वेताल की अंतिम कथा

वेताल की अंतिम कथा

भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय द्वारा मेदिनी पुरस्कार सहित कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित एवं पुरस्कृत।

वेताल राजा विक्रमादित्य के कंधे से उचककर फिर पेड़ पर जा लटका। हठी विक्रम नहीं माना और उसने वेताल का शव पुनः पेड़ पर से उतारा एवं कंधे पर रखकर आगे चल पड़ा।

मार्ग में वेताल ने कहा, “राजा विक्रम, तुम बड़े हठी स्वभाव के हो। बोलो, अब क्या चाहते हो?”

विक्रमादित्य ने कहा, “वेताल, तुम्हारी बातें मुझे बड़ी अच्छी लगती हैं। तुम्हारी समस्याएँ सुलझाने में मुझे आनंदानुभूति होती है। तुम अब और क्या समस्या रखना चाहते हो, रखो?”

वेताल ने कुछ सोचकर कहा, “ राजा विक्रम, अब मैं तुम्हारे सामने दो घटनाएँ रख रहा हूँ, इन्हें सुलझाओ। किंतु संतोषप्रद उत्तर नहीं मिलने पर तुम्हारे सिर के तीन टुकड़े हो जाएँगे।”

“वेताल, पूछो, क्या पूछना चाहते हो?” राजा ने कहा।

वेताल बोला, “राजा विक्रम, काफी दिनों पुरानी बात है। रामनगर में केसू नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह पूजा-पाठ कर अपना जीवन-यापन करता था। पर इससे वह संतुष्ट नहीं था। उसने भगवान् विष्णु की तपस्या की। कठोर तपोसाधना से भगवान् प्रसन्न हुए। एक दिन वे प्रकट होकर बोले, ‘वत्स, तुमने मेरी बड़ी भक्तिपूर्वक तपस्या की है। मैं इससे बड़ा प्रसन्न हूँ, बोलो, क्या चाहते हो—धन, वैभव, पुत्र...?’

केसू बोला, ‘नहीं भगवन्! मुझे यह नहीं चाहिए।’

‘तो क्या राज्य चाहिए, सेना चाहिए? या क्या चाहते हो, बोलो।’ भगवान् पुनः बोले।

केसू धीमे स्वर में बोला, ‘देवाधिदेव! मैं केवल एक ही वरदान आपसे माँगता हूँ। वह मिल जाने पर सभी वस्तुएँ स्वतः ही मेरे पास आ जाएँगी।’

‘अच्छा, तो बोलो, क्या बनना चाहते हो? अधिक पहेली न बुझाओ!’ भगवान् ने कहा।

केसू बोला, ‘भगवन्! आप मुझे सफल राजनेता बनने का वरदान दें, तदनंतर मंत्री पद पाने का वरदान दें। मेरी सभी आकांक्षाएँ इससे पूरी हो जाएँगी।’

‘तथास्तु!’ कहकर भगवान् विष्णु अंतर्धान हो गए।”

यह कथा कहकर वेताल ने कहा, “विक्रम, बताओ, उसने राजनेता व मंत्री बनना क्यों पसंद किया?”

राजा विक्रम ने कहा, “वेताल, यह तो सामान्य बात है कि राजनेता का लोहा सब मानते हैं। तुमने देखा होगा कि जो व्यक्ति फटेहाल घूमा करता है, उसके नेता बनने के बाद उसके घर में वैभव का अंबार लग जाता है। यदि चुनाव जीतकर वह मंत्री बन जाता है, तब तो सोने पर सुहागा। उसकी सारी अभिलाषाएँ पूरी हो जाती हैं। मंत्री पद कल्पवृक्ष के समान है, जो व्यक्ति को सारी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध कराता है।”

तब वेताल ने कहा, “विक्रम, तुम्हारा उत्तर सटीक व सही है। अब मैं एक समस्या और रखता हूँ। सुनो, गोविंदपुर में रामधन नाम का एक बनिया रहता था। उसका एक मेधावी पुत्र था। उसका नाम चंद्रधर था। उसका स्वभाव सरल व शांतचित्त था। पढ़ाई में वह होनहार था। वह ईमानदारी का व्यवसाय जमाना चाहता था। उसने एम.ए. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया। परिणामस्वरूप वह एक कॉलेज में प्रोफेसर हो गया। उसने तीन-चार वर्ष यह नौकरी की। एक दिन प्रशासनिक अधिकारी बनने के लिए समाचार-पत्र में लिखित परीक्षा होने का विज्ञापन छपा। वह इस प्रतियोगिता में बैठा। लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया और साक्षात्कार में भी निकल गया। यद्यपि ग्रेड लैक्चरर की ग्रेड से कम थी, फिर भी उसने अपने वर्तमान पद से इस्तीफा दे दिया और नया प्रशासनिक पद ग्रहण कर लिया। विक्रम, बताओ, चंद्रधर ने प्रोफेसरी जैसा अच्छा व ईमानदार धंधा क्यों छोड़ा, जबकि इसमें वेतन भी नए पद से अधिक मिलता था? सटीक व सही उत्तर देना, नहीं तो तुम्हारी भी मेरे जैसी दशा हो जाएगी!”

राजा विक्रमादित्य ने सोचकर कहा, “वेताल, आज का युग अर्थप्रधान है। हर व्यक्ति चाहता है कि वह येन-केन-प्रकारेण अधिक धन का अर्जन करे। साधन कैसा भी हो, साध्य धन कमाना ही है। चंद्रधर ने सोचा—इस अध्यापकी में क्या रखा है, ईमानदारी का धंधा हुआ तो क्या, शिक्षा प्रदान करने वाला यह पुनीत कार्य जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरी नहीं कर सकता। ट्यूशन का धंधा अपनाकर वह शिक्षा का व्यापार नहीं कर सकता। प्रशासनिक अधिकारी बनकर वे सभी सुविधाएँ पा लेगा, जो इस व्यवसाय में नहीं हैं। अध्यापकी में तो वह ढंग का मकान भी नहीं बना पाएगा, जबकि वहाँ ऊपरी आमदनी से नया बँगला, कार, फ्रीज, टी.वी. आदि सभी वस्तुएँ उसे नए पद की कृपा से स्वतः ही मिल जाएँगी। साथ ही जनता में रोब भी रहेगा।

“उसने हिसाब लगाकर नया पद ग्रहण करना ही अधिक श्रेष्ठ समझा। समय के अनुसार उसने अपने आप को ढाल लिया।”

इस पर वेताल ने कहा, “विक्रम, तुम्हारे दोनों उत्तर से मैं संतुष्ट हूँ। अब मैं थोड़ा विश्राम करना चाहता हूँ।” यह कहकर वेताल फिर पेड़ पर जा लटका। विक्रमादित्य अकेला ही रह गया।

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जुलाई 2024

   IS ANK MEN

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