ये विधाएँ भी मूल्यवान हैं..
भारत के प्रधानमंत्री पद पर विराजमान लाल बहादुर शास्त्रीजी ने एक दिन अपने पुत्र सुनील शास्त्री से कहा—मेरी कपड़ों वाली अलमारी बहुत अस्त-व्यस्त हो गई है, उसे ठीक कर देना। ...और आगे
यात्रा-वृतांत
सरयू पार की यात्रा
भारतेंदु हरिश्चंद्र
कल साँझ को चिराग जले रेल पर सवार हुए, यह गए, वह गए। राह में स्टेशनों पर बड़ी भीड़ न जाने क्यों? ...और आगे
रेखाचित्र
गोदावरी, मुझे भूल न जाना
देवेंद्र सत्यार्थी
जी चाहता था कि नौका रुके नहीं, चलती रहे, चलती जाए। मेरा और इस मल्लाह का मुकाबला ही क्या! मैंने सोचा कि वह खुले आजाद पानियों का बेटा है ...और आगे
आत्मकथ्य
कोल्हू का बैल
मैंने लगभग एक महीना छिलका कूटने का काम किया। सभी लोगों को आश्चर्य हो रहा था कि मुझे कोल्हू कैसे नहीं दिया गया। इसपर कुछ आशावादियों ने कहा, ‘‘नहीं जी, बैरिस्टर बाबू को किस मुँह से कोल्हू का काम देंगे?’’ ...और आगे
संस्मरण
महामान्य मदनमोहन मालवीय
विष्णु प्रभाकर
मस्तक पर चंदन की बिंदी, शुभ्र श्वेत वस्त्रों में आवेष्टित गौरवर्ण देहयष्टि, स्नेह और सहिष्णुता से छलकते नयन—इस रूप का स्मरण आते ही मन-प्राण एक ऐसी पवित्रता से भर आते हैं, जिसे शब्द नहीं दिए जा सकते। ...और आगे
डायरी अंश
चाहे कितनो औढ़े रजाई
रामदरश मिश्र
हिंदी के मूर्धन्य कवि-साहित्यकार, जिन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं को अपने रचनात्मक अवदान से समृद्ध किया। ...और आगे
आलेख
संभावनाओं का क्षेत्र कथेतर गद्य
नंद किशोर पांडेय
सुपरिचित लेखक। भारतीय साहित्य के प्रतिष्ठित अध्येता एवं मध्यकालीन हिंदी साहित्य के चर्चित विद्वान्। प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के कई वर्षों तक प्रधान संपादक। ...और आगे
रिपोर्ताज
कार रैली
लता कादंबरी गोयल
व्यवसायी एवं लेखिका। 'बट्टे से दबी तारीखों', 'कहानियों की लता' पुस्तकों के साथ-साथ अब तक १,००० से ऊपर कहानियाँ लिखित व प्रकाशित, जिसके लिए समय-समय पर अनेक पुरस्कारों व सम्मानों से अलंकृत। ...और आगे
रेखाचित्र
जूता दंश
हेमंत शर्मा
लेखन में पत्रकारीय छवि सर्वनिहित है। उनके लेख, रिपोर्ट और इतिहासबद्ध पुस्तकें इसकी प्रमाण हैं। पत्रकारीय लेखन में हेमंतजी ठोस और तथ्यपरक लिक्खाड़ माने जाते हैं। ...और आगे
राम झरोखे बैठ के
असमानताओं के देश के कुरसी-पंथी
गोपाल चतुर्वेदी
भारत की विविधता एक सर्वमान्य तथ्य है। इसी प्रकार भारत की असमानता भी एक सार्वजनिक सत्य है। ऐसा नहीं है कि भारत में विकास नहीं है। ...और आगे
लघुकथा
पद्माकर और ग्वाल कवि की नोक-झोंक
पद्माकर और ग्वाल कवि समकालीन थे। दोनों ही भिन्न-भिन्न राजाओं द्वारा सम्मानित थे और दोनों के ही कवित्व की धाक देश में फैली हुई थी। पाकर ने एक छंद लिखा— ...और आगे