सुप्रसिद्ध कन्नड़ कवि, कहानीकार और समीक्षक श्री के.वी. तिरुमलेश का जन्म १९४० में हुआ। हैदराबाद के.सी.आई.ई.एफ.एल. कॉलेज में प्राध्यापक रहे। कन्नड़ में तिरुमलेश नव्य कवि और कहानीकार के रूप में जाने जाते हैं। मुखवाडगलु, वठारा, अवधा, सम्मुख आदि इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। सरकारी सेवा से निवृत्त होने के बाद अब स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। यहाँ हम उनकी कन्नड़ की चर्चित दो लघुकथाओं का हिंदी रूपांतर प्रस्तुत कर रहे हैं।
मेरा पुराना दोस्त तानसेन बैंगलोर चला गया और वहाँ एक छोटी सी कपड़े की दुकान खोल ली। जब वह पहली बार गाँव आया तो उसके चेहरे पर खुशी नहीं थी।
“अरे भाई, तुम्हारा बिजिनेस कैसा है?” मैंने उसके हाल-चाल पूछने की कोशिश की।
“चल रहा है।” उसकी आवाज में भारीपन था, “देखो भाई, बैंगलोर जैसे बड़े शहर में छोटे दुकानदारों को कोई पूछता ही नहीं।”
“तो वापस आ जाओ, यहीं दुकान खोल दो।”
“देखता हूँ। और एक साल इंतजार करूँगा। बिजिनेस मंदा रहा तो वापस आ जाऊँगा।”
इधर तानसेन जब गाँव आया तो बड़ा खुश था।
“कैसे हो, भाई? क्या हालचाल है?” मैंने पूछा।
“फिलहाल बिजिनेस अच्छा चल रहा है।”
फिर उसने जो कहानी कही, वह इस प्रकार है—
पहले उसकी दुकान का नाम था, ‘कमलम्मा क्लाथ सेंटर’। कमलम्मा उसकी माता थी, जो मर गई थी। उनकी एक तसवीर को उसने दुकान में रखा था। एक कुत्ता भी उधर से गुजरता नहीं था। एक बार उसने शहर में एक नया ट्रेंड देखा। युवा वर्ग पुराने कपड़ों के शौकीन हो रहे थे। फटा पैंट, डेनीम कपड़े, जो धुँधले हो गए थे, गंदे शर्ट्स, छिद्र-छिद्र बनियान—ऐसी चीजों की माँग ज्यादा थी। तानसेन ने सोचा कि मैं क्यों न पुराने कपड़ों का व्यापार करूँ? एक दोस्त के सुझाव के अनुसार दुकान का नाम ‘इन ए सेकंड’ में बदल दिया। एक युवक की तसवीर, जो फटा-पुराना कपड़ा पहना हुआ था, दुकान के आगे खड़ा किया। पुराने कपड़ों को जमा करने की व्यवस्था कर ली। फटे और पुराने कपड़ों को भिखारियों और दरिद्रों से पैसे देकर ले लिया। देखते-ही-देखते व्यापार में तरक्की होने लगी। भिखारियों के गंदे कपड़ों को अमीर युवक ज्यादा पैसे देकर खरीदते थे; उन्हें पहनकर धन्यता का भाव महसूस करते थे।
तानसेन ने कहा, “यह आश्चर्य की बात है न? अब मैं बिजिनेस के सिलसिले में ही गाँव आया हूँ। गाँवों में पुराने कपड़ों के बारे में उपेक्षा और घृणा होती है। मैं उन्हीं कपड़ों को इकट्ठा करने के लिए आया हूँ। तुम्हारे पास भी पुराने और फटे हुए बनियान, शर्ट, पैंट, चड्डी, अंडरवीयर हों तो...”
“अंडरवीयर?”
“उसके लिए भी डिमांड है; किसी-किसी को इंप्रेस करने के लिए लेकर जाते हैं!”
“मेरे पास एक डेनीम पैंट है, जो पुराना हो गया है। मैं सोच रहा था, किसे दूँ? उसे फेंकने का मन नहीं हो रहा है।”
“मुझे दे दो। मुझे वैसे ही कपड़े चाहिए।”
“कैसे दूँ, उसका पिछला हिस्सा फटा हुआ है।”
“यानी पृष्ठ फटा हुआ है? वंडरफुल! उसके जितने पैसे माँगते हो, दे दूँगा।”
“तुम्हें कुछ भी देना नहीं है, बस उस डेनीम पैंट को लेते जाओ।”
“फटा हुआ बनियान और अंडरवीयर?”
“दो-तीन हैं, डोसा की तरह उनमें भी छेद हैं।”
“उनकी सोने जैसी कीमत है!”
“मगर अभी तक उन्हें साफ नहीं किया गया है, उनसे दुर्गंध आ रही है।”
“देखो, उनसे जितना दुर्गंध आएगा, उतना ज्यादा पैसा मिलेगा; पसीने की दुर्गंध, मिट्टी का गंध अब पहले की तरह नहीं है। वे मुझे चाहिए।”
“दुर्गंध के लिए इतना डिमांड? मुझे समझ में नहीं आया।”
“क्योंकि उस प्रकार के सेकंड हैंड कपड़े ज्यादा ताजा और ज्यादा जिनाइन होते हैं, इसलिए!” तानसेन ने सहजता से कहा।
“बेस्ट ऑफ लक, ले लो सबकुछ!” मैंने उसे सभी पुराने कपड़े दे दिए।
तानसेन इतने से संतुष्ट नहीं हुआ। घर के कोने में चप्पल पड़े थे। उसकी ओर इशारा करते हुए पूछा, “उसे दोगे?”
“एक का अँगूठा फटा हुआ है तो दूसरे का आगे से थोड़ा फटा हुआ है!”
“फटा हुआ है! वही मुझे चाहिए!” तानसेन और ज्यादा खुश हुआ।
वही काम
चित्रगुप्त के ऑफिस के द्वारा ही परलोक के लिए प्रवेश संभव है। पता चला कि स्वर्ग और नरक व्यर्थालाप है। तो सिर्फ परलोक और वह भूलोक के जैसा ही है, मगर कुछ वैपरीत्य के साथ।
जब मेरी बारी आई तो आगे बढ़ा। मेरे पीठ पीछे चलमेशी खड़ा था। उसे आतुरता थी कि मुझे क्या सजा मिलेगी! भूलोक में हम दोनों एक छात्रालय में रसोइए थे। आग की एक दुर्घटना में हम दोनों एक साथ मर गए थे।
“नाम?” एक क्लर्क ने पूछा। मगर चित्रगुप्त मेरी ओर देखा भी नहीं। वह एक मोटे सोफा में अधलेटा था।
क्लर्क को अपना नाम बताया।
“उम्र?”
“चालीस।”
“यहाँ चैन से रहूँगा, यह सोचकर आए हो?”
“नहीं, आग की दुर्घटना से जलकर राख हो गया, तभी आया।”
“एक बहाना है।” क्लर्क ने गुनगुनाया।
“यहाँ काम करना पड़ेगा, यों ही बैठना नहीं चाहिए।”
“ठीक है, मैं काम करने के लिए तैयार हूँ।” मैंने कहा।
“गाँव में क्या काम कर रहे थे?”
“खाना बनाता था।”
“ठीक है, वही काम यहाँ भी करो।” क्लर्क ने एक कागज पर लिखा और चित्रगुप्त का हस्ताक्षर कराया। फिर उस पर मुहर लगाकर मेरे हाथ में देते हुए कहा, “अंदर जाकर इसे दिखाओ, काम तुरंत आरंभ हो जाएगा।”
मैंने कागज ले लिया और चलमेशी की ओर देखते हुए कहा, “अंदर इंतजार करता हूँ।” फिर मैं अंदर गया। कुछ देर बाद चलमेशी आया और मेरे पास खड़ा हो गया। उसके चेहरे पर मुसकान थी।
“क्या बात है, क्यों हँस रहे हो?” मैंने चलमेशी से पूछा।
“मुझे रसोईघर के सुपरवाइजर का काम मिला है!” उसने कागज दिखाया। उसमें ‘चलमेशी, मेस सुपरवाइजर’ लिखा गया था। उसपर चित्रगुप्त का हस्ताक्षर और मुहर लगाया गया था। मुझे आश्चर्य हुआ। भूलोक में यह मेरे अधीन काम करता था। काम क्या करता? बड़ा आलसी था। सब काम मैं ही करता था।
“मैंने तुम्हारी बातें सुन ली।” कहते हुए चलमेशी हँसने लगा।
भूलोक में मृत्यु का इंतजार तो था, यहाँ वह भी नहीं है, सोचकर मैं उदास हो गया। मगर किससे कहूँ?
‘नवनीत’
दूसरा क्रॉस, अन्नाजी राव लेआउट,
प्रथम स्टेज, विनोबानगर,
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