लेखक-संपादक। अलग प्रकृति की मासिकी ‘ट्रू-मीडिया’ के संपादक। अब तक देश-विदेश के साहित्य, कला एवं संस्कृति से जुड़े सौ से अधिक व्यक्तियों के व्यक्तित्व-कृतित्व पर विशेषांक प्रकाशित। ऑल इंडिया रेडियो पर अनेक साहित्यकारों के साक्षात्कार। उत्कृष्ट कार्यों के लिए ‘संपादक शिरोमणि’, ‘संपादक रत्न सम्मान’, ‘गणेशशंकर विद्यार्थी पत्रकारिता सम्मान’ एवं अन्य अनेक सम्मान।
होली भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण और प्रिय पर्व है, जिसे हर साल फागुन मास की पूर्णिमा को बड़े धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व रंगों और मस्ती का प्रतीक माना जाता है, लेकिन इसके पीछे गहरे धार्मिक और पौराणिक अर्थ भी छिपे हुए हैं। होली न केवल एक सामाजिक उत्सव है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहर भी है। पौराणिक दृष्टिकोण से होली की कथा विशेष रूप से भगवान् विष्णु के भक्तों और राक्षसों के बीच संघर्ष, राग, प्रेम और आस्था के संदर्भ से जुड़ी हुई है। यह पर्व विशेष रूप से भगवान् विष्णु से संबंधित एक विशेष कथा से प्रेरित है, जो होली मिलन के रूप में प्रसिद्ध है। इस कथा में राक्षसराज हिरण्यकशिपु और उसके पुत्र, भगवान् विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद की कहानी प्रमुख रूप से है।
पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकशिपु एक अत्यंत शक्तिशाली राक्षस था, जिसने देवताओं और ब्राह्मणों से भी अधिक शक्ति प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। उसके तप के परिणामस्वरूप ब्रह्माजी ने उसे अमरता का वरदान दिया था। इस वरदान के बाद उसने यह सोच लिया कि वह सभी को अपने अधीन कर लेगा और संसार में सिर्फ उसका ही पूजन किया जाएगा। लेकिन हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद भगवान् विष्णु का भक्त निकला और वह अपने पिता के आदेशों का पालन करने के बजाय भगवान् विष्णु की पूजा करता था। यह हिरण्यकशिपु को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने प्रह्लाद को कई प्रकार से त्रस्त किया, जैसे उसे आग में डालना, नागों के साथ छोड़ना, ऊँची पहाड़ी से गिराना आदि। लेकिन हर बार भगवान् विष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा की और उसे बचाया। आखिरकार हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से मदद माँगी। होलिका के पास एक वरदान था, जिससे वह आग से बच सकती थी। उसने प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश किया, लेकिन भगवान् विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका जलकर राख हो गई। यह घटना फागुन की पूर्णिमा के दिन हुई थी। इसी कारण होली का पर्व सत्य की विजय और असत्य के पराजय के रूप में मनाया जाता है।
होली मिलन की पौराणिक परंपरा का संबंध राक्षसी शक्तियों के समाप्त होने और सत्य की विजय से है। इस दिन लोग एक-दूसरे को रंगों से रँगते हैं, गालों में गुलाल लगाते हैं और एक-दूसरे के साथ खुशी बाँटते हैं। रंगों का यह उत्सव केवल शारीरिक रंगों तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि यह मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्तर पर भी आनंद और समरसता का प्रतीक है। होली के दिन रंगों से खेलने का धार्मिक महत्त्व है। रंगों के माध्यम से एक-दूसरे से प्रेम और सद्भावना व्यक्त की जाती है, जैसे भगवान् विष्णु के भक्तों ने हिरण्यकशिपु के राक्षसी कृत्य से बचने के लिए अपनी आस्था और विश्वास को मजबूत किया था। होली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज की संस्कृति और एकता की प्रतीक भी है। होली मिलन का पर्व जाति, धर्म और वर्ग के भेदों को खत्म करने का संदेश देता है। इस दिन सभी लोग आपस में मिलकर खुशी और भाईचारे का अनुभव करते हैं। होली की विशेषता यह है कि इस दिन हर किसी के चेहरे पर मुसकान होती है और किसी भी प्रकार के वैमनस्य को समाप्त करने का संकल्प लिया जाता है। यह पर्व सामूहिकता, एकता और सामाजिक समरसता का प्रतीक है।
होली की अन्य पौराणिक मान्यताएँ भी हैं, जैसे राधा-कृष्ण के बीच प्रेम का उत्सव। ब्रजक्षेत्र में होली का महत्त्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि इसे श्रीकृष्ण के साथ राधा और उनके अन्य गोपियों के साथ रंगों से खेलने के रूप में मनाया जाता है। कृष्ण ने राधा और उनकी सखियों के साथ होली खेली। यह प्रेमपूर्ण रंगों का मिलन था, जो प्रेम और सौहार्द का प्रतीक बन गया। इस प्रकार होली न केवल एक पारंपरिक और सांस्कृतिक पर्व है, बल्कि इसके पीछे पौराणिक घटनाएँ और धार्मिक संदेश भी छिपे हैं। होली मिलन का पर्व केवल रंगों से खेलने का नहीं, बल्कि प्रेम, भाईचारे और सामाजिक समरसता को बढ़ाने वाला उत्सव है। यह दिन हमें सिखाता है कि जीवन में प्रेम और सद्भावना की शक्ति से हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। होली मिलन का पौराणिक महत्त्व हमें सत्य की विजय और असत्य की पराजय का संदेश देता है, जो आज भी हमारे जीवन में प्रासंगिक है।
वर्तमान में होली का सामाजिक महत्त्व
होली मिलन का पर्व अब केवल एक धार्मिक या पारंपरिक आयोजन नहीं रहा, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा जैसा बन गया है। पुराने समय में होली का आयोजन परिवार और समुदाय के बीच किया जाता था, जहाँ लोग एक-दूसरे के घर जाते थे और रंग खेलते थे। यह सामाजिक मेलजोल का एक प्रमुख अवसर होता था। आज भी, खासकर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में होली मिलन का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है, लेकिन इसके स्वरूप में कुछ बदलाव देखे जा रहे हैं। वर्तमान समय में होली मिलन का पर्व एक साझा आनंद, भाईचारे और प्रेम का प्रतीक बन चुका है। रंगों के साथ खेलने, खुशियाँ बाँटने और रिश्तों को और मजबूत बनाने का यह पर्व अब व्यक्तिगत स्तर से बढ़कर सामूहिक रूप से मनाया जाने लगा है। यह समाज में सामूहिकता की भावना को बढ़ाता है और विभिन्न जाति, धर्म और पंथों के बीच की दीवारों को गिराता है। आज के समय में होली मिलन का स्वरूप पहले की तुलना में और भी अधिक जीवंत और विराट् हो गया है। एक ओर जहाँ यह धार्मिक और पारंपरिक रूप से मनाया जाता है, वहीं दूसरी ओर यह व्यावसायिक और सार्वजनिक समारोहों का हिस्सा भी बन गया है।
लोग अपने ऑफिसों, कॉलोनियों, मित्र समूहों और अन्य सामूहिक स्थानों पर होली मिलन के आयोजन करते हैं। कई कंपनियाँ अब अपने कर्मचारियों के लिए होली मिलन कार्यक्रम आयोजित करती हैं, जो न केवल समूह बनाने का हिस्सा होते हैं, बल्कि कामकाजी वातावरण को भी हल्का और खुशहाल बनाने का एक तरीका बन चुके हैं। इस दौरान कर्मचारी एक-दूसरे के साथ रंग खेलते हैं, संगीत पर थिरकते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं। मोहल्लों और आवासीय क्षेत्रों में होली मिलन के सामूहिक आयोजन अब एक परंपरा बन चुके हैं। विभिन्न समुदायों और पंथों के लोग एकत्र होकर होली के दिन रंगों से खेलने, गाने, नृत्य करने और एक-दूसरे से मिलकर खुशियाँ बाँटने का आनंद लेते हैं। यह आयोजन समाज में एकता और सामूहिक सहयोग को बढ़ावा देता है। होली मिलन की घटनाओं में अब संगीत, नृत्य और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी शामिल हो गए हैं। युवा वर्ग अधिक से अधिक उत्साही होकर इस दिन को मस्ती और उल्लास से मनाता है। क्लबों और होटलों में होली पार्टी का आयोजन एक नया चलन बन चुका है, जिसमें डीजे, रंगों की बारिश और विभिन्न प्रकार के व्यंजन होते हैं।
हालाँकि होली मिलन उत्सव का हिस्सा है, परंतु पर्यावरणीय समस्याओं को ध्यान में रखते हुए इसके आयोजन में अब बदलाव आ रहे हैं। प्लास्टिक रंगों और खतरनाक रसायनों से बनने वाले रंगों की बजाय अब पर्यावरण-अनुकूल रंगों का उपयोग किया जा रहा है। लोग अब होली मिलन में प्राकृतिक रंगों का उपयोग करने लगे हैं, जो न केवल त्वचा के लिए सुरक्षित होते हैं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी हानिकारक नहीं होते। इस बदलाव ने होली के पर्व को और भी सुरक्षित और उत्सवपूर्ण बना दिया है। होली मिलन अब एक मजेदार उत्सव से अधिक एक सामाजिक उद्देश्य का वाहक बन गया है। यह समाज में एकता, भाईचारे और समरसता का संदेश देता है। इस दिन लोग अपनी पुरानी रंजिशों को भुलाकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं और अच्छे रिश्तों का निर्माण करते हैं। यह दिन सभी प्रकार की वैमनस्यता को समाप्त करने का और एक-दूसरे के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखने का महत्त्वपूर्ण अवसर होता है। विभिन्न समुदायों, जातियों और धर्मों के लोग मिलकर इस पर्व को मनाते हैं, जिससे समाज में एकता का भाव प्रबल होता है। वर्तमान होली मिलन परंपरा का नया रूप एक सशक्त सामाजिक उत्सव और एकता का प्रतीक बन चुका है। यह न केवल आनंद, मस्ती और उत्सव का दिन है, बल्कि यह भाईचारे, प्रेम और समरसता का संदेश देने का भी एक माध्यम है। होली मिलन हमें यह सिखाता है कि रंगों के इस खेल में हमारे दिलों में भी एकता और सद्भाव के रंग भरने चाहिए। इस पर्व को हम जितना मिलकर मनाते हैं, उतना ही समाज में सकारात्मक ऊर्जा और सामूहिकता का संचार होता है।
परंतु इतना सब होने के बावजूद होली के नाम पर फूहड़ता भी देखने में आती है। इस दिन मद्यपान का प्रचलन बढ़ रहा है। कानफोड़ू संगीत बजाकर होली मनाने से आपसी झगड़ों में भी इजाफा हो रहा है। होली का दिन पुलिस-प्रशासन के लिए चुनौती भरा होता जा रहा है। ऐसा करने से होली पर्व की गरिमा को ठेस लगती है। होली आपसी भाईचारे और सौहार्द का त्योहार है, इसे उसी रूप में मनाना चाहिए।
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