यमपुरी में हड़कंप

न दोनों यमदूतों का आज साप्ताहिक अवकाश था, सो आराम फरमा रहे थे और टी.वी. पर फिल्म का आनंद ले रहे थे—वैसे तो यमदूतों का काम कभी खत्म नहीं होता, पर जब से बॉस यमराजजी ने नए यमदूत नियुक्त किए हैं, हफ्ते में एक छुट्टी सबको मिल जाती है, पर अपने टारगेट्स सबको पूरे करने होते हैं।

हाँ तो मैं बता रही थी कि यमदूत फिल्म देख रहे थे, तभी ब्रेक आया और विज्ञापन आने लगे। अचानक एक विज्ञापन देखकर परेशान हो गए। एक बोला, ‘‘यार, ये तो बड़ी गड़बड़ है, यदि ये सचमुच काम करता है तो अपने काम पर तो बहुत असर होगा, खासकर भारतभूमि में तो टारगेट्स पूरे करना मुश्किल हो जाएगा।’’

‘‘चलो बॉस को बताते हैं जल्दी से, नहीं तो ये खत्म हो जाएगा।’’ दूसरा बोला। दोनों यमदूत यमराजजी के कक्ष की ओर भागे। दरवाजा खटखटाकर अंदर प्रवेश किया। यमराजजी जूस पी रहे थे और रानी साहिबा अपना फेवरिट सीरियल देख रही थीं। दोनों दूतों को एक साथ अपने कक्ष में देखकर यमराज ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? आज तो तुम्हारी छुट्टी है, फिर इतने हड़बड़ाते से यहाँ क्या कर रहे हो?’’

‘‘सर, बात ही कुछ ऐसी है।’’ फिर कुछ रुककर हड़बड़ाते हुए, ‘‘जरा चैनल नंबर १२३ लगाकर देखिए, क्या अनर्थ हो रहा है।’’ दोनों दूत एक साथ बोले।

‘‘अरे भाई, उस चैनल का तो पता नहीं, पर इस वक्त रानी साहिबा अपना पसंदीदा सास-बहू सीरियल देख रही हैं और अभी चैनल बदलने की कोशिश की तो सचमुच अनर्थ हो जाएगा। ऐसा क्या आ रहा है? बता दो या फिर हम भी तुम्हारे कक्ष में चलकर ही देख लेते हैं।’’ कहकर यमराजजी दूतों के कमरे की ओर चल दिए। यमराजजी दूतों के कमरे में पहुँचे तो देखा कि वहाँ टी.वी. चल रहा है और हनुमानजी का युद्ध चल रहा है काले कपड़ेवाले किसी कुरूप से राक्षस के साथ।

‘‘ये कौन है? इतना बदसूरत सा और कितने पुराने फैशन के कपडे़ पहने है, जिससे हनुमानजी लड़ रहे हैं? और हनुमानजी को कितना स्मार्ट बॉडी बिल्डर टाइप दिखाया है।’’ ‘‘प्रभू ये आप हैं।’’ ध्यान से सुनिए, यमराज ने ध्यान से देखा-सुना तो उनका पारा गरम हो गया और गुस्से में बोले, ‘‘ये किसकी साजिश है? हमें यों बदसूरत दिखाने की और ये क्या नया यंत्र है, जिसे यदि कोई मनुष्य पहन लेगा तो उसकी रक्षा स्वयं हनुमानजी करेंगे। ऐसे तो सब ये यंत्र पहनकर अपनी रक्षा हनुमानजी से करवा लेंगे, पृथ्वी लोक पर भीड़ बढ़ जाएगी और हमारे टारगेट कैसे पूरे होंगे? जल्दी से मंत्रीजी को बुलाओ आपातकालीन बैठक के लिए।’’

मंत्रीजी सुनकर दौडे़-दौडे़ आए, वे बुरी तरह हाँफ रहे थे। बोले, ‘‘क्या हुआ प्रभु? इस वक्त कैसे याद किया और यहाँ दूतों के कमरे में क्यों बुलाया? आज तो छुट्टी है न।

‘‘मंत्रीजी, हम यमलोक वासियों की कोई छुट्टी नहीं होती और आपसे कितनी बार कहा है कि जिम में आया करो, कितनी तोंद निकल रही है और किस कदर हाँफ रहे हैं, आप। आप जरा देखिए कि पृथ्वीलोक पर क्या हो रहा है?’’ यमराज ने टी.वी. की तरफ इशारा किया।

मंत्रीजी चुपचाप देखने लगे, फिर बोले, ‘‘महाराज, ये तो सचमुच चिंता का विषय है। आपको वाकई बहुत बदसूरत दिखाया गया है और तो और भैंसे पर बिठाया है। यदि पेटा वालों को पता लगा तो आप पर जानवरों की सवारी करने के कारण केस कर देंगे; हो सकता है आपको जेल भी हो जाए।’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब है मंत्रीजी।’’ यमराज चिल्लाए, ‘‘यहाँ पूरा बिजनेस खतरे में है और आपको भैंसों की पड़ी है। अब किसी ने पृथ्वीवासियों को अपडेट ही नहीं किया तो वो क्या करें। उन्हें क्या पता कि हम अपने प्राइवेट प्लेन से जाते हैं और पृथ्वीवासियों से ज्यादा लेटेस्ट फैशन के कपड़े पहनते हैं। आप यह देखिए, वहाँ जो यंत्र बिक रहा है, जिसे पहनने से स्वयं हनुमानजी हमसे युद्ध करेंगे। यदि ऐसा हुआ तो हम किसी के प्राण ले ही नहीं पाएँगे, फिर तो यमलोक में ताला लगाना पडे़गा, पृथ्वी लोक के डॉक्टरों की वजह से पहले ही प्राण लेने का बिजनेस कमजोर हो गया है। आपकी भी क्या जरूरत रह जाएगी। कोई उपाय बताइए, क्या करें?’’

‘‘महाराज आप इसे रिकॉर्ड करिए और देवताओं की मीटिंग बुलाइए, वो ही कुछ हल निकालेंगे।’’ मंत्रीजी ने कुछ देर सोचकर जबाव दिया।

शाम को सभी देवता यम की सभा में उपस्थित थे। उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ यमदेव! यों आपातकालीन सभा क्यों बुलाई गई है?’’

‘‘जी देवगण, बताता हूँ।’’ यम बोले, ‘‘वो रिकॉर्डिंग चलाई जाए।’’ यम ने आदेश दिया

सबने वह फिल्म देखी और बोले, ‘‘यमराजजी, यदि यह सूचना है तो वाकई चिंता का विषय है।’’

अभी सब सोच में पडे़ थे कि नारदजी ने प्रवेश किया। नारायण-नारायण! क्या हुआ प्रभु? आज सब देवता गण यहाँ क्यों हैं? कोई बड़ी घटना हुई क्या?’’

‘‘अरे नारदजी, आप तो पृथ्वीलोक पर विचरण करते रहते हैं, आपको तो पता होगी वह सूचना कि मनुष्यों ने ऐसा यंत्र बना लिया है कि अब यमराज उनके प्राण नहीं ले पाएँगे। स्वयं हनुमानजी उनकी रक्षा करेंगे।’’ विष्णु भगवान् चिंतित होते हुए बोले।

‘‘अच्छा यह बात है—हा हा हा, हा हा हा।’’ नारदजी हँसते जा रहे थे और सभी देवी-देवता परेशान उनका मुँह ताक रहे थे।

‘‘क्या हुआ नारदजी, हँस क्यों रहे हैं?’’

‘‘अरे महाराज, हँसूँ नहीं तो क्या करूँ। इन मानुषों की चालाकी देखो। एक-दूसरे को तो बनाते ही हैं, आपको भी बना डाला—हा हा हा।’’

‘‘अरे भाई, क्या बना डाला?’’

‘‘मूर्ख और क्या!’’

‘‘मूर्ख! क्या बक रहे हो नारद?’’

‘‘अरे प्रभु, सही कह रहा हूँ। ये सूचना नहीं, विज्ञापन था और मनुष्य लोग ऐसे बहुत से यंत्रों के, तेल के और न जाने कैसे-कैसे झूठे विज्ञापन दिखाकर पृथ्वीलोक के लोगों को मूर्ख बनाते हैं। कभी स्वयं को भगवान् कहते हैं तो कभी अमर होने के उपाय बताते हैं। ये सब तो उनके नए-नए बिजनेस आइडिए हैं। लोग भी ऐसे फालतू लोगों की बातों में आकर खूब धन लुटाते हैं। आप लोग भी आ गए न झाँसे में। ऐसे ही सब आ जाते हैं।’’ नारदजी ने बताया।

‘‘पर यह तो सरासर गलत है न। इस पर रोक लगनी चाहिए।’’ सारे देवता बोले।

‘‘कैसे रोक लगेगी? पृथ्वी लोक पर तो कोई कानून नहीं इसे रोकने का और मृत्युलोक में तो मरने के बाद ही स्वर्ग-नरक मिलेगा।’’

‘‘आप देवता ही कुछ सोचिए कि जीते-जी इन्हें कैसे सजा मिले?’’ ‘नारायण-नारायण’ करते नारदजी चल दिए।

‘‘हम ऐसा करते हैं कि कुछ दिन के लिए अपने बुद्धिमान मंत्रीजी और कुछ दूतों को पृथ्वीलोक में भेज देते हैं। वहाँ रहकर ही वो ऐसे लोगों पर कैसे रोक लगे, इस पर काम करेंगे और वहाँ के मनुष्यों को सावधान भी करेंगे कि वे इन झूठे विज्ञापनों के झाँसे में न आएँ।’’ यमराजजी ने कहा, ‘‘हाँ-हाँ, ये सही रहेगा।’’ सब देवताओं ने हामी भरी। सभा खत्म हुई और सब चले गए।

मंत्रीजी भी पृथ्वीलोक प्रस्थान कर गए।

कुछ दिन बाद!

एक दिन सुबह मंत्रीजी का प्रवेश।

‘‘अरे मंत्रीजी, आप आ गए! बडे़ खुश नजर आ रहे हैं। लगता है, काम हो गया? और आपके हाथ में ये इतना सामान क्या है?’’ यमराजजी ने प्रश्नों की झड़ी लगाई, ‘‘अरे महाराज, ये हमारी तोंद कम करने के लिए बैल्ट है और कुछ पेय पदार्थ, जो हमारी बॉडी बनाएँगे। और एक खुशी की बात, अब हमने ऐसी व्यवस्था कर दी है कि किसी भी सामान की डिलीवरी यमलोक में भी होगी और हम ऑर्डर आसानी से कर सकेंगे।’’

यमराजजी हैरान-परेशान से होकर बोले, ‘‘पर तुम्हारे साथ कुछ दूत भेजे थे, वो कहाँ हैं?’’

‘‘अरे महाराज, दूतों ने वहाँ की कंपनियाँ ज्वॉइन कर ली हैं। वही तो पृथ्वी से यमलोक में सामान पहुचाएँगे।’’ ये सुनकर यमराजजी ने अपने सिर पर हाथ रख लिया और आज तक उसी मुद्रा में हैं।

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