अपेक्षा

अपेक्षा

कहानी-संग्रह, उपन्यास, नाट्य-संग्रह, हास्यलेखों का संग्रह इत्यादि प्रकाशित। नाटक ‘खमण...टमटम’ कॉमेडी नाट्यलेखन योजना में २०१२ में पुरस्कृत। निबंध ‘चालो भाषानो गौरव वधारिए’ गुजरात लेक्सिकोंन की प्रतियोगिता में २०१५ में पुरस्कृत। कहानी ‘ढांकणु’ प्रसिद्ध गुजराती पत्रिका ‘ममता’ द्वारा वर्ष २०२३ में पुरस्कृत। कहानी-संग्रह ‘स्वागत’ गुजरात साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कहानी-संग्रह के रूप में २०२२ में तृतीय पुरस्कार से सम्मानित।

सुपरिचित लेखक व अनुवादक। अब तक विभिन्न लेखकों व विषयों की अनूदित १४ पुस्तकें तथा गुजराती से हिंदी में कई कहानियाँ देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। लेखों का गुजराती व उड़िया में अनुवाद हुआ है। लेखन के अतिरिक्त गुजराती से हिंदी व अंग्रेजी से हिंदी के अनुवाद कार्य में प्रवृत्त।

जिस होटल में कुछ साहित्यकार एकत्र होने वाले थे, उस होटल के बाहर सनत कुमार अपने कुछ मित्रों की प्रतीक्षा करते हुए खड़े थे। उनके एक भी मित्र ने आज इस होटल में आना शायद मुनासिब नहीं समझा। ऐसा हुआ, इसलिए सनत कुमार कुछ व्यग्र हो गए। बेचैनी व व्याकुलता के कारण वहाँ से जाने के लिए सनत कुमार ने कुछ कदम बढ़ाए ही थे कि तभी अचानक एक अनजान युवक ने उनके पास आकर सीधा सवाल किया, “क्या आप ही जाने-माने लेखक सनत कुमार हैं?”

सनत कुमार से ऐसा प्रश्न इसके पहले भी कई लोगों ने किया था, लेकिन इस बंदे ने जिस तरह सवाल किया, ऐसा पहले अन्य किसी ने उनसे नहीं किया था। यह युवक तो मानो उनकी तलाशी ले रहा हो।

‘जी, कुछ लिखता हूँ।’ सनत कुमार ने कहा।

‘मैंने सुना है कि इस होटल में कई साहित्यकार इकट्ठे होते हैं।’

‘हाँ, लेकिन आज मेरे अलावा अन्य कोई नहीं आया। मैंने अपने मित्रों की प्रतीक्षा की, लेकिन लगता है कि अब कोई नहीं आएगा।’

‘मुझे आपसे एक पाठक के तौर पर कुछ बातें करनी हैं। मैं मानता हूँ कि आपके पास इतना वक्त तो होगा ही।’

‘हाँ, हाँ, जरूर है।’

‘तो चलिए, हम इसी होटल में बैठते हैं।’

‘ठीक है।’

वे होटल के एक कोने में बैठ गए। होटल ऐसा था कि वहाँ ग्राहक चाय-कॉफी लेने के बाद भी देर तक बैठ सकते थे। सनत कुमार व उसके कुछ मित्रों ने बात-बात में कई कविताओं व कहानियों का सृजन इसी होटल में किया था।

एक लड़के ने टेबल पर पानी के गिलास रख दिए। युवक ने उसे दो चाय लाने के लिए कहा और उसने सनत कुमार के साथ बात की शुरुआत की। उसने कहा, ‘सनत कुमारजी, कुछ दिनों पहले हमारे नगर में ‘साहित्य-संगत’ नामक एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ था। उस कार्यक्रम में देश के काई साहित्यकारों ने आकर शिरकत की थी। तब उसमें मुंबई से एक लेखक संजय कुमार भी आए थे। उन लेखक ने कहा था, ‘गुजरातियों को महज पैसा कमाने के अलावा अन्य किसी में दिलचस्पी नहीं होती है। वे मात्र धंधा करना जानते हैं, साहित्य व कला की कद्र करना उनके बस का नहीं है।’

‘हाँ, ऐसा कहा गया था।’

‘उनके इस कथन से उस समय बहुत शोर-शराबा हुआ था। लेखकों व वाचकों ने उस संबंध में अखबारों में भी बहुत लिखा था। गुजरातियों के संबंध में कोई लेखक यदि ऐसा बोले, तो क्या वह ठीक है? क्या गुजराती वास्तव में ऐसे हैं?’

‘वह शख्स समस्त गुजरातियों को गाली देकर गया है। यह उसकी बड़ी भूल है। मैंने मेरे स्तंभ में इस संबंध में जबरदस्त फटकार लगाई है। भविष्य में वह गुजरात में कहीं भी बोलने के लिए खड़ा हो कि उसे तुरंत पुकार लगाकर नीचे बैठा दो। जब ऐसा होगा, तब ही लोगों को सबक मिलेगा।’

सनत कुमार ने अपने स्तंभ में जो लिखा था, उसमें से वे बहुत कुछ बोलकर बताना चाहते थे। लेकिन वह युवक चुपचाप ऐसे अवलोकन कर रहा था, मानो वह उनके चेहरे के अंदर, गहराई में भी देख रहा है।

सनत कुमार उसकी तेज नजरों का सामना नहीं कर सके और वे रुक गए।

‘वे लेखक जिस कार्यक्रम में बोले, उस समय आप मौजूद थे?’ युवक ने पूछा।

‘हाँ, मैं था।’ सनत कुमार ने कहा।

‘तो आपने उसी वक्त उनके कथन का विरोध क्यों नहीं किया? उसी समय उन्हें रोकने के लिए श्रोताओं का आह्व‍ान क्यों नहीं किया?’

इस बीच लड़के ने आकर टेबल पर चाय के कप रख दिए। सनत कुमार चाय पीते-पीते विचार करने लगे कि युवक के प्रश्न का उत्तर किस प्रकार दिया जाए। चाय पीने के बाद युवक ने कहा कि ‘साहब, आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया।’

‘मैं क्या कर सकता था? जहाँ इतने अधिक लोग मौजूद हों, वहाँ क्या किया जा सकता है?’ सनत कुमार ने कहा।

‘क्यों नहीं किया जा सकता? आप उसे वहाँ रोक सकते थे। उनसे गुजरातियों का अपमान न करने के लिए अनुरोध कर सकते थे। अरे, उन्हें रोकने के लिए प्रेक्षकों से आह्व‍ान कर सकते थे। आप अपने स्तंभ में बहुत तेज-तर्रार रूप से चुनौती देते हैं। लेकिन मौके पर ही चुप कैसे रह गए?’

‘अन्य लोग यदि कुछ न बोलें, तो मैं अकेला क्या कर सकता हूँ?’

‘अच्छा’, युवक ने कहा, ‘आपने अपने स्तंभ में पाठकों से आह्व‍ान किया है कि भविष्य में वह गुजरात में कहीं भी आए और बोलने के लिए खड़ा हो, तो उसे तुरंत नीचे बैठा दो। मानो वह लेखक किसी कार्यक्रम में बोलने के लिए गुजरात में यदि कहीं आए, तो क्या आप उसे बोलने के लिए रोकेंगे? यदि आप पूर्ण निष्ठा से मानते हैं कि ऐसा होना ही चाहिए, तो उसकी शुरुआत आपको नहीं करनी चाहिए?’

सनत कुमार ने कुछ देर बाद जवाब दिया, ‘देखो मित्र, मेरा फर्ज लिखना है, जो भी असामान्य लगता है, उसे लोगों की नजरों में लाना मेरा धर्म है। आप जो बताते हैं, वह जोखिम उठाना मेरा कार्य नहीं है।’

‘क्यों नहीं?’ युवक ने टेबल पर हाथ पछाड़ा—‘इसके अलावा भी कितनी ही ऐसी बाते हैं, जिन पर आप बहुत लिखते हैं, लोगों को मार्गदर्शन देते हैं, चेतावनी देते हैं, जानकारियाँ देते हैं, विरोध करने के लिए कहते हैं, लेकिन आप स्वयं उन जोखिमों को उठाने के लिए तैयार क्यों नहीं होते हैं? अन्य लोग ही जोखिम उठाएँ, ऐसी आशा क्यों रखते हैं?’

‘मित्र, लिखना भी कोई कम जोखिम नहीं है।’

‘मैं उससे सहमत हूँ। लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि इस जोखिम से भी अधिक जोखिम उठाए बगैर कुछ होने वाला नहीं है। समाज में घट रही घटनाएँ, वे लेखकों के लिए क्या मात्र मसाला बनकर रहें? कोई लेखक स्तंभ में उसका उल्लेख करे, कोई हास्य लेखक उस पर कोई रचना करे, कोई लेखक उस पर उपन्यास का सृजन करे और अंत में सब भूल जाए। आपके जैसे लेखक मात्र लिख-लिखकर छूट जाते हैं और ऐसे वाकये होते रहते हैं।’

‘वे तो होने वाले ही हैं।’

‘यदि आप ऐसा मानते हैं कि ऐसी घटनाएँ तो घटती ही रहेंगी, तो फिर उसके लिए क्यों इतना लिखते हैं? अपने पेट के लिए?’

‘मित्र, आप मर्यादा से अधिक बोल रहे हैं। हमें लिखने के लिए कितनी रकम मिलती है, यह जब तुम जानोगे, तब तुम्हें हम पर दया आएगी।’

‘दया तो आती है। लेखक महाशय। किसी घटना को आप जितना निचोड़ सकते हैं, उतना आप निचोड़ लेते हैं। लेकिन फिर ऐसी घटना घटते हुए रुक जाए, उसके लिए आप कोई जोखिम लेने के लिए तैयार नहीं हैं। आपकी नजर में जो-जो अयोग्य घटनाएँ घटती हैं, उनकी मैंने सूची बनाई है। चलिए मेरे साथ, ऐसी घटनाओं को घटते हुए हम रोकें।’

‘आप किस प्रकार की घटनाओं की बात कर रहे हैं?’

‘हमें त्योहारों को आयोजित करते समय दादागीरी से पैसा एकत्र करने वालों को रोकना है, किसी ने माईक की आवाज अधिक रखी है, तो उसे उस आवाज को कम रखने के लिए समझाना है, कोई नेता सार्वजनिक रूप से झूठे वादे कर रहा हो, तो उसे उजागर करना है, कोई किशोर आत्महत्या के मार्ग पर जा रहा है, तो उसे रोकना है, जो मौत का साधन पी रहे हैं, उन्हें रोकना है और जहाँ निजी या सार्वजनिक संपत्ति की तोड़फोड़ हो रही है, वहाँ जाकर आपके ही विचारों का जोरों से पठन करना है। आप स्वयं तो आपके विचारों को नहीं भूले हैं न?’

सनत कुमार फीकी हँसी हँसे और बोले, ‘मित्र, आप मुझसे बहुत बड़ी आशा रख रहे हैं।’

‘आप भी लोगों से छोटी अपेक्षा कहाँ रखते हैं। आपकी मान्यता के अनुसार न चलने वाले लोगों को आप कायर, मूर्ख, धोखेबाज, बेईमान मानते हैं। अपनी कलम की चाबुक से फटकारते हैं। लेकिन घर में बैठकर लिखने से अधिक जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं।’

‘आप जो कह रहे हैं, वह काम तो कोई राजनैतिक शख्स कर सकता है। मुझसे नहीं हो सकता।’

‘आप तमाम साहित्यकार इधर-उधर का सब कचरा राजनीतिज्ञों पर डाल देते हैं। आप देश की भारी-भरकम राजनीति पर पन्ने भर-भर कर लेख लिख सकते हो, ऐसी राजनीति को दूर करने के लिए थोक में सलाहें दे सकते हो, आह्व‍ान के साथ चुनौतियाँ दे सकते हो, लेकिन इसके अलावा अन्य कुछ नहीं कर सकते।’

‘हम हमारे सृजन के द्वारा समाज को यथासंभव सेवा प्रदान कर सकते हैं और इस प्रकार अपना धर्म निभा सकते हैं।’

‘वाह आपका धर्म! वाह आपकी सेवा! निस्संदेह आप समाज की रात-दिन सेवा करते हैं। आज मैं आपसे मिलकर धन्य हो गया हूँ।’

सनत कुमार चुप हो गए। युवक खड़ा हो गया। ‘क्षमा करें। मैंने आपका बहुत समय खराब किया। मुझे विश्वास है कि आप आज की इस संध्या का उपयोग किसी नई कहानी के लिखने में करेंगे। इससे बड़ा कोई ठोस कदम उठाने की सामर्थ्य आप में नहीं है। ठीक है, फिर मिलेंगे।’

वह युवक जाते-जाते काउंटर पर चाय का भुगतान करते हुए गया।

सनत कुमार भी जाने के लिए खड़े हुए, लेकिन फिर बैठ गए। उन्होंने फिर एक चाय के लिए आदेश दिया और युवक के साथ हुई इस रूबरू भेंट का उपयोग किसी नई कहानी के सृजन में कैसे करें, इसके बारे में गहन रूप से सोचने में मशगूल हो गए।

१०-११, श्रीनारायण पैलेस सोसायटी,

झायडस हॉस्पिटल रोड,

थलतेज, अहमदाबाद–३८००५९

दूरभाष : ९३७४९७८५५६

जुलाई 2024

   IS ANK MEN

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