वो एक पल...

कहानी यह है कि एक चोर चोरी करके भाग रहा था तथा एक पुलिसकर्मी उसे पकड़ने के लिए उसका पीछा कर रहा था। भागते-भागते चोर एक जंगल में प्रवेश कर गया। कुछ दूर जाने पर उसे एक कुटिया दिखी। कुटिया खाली थी। वहाँ रहने वाले साधु की रामनामी टँगी हुई थी तथा ढेर सारी भभूत भी एक मिट्टी के पात्र में थी। शायद साधु ने हवन किया होगा। चोर के मन में एक विचार आया और उसने अपने चेहरे तथा बदन पर भभूत लपेटी तथा रामनामी ओढ़कर बैठ गया। कुछ देर पश्चात् पुलिस वाला दौड़ता हुआ आया तथा कुटिया पर आकर रुक गया। दौड़ते-दौड़ते उसकी साँस फूल रही थी। पुलिस वाले ने साधु रूप में बैठे चोर को देखा तो उसे साधु मानकर उसके चरणों में​ गिर पड़ा। बोला, महाराज, पूरा नगर जानता है कि मैं कितनी ईमानदारी और समर्पण से अपना काम करता हूँ। मेरा विभाग भी मेरे काम की सराहना करता है। आज तक जो भी दायित्व दिया गया, उसे मैंने सफलतापूर्वक निभाया है। अभी मैं जिस चोर को पकड़ना चाह रहा हूँ, उसके लिए मुझे आशीर्वाद दें! साधु बने चोर ने आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ उठाया और पुलिस वाला आगे बढ़ गया। पुलिस वाले के जाने के बाद चोर ने सोचा कि यदि पुलिस वाला मुझे पकड़ लेता तो कितनी पिटाई करता! वही पुलिस वाला रामनामी ओढ़ लेने तथा भभूत लपेटकर नकली साधु बनने के कारण मेरे पाँवों पर गिर पड़ा। नकली साधु बनने पर इतना बड़ा सम्मान! और उसी पल उसने चोरी छोड़कर सचमुच साधु बनने का संकल्प ​कर लिया। उसके जीवन में ऐसा मोड़ आया कि वह चोर साधु बन गया। कहानी से वास्तविक जीवन की ओर लौटें तो अनेक ऐसे वृत्तांत मिल जाते हैं, जहाँ किसी एक घटना या दृश्य या अचानक कौंधे विचार ने न केवल किसी व्यक्ति के जीवन को वरन् विश्व के करोड़ों लोगों का भी जीवन बदल दिया।
लंदन से वकालत की डिग्री प्राप्त एक प्रतिष्ठित परिवार का व्यक्ति सूटबूट में प्रथम श्रेणी की टिकट लेकर दक्षिण अफ्रीका की रेलगाड़ी में सफर कर रहा है। यह उसके लिए वकालत के पेशे का सुखद अध्याय है कि उसे एक अन्य देश में मुकदमा लड़ने को आमंत्रित किया गया है। वह कुछ मधुर स्वप्न बुनते हुए सफर कर रहा है कि अचानक पूरा परिदृश्य अत्यंत दुखद त्रासदी में बदल जाता है। एक स्टेशन पर गोरे ​अधिकारी द्वारा उसे मारपीट कर, अपमानित करके रेलगाड़ी से बाहर फेंक दिया जाता है। उसका सामान ​भी निर्ममता से बाहर फेंक दिया जाता है।
वह पूछता ही रह जाता है कि उसके पास प्रथम श्रेणी की वैध टिकट है, वह लंदन से डिग्री प्राप्त वकील ​है, उसे वकालत के लिए आमंत्रित किया गया है। लेकिन उसकी कोई बात नहीं सुनी जाती। उसका अपराध सिर्फ इतना है कि वह गोरा नहीं है! त्वचा का रंग ही उसके इस अपमान का कारण है। त्वचा के इस रंग पर उसका कोई वश नहीं था। इस बेहद अपमानजनक घटना ने इस वकील को दक्षिण अफ्रीका के करोड़ों अश्वेतों की उस पीड़ा को महसूस करने का अवसर दिया था, जिनका जीवन पशुओं से भी बुरा तथा कष्टप्रद था। हर कदम पर अपमान तथा भेदभाव!
उस वकील की कहानी को आप सब समझ ही गए होंगे कि यहाँ हम मोहनदास करमचंद गांधीजी की बात कर रहे हैं, जिन्हें इस घटना ने ही महात्मा गांधी बनने का मार्ग प्रशस्त किया।
हम सब जानते हैं कि कैसे रेलगाड़ी से उतारे जाने के बाद गांधीजी ने रंगभेद की समस्या को समझा। लोगों को जागरूक किया। प्रतिरोध के अभियान तथा आंदोलन चलाए और एक सर्वाधिक शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य को झुकने पर विवश किया तथा विश्व के करोड़ों अश्वेतों को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार दिलाया। यह गांधीजी के सफल अभियान का प्रतिफल है कि दक्षिण अफ्रीका में अश्वेत राष्ट्रपति बनते हैं, खेल-जगत् या सिनेमा के सितारे बनते हैं। नेल्सन मंडेला अथवा मार्टिन लूथर किंग जैसी विभूतियों ने भी गांधीजी के आंदोलन से प्रेरणा ली। दक्षिण अफ्रीका ही नहीं, अमेरिका समेत विश्व के अन्य देशों के अश्वेतों का भी जीवन बदला। रेलगाड़ी में घटित एक घटना विश्व के करोड़ों मनुष्यों का जीवन बदलने का माध्यम बन गई।
एक युवक पेड़ के नीचे बैठा कुछ सोच रहा है। अचानक एक सेब उसके ऊपर गिरता है। वह सोचने लगता है कि यह सेब मेरे ऊपर यानी कि नीचे ही क्यों गिरा? यह ऊपर क्यों नहीं गया या अन्य किसी दिशा में क्यों नहीं? क्या सेब गिरने की घटना दुनिया के इतिहास में पहली बार घट रही थी? इससे पहले भी हजारों लोगों पर सेब या अन्य फल गिरे होंगे! लेकिन यह पहली बार था कि किसी व्यक्ति के मन में यह जिज्ञासा जगी कि यह नीचे ही क्यों गिरा? और उस व्यक्ति के गहन चिंतन से गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का जन्म हुआ। इस व्यक्ति को आप सब न्यूटन नाम के वैज्ञानिक के रूप में जानते हैं। यदि गुरुत्वाकर्षण की खोज नहीं हुई होती तो आज हम चंद्रमा अथवा मंगलग्रह पर नहीं पहुँच सकते थे। एक छोटी सी जिज्ञासा ने पूरे विश्व को कितना अनूठा वरदान दे दिया था। 
महर्षि वाल्मीकि की कहानी से भी हम सब परिचित हैं। उन्होंने देखा था कि कैसे एक पेड़ की डाल पर कौंच पक्षी का जोड़ा बैठा है और आनंद में डूबा किलोल कर रहा है। अचानक ​एक शिकारी का तीर एक पक्षी को लगता है और वह लहूलुहान होकर गिर जाता है तथा दूसरा पक्षी जिस प्रकार तड़प-तड़पकर विलाप करता है, वह वाल्मीकिजी की चेतना को झकझोर देता ​है। उनका भावुक हृदय करुणा से चीत्कार कर उठता है और उनके मुँह से शिकारी के लिए जो श्राप प्रस्फुटित होता है, स्वयं उन्हें चौंका देता है, वे उसे बार-बार दोहराते हैं। उनके मुँह से अनायास श्लोक के रूप में कविता फूटती है! उन्हें एक महाकाव्य रचने की प्रेरणा मिलती है और मानव सभ्यता को ‘रामायण’ जैसा महान् ग्रंथ मिलता है, जिसका विश्व की हर भाषा में रूपांतरण हुआ है। प्रभु श्रीराम के जीवन से विश्व के करोड़ों लोगों ने प्रेरणा ली है। एक हृदयविदारक घटना ने विश्व को एक अमर ग्रंथ दे दिया, जो अनंत काल तक पूरी मानवता को आदर्श जीवन की प्रेरणा देता रहेगा।
यहाँ यह बिंदु भी विचारणीय है कि कोई घटना किसी सार्वजनिक स्थल पर होती है और अनेक लोग उसे देखते हैं, किंतु उनमें से कुछ पीड़ित की सहायता हेतु दौड़ते हैं, कुछ उस घटना से जुड़े विविध पहलुओं पर विचार करते हैं, कुछ तुरंत उसकी सूचना उपयुक्त विभागों तक पहुँचाते हैं। कुछ उस घटना से जुड़ी व्यवस्था संबंधी स्थितियों पर लेखनी चलाते हैं कि ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो। यही मनुष्य होने की आवश्यकता एवं सार्थकता भी है। मात्र दर्शक बनकर किसी अन्याय अथवा अत्याचार पर मूक बने रहना मनुष्य होने पर एक लांछन जैसा है।
नारकीय यातनाएँ भुगत रहे लाखों ‘दासों’ में से एक दास प्रतिरोध करता है और विशाल रोमन साम्राज्य को हिलाकर रख देता है तथा ‘स्पार्टाकस’ के रूप में हजारों वर्ष बाद भी सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा लेखकों के लिए प्रेरणास‍्रोत बन जाता है। डॉ. भीमराव आंबेडकर भेदभाव की पीड़ा को महसूस करते हैं, उसके प्रति प्रतिरोध का स्वर गुँजाते हैं तथा करोड़ों शोषितों-वंचितों के प्रेरणास‍्रोत बन जाते हैं, राष्ट्रनायक बन जाते हैं। मनुष्य होने के नाते, जिसे ईश्वर ने बुद्धि के साथ-साथ विवेक भी दिया है, आवश्यक है कि वह अपनी चेतना भी जाग्रत् रखे तथा संवेदना को भी संरक्षित रखे। यह संवेदना ही है, जो किसी सामान्य मनुष्य से कुछ मूल्यवान कार्य करा लेती है। एक सामान्य मनुष्य भी असाधारण योगदान दे देता है। ओडिशा का एक सामान्य व्यक्ति एक रोते हुए अनाथ बच्चे को घर ले आता है, जिसके स्वयं तीन बेटियाँ हैं और साधारण आर्थिक स्थिति है। बाद में वह अनाथ बच्चों के लिए जीवन समर्पित करता है और एक दिन सैकड़ों अनाथ बच्चों का संरक्षक बन जाता है। ओडिशा के इस बलराम करण जैसी सैकड़ों कहानियाँ हैं। हर मनुष्य में अपार क्षमताएँ हैं, लेकिन वह स्वयं को यंत्रमानव बना ले, अपनी प्रतिभा एवं क्षमताओं को व्यर्थ जाने दे तो दोष तो उसी का है। यदि हर मनुष्य रोजमर्रा के जीवन से कुछ अलग करने का विचार कर ले, समाज को कुछ देने का संकल्प कर ले, एक सजग नागरिक बन जाए तो निश्चय ही देश का कायाकल्प हो जाए। एक नया विचार, एक नया संकल्प, एक नया अभियान किसी का भी जीवन बदल सकता है।


(लक्ष्मी शंकर वाजपेयी)

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