सुपरिचित लेखक एवं ललित-निबंधकार। पत्र-पत्रिकाओं में ललित-निबंध का निरंतर प्रकाशन। नर्मदा के घाटों का निरंतर भ्रमण। नर्मदा की सहायक नदी एवं सतपुड़ा पहाड़ का भ्रमण।
कित्ती अच्छी बात है कि यो उजालो हुयो कि थोड़ोई दिन चढ़यो कि झट दुड़कती गाड़ी आई जाय। गाड़ी काई खिलोनो है। ओकी आवाज तो काई केनो, की दबी जाय। बस! यो गानो बजतो आय कि समझी जामा बेनी आई गई भला! कारज की गाड़ी। कित्ती-कित्ती बात बतावे जी। हाँ, फिरी-फिरी नी दुहीरावे। रे, रे खे समझावे। एक-एक बात हिया में पिरती जाय। कान खड़ा हुई जाय। आँख तो फटी की फटी री जाय। अंग-अंग फड़क उठे। रोआँ, रोआँ में फुरफुरी सी आई जाय—‘कचरा दान। महा कल्याण।’ यो संदेशों असो छे कि घर-घर जाग उठे जी, फिरकनी सा नाचे जी। हाँ, अखेटो करयो है, कूड़ो-कचरो। तो छोटी सी कचरा की डुलिया-डुलारा ले रही है, हिल-डुलकर। थोड़ी देर में रस घोलती गाड़ी आई गई। हाँ, द्वारे पर आई है गाड़ी तो हुमकारा भरती कचरा की डलिया झट उरेल दी है। ‘कदम-कदम स्वच्छता की ओर’ गाड़ी के पीछे लिखे हुए वाक्य को पढ़ रहा हूँ। नर्मदापुरम (होशंगाबाद) नगरपालिका की गाड़ी रूमक-झुमक सी दुड़कती, ठहरती, ठिठकती फेरो लगाई रई है हमारे कंचननगर में। बोली-बानी की मिठास है—नगरपालिका परिषद नर्मदापुरम निवेदन करती है—“दो डस्टबिन में कचरा रखें, एक में पेपर, पन्नी, प्लास्टिक और अन्य सूखा कचरा। और दूसरी में गीला कचरा—बची हुई झूठन, चायपत्ती, अन्य खाद्य पदार्थ रखें।’ बस! एक बार यो संदेशों सुनकर दो डुलिया रखी ली है घर-घर में। दुपहरी को भोजन बनता-बनता दोई डुलिया में अपनो-अपनोे हिस्सो डालता जामा। बस! तीसरा पेर से सोता पड़े तक सिगासिग भराई जाय। कित्ती अच्छी बात हुई कि कोई-कोई ने अपनाई ली बात। नी तो योजना का पेले सच्ची मात में बगदो कचरो बाखल-बाखल का लोग हुन गली में खुल्ला में पलटाई जाता था। तितर-बितर होतो थो। और हवा मुहानों दूसरा का फाटक भनी उड़तो थो। अरु उल्टी हवा हुई कि नाली में डुबकी लगाय। पानी को निकास रुके जी, मच्छर बढ़े जी। और अब सड़क-सड़क साफ-सुथरी दिखती है।
हमारी निगाह में अच्छो आयो तो अच्छो बतामा नी। यो देखो जी नेहरू पार्क से हिटी है या सड़क तो पूरब की तरफ हाँ, चल चली जाय आगे डाक घर तक। कोठी बाजार की या सड़क कित्ती अच्छी है चौड़ीचट। भुनसाँरा से देखो तो साफचट करी खे जाय है सेवक लोग। बड़ो सुहानो लगे जी। सड़क की पेड़ी का पेड़ तो ‘जी’ में उमगाओ भरे जी। पीलो-गुलाबी रंग पुतेल पानी की टंकी का नीचे छोटो नानो सो पार्क है। और आगे आमाँ भाई तो देखाँ कि मालाखेड़ी की सड़क का किनारे वरिष्ठ जन पार्क है। रंग्यो-चंग्यो है जी। और थोड़ा पिच्छा आमाँ तो इधर मीनाक्षी चौक से इटारसी रोड तरफ है हाउसिंग बोर्ड कालोनी या कालोनी में दो लेन की सड़क है। एकदम साफ-सुथरी तो असी की असी दो लेन की सड़क है रसूलिया में। बुहारी तो रेय है पर! दिन भर या सड़क उचाट चले जी, तो धूल धमासो तो होना को है जी। तो बड़ा-बड़ा शहर का बाग-बगीचा पार्क हुन असई है जी चगन-मगन। हाँ, अखबार में आयो है कि हमारा मध्य प्रदेश में इंदौर शहर में पूरा-पूरा कचरा को निस्तारण करी रया। हाँ, भैया इंदौर शहर तो पहला नंबर पर हीटी गयो। हमारा रसूलिया में कचरा की गाड़ी टुड़की लगाई रई। ‘जी’ में उमगाओ है चलते-चलते सुन रहे है—‘स्वच्छ नर्मदापुरम, सुंदर नर्मदापुरम।’
और इधर रून-झुन गाड़ी की ध्वनि गूँज रही है—“व्यापारी बंधुओं से निवेदन है कि वे अपने प्रतिष्ठान का कचरा सड़क पर न फेंकें।” जल्दी समझ गए इधर हाट-बाजार है। अरे हाँ, बाखल में हाट-बाजार लगे नी हफ्ता का एक दिन। जी, हओ, नर्मदापुरम में रविवार को बाजार है। अब तो सब्जी वाला तो उनका मन में आय बोई जगा में दुकान लगाई ले। दिन भर बेचे-खोचे और संजा में सामान समेटती घड़ी, सब्जी की कतरन, फूल-पत्ती अरु सड़ेल-गलेल भाजी-तिरकारी सब सड़क किनारे छोड़ी जाय। नाली तो उथली है, थमथमा जाय। और ब्रिज का नीचे थोड़ी आड़ी जगह तो देखो जी। खान-पान की चटक दुकान है। छिल्का-छिल्की है, गंदगी है। पानी का निकास नहीं है। ओ! हो! चोवना भरे हैं। धरती माता सब सहन करे जी। मुहल्ला का आना-जाना वाला कुढ़े किलपे जी। दिन में तो जसाँ-तसाँ निकली जायँ पर। रात अँधेरा निकलनो कठिन होय। फिर बरसात का दिन में बुरा हाल होय। अब गाड़ी वाला काई करे जी। सुपातर आदमी तो कचरा की डलिया गाड़ी में उरेल जाय। अरु कोई-कोई भाई भूली जाय तो निछमनी जगह में छोड़ी जाय। यो कचरो तो गलतोई नी, काई कराँ माटी में हुमकारा भरता कीड़ा-मकोड़ा कारूआँ करे जी, बस! कुकुरमुत्ता ऊगया है। यो सब हम देख रहे हैं। हाँ, भैया, और नी र्कइं जगह दिखी तो हमारा बाप-दादा का हाथ का सुन-सपाट सा कुआँ हुन हैं, उनमें कचरो डाली जाय। हमारा नर्मदापुरम में पुराना रेलवे गेट का पास को कुओं कचरा में भराई गयो। अरु काई बतामा जी हमारा पास को कस्बा बाबई का बस स्टैंड को कुओं तो सिगा-सिग कचरा से भराई गयो। असा का असा कित्तई कुआँ हुन कचरा से भराई गया। अरे! बाप रे खुदाना वाला को नाम मिटी गयो। पर असो भी है कि फूटा कुआँ का नाम से नर्मदापुरम का बालागंज की पहचान है।
अपन भूलाँ थोड़ी, याद है जी, अपना रतवाड़ा का बाडा में कुओं खुदायो थो। बड़ी तरकीब से रोहना का ठेकेदार ने मिट्टी उलीची थी। अरु भैया! जे दिन पहली-पहली झिर फूटी थी तो कित्तो उच्छाव मनायो। झट छोटी बेन ने आरती सजाई लाई। कूँ-कूँ अक्षत फूल-दूब छोड़े थे। खोदना वाला भैया ने नारियल चढ़ायो। बेन ने सबका माथा पे तिलक लगाओ आसपास का सबका सब दौड़ी-दौड़ी आया तो ‘गंगा मैया की जय, नर्मदा मैया की जय’ का खूब जयकारा लगाया था। हरहराकर हिलोर फूटी थी—
“लहर-लहर लहराई
ओ मोरी रेवामाई।
जो मानुष तुमरों गुण गावे
जनम सुफल हो जावे॥”
हाँ, भैया हम थोड़ी देर पेले आड़ी जगह से जसा-तसा निकली आया। अरु कुआँ को कचरो देखी-देखी अपनो ‘जी’ दुखयो। कुआँ पनघट की बात निकली है तो हम अपना नर्मदापुरम में नर्मदाजी को सेठानी घाट देखन चलाँ। बड़ो सुहानो लगे है जी नर्मदा किनारे। कोई-कोई दोई टेम नर्मदाजी जाय। हाँ, ‘बिना नर्मदा जाय जीया नई माने रे।’ तो ये सेठानीघाट विश्व प्रसिद्ध है। रात-दिन मेला ठेला लग्या रेय। बहती धार देखते ही ‘जी’ में हिलोर उठे जी। पर! फर्श पर, फैले, फूल-माला, नारियल की बूच-अगरबत्ती की काड़ी देखी-देखी ‘जी’ तो बठी गयो। सफाई वाला हुन का कोई-कोई का हाथ में सींक की झाड़ू है तो फेरी रया। कोई-कोई का हाथ में लंबा डंडा में बँधेल झाड़ू से कचरो अंकेठो करी रया। लग्या है विचारा हुन सफाई में। कहाँ तक सफाई करे जी। झाड़ी-झाड़ी निपट्या कि कोई मंडली आई गई। अरु खाना-पीना को सामान छोड़ी जाय। और भैया या कचरा में छोरा-छोरी हुन बीन रया रोजी रोटी। तो भैया, मरदम सुमारी खूब बढ़ी गई। हम देख रहे हैं कि भिक्षावृत्ति वाले बैठे हैं घाट पर। नर्मदा की छिर में ही गंदगी फैलाते हैं। हाँ, घाट के उपरोस में सुलभ कांप्लेक्स है, पर मानते नी, घाट पर इन्हें मनाने के बोर्ड पर लिखा है—“थोड़ी सी तो अक्ल लगाओ, खुले में शौच, खुले में कचरे की आदत दूर भगाओ।” हम भागते कँदराते आए हैं तो दुपहरी हो गई है, कंठ सूख रहा था, ओक से जल पिया। बस! जल में झाँककर देखा-बाप रे! कपड़ा, लत्ता, पन्नी, मूर्ति, फूलमाला, चुनरी, फोटू हुन, किताब-पोथी सबका-सब जल में भींगेल-भींगेल दिखाई देई रया। तो गटर का पानी संग कचरो मिली रयो रेवा में। योई कचरो समुंदर में जाई रयो भैया। देखी-देखी अपनो उच्छाव हिराई जाय। भैया! अपनो उच्छाव, उमगाओ बनो रेय एका लेना उपरोस में खिलौना गाड़ी काई-काई गाई रई सुन जो जी—
“पुण्य दायनी पतित पावनी रेवा का जल
मोक्षदायनी नर्मदा का जल अमृत के समान
कास्टिक सोडा, साबुन से अपवित्र न करें॥”
और यो दीवाली को उच्छाव आयो कि घर-घर में झटकारना, बुहारना को यो मोको आयो है। तो लिपाई-पुताई, सफाई को काम-धाम चल निकलो। साल भर में एकई बार तो कबाड़ा खरीदना वाला की बन पड़ी है। घर-घर से खूब कबाड़ो निकले जी, तो थोड़ो बिके, थोड़ो फिंके। पर है अच्छो परब कि घरबार द्वार-द्वार सब चगन-मगन हुई जाय। अरु यो काई, दीवाली की रात लक्ष्मीजी की पूजा हुई कि फटाके फूटने लगते हैं। हाँ, बड़ी-बड़ी हवेलियाँ रोशनी से जगमगाती हैं, तो आँगन, चौगान, गली, गुठान, सब जले जलाए पटाखों के टुनुक-टुनुक से टुकाड़ों से भर जाती हैं। भर जाते हैं, ध्वनि धुआँ से। और आकाश तो रोज-रोज भरी रयो है ई कचरे से। हाँ, अरु भुनसारी रात हुई कि सफाई वाला आई जाय। भला! उनको ‘जी’ नी आय। कित्तो-कित्तो काम समटाय। चार जना को काम एक आदमी उरकाय जी। देखो नी कपड़ा बाजार किराना लाइन, एकता चौक, सतरास्ता काई पूरा नर्मदापुरम में दीवाली को बाजार तो भुनसारे तक कचरा-कूड़ा से भरोई भरो दिखे जी। तो अपनों-अपनों काम सब उरकाई रया। हाँ, जी तो मंगलाचार लोकाचार में उमगती या गाड़ी आई गई है। घर का रहवासी तो कचरा की डुलिया डाल रया। पर या आम सड़क को दीवाली को कचरो सेवक जन उठाई-उठाई गाड़ी में उरेली रया। अरु गाड़ी भराई कि शहर का बाहर का ढेर पे छोड़ी आएगा। कचरा को ऊँचो बड़ो ढेर देखी-देखी माथो ठनके जी। पर काई करें खिलौना गाड़ी तो हमारी ‘डोर टू डोर’ ठिठकी-ठिठकी गाई बजाई रई—
“घर-घर में गूँजे नारा।
नर्मदापुरम हो स्वच्छ हमारा॥”
काई कराँ भैया, हम तो ठहरे निरा उत्सवधर्मी कि हाँ, बस! नर्मदा जयंती आई कि कोई दूसरो परब आयो ओमे बड़ा-बड़ा मंत्रीजी आय, साधु-संत, समाज-सेवक को आगमन होय, फिर देखो सफाई की गहमागहमी कि कोना-कोचरा आड़ा-तिरछा का भाग खुली जाय। सालभर को भरेल कचरो उठी जाय। अरु हमारा आॅफिस हुन की सीढ़ी का पास उरेहे पान का पीक पुताई जाय। अरु काई बतामा, झट झाड़ी बुहारी में इत्ती उलात कराँ कि बस! पूछो मत! जगमग, जगमग, चक-चक हुई जाए सड़क। और रंगोली मंडामाँ, ढिक लगामा। नाड़ा में आम का पत्ता की झालर पिरोमाँ फिर द्वारे-द्वारे टाँगी देय। अरु केला का तो खंबा-खंबा खड़ा करी देय। कसो-कसो उच्छाव होय गाँव नगर में। पर भाषण, व्याख्यान, हुआ कि मंच से उतर्या कि बस पिच्छा पाव कर्या जी, सफाई-अफाई की तरफ। स्वागत-सत्कार का भोजन-पानी का, पातल-दोना-गिलास को काई केना। बस! पंडाल भरी जाय। जसाँ-तसई, झंडा-झंुडी निकालनो हुयो तो निकाल्या नी तो अटके-लटके रेय मइना गिनती। अरु फूलमाला को अंबार लगयो रेय। हम सब देख रहे हैं कि प्रचार-प्रसार के बोर्ड सीख देते हैं—
“अविरल नर्मदा, निर्मल नर्मदा
धर्म स्थलों को स्वच्छ बनाने
एक कदम आगे बढ़ाओ
बगीचे के कचरे और फूलों से
खाद बनाओ॥”
और इधर कोरी घाट की सँकरी गली में नातिन को ब्याह छे। ‘डोर-टू-डोर’ खिलोना गाड़ी तो थोड़ी दूरी से पुकार लगाई रई। हाँ, शादी-ब्याह में नातेदार आया है। घर तो भरो-पूरो है, दो-तीन दिन से। कारज में घर तो सकरोंधो होई जाय। फिर धमाचोकड़ी होय तो थोड़ो घनों कचरों कूड़ों अकेठो होई जाय। हाँ, बारात आने को है। घर की गली थोड़ी सकड़ी है। कारज सरनो कठिन है। बूढ़ी खटिया पे बैठी-बैठी आजी माई फिकर चिंता में डूबी है। अंदर ही गुनगुनाती है। स्वर थामकर बुदबुदाती है तो अंदर की लौ टिमटिमाई। आजी माई एक-एक बूँद उरेलती हैं—“अरे! छोरा हुन तुम काई दूसरा की बाट देखो है, उठाओ बुहारी अरु गली को कचरो बगदो उठाई-उठाई डालो डलिया में। घर का काम में काई शरम।” उच्छाव की उमग में एक-एक बात उलरती है कहती है—“अरे महात्मा गांधी जी, विवेकानंद जी का काम कौन खे नी मालूम। ये हमारा महापुरुष की सेवाभाव से सीख ले लो।” बस! काई थो छोरा हुन की फुरफरी सिहर गई। आजी का हिया में हिलोर आई कि सरसर असुआँ ढरते हैं—
“गलियाँ बुहारो!
तुमरे द्वारे आवें राम।
संग लक्ष्मण आवें
आवेंगे दूल्हा राम॥”
“घर-घर में अलख जगाओ साफ-सफाई का।” हमारी खिलौना गाड़ी ‘डोर-टू-डोर’ से यो नारा सुन रहे हैं। समय की पुकार है यो कसो सुख-सुविधा को विलासी जीवन हुयो है जी। कारखाना वाला हुन रंगी-चंगी चीज घड़ी रया। विज्ञापन वाला उकसाइर्या। हाँ, या ललचाई विलासिता देखो नी कि वस्तु-वस्तु का बापरना को कोई नेम धरम नी रयो। कोई चीज थोड़ा दिन बापरी अरु ओमे खोट दिखी जाय तो ओखे फेंकी-फाकी देय और दूसरी मोल ली आय। रुपया-पैसा की कोई कदर नी है आजकल। कसी होड़ा-होड़ी हुई गई कि अच्छी-भली चीज कचरा अटाला में जाई रई। अरे! भैया यो काई हमारा देश का बड़ा शहर हुन में कचरा को ढेर लगेल है। आना वाला समय में हमारा देश का कूड़ा, कचरा को रखना का लेने एक बड़ा शहर बराबर जमीन चाहिए। भैया या कचरा को उपयोग तो होई सके पर! चार जना बठाँ, बात बाँटा, गुना तो काई कठिन है कोई काम। एकी बिजली बनाई लो एको खाद बनाई लो। कचरो तो सुन्नो है सुन्नो। कारज जसो करम कराँ तो कचरा को कनक बन जाय। तो भैया घर, घर का लोग अपना हिया में अलख जगाई लेय तो कचरा की डलिया घर में उत्ती भराय नी। अरु भरा जाय तो ओखे गाड़ी का आता सेई अलग खानों में डाली देय। हाँ, डाली देय तो पूजा को परताप आई जाय ओका पास। तो सफाई करना को रोज को यो मंगलकारी कारज है। ‘पुण्यो गन्धः पृथ्वियां च।’ हाँ, जी अपना घर आँगन, अरु आसपास की गली गुठान चौगान की माटी की सुवास बनी रेय। हाँ, भैया! या खिलौना गाड़ी आई रई है। एका गीत, गाना, बठी-बठी ने सुन जो, कसी हिलोर भरे हैं, उमगाओ भरे है। ओकी सीख सुनता-सुनता हमारा हिया में सफाई करना को सोतो सरसी रयो-रेवा थारो सरसी रयो संदेशो। हम जाना कि चोखा चट में लोकमंगल होय है, तो बरकत की गगरिया छलकेगी जी।
ऑफिसर रेसिडेंसी, कंचन नगर,
रसूलिया, नर्मदापुरम्-४६१००१ (म.प्र.)
दूरभाष : ९९२६५४४१५७