RNI NO - 62112/95
ISSN - 2455-1171
लिये थे नोटप्रमुख सलाहकार ने फुसफुसाते हुए कहा, ‘जनता अब उतनी बेवकूफ नहीं रही। लालच बढ़ गया है। स्मार्ट फोन, साइकिल, लैपटॉप भी चाहिए। साथ में मुफ्त बिजली, पानी, राशन भी? सब मुफ्त चाहिए तो विकास कहाँ से होगा? पर चलो, आपको क्या? विकास कार्य न सही, चीजें बाँटने में से ही आपको अपनी कमाई से मतलब है। लेकिन लोग होशियार तो बनते हैं, पर वोट देते वक्त मुफ्त की चीजें भूल जाते हैं। जनता जर्नादन, हुँह साले बेईमान।’ नेताजी हँसने लगे। चुनाव में नामांकन का परचा भरने से एक दिन पहले ही दारू की पेटियाँ पार्टी वर्कर्स के घर पर स्टॉक करवा देता हूँ। सभी पार्टी वर्कर्स, खासकर झुग्गियों के प्रधानों को कह देता हूँ कि सभी वोटरों से दारू की बोतल पर हाथ रखकर कसम खिलाना कि वे हमारी ही पार्टी को वोट देंगे। तब बोतल उन्हें देना। नेता बनने के लिए पल्ले से करोड़ों खर्च किए हैं। नेता मंत्री बने हैं तो हम कमाएँगे नहीं? प्रमुख सलाहकार नेताजी की बात को सही ठहराने लगे। तभी सहायक ने नेताजी के कक्ष में प्रवेश किया और कहा, ‘आपसे मिलने आए ज्यादातर लोगों को तो मैं बाहर से ही टाल-टरका देता हूँ। किसी के लिए इधर-उधर झूठा-सच्चा फोन करके चलता करता हूँ। कुछ लोग हैं, जो टल नहीं रहे हैं? कहते हैं आपसे मिले बिना नहीं लौटेंगे।’ ‘कौन लोग हैं?’ ‘एक तो राधे लाल है। जिसकी जमीन आपके छोटे भाई ने दाब ली है और एक छोटे लाल है, जिसकी लड़की मंजू के साथ आपके भतीजे बृजेश ने गैंगरेप कर दिया है। उनके साथ बहुत से लोग भी हैं। बँगले के बाहर भीड़ बढ़ती जा रही है। सिक्योरिटी वाले अपनी ड्यूटी कर रहे हैं पर...। ‘मैंने कहा भी कि नेताजी बाहर गए हुए हैं, पर वे कहते हैं, हमने उन्हें आते देखा है।’ ‘पुलिस को बुला लो और बल प्रयोग करवाकर भगाओ सालों को...।’ कुछ ही देर बाद सहायक ने आकर बताया कि पुलिस ने मार-मार कर उनके हाथ-पैर तोड़कर भगा दिया है। नेताजी का चेहरा खिल गया, ‘हँसते हुए बोले, एक बोतल या एक नोट पर बिकने वाले इन लोगों के साथ ऐसा ही होना चाहिए। लिये थे नोट। दी थी वोट, अब लो चोट। हाह-हाह। कुछ देर बाद सहायक ने फिर आकर सूचना दी। मामला मीडिया में आ गया है। हजारों की संख्या में जनता सड़कों पर उतर आई है। कमल चोपड़ा |
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