सुपरिचित बाल-साहित्यकार। कई विधाओं की १५७ पुस्तकें तथा पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रतिष्ठित ‘भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार’, चिल्ड्रंस बुक ट्रस्ट पुरस्कार’, उ.प्र. हिंदी संस्थान के ‘बाल-साहित्य भारती सम्मान’ सहित अब तक २१० पुरस्कार/सम्मान प्राप्त।
पात्र-परिचय
अक्षय : एक लड़का, उम्र १५ वर्ष
मोहित : एक लड़का, उम्र १४ वर्ष
पवन : एक लड़का, उम्र १४ वर्ष
गुंजन : एक लड़की, उम्र १३ वर्ष
दीपाली : एक लड़की, उम्र १२ वर्ष
[परदा खुलता है। मंच पर बस स्टैंड का दृश्य। सीमेंट की बनी एक बेंच पर पाँच बच्चे—अक्षय, मोहित, गुंजन, दीपाली व पवन बैठे हुए हैं। वार्त्तालाप हो रहा है।]
अक्षय : (अखबार में पढ़ते हुए) सड़क-दुर्घटना में एक दर्जन लोग घायल। दो की मौत। नियंत्रण खोने पर बस पेड़ से जा टकराई। चालक बस से कूदकर भाग गया।
मोहित : (दु:खी स्वर में) ओह, बहुत दर्दनाक घटना है।
पवन : आखिर ये दुर्घटनाएँ क्यों होती हैं और इनका जिम्मेदार कौन है?
गुंजन : मैं बोलू?
अक्षय : हाँ, बोलो।
गुंजन : दरअसल, इन दुर्घटनाओं के कई कारण हैं।
दीपाली : (हैरानी से) कई कारण?
गुंजन : हाँ, दीपाली! पहले मैं कुछ अन्य जानकारियाँ देना चाहूँगी।
मोहित : तो, देर किस बात की?
गुंजन : आज हमारे देश में सड़क, दुर्घटना के कारण मौत का आँकड़ा दिन-प्रति-दिन बढ़ता जा रहा है। एक सर्वे के अनुसार अपने देश में प्रतिवर्ष करीब डेढ़ लाख लोगों की जान सड़क-दुर्घटना में चली जाती है। दुर्घटना चाहे बड़े वाहनों की हो अथवा टू व्हीलर्स की।
दीपाली : (आश्चर्य प्रकट करते हुए) यह तो बड़ी चिंता की बात है।
गुंजन : बिल्कुल। हमें इस दिशा में गहराई से मंथन करना चाहिए।
पवन : तब तो हमें दुर्घटना के कारणों का गहन विश्लेषण करना निहायत जरूरी है।
गुंजन : सबसे प्रमुख कारण है—यातायात के नियमों की अनदेखी। वाहन चलाते समय चालक इन नियमों का पालन नहीं करता है, तब वह अपनी तथा दूसरों की जान भी खतरे में डाल देता है।
पवन : बिल्कुल ठीक बताया तुमने गुंजन!
गुंजन : दूसरा बड़ा कारण होता है—तेज गति से वाहन को सड़क पर दौड़ाना, जबकि सड़क के किनारे यह चेतावनी भी लिखी होती है—‘गाड़ी धीरे चलाएँ’ अथवा ‘गति सीमा ५० किलोमीटर।’ जब वाहन की गति सीमित होती है तो वाहन का नियंित्रत सरल हो जाता है।
अक्षय : और?
गुंजन : गाड़ी चलाते समय सीर बेल्ट जरूर बाँधें। न बाँधने पर चालान भी कर दिया जाता है। लेकिन इतना होने पर भी लोग हैं कि परवाह ही नहीं करते प्राणों की।
दीपाली : शराब पीकर भी गाड़ी नहीं चलानी चाहिए। है, न?
गुंजन : ठीक कहा दीपाली! इनके अलावा कुछ और भी सावधानियाँ हैं, जिन्हें ड्राइविंग के दौरान पालन करना अक्लमंदी होगा।
अक्षय : कौन सी?
गुंजन : ड्राइविंग करते समय मोबाइल फोन पर बातचीत तो कतई नहीं करनी चाहिए। जरा-सा ध्यान हटा और दुर्घटना हो जाती है, क्योंकि आजकल सड़कों पर वाहनों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती ही जा रही है।
अक्षय : वाह, वाह! क्या खूब कहा गुंजन ने। यदि सभी चालक ऐसा करें तो दुर्घटनाओं में कमी आते अधिक वक्त नहीं लगेगा।
गुंजन : आगे सुनो। वाहनों की गति सीमित रखने के उद्देश्य से सड़कों पर स्पीड ब्रेकर बनाए गए हैं, ताकि तीव्र गति की वजह से सड़क-दुर्घटनाएँ कम हों अथवा न हों। परंतु वाहन चालक इन स्पीड ब्रेकरों की परवाह नहीं करते हैं, जिससे दुर्घटनाएँ हो जाती हैं।
मोहित : ठीक बात है। ‘ओवर टेकिंग’ भी कई बार दुर्घटनाओं को जन्म दे देती है। यदि ओवर टेकिंग अत्यंत आवश्यक हो तो अपने वाहन की गति सीमा का ध्यान जरूर रखना चाहिए वाहन चालक को।
अक्षय : भई वाह! क्या बारीक बात बताई है मोहित ने। (तालियाँ)
गुंजन : (बोलने की मुद्रा में) वाहन चालक को चौराहे पर लगी लाल, हरी व पीली बत्तियों का भी पूरा-पूरा ध्यान रखना जरूरी होता है। भूलकर भी इन बत्तियों को गलत ढंग से पार नहीं करना चाहिए। सुरक्षित ड्राइविंग ही सुखद यात्रा की जननी है।
दीपाली : (खुश होकर) बहुत खूब, गुंजन! एक जानकारी यानी ध्यान रखने योग्य बात यह भी है कि बिना फाटक के रेलवे क्रॉसिंग को पार करते समय यह सुनिश्चित कर लेना आवश्यक है कि रेलगाड़ी न आ रही हो। अकसर ऐसे फाटकों पर भी दुर्घटनाओं के होने की खबरें कई बार हमें पढ़ने को मिल जाती हैं।
पवन : खराब मौसम, जैसे तेज वर्षा या आँधी-तूफान भी सड़क-दुर्घटनाओं का कारण बनता देखा गया है। ऐसे मौसम में वाहन के आगे की लाइट जलाकर धीमी गति से वाहन चलाने में ही समझदारी होती है।
गुंजन : बहुत अच्छा सुझाव है। और हाँ, कभी-कभी सड़कों पर घूमने वाले आवारा पशु भी दुर्घटनाएँ करवाने में भूमिका निभाते हैं। इसीलिए भीड़भाड़ वाले इलाकों या मोड़ से गुजरते समय हॉर्न का इस्तेमाल आवश्यक है।
दीपाली : दुपहिया वाहन चालकों को हेलमेट का प्रयोग अवश्य करना चाहिए, ताकि दुर्घटना होने की स्थिति में सिर सुरक्षित रहे।
गुंजन : अंत में एक बड़ा कारण और भी है इन सड़क-दुर्घटनाओं का! वह है—हमारी सड़कों का खराब होना। हमारी लापरवाही से हमारी सड़कें अकसर टूट जाती हैं। कई बार मेन होल भी जर्जर अवस्था में अथवा खुले पड़े होते हैं। हमें सड़कों पर न तो पानी डालना चाहिए और न कूड़ा-कर्कट फेंकना चाहिए। निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए सड़कों को खोदना भी नहीं चाहिए।
दीपाली : आने-जाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति ‘सड़क’ का प्रयोग करता है—पैदल यात्री, साइकिल या स्कूटर/मोटर साइकिल सवार अथवा चार पहिया वाहन वाले। सड़क की सुरक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है, क्योंकि सड़कें हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। इनका रख-रखाव करने में ही समझदारी है।
अक्षय : सड़क-यातायात सुरक्षा एक प्रकार का उपाय है, जिससे सड़क-दुर्घटना में लोगों को चोट लगने और उससे मृत्यु होने आदि घटनाओं को कम करने का प्रयास किया जाता है। यदि सड़क के दोनों ओर फुटपाथ है तो पैदल यात्रियों को बाईं दिशा में फुटपाथ पर ही चलना चाहिए। यदि किसी सड़क के साथ फुटपाथ नहीं है तो जहाँ सामने से ट्रैफिक आ रहा है, वहाँ से दाहिने तरफ चलना चाहिए।
(तालियाँ बज उठती हैं। )
मोहित : सड़क-दुर्घटना रोकने में कौन-कौन से उपाय मददगार हो सकते हैं?
गुंजन : (बोलती है) पूरा ध्यान ड्राइविंग पर ही रखें। ट्रैफिक-नियमों का पालन करें तथा मोबाइल फोन का उपयोग भी न करें। शराब पीकर गाड़ी न चलाएँ। गति-सीमा नियंत्रित रखें। लंबी यात्रा करते समय थकान होने की स्थिति में थोड़ी देर विश्राम करें। दूसरे वाहनों से उचित दूरी बनाए रखें।
दीपाली : एक प्रश्न मेरे दिमाग में काफी देर से घूम रहा है। कहो तो पूछूँ?
गुंजन : हाँ-हाँ, पूछो!
दीपाली : ‘सड़क-सुरक्षा सप्ताह’ क्या होता है?
गुंजन : गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, हिंदी दिवस, शिक्षक दिवस, बाल दिवस, महिला दिवस आदि की तरह ही ‘सड़क-सुरक्षा सप्ताह’ समारोह भी प्रतिवर्ष जनवरी माह में मनाया जाता है। यह एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है।
दीपाली : तो उधर देखो, दीवार पर लगे बैनर में क्या लिखा हुआ है?
गुंजन : सड़क-सुरक्षा सप्ताह (७-१३ जनवरी)। आपका सहयोग अपेक्षित है।
अक्षय : आज भी तो ७ जनवरी का दिन है।
मोहित : फिर तो ‘सड़क-सुरक्षा सप्ताह’ आज से ही मनाया जाने वाला है।
पवन : साथियो, हमें भी इसमें सहयोग करना चाहिए।
(अन्य दोस्त भी हामी भरते हैं।)
गुंजन : चलो, मैं कुछ स्लोगन लिखवाती हूँ—
सदा सड़क पर बाएँ चलना, दुर्घटनाओं से तुम बचना।
× × ×
सड़क हमें देती सुविधाएँ, हानि नहीं इसको पहुँचाएँ।
× × ×
सड़क सुरक्षा नियम काम के, ये तो फल हैं बिना दाम के।
दीपाली : हाँ, चलो अब इन्हें बड़ी सी पिकाओं पर लिखकर बाजार में निकलते हैं।
(कुछ ही देर में पिकाएँ तैयार हो जाती हैं।)
अक्षय : चलो साथियो, अब बाजार की मुख्य सड़क की ओर कूच करते हैं।
(पाँचों चल देते हैं।)
मोहित : (हाथ हिलाकर) सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।
पवन : (नारा लगाता है) हम अपना कर्तव्य निभाएँ, सड़कें
सुंदर-स्वच्छ बनाएँ।
(अक्षय, गुंजन व दीपाली अपने-अपने हाथ में पिकाएँ लिये हुए चल रहे हैं। जागरूकता का संदेश नागरिकों को सोचने पर विवश करता है।)
(परदा गिरता है।)
७८५/८, अशोक विहार, फेज-१
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