ज्ञान का अहंकार

चीन के महान् दार्शनिक कन्फ्यूशियस एक बार घूमते-घूमते दूर के एक देश में पहुँचे। वहाँ के राजा ने उनके सामने तीन पिंजरे रख दिए। एक पिंजरे में चूहा था और उसके सामने ढेर सारे व्यंजन रखे हुए थे, किंतु वह कुछ भी नहीं खा रहा था। दूसरे पिंजरे में बिल्ली थी तथा उसके सामने दूध से बने ढेर सारे व्यंजन रखे हुए थे, लेकिन वह भी न कुछ पी रही थी और न खा रही थी। तीसरे पिंजरे में एक बाज था, उसके सामने ढेर सारे ताजे मांस के टुकडे़ रखे थे, लेकिन वह भी ऐसे ही पड़ा हुआ था।

कन्फ्यूशियस ने यह सब देखा और अपने शिष्यों से कहा, ‘‘भय की महिमा देखी तुमने? चूहा बिना भोजन किए रह जाएगा, किंतु आनेवाले संकट की अपेक्षा आज के संकट की इसे सबसे बड़ी चिंता है। वह अनभिज्ञ है कि एक न एक दिन तो उसे मरना ही है तो सामने रखे भोजन को खाकर क्यों न मरे? यही स्थिति बिल्ली की है। बाज को सामने देख लग रहा है कि साक्षात् मौत उसके सामने खड़ी है। पर बाज की दशा इन दोनों से निराली है। वह कभी चूहे को खाने की सोचता है तो कभी बिल्ली को। उसकी नजर इन दोनों पर अटकी हुई है। उसके सामने जो भोजन रखा हुआ है, उसे वह इन भावी भोजन के सामने उपेक्षित समझ रहा है। यह जीव का स्वभाव है। यदि ये तीनों इसी प्रकार पिंजरों में कैद एक-दूसरे के सामने रहे तो तीनों भूखे मर जाएँगे।’’ फिर कन्फ्यूशियस ने अपने शिष्यों का ध्यान राजा की तरफ किया और कहा, ‘‘इन तीनों से अधिक तो यह राजा मूर्ख है, जो अपने ज्ञान के अहंकार में दूसरों की ज्ञान की परीक्षा ले रहा है। ऐसे लोगों की गति एक दिन उस सपेरे की तरह होती है, जो अपनी बीन के धुन पर साँप को नचाता है, किंतु ताल भूलकर एक दिन स्वयं साँप द्वारा डँस लिया जाता है।’’

पुष्पेश कुमार पुष्प

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