रॉन्ग नंबर

सुमित पटना से गिरिडीह जा रहा था। स्टेशन पर वर्षों बाद कॉलेज के सहपाठी रमन से उसकी भेंट हो गई। इस तरह अकस्मात् भेंट होने से दोनों के मन में कॉलेज के दिनों की पुरानी सुखदायी स्मृतियाँ हिचकोले मारने लगीं। वे एक-दूसरे से हाथ मिला ही रहे थे कि उन्हें उनकी ट्रेन आने का अनाउंसमेंट सुनाई दिया। एक-दूसरे से पूछताछ के क्रम में पता चला कि वे दोनों एक ही ट्रेन से सफर करनेवाले हैं।

रमन ने कहा—चलो, अब ट्रेन में जगह लेकर घंटों बात करेंगे। पुरानी खट्टी-मीठी स्मृतियों को ताजा करेंगे। सुमित ने भी हाँ में अपना सिर हिलाया। उसने सोचा भी कि आज का दिन कितना खुशनुमा है कि पुराने दोस्त से भेंट भी हो गई, नई-पुरानी बातें भी होंगी और सफर भी आसानी से कट जाएगा। सुमित का सफर चार घंटे का, जबकि रमन का सफर दो घंटे का था। ट्रेन आई। दोनों दोस्त ट्रेन के ड‌िब्बे में सवार हो गए। जगह भी साथ-साथ बना ली। थोड़ी देर बाद जब सुमित ने देखा कि रमन अपनी नजरें अपने मोबाइल से नहीं हटा पा रहा है। तो वही रमन से बातचीत शुरू करने के लिहाज से पूछ बैठा—अच्छा तो रमन, बताओ कि तुम्हारे कितने बच्चे हैं और सब क्या कर रहे हैं?

रमन—थोड़ी देर रुको, एक मैसेज आया है, उसे पढ़कर जवाब दे लेने दो, फिर बताता हूँ।

सुमित रमन के चेहरे को देखता रहा। वह (रमन) कभी मंद-मंद मुसकराता तो कभी हँस भी देता, कुछ मैसेज टाइप भी करता रहता। कहीं से कोई कॉल भी आता तो हँस-हँसकर जवाब भी देता रहता। इस तरह करते-करते दो घंटे का समय बीत गया। इस दरम्यान रमन की सुमित से कोई बात नहीं हुई। देखते-देखते रमन के गंतव्य वाला स्टेशन भी आ चुका था। रमन वहाँ उतरने के लिए उठ खड़ा हुआ और सुमित से कहा—सॉरी यार! तुमसे बात नहीं हो सकी। ऐसा करो कि तुम अपना मोबाइल नंबर जल्दी से दे दो, ढेर सारी बातें करनी हैं तुमसे। मैं घर पहुँचते ही तुमसे बात करूँगा।

सुमित ने रमन को रॉन्ग नंबर दे दिया।

राजेश पाठक
सहायक सांख्यिकी पदाधिकारी
जिला सांख्यिकी कार्यालय, गिरिडीह
झारखंड-८१५३०१
दूरभाष : ९११३१५०९१७

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