सुपरिचित लेखिका। अब तक नौ पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें चार उपन्यास, चार कहानी-संग्रह और एक डेनिश-हिंदी अनुवाद शामिल। केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार, डॉ. निर्मल वर्मा सम्मान और राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार से सम्मानित। उपन्यास ‘पॉल की तीर्थयात्रा’ सर्वश्रेष्ठ दस उपन्यासों में शामिल तथा ‘वेयर डू आई बिलांग’ पुरस्कृत। ‘कैराली मसाज पार्लर’ अंग्रेजी, कन्नड़ और मराठी में भी अनूदित।
कभी-कभी हमें इतिहास के पन्नों में झाँक लेना चाहिए। वहाँ प्रेरणा, साहस, त्याग, रोमांच, प्रेम, नफरत, दोस्ती, दुश्मनी, साजिश, कांड, क्रूरता, छल और त्रासदियों से भरी अनगिनत कहानियाँ छिपी होती हैं। हाँ, इतिहास में दर्ज कोई भी कहानी पूरी नहीं होती। जितना बताती है, उससे अधिक छिपा लेती है। एक ऐसी ही अधूरी दास्तान १८वीं शताब्दी के डेनमार्क के राजमहल की है, जहाँ संगमरमर की दीवारें सत्ता और प्रेम के षड्यंत्रों से थर्रा उठती थीं और समय की धड़कनें एक अदृश्य सन्नाटे में गुम हो जाती थीं।
कैरोलीन मैथिल्डे का जन्म २२ जुलाई, १७५१ को ग्रेट ब्रिटेन में हुआ था। वह इंग्लैंड की राजकुमारी थी—वेल्स के राजकुमार फ्रेडरिक लुडविग की बेटी और ग्रेट ब्रिटेन के राजा जॉर्ज तृतीय की बहन। राजसी ठाठ-बाट में पली-बढ़ी कैरोलीन की शादी १७६६ में, मात्र पंद्रह वर्ष की आयु में डेनमार्क के सत्रह वर्षीय राजा क्रिश्चियन सप्तम से कर दी गई। यह विवाह दो देशों के बीच एक राजनीतिक संधि का परिणाम था, लेकिन व्यक्तिगत रूप से कैरोलीन इस विवाह की बहुत इच्छुक नहीं थी।
इंग्लैंड के भव्य महलों को छोड़कर वह डेनमार्क के शाही दरबार में पहुँची। चारों ओर सोने-चाँदी से सजे कक्ष, दीवारों पर टँगे भव्य चित्र, और संगीत से गूँजते महल के गलियारे—हर चीज राजसी थी। पूरे दरबार में उत्सव का माहौल था। नृत्य हुए, भव्य स्वागत समारोह आयोजित किए गए और दरबारियों ने नवविवाहित रानी का उल्लासपूर्वक स्वागत किया। लेकिन महल के गलियारों में कानाफूसी थी।
“राजा अजीब हैं...कभी-कभी घंटों बिना बात हँसते रहते हैं...कभी गुस्से में चिल्लाने लगते हैं...दरबारियों पर हाथ उठा देते हैं...रानी से बात भी नहीं करते...।”
कैरोलीन ने पहली ही रात समझ लिया था कि महल की जगमगाहट के पीछे एक अजीब-सी घुटन छिपी है। राजा का यह दुर्भाग्य था कि केवल तीन साल की अवस्था में वह अपनी माँ को खो बैठा था। माँ की मृत्यु के अगले ही वर्ष उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी। लेकिन सौतेली माँ रानी जूलियाना मैरी ने उसकी ओर कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई और हमेशा अपने सगे पुत्र को प्राथमिकता देती रही। अत्यधिक विलासी प्रवृत्तियों और मदिरा में रत रहने के कारण राजा क्रिश्चियन के पिता धीरे-धीरे अपने शर्मीले और संवेदनशील बच्चे के प्रति उदासीन होते गए।
मातृविहीन राजकुमार क्रिश्चियन, जिसे मिर्गी के दौरे भी पड़ते थे, को अपने पिता के भी स्नेह से वंचित रहना पड़ा। सत्रह वर्ष का होते-होते वह पितृविहीन भी हो गया। उसे राजगद्दी सँभालनी पड़ी। इतिहासकारों का कहना है कि क्रिश्चियन का व्यक्तित्व आकर्षक था और वह प्रतिभावान भी था। दुर्भाग्यवश उसे सम्यक् शिक्षा नहीं मिल पाई। ऊपर से एक क्रूर शिक्षक द्वारा उसे लगातार आतंकित भी किया गया। वह बुद्धिमान था, लेकिन गहरे मानसिक विकारों का शिकार हो गया।
अपनी पत्नी को वह देखता तक नहीं था और जब देखता भी, तो उसकी आँखों में कोई भाव नहीं उभरता। वह अपनी ही दुनिया में मस्त रहता—बेमतलब हँसता, कभी चुपचाप छत को घूरता, कभी अपने आप से ही बतियाता तो कभी दरबारियों के साथ बेसिर-पैर की हरकतें करने लग जाता।
महल में कोई इस पर सवाल नहीं करता था। जो लोग पीठ-पीछे मजाक उड़ाते, वे भी राजा के सामने सिर झुकाकर खड़े हो जाते। दरबार जानता था कि राजा का मूड किसी भी पल बिगड़ सकता है। उसकी आत्मा पर एक ऐसा अँधेरा छाया था, जिसे आज की दुनिया सिजोफ्रेनिया कहती है, लेकिन तब इसे पागलपन समझकर नजरअंदाज कर दिया जाता था। कभी-कभी वह इतना हिंसक हो जाता कि महल के लोग डरकर दूर भाग जाते।
कैरोलीन भी उसके सनकी व्यवहार से भयभीत रहती। एक निरंकुश सम्राट्। देखा जाए तो पूरी तरह से अनुपयुक्त। दरबार असमंजस में था—क्या किया जाए? कोई विद्रोह नहीं कर सकता था, न ही उसे हटाने की हिम्मत जुटा पाता था।
शादी के दो वर्ष बाद, जनवरी १७६८ में कैरोलीन ने एक पुत्र को जन्म दिया। भावी राजा फ्रेडरिक छठे का दुनिया में पदार्पण हुआ। महल में खूब जश्न मनाया गया। राज्य का उत्तराधिकारी आ गया। लेकिन कैरोलीन के लिए कुछ नहीं बदला। उसके प्रति राजा की बेरुखी वैसी ही बनी रही।
उसके दिन उसी अकेलेपन में गुजरते। कभी खिड़की से दूर क्षितिज को देखती, कभी पुराने पत्रों को पढ़ती। कभी अपने भाग्य पर सोचती, तो कभी अपने बचपन की खिलखिलाहट को याद करती। क्या यही नियति थी उसकी? ब्रिटिश राजपरिवार की बेटी और बहन! व्यक्तित्व में सुंदरता और विद्वत्ता—दोनों का मणिकांचन संयोग! गुणी होने के बावजूद उसकी शादी एक ऐसे व्यक्ति से कर दी गई, जो मानसिक रूप से अस्थिर था—जिसके साथ जीवन की कोई साझेदारी संभव ही नहीं थी।
१७६८ में महल में एक नए चेहरे की आमद हुई। राजा की बिगड़ती हालत को देखते हुए दरबार ने जर्मनी से एक युवा और कुशल चिकित्सक को बुलाया—डॉ. जोहान फ्रेडरिक स्ट्रून्सी।
“महामहिम, आप निश्चिंत रहें”, स्ट्रून्सी ने आत्मविश्वास से कहा, “मैं आपका संपूर्ण उपचार करूँगा। आपके भीतर छिपे अंधकार को हराने के लिए ही मैं यहाँ आया हूँ।”
उसके दृढ़ शब्दों ने दरबारियों को एक पल के लिए स्तब्ध कर दिया। फिर उनकी मौन स्वीकृति के साथ वह राजा का निजी चिकित्सक बन गया। धीरे-धीरे इलाज की प्रक्रिया शुरू हुई। जितना अधिक स्ट्रून्सी ने राजा को समझने की कोशिश की, उतना ही उसे महसूस हुआ कि यह बीमारी सिर्फ मानसिक नहीं थी—यह सत्ता का एक जाल था। राजा अकेला था, दिशाहीन था, उसके आसपास चाटुकारों की भीड़ तो थी, लेकिन कोई ऐसा नहीं था, जो उसकी असली परेशानियों को समझे। वह एक ऐसे तंत्र में फँसा था, जिसने उसे एक कठपुतली बना दिया था।
राजा और राज्य की बिगड़ती स्थिति के बीच, जर्मनी से आया यह युवा और प्रतिभाशाली डॉक्टर शाही दरबार के लिए किसी वरदान से कम नहीं था। स्ट्रून्सी सिर्फ एक कुशल चिकित्सक नहीं था, बल्कि विज्ञान और राजनीति दोनों में निपुण भी था। सम्राट् का स्वास्थ्य धीरे-धीरे सुधरने लगा। स्ट्रून्सी ने राजा के मानसिक स्वास्थ्य पर एक महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट भी लिखी। उसने राजा का विश्वास और स्नेह प्राप्त कर लिया। राजा स्ट्रून्सी को अपना सबसे बड़ा हमदर्द मानने लगा। परिवार और दरबार राजा पर स्ट्रून्सी के प्रभाव से प्रसन्न था। राजा ने कम शर्मनाक ‘दृश्य’ बनाने शुरू कर दिए थे।
उसने न केवल राजा के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए प्रयास किए, बल्कि अपने बौद्धिक ज्ञान और कूटनीतिक कौशल से दरबार की व्यवस्था में भी व्यापक सुधार करने लगा। स्ट्रून्सी का प्रभाव केवल चिकित्सा तक सीमित नहीं रहा। अब वह शासन के मामलों में भी हस्तक्षेप करने लगा और धीरे-धीरे राजा का सबसे विश्वसनीय सलाहकार बन गया।
किस्मत के खेल भी निराले होते हैं...जब डॉक्टर ने राजा की मानसिक स्थिति को सँभालना शुरू किया, तो उसकी मुलाकातें महारानी कैरोलीन मैथिल्डे से भी होने लगीं। पहली कुछ मुलाकातें औपचारिक थीं। अपने पति के इस निजी चिकित्सक को रानी ने शुरू में नापसंद किया। लेकिन बाद की मुलाकातों में एक अलग अहसास पनपने लगा। विशेषकर जब डॉक्टर ने उसके शिशु क्राउन प्रिंस का सफल टीकाकरण किया और वह बच्चे के पालन-पोषण में बहुत सक्रिय हो गया तो उसका महत्त्व रानी की नजरों में बढ़ गया।
कैरोलीन अपनी शादी से नाखुश थी—राजा द्वारा उपेक्षित और तिरस्कृत। राजा की बीमारी ने उसे और भी अकेला कर दिया था। स्ट्रून्सी ने उसकी ओर भी ध्यान दिया। उसने रानी की परेशानियों को समझने की कोशिश की। पति-पत्नी के बीच सुलह करवाने का प्रयास भी किया।
मगर रानी का अकेलापन और स्ट्रून्सी की संवेदनशीलता उन्हें एक-दूसरे के करीब ले आए। कैरोलीन और स्ट्रून्सी के बीच निकटता बढ़ने लगी। महल की भव्यता के बीच भी रानी का जीवन सूना था। एक शाम महल के बगीचे में कैरोलीन और स्ट्रून्सी आमने-सामने बैठे थे।
“डॉक्टर, क्या एक शासक का जीवन हमेशा इतना कठिन होता है?” रानी ने उदासी से पूछा।
स्ट्रून्सी ने उसकी ओर देखा, “जीवन कठिन नहीं होता। लोग इसे कठिन बना देते हैं।”
रानी पहली बार किसी की आँखों में सच्ची हमदर्दी देख रही थी। उनकी मुलाकातें बढ़ने लगीं और वह उससे अपनी परेशानियाँ साझा करने लगी। स्ट्रून्सी रानी के टूटे हुए दिल पर भी मरहम लगाने लगा। अब उनकी बातचीत साधारण नहीं रह गई थी। एक अनकहा अहसास दोनों के बीच पनप रहा था। बगीचे में देर रात तक चलने वाली मुलाकातें अब एक गहरी चाहत में बदल रही थीं।
एक दिन बारिश हो रही थी। रानी बदहवास-सी भीगती हुई महल के गलियारे में खड़ी थी। स्ट्रून्सी की नजर उस पर पड़ी। ठंडी बारिश में भीगती कैरोलीन का चेहरा वीरान था। वह आहिस्ते-आहिस्ते उसके पास आया, फिर हल्के से उसका हाथ पकड़ लिया।
“मैं आपको इस कैद से निकालना चाहता हूँ।” उसने कहा।
रानी खामोश रही, लेकिन उसकी आँखों में भावनाओं का सैलाब उमड़ रहा था। “डॉक्टर, मेरी शादी महज एक राजनीतिक समझौते का हिस्सा थी। मैं शाही विवाह का अभिशाप झेल रही हूँ। सम्राट् मेरी तरफ देखते तक नहीं हैं, जब देखते हैं तो गाली बकने लगते हैं, कभी-कभी मारने को भी दौड़ते हैं। क्या यही मेरा भविष्य है? मेरी जिंदगी किसी बुरे सपने से कम नहीं।” कैरोलीन ने दर्द भरी आवाज में कहा।
“महारानी, आपको धैर्य रखने की जरूरत है। सम्राट् को ठीक होने में समय लगेगा।” स्ट्रून्सी बोला।
स्ट्रून्सी सिर्फ एक चिकित्सक नहीं रहा। उसने राजा पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी। अब वही राजा की ओर से शासन के निर्णय लेने लगा। उसने डेनमार्क में कई सुधार किए—प्रेस की स्वतंत्रता, यातना का अंत, गरीबों के अधिकार। लेकिन महल में फुसफुसाहटें तेज होने लगीं।
रानी और डॉक्टर का रिश्ता कुछ ज्यादा ही गहरा हो रहा है—दरबार में ऐसी अफवाहें फैलने लगीं।
शाही महल में, जहाँ हर दीवार के कान होते हैं, यह रिश्ता कितने दिन छुप सकता था? उनके रोमांटिक संबंध शाही नियमों और सिद्धांतों के विरुद्ध थे।
इधर स्ट्रून्सी का राजनीतिक प्रभाव निरंतर बढ़ता जा रहा था। मई १७७० में उसे आधिकारिक रूप से फोरलेसर (शाही सलाहकार) और कोनफ्रेंसराड (परामर्शदाता मंत्री) नामित किया गया। फिर १७७१ में वह निजी कैबिनेट मंत्री बना। स्ट्रून्सी को यह पद मिलने का मतलब था कि वह राजा के सबसे महत्त्वपूर्ण सलाहकारों में से एक था और उसे शासन से जुड़ी महत्त्वपूर्ण नीतियों को तय करने का अधिकार प्राप्त हो गया था।
राजा अकसर मानसिक सुस्ती में डूब जाता, ऐसे समय में स्ट्रून्सी सर्वोपरि हो जाता। धीरे-धीरे उसने राजा क्रिश्चियन सप्तम पर पूरी तरह नियंत्रण स्थापित कर लिया और सत्ता का केंद्र बन गया। उसने राजा की स्थिति सँभालने के साथ-साथ शाही दरबार में अपनी मजबूत राजनीतिक पैठ भी बना ली। इस दौरान रानी कैरोलीन मैथिल्डे भी उसके साथ थी।
इस सोलह महीने की अवधि को डेनमार्क के इतिहास में आमतौर पर ‘स्ट्रून्सी का समय’ कहा जाता है। यह एक युग था, जिसमें उपचार, सत्ता, सुधार, प्रेम और षड्यंत्र—सभी एक-दूसरे में गुँथे हुए थे।
सत्ता के खेल में दोस्त और दुश्मन दोनों होते हैं। महल के भीतर हर कोई स्ट्रून्सी के बढ़ते प्रभुत्व को स्वीकार नहीं कर रहा था। कई दरबारी उससे जलने लगे थे। उनका मानना था कि राजा को वह गुमराह कर रहा है। लेकिन एक व्यक्ति ऐसा भी था, जो पूरी निष्ठा से स्ट्रून्सी का साथ देता था। वह कोई और नहीं, एनेवोल्ड ब्रांट था, जो डेनमार्क का एक उच्च पदस्थ अधिकारी और राजा क्रिश्चियन सप्तम का चैंबरलेन (व्यक्तिगत सेवक) था। वह शाही दरबार में एक प्रभावशाली व्यक्ति था। उसने ही स्ट्रून्सी को जर्मनी से बुलाने और उसे राजा का चिकित्सक नियुक्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उसे स्ट्रून्सी की सोच आधुनिक लगी और विचार प्रगतिशील। वह स्ट्रून्सी के सबसे करीबी सहयोगियों में शामिल हो गया। उसने डेनमार्क में सुधारों को लागू करने में स्ट्रून्सी की पूरी मदद की।
स्ट्रून्सी को ब्रांट में एक योग्य अधिकारी दिखा, उसने उसे ऊँचे पद पर बैठा दिया। जल्द ही, शाही प्रशासन में स्ट्रून्सी-ब्रांट की एक सशक्त जोड़ी उभरकर सामने आई। इस जोड़ी को रानी मैथिल्दे का पूरा समर्थन प्राप्त था। उन्होंने राजा की तरफ से महत्त्वपूर्ण संशोधन और सुधारों की एक शृंखला—किसानों को कृषि भूमि का आवंटन, सेना का पुनर्गठन, विश्वविद्यालयों एवं शिक्षा नीतियों में सुधार, चिकित्सालयों का नवीनीकरण, प्रेस को पूरी छूट को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया। आम जनता उनकी वाहवाही करने लगी।
मगर महल में एक और कहानी आकार ले रही थी—एक ऐसी कहानी, जिसे हर कोई महसूस करता था, मगर व्यक्त नहीं करता।
रात के अँधेरे में, मोमबत्तियों की मद्धिम रोशनी में कैरोलीन और स्ट्रून्सी अकसर एक-दूसरे की आँखों में खो जाते। उनके बीच अब कोई औपचारिकता नहीं बची थी—उनकी मुलाकातें भावनाओं की भाषा बोलने लगी थीं। परंतु महलों में प्रेम जितनी तेजी से पनपता है, उससे भी ज्यादा तेजी से नफरत की दीवारें खड़ी हो जाती हैं। दरबार के कई रईसों और शाही परिवार के सदस्यों को यह बरदाश्त नहीं था कि एक विदेशी डॉक्टर डेनमार्क की सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है—वह भी रानी के साथ मिलकर!
एक दिन राजा के एक दरबारी ने उन्हें महल के बगीचे में गले लगते हुए देख लिया। यह खबर आग की तरह फैली। महल में कानाफूसी शुरू हो गई—राजा की बीमार मानसिक स्थिति का स्ट्रून्सी और कैरोलीन फायदा उठा रहे हैं।
स्ट्रून्सी के प्रभाव और रानी के साथ उसके संबंधों ने दरबार में शक्तिशाली दुश्मनों को जन्म दिया। इनमें क्रिश्चियन सप्तम की सौतेली माँ रानी जुलियाना मारिया और उसका बेटा प्रिंस फ्रेडरिक विशेष रूप से शामिल थे। रानी जुलियाना मारिया अन्य दरबारियों के साथ मिलकर स्ट्रून्सी और कैरोलीन को सत्ता से हटाने की साजिश रचने लगी। वह क्रिश्चियन से सत्ता छीनकर अपने बेटे फ्रेडरिक को देना चाहती थी।
उन्होंने राजा के कान भरने शुरू कर दिए। ‘स्ट्रून्सी के रानी के साथ संबंध राष्ट्र के लिए अपमानजनक हैं। डॉक्टर और महारानी ने ओल्डेनबर्ग के शाही घराने की पारंपरिक गरिमा को तहस-नहस कर दिया। और महारानी के सार्वजनिक आचरण ने शाही घराने को जनता के सम्मुख शर्मसार कर दिया। यह रिश्ता किसी भी कीमत पर समाप्त होना चाहिए। चाहे इसके लिए उन्हें कोई भी कदम उठाना पड़े।’ हालाँकि राजा को स्ट्रून्सी के खिलाफ भड़काना आसान नहीं था। स्ट्रून्सी ने राजा की मानसिक स्थिति काफी हद तक सुधारी थी। स्वाभाविक था कि इसके कारण राजा उससे काफी प्रसन्न था।
कैसे वे सम्राट् को स्ट्रून्सी के खिलाफ करें? कैसे वे राजा के सम्मुख कैरोलीन और स्ट्रून्सी की करीबी दोस्ती और रोमांटिक संबंधों का खुलासा करें? दरबारियों में बेचैनी थी। उनका मानना था कि राजा ठोस प्रमाण माँगेगा। परंतु कुछ भी हो जाए, वे इसे साबित करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।
कैरोलीन और स्ट्रून्सी इन साजिशों से बेखबर अपने प्रेम में डूबे रहे।
महलों की दीवारें अकसर राज छुपाती हैं, लेकिन कुछ कहानियाँ इतनी गहरी होती हैं कि उनकी गूँज सदियों बाद भी सुनाई देती है। १७७१ की गरमियों की शाम, डेनमार्क के शाही महल में इतिहास का एक नया अध्याय लिखा जा रहा था—प्रेम, सत्ता और साजिशों का अध्याय।
रानी कैरोलीन मैथिल्डे और जर्मन चिकित्सक डॉ. जोहान फ्रेडरिक स्ट्रून्सी का संबंध अब किसी रहस्य से परे था। उनकी प्रेम कहानी ने डेनमार्क के शाही दरबार को हिलाकर रख दिया था।
७ जुलाई, १७७१ को रानी ने एक बेटी को जन्म दिया—राजकुमारी लुईस ऑगस्टा। आधिकारिक रूप से वह राजा क्रिश्चियन सप्तम की संतान थी, लेकिन दरबार की कानाफूसी कुछ और ही कह रही थी। महल के गलियारों में चल रहे इशारों में राजकुमारी के असली पिता के रूप में स्ट्रून्सी का नाम उछाला जा रहा था।
यह खबर जैसे ही फैली, षड्यंत्रों की बर्फीली परतें तेजी से जमने लगीं। राजा के विश्वासपात्र जानते थे कि यदि स्ट्रून्सी का प्रभाव इसी तरह बढ़ता गया, तो वे धीरे-धीरे शक्तिहीन हो जाएँगे। उनकी कुरसियाँ डगमगाने लगेंगी। ईर्ष्या और भय का साया गहराने लगा।
“राजा को अब सबकुछ बता देना चाहिए। यह विदेशी डॉक्टर डेनमार्क की पूरी बागडोर अपने हाथ में लेना चाहता है! रानी को भी उसने अपना बना लिया है।” प्रधानमंत्री ओवे होएग-गुल्डबर्ग ने गुस्से से कहा।
महल के कई दरबारी स्ट्रून्सी की बढ़ती सत्ता से पहले ही असंतुष्ट और चिंतित थे। उसके खिलाफ दुर्भावना सुलगने लगी थी। लेकिन जब उन्होंने नवजात राजकुमारी के चेहरे पर स्ट्रून्सी की झलक देखी, तो उनकी चिंता आक्रोश में बदल गई। उन्होंने स्ट्रून्सी के खिलाफ षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया। स्ट्रून्सी का सबसे बड़ा सहयोगी ब्रांट भी उनके निशाने पर आ गया।
जनवरी १७७२ की एक कड़वी सर्द रात, जब महल गहरी नींद में डूबा था, अचानक भारी बूटों की आवाज ने शाही गलियारों को झकझोर दिया। सैनिकों के पदचाप एक अनहोनी की घोषणा कर रहे थे।
“गिरफ्तार कर लो उसे!”
राजा के आदेश पर स्ट्रून्सी को उसके कक्ष से घसीटकर बाहर निकाला गया। रानी कैरोलीन अपनी आँखों के सामने यह दृश्य देख स्तब्ध खड़ी रह गई।
“तुमने मेरे राज्य को भ्रष्ट कर दिया!” राजा क्रिश्चियन सप्तम चीख उठा।
“नहीं, महामहिम! मैं केवल आपकी भलाई चाहता था!” स्ट्रून्सी की आवाज महल की पत्थर की दीवारों से टकराकर कहीं खो गई।
स्ट्रून्सी को जेल में डाल दिया गया। रानी की चीखें भी महल के गलियारों में कैद होकर रह गईं। कोई उसकी बात सुनने को तैयार नहीं था।
स्ट्रून्सी को राजद्रोह, सत्ता हड़पने और रानी के साथ अनैतिक संबंध रखने का दोषी ठहराया गया। है। ब्रांट भी बच नहीं सका। उसे भी सत्ता के दुरुपयोग और राजा के खिलाफ साजिश रचने का दोषी ठहरा दिया गया। स्ट्रून्सी के साथ उसे भी मौत की सजा सुनाई गई।
स्ट्रून्सी ने अपना बचाव बड़ी कुशलता से किया। अपने बयान में उसने कहा, “मैंने कोंगेलोव (शाही कानून) का कभी उल्लंघन नहीं किया, न ही शाही अधिकारों का दुरुपयोग किया। मैंने केवल राज्यहित, जनहित में कार्य किए। मेरा संबंध रानी के साथ कभी आपराधिक नहीं था कि मुझे सजा मौत दी जाए।”
अभियोजन पक्ष ने उनकी सभी दलीलें खारिज कर दीं।
फिर आया वह दिन, जब न्याय के नाम पर अन्याय की सबसे क्रूर परिभाषा लिखी गई।
जनता के सामने, एक सर्द सुबह स्ट्रून्सी और ब्रांट को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। तलवार चली और दो सिर धड़ से कट गए। भीड़ चुप थी, लेकिन सियासत मुसकरा रही थी। उनके कटे हुए सिरों को भालों पर टाँगकर प्रदर्शित किया गया—सत्ता को चुनौती देने की यह सजा थी।
स्ट्रून्सी की मौत के साथ ही उसके द्वारा किए गए अधिकतर सुधार भी मिटा दिए गए। महल में अब भी सन्नाटा था, लेकिन यह साजिशों से भरा सन्नाटा नहीं था, बल्कि किसी अपूर्ण प्रेम की अनसुनी चीख थी।
कैरोलीन को भी गिरफ्तार कर लिया गया था। जब उससे पूछा गया, तो उसने बिना किसी हिचकिचाहट के स्ट्रून्सी के साथ अपने प्रेम को स्वीकार कर लिया। लेकिन उसने यह कभी स्वीकार नहीं किया कि राजकुमारी लुईस ऑगस्टा डॉ. स्ट्रून्सी की बेटी थी। राजकुमारी का असली पिता क्रिश्चियन सप्तम था, वह इस पर कायम रही। आधिकारिक तौर पर उसका नामांकन सम्राट् क्रिश्चियन सप्तम की बेटी के रूप में हुआ और उसे सारे शाही अधिकार मिले।
बहरहाल सम्राट् क्रिश्चियन सप्तम से कैरोलीन के विवाह को तोड़ दिया गया और उसे निर्वासित कर दिया। उसकी संतानों को उससे छीन लिया गया। अब वह एक रानी नहीं, बस एक निर्वासित स्त्री थी, जो अपने अतीत की राख में जलने के लिए छोड़ दी गई थी।
अपने वतन से दूर, जर्मनी के छोटे से शहर सेले में अकेलेपन से घिरी कैरोलीन जीवन की हर साँस को एक बोझ की तरह जीती रही। महल की शानो-शौकत से परे एक टूटा हुआ दिल अपने सबसे प्रिय जनों के चेहरों की यादों में उलझा रहा। अपने मासूम बच्चों की यादों में, अपने प्रेमी की यादों में। १७७५ में मात्र २३ वर्ष की उम्र में उसने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन जाते-जाते भी उसके अधरों पर सिर्फ एक नाम था—डॉ. स्ट्रून्सी का।
डेनमार्क के महलों की दीवारें आज भी इस प्रेम-कहानी की गूँज अपने भीतर छुपाए हुए हैं। यह कहानी प्रेम और क्रांति के उस मिलन की है, जिसने सत्ता के अंधे खेल को चुनौती दी। राजगृहों की ऐसी दास्तानों की परिणति ऐसी ही होती है। यह भी त्रासदी और बर्बरता की भेंट चढ़ गई।
शायद राजा को भी महसूस हुआ। स्ट्रून्सी की फाँसी के तीन साल बाद, क्रिश्चियन सप्तम ने स्ट्रून्सी का एक चित्र बनवाया, उस पर जर्मन में लिखा—
‘इच हेटे गेर्न बीडे गेरेटेट’
(‘मैं उन दोनों को बचाना चाहता था...’)
Islevhusvej 72 B
2700 Bronshoj
Copenhagen, Denmark