सुपरिचित कवि। विविध विधाओं में लगभग सौ पुस्तकें प्रकाशित। संस्कृति मंत्रालय के ‘बाल साहित्यश्री सम्मान’ सहित अन्य कई सम्मानों से सम्मानित। उ.प्र. पुलिस के इंटेलिजेंस विभाग से सेवानिवृत्त। संप्रति एक्यूप्रेशर की निशुल्क चिकित्सा सेवा में रत।
होली है आई
कली खिल रहीं, फूल हँस रहे
होली है आई।
हवा बह रही अतिशय सुंदर
फागुन है लाई।
डालों पर नव लतिकाएँ
नृत्य कर रहीं मस्ती में।
वृंदावन में फाग राग है
स्वाद बढ़ा है लस्सी में।
ढोलक, झाँझ मृदंगा बाजे
मधु है ठंडाई।
कली खिल रहीं, फूल हँस रहे
होली है आई।
गरमी-सर्दी एक हुए हैं
मौसम मधुर दुलारा है।
चंदाजी की शीतल छाया
कुहरा, जाड़ा हारा है।
पिचकारी सब भर-भर मारें
भीगे अँगनाई।
कली खिल रहीं, फूल हँस रहे
होली है आई।
मुख पर मल-मल रंग लगाएँ
हुरियारों की बढ़ टोली।
गाएँ गीत प्यार के हँस-हँस
उड़े गुलाल पीत रोली।
गुझिया, सेब महक पकवानी
मस्ती है छाई।
कली खिल रहीं, फूल हँस रहे
होली है आई।
धरा वसंती चूनर ओढ़े
प्रकृति करे शृंगार खिल गई अमराई।
धरा बसंती चूनर ओढ़े मुसकाई।
हुईं पल्लवित मौर कली भी
बाग-बगीचे हरषाए।
मौन पड़ी श्यामा कोयल भी
मंगल गीत धुन सुनाए।
ठिठुरन, कोहरा लोप हुए
ऊर्जा आई।
ऋतु परिवर्तन हुआ धरा पर
मस्त हवा पछुआ चलती।
पतझड़ होता नई कोपलें
प्रेम-पत्र के खत लिखतीं।
मन में विश्वास जगा
बजतीं शहनाई।
तोते, बुलबुल गीत सुनाएँ
नए राग और तान में।
बच्चे चहक रहे स्कूलों
भारत माँ की शान में।
चंदा, तारे खिले-खिले
प्रतिभा पाई।
फागुन का आगमन हुआ है
गेहूँ, सरसों प्रीत लिखें।
भोर लिख रही नई किताबें
मस्ती की कुछ रीत दिखें।
सोई प्रकृति नए पत्र पर
देती आज बधाई।
पेड़ सृष्टि के रखवाले
मित्र वृक्ष हैं पक्के साथी
इनके दिल की बात सुनो।
अपने जन्मदिवस पर रोपो
बेहतर अपना लक्ष्य चुनो।
उसी तरह हों प्राण वृक्ष में
जैसे हम में हैं होते।
कोई हमको भाला मारे
कितना हैं हम सब रोते।
लोग काटते इन्हें स्वार्थवश
कुछ तो जंगल जला रहे।
सोचो कितनी पीड़ा होगी
धरती माँ को रुला रहे।
हे मानव! तुमसे पशु अच्छे
अपना जो धर्म निभाते।
वृक्ष मौन हैं बोल न पाएँ
भू, जल को यही बचाते।
सृष्टि के हैं ये रखवाले
सभी सदा सुरक्षा करना।
बादल बरसें इन्हें देखकर
जंगल हरा-भरा रखना।
रे मानव! तू सोच भलाई
जंगल काट, न आग लगा।
इनसे ही है जीवन अपना
बुद्धि अपनी रोज जगा।
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