुट्टी ले रखी है। कोई कहता, उसके नाम नोटिस जारी किया गया है। कोई कुछ कहता, कोई कुछ। कल आजम का बाप खबर लाया था, “आजम ने पैसे का घपला किया बोलते, बड़ा!” उस वक्त आजम के बीबी का गुस्सा उबल पड़ा, “घपला? घपला क्यूँ करेंगे वो? वो क्या चोर है क्या, फूटी कौड़ी भी नहीं माँगी हमने किसी को, हम क्या शर्मिंदे है क्या किसी के? ऊपरवाला हैच न देखने कु सबको; वो क्यूँ करेंगे घपला? जिम्मेदारी की नौकरी है उनकी, लोगों का क्या, ऐसे जलने वाले भोत रहयते!”

आजम की बीबी का आज का नूर देखकर आजम की बातों की चर्चा बंद हो गई, पर चोरी, मारपीटी की चर्चा चलती रही। मख्दूम के एक रिश्तेदार को पीछे पुलीस ने कैसे गिरफ्तार किया था, यह चर्चा छिड़ी... चार दिन हवालात में बंद रखा था उसे, खूब पिटाई की, बेदम मार...आगे का दाँत टूट गया था उसका, ऐसी बातें होती रहीं। “खर्चे, पानी कु पुलिसवालों को पैसे दिए, तब छोड़ दिया था।”

मख्दूम के खाला की बातचीत आजम की बीबी सह नहीं पा रही थी। सपने की याद आते ही गुस्से में उसने ज्वार पटकी, ऊँचे स्वर में बोल पड़ी—“देखो खाला, जो बुरे काम करता, उसको डर रहयता, समझे! सीदे काम करने वालों को अल्लामियाँ देखताच, क्यों किसी को डरना?”

आजम की अम्मा कहने लगी, “हमारा आजम वैसा नहीं...भोत सीधा है...” उस पर मख्दूम की खाला ने कहा, “नहीं, मैं थोड़ीच बोल रही हूँ ऐसा-वैसा, आजम मियाँ हम को मालूम नै क्या, बहोत शरीफ है, हमारी रुखसाना की शादी में आए थे न! अच्छेच है...”

दिन भर के काम खत्म होने लगे, आजम की बीबी ने काम में मन लगाने का प्रयास किया, लंबी पट्टी के हरे बस्ते लेकर दो बच्चे स्कूल में गए थे, दो घर में ही खेल रहे थे, बच्चों की किसी भी शिकायत पर आजम की बीबी का एक ही जवाब होता—“ठेर, अब्बा आन दे! आपन लाएँगे!” कहकर उनका मन बहलाती, अँधेरा होने लगा और आजम आया।

“अम्मीऽऽ, अब्बा आएऽऽ” बच्चे फटी आवाज में चिल्लाए और रोटी बनाते हुए आजम की बीबी जल्दी से झुककर बाहर आई, सिर का पल्लू ठीक किया, आजम की तरफ देखने लगी, उसका अपना शौहर, आँखों से ओझल रहने पर मन में पूर्ण रूप से जिसकी तसवीर उभरती है, वह शौहर...बातें करनेवाला, गालियाँ देने वाला, बच्चों को काँधे पर बिठाने वाला...अपना शौहर...!

जल्दी से उसने हाथ धोए आजम ने साथ लाई डबल रोटी, टोस्ट बच्चों के हवाले किए। वह आँगन के चबूतरे पर बैठ गया। आदतन कमीज की बाहों को ऊपर सरकाया, कलाई के निचे खिसकने वाली घड़ी को पीछे किया...बैठा रहा।

आजम की अम्मा उसके पास गई। स्नेह से पीठ पर हाथ फेरकर उसने पूछा, “कब आया?”

“ये क्या, अब्बीच।”

आजम के बीबी ने बच्चे को पैसे देकर चाय की पत्ती लाने के लिए दौड़ाया। “चाय करती मैं,” कहते हुए आजम से उसने पूछा, “मटन का सालन बनाऊँ क्या अब्बी।”

आजम ने जवाब नहीं दिया। आजम की अम्मा कहने लगी, “वो मख्दूम बोल रहा था, तू दफ्तर में नहीं है बोल के...”

आजम की आवाज तेज हो गई, वह बोला, “वो भड़वे कु कौन बोला वहाँ जाने कू?”

“नई, मैंच बोल रही थी, तू आया नहीं पंद्रह-बीस दिन हो गए, क्या हुआ, क्या नई...”

“अरे वो मख्दूम को क्या करने का, अपना धंधा-पानी सँभाले, बोलना!”

आजम की बीबी चाय लेकर बोलती हुई आई—“मैं बोल रही थी इनको, के नको भेजों, उनको कामां रहयते, दौरे रहयते...” बीबी की बात तोड़ते हुए आजम ने झट से पूछा, “और वो गलसर कहाँ है?”

आजम की बीबी ने अपना सूना गला टटोलते हुए कहा, “इनोच बोले, वो रख दे संदूक में, चोरी-मारी का डर रहयता बोलके!”

“हाँ, मैइच बोली, क्या करने का, इतना भारी, चार तोले का...” अम्मा कहने लगी।

रात को बच्चे आजम से खेलने लगे। खोई नजर से आजम उन्हें कह रहा था, “चुप बैठो, चुप बैठो...”

आजम का बाप खाली बैठा था, इधर-उधर की बातें निकालकर आजम की अम्मा उससे बातें निकालने लगी, आजम ‘हाँ-हूँ’ करने लगा।

“तबीयत ठीक नै क्या रे आजम?” माँ ने पूछा।

“तबीयत को क्या हुआ?” तुनककर आजम ने कहा।

अचानक बिजली गई। बार-बार जाने वाली बिजली की शिकायत करते हुए आजम का बाप उठा। शीशे की चिमनी लगाई। आजम की बीबी एक तरफ बच्चों से बोल रही थी और दूसरी तरफ मन-ही-मन सोच रही थी, आजम से क्या बोले, कैसे बोले...बोल पड़ी—

“वो मख्दूम की खाला कुछ भी बोल रही थी...”

लेकिन इतने में आजम के घर के सामने से बारात जाने लगी। उसे देखने के लिए बच्चे भाग गए। वह भी बारात को देखने लगी। दिल की धड़कन रुक जाए, इतनी कर्कश आवाज में बजता हुआ बैंड...ट्यूबलाइट की लाठियाँ लेकर जानेवाले लोग, बड़ा जमघट और फूलों में छुपा हुआ दूल्हा...रोशनी के टुकड़े घर में से गुजरने लगे...आजम, आजम का बाप, अम्मा, आजम की बीबी के शरीर पर से सरकने लगे, फिर अँधेरा होने लगा। एक-दूसरे की आवाज सुनना भी दूभर हो गया। ‘रहेमान सेठ के बच्चे की शादी है...’ अम्मा की आवाज किसी के कानों तक नहीं पहुँची। आजम की बीबी ने बात रोक दी थी। वह कहने वाली थी, मख्दूम के रिश्तेदार को पुलिस पकड़कर ले गई थी, बेदम पीटा था उसे।

पर बारात की वजह से उसका बोलना रुक गया। वह आजम के बाप की तरफ देखने लगी। आजम के साथ उसकी खास बातचीत न होने की वजह से शंका-आशंका को मन में दबाए वह वैसा ही बैठा था, पर चेहरे पर तनाव साफ नजर आ रहा था। गुजरने वाली बारात की तरफ आजम देख रहा था। आजम की बीबी को आजम के देखने का अहसास हो रहा था...बारात जाते ही वह बोली, “वो मख्दूम की खाला...”

इतने ही में आजम ने तुनककर पूछा, “तू क्यूँ मरी थी वहाँ?” और गुस्से में आकर उस ने बीबी के मुँह पर थप्पड़ जड़ दिया। उससे बचने के प्रयास में आजम की बीबी की चूड़ी टूट गई, हाथ की प्याली गिर गई, चूड़ी के कारण उसके गाल पर निशान पड़ गया। गाल सहलाते वह बोली, “मैं नई गई थी...”

आजम की अम्मा कहने लगी, “अरे वो खाला अपने ह्यां आई थी।” आजम की बीबी ने चाय की प्याली के टुकड़े उठाए, चूड़ी के टुकड़े भी समेटे और घर के अंदर चली गई। आजम थूककर आया। बच्चे के बस्ते पर पड़ी कॉपी हाथ में लेकर बैठा।

रात में आजम की गाली-गलौज सुनाई आने लगी। बाहर सोया हुआ आजम का बाप जाग गया। उसके पास सोई आजम की बच्ची आवाज से डर गई। आजम की माँ भी उठ बैठी। आजम बीबी को पीट रहा था। चूड़ियों की आवाज, खटपट सुनाई आने लगी। आजम गालियाँ देते हुए पीट रहा था।

“मत मार बोलना भड़वे कू!” आजम के बाप ने बूढ़ी से कहा। माँ उठी। बंद किवाड़ के पास खड़ी रही। आजम की बीबी आजम से कुछ कह रही थी, आजम उसे पीट रहा था, मार खाकर भी आजम की बीबी का न रोना माँ की समझ में आ गया। वह वापिस अपने बिस्तर पर आकर लेट गई।

सुबह होते ही आजम का बाप बाहर चला गया। आजम कमरे से बाहर निकला, कुल्ला किया, आजम की बीबी ने चाय लाकर उसके सामने रख दी।

गरदन झुकाकर आजम चाय पीने लगा। उसकी बीबी ने उसे टोस्ट देते हुए पूछा, “जा रे क्या ड्यूटी कू?”

आजम ने कोई जवाब नहीं दिया। पल भर वह आजम की तरफ देखती रही; फिर तुरंत अंदर चली गई, बाहर आई। आजम चप्पलें पहनकर जाने के लिए निकला था।

“जा तूँ...” रूखे स्वर में उसने कहा और जाने लगा।

आजम की बीबी आगे आई, “ये देखो,” उसने आवाज दी, आजम मुड़ा।

“ये गलसर रखते क्या? मुझे क्या करने का...रखो, तुमको खर्चेपानी को काम आएगा, नहीं तो यहाँ जोखिमीच है न!”

...कहते हुए आजम की बीबी को धीरज आने लगा, आवाज समझ आने लगी।

१०, सुनंदा पार्क, धुलिया रोड

अमलनेर-४२५४०१ (महा.)

दूरभाष : ९४२२२८११०९

जुलाई 2024

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