अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के अनेक दायित्वों का निर्वहन। विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी में सक्रिय भूमिका। अध्यक्ष, डिवाइन कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज, हरिद्वार; प्रबंध निदेशक, डिवाइन इंटरनेशनल फाउंडेशन (मानवीय कौशल विकास, पर्यावरण एवं राष्ट्रवादी वैचारिक अधिष्ठान को समर्पित)। राष्ट्रीय संयोजक, दिव्य प्रेम सेवा मिशन।
कुंभ की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। इसके उद्भव के विषय में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। अमृत कुंभ का उल्लेख चारों वेदों में (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद), महाभारत, रामायण, गरुड़ पुराण तथा स्कंद पुराण में भी मिलता है।
मान्यता यह है कि उच्च कोटि के विद्वान् संत विभिन्न स्थानों से कुंभ मेलों के चारों स्थानों में नियमित अंतराल पर एकत्र होकर धार्मिक ग्रंथों पर वाद-विवाद किया करते थे तथा एक-दूसरे के साथ अपने विचारों व शोध का आदान-प्रदान किया करते थे।
कुंभ योग की तिथि व समय को निश्चित करने के लिए ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति को ध्यान में रखा जाता है। कुंभ प्रत्येक १२ वर्ष में हरिद्वार, प्र्रयागराज, नासिक व उज्जैन में मनाया जाता है।
१. जब बृहस्पति कुंभ राशि में व सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तो हरिद्वार में कुंभ पर्व मनाया जाता है।
२. जब बृहस्पति मेष राशि में तथा सूर्य व चंद्रमा माघ मास में मकर राशि में अमावस्या के दिन प्रवेश करते हैं तो प्रयागराज में कुंभ पर्व मनाया जाता है।
३. जब सूर्य व बृहस्पति सिंह राशि में स्थित होते हैं तो नासिक में कुंभ पर्व मनाया जाता है।
४. जब बृहस्पति सिंह राशि में तथा सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं तो उज्जैन में कुंभ पर्व मनाया जाता है।
‘अश्वमेध सहस्राणि वाजपेय शतानि च।
लक्षं प्रदक्षिणां पृथिव्याः कुम्भ स्नाने हि तत्फलम्॥’
अर्थात् एक हजार अश्वमेध, एक सौ वाजपेय यज्ञ और पृथ्वी की एक लाख प्रदक्षिणा के पुण्य के बराबर अकेले कुंभ स्नान का फल है। कुंभ भारतवर्ष का एक महान् सामाजिक और सांस्कृतिक उद्देश्य का पोषक पर्व है। जहाँ मनुष्य जाति अमृतमय तीर्थों पर एकत्र होकर संत, महात्माओं के दर्शनों तथा उनके द्वारा दिए गए ज्ञान का अमृत पान कर पुण्य की भागी बनती है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण इंद्र और अन्य देवता गणों की शक्ति जब क्षीण होने लगी तो वह सब भगवान् नारायण की शरण में गए और अपना सारा वृत्तांत उन्हें कह डाला। सारा वृत्तांत सुनने के पश्चात् भगवान् नारायण ने उन्हें समुद्र को मथने के लिए कहा। अतः देवता और दानव, दोनों ने मिलकर अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र का मंथन किया। मंथन के पश्चात् जब उसमें से अमृत का कलश निकला तो इंद्र का पुत्र जयंत वह कुंभ दानवों से बचाते हुए पृथ्वी लोक की ओर चल दिया। अमृत कलश को लेकर देवताओं और दैत्यों में संघर्ष हो गया और उस संघर्ष के दौरान छीना-झपटी में अमृत की बूँदें जिस मुहूर्त काल में जिन चार स्थानों पर गिरीं, वे स्थान हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन, ये सभी स्थान कुंभ क्षेत्र कहलाए।
मान्यता के अनुसार कुंभ काल के दौरान इन तीर्थों में स्नान, दान, पिंड दान आदि करने से मनुष्य को मृत्युलोक से मुक्ति की प्रािप्त होती है। अनादि काल से ही ऋषि-मुनियों, नागा संन्यासियों द्वारा अपनी-अपनी धर्म-ध्वजाएँ व अखाड़ों के प्रतीक चिह्न, ढोल-नगाड़ों के साथ हाथी, घोड़ों पर बैठकर इस मांगलिक कार्य में अपने शिष्यों के साथ पतित पावनी गंगा में स्नान करते हैं और देश की संस्कृति एवं सभ्यता को एक सूत्र में बाँधने का काम करते हैं। इसी कारण देश-विदेश से भारतीय हिंदू लोग इस अनुष्ठान में उत्साह के साथ प्रतिभाग करते हैं। यदि कोई विविधता में एकता देखना चाहता है तो कुंभ मेले से अच्छा उदाहरण और दूसरा नहीं हो सकता।
कुंभ भारतीय समाज का ऐसा पर्व है, जिसमें हमें एक ही स्थान पर पूरे भारत के दर्शन होते हैं। लघु भारत एक स्थान पर आकर जुटता है और हम सगर्व कहते हैं कि कुंभ विश्व का सबसे विशाल पर्व है। कुंभ की ऐतिहासिक परंपरा में देश व समाज को सन्मार्ग पर लाने के लिए ऋषियों, महर्षियों के विचार सदैव आदरणीय और उपयोगी रहे हैं। आर्यावर्त्त के पुराने नक्शे में शामिल देश भी तब कुंभ पर्वों के अवसर पर एकत्र होकर समाज के जरूरी नीति-नियमों को तत्कालीन शासकों को जानने के लिए ऋषियों की तरफ देखते थे और उसके पालन के लिए प्रेरित होते थे। देश के विभिन्न स्थलों पर शंकराचार्यों के नेतृत्व में हमारे मनीषी देश की नीति और नियम को तय कर समाज संचालित करते थे।
गंगा नदी संपूर्ण भारतवर्ष की जननी है, जो भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में पूजनीय है। ‘सर्वतीर्थमयी गंगा सर्व देव मयो हरि’ अर्थात् सारे तीर्थ गंगा में समाहित हैं। गंगा सदृश्य तीर्थ कोई है ही नहीं। तुलसीदासजी ने गंगा का वर्णन करते हुए लिखा है कि ‘धन्य देश सो जो सुरसरि’, वह देश धन्य है, जहाँ गंगा प्रवाहित होती है। गंगा हमारी ‘माँ’ है, जो हजारों वर्षों से इस देश के सांस्कृतिक प्रवाह को लेकर चलती आ रही है। गंगा एक विचार भी है, जो मनुष्य के जीवन में नई आशाओं का संचार भी करती है। इस गंगा ने केवल जल नहीं दिया, बल्कि संस्कृति दी, विचार दिया, दर्शन दिया, अध्यात्म दिया, एक सुंदर परंपरा दी। इसने देश की आध्यात्मिक परंपरा को जीवित रखा और जब कभी संकट आया तो लड़ने की प्रेरणा दी, शक्ति दी। देश-विदेशों से विभिन्न धर्मों को मानने वाली मानव जातियाँ कुंभ के अवसर पर गंगाक्षेत्र में आकर भारतीय समाज की संस्कृति, सभ्यता व एकता की साक्षी बनती हैं।
कुंभ पर्वों को मानने का तात्पर्य सामाजिक एकता से जुड़ा है, हमारे समाज को अपनी संस्कृति के साथ-साथ अपने देश की भौगोलिकता, सामाजिकता, ऐतिहासिकता और उसके समन्वय का बोध हो। केवल स्नान कर लेने से कुंभ पर्व का उद्देश्य पूरा नहीं होता, जब तक वैचारिक आदान-प्रदान न हो।
प्राचीन काल में कुंभ पर्व सामाजिक शिक्षा तथा धर्म के प्रचार-प्रसार का अत्युत्तम माध्यम था और आज भी है। यदि धार्मिक दृष्टिकोण से न देखकर सामाजिक दृष्टिकोण से देखें तो हमारे समाज का एक बहुत बड़ा कुटुंब कुंभ में सम्मिलित होकर भावी जीवन को सुधारने का प्रयत्न करता है। केवल स्नान कर लेने से कुंभ पर्व का उद्देश्य पूरा नहीं होता, जब तक वैचारिक आदान-प्रदान न हो और मनुष्य इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए यहाँ आकर देश के उत्थान की चर्चा, धर्म की चर्चा, अपनी पुरातन संस्कृति को कैसे जीवित रखा जाए तथा समाज को नई दृष्टि देकर उसका मार्गदर्शन कैसे किया जाए आदि की चर्चा इस महाकुंभ मेले से करता आया है। मनुष्य यहाँ से प्रेरणा लेकर अपने व्यक्तिगत जीवन को सही दिशा देकर लोक और परलोक दोनों को ही सुखमय और शांतिमय बनाने का प्रयास करते हैं। आज राष्ट्रीय एकता और भावनात्मक एकता का प्रचार हो रहा है, वैसा इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ।
कुंभ पर्व के संबंध में कई शब्दों का प्रयोग होता है। कभी महाकुंभ आया है, कभी कुंभ पर्व ही है। इस माहात्म्य से हमारे, पूर्वाचार्यों ने सारे देश की संस्कृति को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया था। चाहे दक्षिण का हो, चाहे उत्तर का हो, चाहे पूर्व का हो, चाहे पश्चिम का हो—राजनैतिक सत्ता अपने-अपने काल में इन कुंभों की व्यवस्था बनाकर समाज की सेवा करती आई है और भगवान् शंकराचार्य ने इस परंपरा को आगे बढ़ाने का कार्य किया है।
सेवा कुंज, दिव्य प्रेम सेवा मिशन, चंडीघाट,
हरिद्वार-२४९४०८ (उत्तराखंड)
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