मौत के बाद भी देशसेवा

मौत के बाद भी देशसेवा

उस दिन मैस में पार्टी थी। खाना-पीना व नृत्य चल रहा था। तभी कैप्टन वीर सिंह बोले, “आज रात मैस में ही रुक जाते हैं, बाहर तूफानी हवाएँ हैं, बर्फ भी गिर रही है। तभी अर्दली कॉफी ले आया, सभी ने कोट के कॉलर ऊपर किए और गरम कॉफी का मजा लेने लगे।

तभी कैप्टन बोले, “खतरा तो सीमा पर नजर आ रहा है। इसीलिए तो हमें स्पेशल प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हमें तो दो जंगों का सामना करना पड़ता है—एक दुश्मन से, दूसरा मौसम से। इसमें कोई शक नहीं कि देशप्रेम से बड़ा कोई प्रेम नहीं। कब रवानगी का ऑर्डर आ जाए, खबर नहीं! देश के लिए मर-मिटना सौभाग्य की बात है। कुछ लोगों में यह प्रेम इतनी गहराई तक जड़ें जमाए रखता है कि वह मौत के बाद भी देशसेवा में लगे रहते हैं।”

“यानी मौत के बाद भी वजूद रहता है? यह क्या कह रहे हैं, कैप्टन वीर सिंह?” वीर सिंह की बात को काटते हुए टू.आई.सी. (सेकेंड इन कमांड) मिस्टर श्रीवास्तव बोले, “सर, उस किस्से को याद करके मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सुनाइए-सुनाइए कैप्टन, रात बहुत भयानक और तूफानी है, कट जाएगी। सब रास्ते भी बर्फबारी के बाद बंद हो गए हैं।”

सबकी उत्सुकता देखकर कैप्टन वीर सिंह बोले, “उन दिनों कैप्टन हरभजन के साथ मैं भी पंजाब रेजीमेंट की २३वीं बटालियन का सिपाही था। हम दोनों जिगरी दोस्त थे। कैप्टन हरभजन सिंह भी पंजाब रेजीमेंट की २३वीं बटालियन के सिपाही थे। उस दिन भी ऐसी ही काली भयानक रात थी। तेज बर्फीली हवाओं के बीच बर्फबारी हो रही थी। सारी पहाड़ियाँ सफेद चादर की मानिंद बर्फ से ढकी हुई थीं। हाड़ गला देने वाली सर्दी जिंदगी के लिए चुनौती थी। ऐसे में यदि कोई मुसीबत आ जाए तो संदेश भेजने के लिए संदेशवाहक के साथ पाँच सैनिकों की टोली भेजी जाती है। वे एक-दूसरे से फासला रखकर चलते हैं। उनके कमर के इर्द-गिर्द साझी रस्सी होती है। किसी का पाँव फिसले तो दूसरा उसे खींच लेता है। ऐसे में कभी-कभी पाट में फँसे सैनिकों के साथ सभी फँस जाते हैं। यह पाट सैकड़ों फीट गहरा होता है। पाटों से निकलने का तरीका अभी ईजाद नहीं हुआ, इसमें गिरकर इनसान कितने दिन जीवित रहता है, पता नहीं? खैर, वह सब तो आपको पता ही है। रावत को बता रहा था। हमारे साथ कई फौजी थे। हम सभी ड्यूटी पर थे। हम सभी सीमा पर गश्त लगा रहे थे।

“सिक्किम स्थित नाथुला में भारत-चीन सीमा पर हमारी भी ड्यूटी थी और कैप्टन हरभजन भी। गश्त लगाते कैप्टन हरभजन सिंह काफी पीछे रह गए और हम सब सिपाही काफी आगे निकल आए। जब काफी देर तक वह नहीं आए तो हम उन्हें ढूँढ़ने निकले। काफी रात गुजर गई। वह रात भी ऐसी ही तूफानी सर्द थी। बर्फ आसमाँ से यों गिर रही थी, जैसे रुई के गाले गिर रहे हों।

“हर रात, हर दिन हम ढूँढ़ते रहे, मगर कैप्टन हरभजन सिंह कहीं नहीं मिले, न कोई सुराग ही हाथ आया। हर रात डिनर के वक्त मैस में वह आ जाएँगे और हमें चौंका देंगे, ऐसी हम कल्पना करते। वक्त गुजरता गया, पर वह नहीं मिले। ऊँची-ऊँची पहाड़ियों पर अकसर ऐसे दिल दहलाने वाले हादसे होते रहते हैं। बर्फबारी रोज हो रही थी। तेज हवाएँ विरोधी दिशा में खींच रही थीं। यों लग रहा था, कहीं तेज बारिश होने वाली है।

“वह अमावस्या की रात थी। चाँद न जाने कहाँ छिप गया था! सब तरफ स्याह काला अँधेरा था। हमारी ड्यूटी ऑफ थी। टैंट में एक सिपाही पहले से सो रहा था। मैं भी सो गया। तकरीबन आधी रात बीती होगी कि तेज हवाएँ चलने लगीं, बगल में लेटा सिपाही घबराकर उठ बैठा और जोर-जोर से चिल्लाने लगा, ‘कैप्टन हरभजन आए थे और कह रहे थे कि मेरी मृत्यु तब हुई थी, जब मैं तुम लोगों के साथ गश्त लगा रहा था। ड्यूटी करते वक्त मैं थोड़ा पीछे रह गया था। ढलान थी, तभी पहाड़ से टूटकर एक बड़ी चट्टान मेरे ऊपर गिर गई, मेरा पैर फिसल गया और मैं चट्टान के नीचे दब गया। तुम लोग मुझे ढूँढ़ रहे थे, मुझे आवाज दे रहे थे, मैं भी चिल्ला-चिल्लाकर तुम सबको पुकार रहा था। गहन अँधेरे गरजते बादल, तेज हवाएँ, मेरी आवाज तुम लोगों तक नहीं पहुँच पाई। तुम सबके बूटों की आवाज मुझे सुनाई दे रही थी। मैं बेबस था, मुझ पर बेहोशी छा रही थी। मैंने पूरा दम लगाकर तुम्हें आवाज दी, पर तुम तक कोई आवाज नहीं पहुँच सकी। मेरी मृत्यु हो गई। मेरे ऊपर ढेर सारी बर्फ थी और भारी सी चट्टान, तुम सब जल्दी आओ, बर्फ की चट्टान हटाओ मैं वहीं हूँ।’ इस बीच और भी सिपाही आ गए। किसी को भी उस साथी की बातों का यकीन न था। सबको लगा, यह स्वप्न क्योंकि जब से सब एक-एक करके आए, वह साथी सोता ही मिला। वह आत्मविश्वास के साथ बोला, ‘हाँ, यह सच है, कैप्टन हरभजन सिंह स्वयं आए थे, अपनी बात कही, फिर धीरे-धीरे धुंध में गायब हो गए।’ सभी सिपाहियों के मुँह से निकला—‘तो क्या वह उनकी आत्मा थी?’

“हम सभी सिपाही मुस्तैद होकर उसी लोकेशन पर गए, जहाँ बर्फ की चट्टान गिरी थी। कुछ ने टॉर्च ली, कुछ ने फावड़े से बर्फ हटाई तो देखा, वर्दी-बूट पहने कोई सो रहा है। पलटा तो देखा, कैप्टन हरभजन सिंह ही थे।...तो क्या वह साथी को यह बताने आए थे कि वह कहाँ पर हादसे के शिकार हुए थे?

“साथियों ने उनका अंतिम संस्कार किया, उनके घर पर यह दुःखद खबर भिजवाई। अंतिम संस्कार के बाद कई सिपाहियों ने बताया कि सर्दी के दिनों में जब सिक्किम की चोटियाँ बर्फ से ढक जाती थीं, तब भी हरभजन सिंह की आत्मा अपनी ड्रेस में अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद पाई जाती थी। चीनी गश्त-दलों ने भी मृत्यु के बाद कैप्टन हरभजन सिंह को वहाँ गश्त लगाते देखा। उनकी मौत सिक्किम स्थित नाथुला में भारत-चीन सीमा पर हुई थी। वह देश की सेवा में आज भी तैनात हैं। चीनी गश्त-दलों ने सवाल उठाया था कि जब मज्जा तक को गला देने वाली ठंड है, तब बिना गरम कपड़ों के गश्त लगाने और सीमा की सुरक्षा करने वाला वह शस्त्रधारी सिपाही, जो भारतीय है, आखिर है कौन?

“उनके साथी बताते हैं कि कैप्टन हरभजन सिंह की आत्मा ने अपने सीनियर्स को यह भरोसा दिला दिया था कि वह सीमा की रक्षा की चिंता छोड़ दें। जब भी सीमा पर कोई गड़बड़ी होगी, वह ७० घंटे पहले सीनियर्स को इससे आगाह कर देंगे। उनके लिए देशप्रेम एक जुनून बन गया था। जब भी रात होती, वह तैयार होकर वर्दी-बूट में वहाँ गश्त लगाते लोगों को नजर आते। अब वह ऐसे मकाम पर थे, जहाँ आराम न था, तो बस एक जुनून—सीमा की रक्षा करना। देशद्रोहियों, देश के गद्दारों को इनसे सबक लेना चाहिए कि मृत्यु के बाद भी हरभजन की चेतना ने सूक्ष्म शरीर में अपना फर्ज अदा किया।

“हरभजन सिंह की डगर काँटों भरी थी। कठिन तप, अदम्य जिजीविषा, जूझते संघर्ष के प्रलयंकारी झंझावातों से उनकी आत्मा गुजर रही थी। वह संघर्षशील तपस्वी के मानिंद थे। चाँद की रश्मियों में धुआँ-धुआँ होती बर्फ की सिल्लियों से होते हुए हिमालय के हिमशिखरों पर उनकी आत्मा परछाईं के रूप में गश्त लगाती हुई कई बार अनेक सैनिकों ने देखी है। अनगिनत रहस्यों व उपलब्धियों को समेटे उनकी आत्मा कर्तव्य पथ पर डटी रही। उनके आदेश संकेतों व प्रतीकों के माध्यम से होते थे।

“अन्य फौजियों की तरह हरभजन सिंह की आत्मा को भी सारी सहूलियतें दी जाती थीं। उन्हें भी साल में दो महीने की छुट्टी दी जाती थी। छुियों के समय हरभजन सिंह...के लिए सिलीगुड़ी एक्सप्रेस में सीट रिजर्व कराई जाती थी। यात्रा के वक्त उनके साथी बर्थ पर उनका बिस्तर लगाते थे। बर्थ के नीचे उनका सामान रखते थे। उनकी वर्दी भी वहीं टाँग दी जाती थी। इस सब काम को करने के लिए एक सिपाही गाड़ी में बराबर उनके साथ रहता था। जालंधर रेलवे स्टेशन पर उन्हें इज्जत से उतारा जाता था। वहाँ से एक जीप द्वारा उन्हें घर पहुँचाया जाता था। उनकी सैलरी उनके परिवार को दी जाती थी। उन्हें प्रमोशन भी दिया गया, तभी वह सैनिक से कैप्टन बने। वहाँ यह महसूस होता था, जैसे कोई साया है।

“यही सिलसिला पिछले ३० सालों से चल रहा था। मृत्यु के वक्त वह २६ वर्ष के थे। अब उनकी आत्मा रिटायरमेंट चाहती थी। मगर उनकी सेवाएँ देखकर उन्हें एक साल का एक्सटेंशन दिया गया। वर्ष २००८ में १५ सितंबर को वह रिटायर हो गए थे। वह अपने गाँव कूकान डाला पहुँच गए। सेवानिवृत्ति के समय उनके लिए बैंड बाजों का पूरा इंतजाम किया गया था। यों उनकी विदाई की गई। बाकायदा एक परछाईं वहाँ हाथ जोड़े खड़ी थी।

“विदाई से पहले हरभजन सिंह की याद में सिक्किम में एक मंदिर बनवाया गया। यहाँ हर शाम उनके नाम की आरती होती थी। हर रात मैस में उनका बिस्तर लगाया जाता था। उनके बूटों की पॉलिश होती थी।

“लोगों ने साक्षात् देखा कि हरभजन की आत्मा उस बिस्तर पर सोने आती है। सुबह बिस्तर पर सिलवटें होती थीं। साफ करे बूट कीचड़ में सने होते थे। देशभक्ति की ऐसी मिसाल कहीं भी नहीं देखी, तभी तो स्थानीय लोग उन्हें ‘बाबा’ कहते थे। ऐसे देशभक्त सदैव अपने नेक कामों व उच्च विचारों द्वारा दिलों में रहते हैं। जीवन का यह रूप उत्कृष्टतम है।

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जुलाई 2024

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