होमवर्क का भूत

होमवर्क का भूत
गोलू : दस-बारह साल का बच्चा
माँ : पैंतीस-चालीस साल की महिला
(कोई किशोर बच्ची भी साड़ी पहनकर अभिनय कर सकती है)
भूत : पंद्रह-सोलह साल का किशोर बालक
 
(परदा खुलता है)
(मंच पर गोलू का प्रवेश। कंधे पर लदा 
भारी बस्ता उतारते हुए बड़बड़ाता है)
गोलू : (दर्शकों की ओर देखकर) समझ में नहीं आता कि हम बच्चों को बड़ों ने समझ क्या रखा है। इतनी किताबें, इतनी काॅपियाँ? बाप रे...पीठ दुखने लगती है, दम निकल जाता है। स्कूल में पढ़ो, फिर घर आकर होमवर्क करो। बस हर समय पढ़ते रहो। टी.वी. मत देखो, खेलने मत जाओ। कंप्यूटर पर मत बैठो। पढ़ो, पढ़ो, बस पढ़ो। ये भी कोई जिंदगी है? हुँह। मैं...तो कल से स्कूल ही नहीं जाऊँगा। हाँ, (मंच पर इधर-उधर घूमते हुए) बहाना कर दूँगा कुछ भी। पेट दर्द का बहाना...? लेकिन पकड़ में आ जाऊँगा। पिछली बार डैडी ने अपने दोस्त डॉक्टर को बुलाकर लंबी सी सुई लगवा दी थी। उई...अभी तक याद है वो सुई, (मुसकराता है) तो क्या करूँ?
(माँ का आवाज लगाते हुए प्रवेश। 
हाथ में गिलास लेकर प्रवेश)
माँ : अरे ओ गोलू, क्या कर रहा है मेरे लाल-पीले-हरे? (प्यार से गोलू का सिर सहलाते हुए) ले बेटा, एक गिलास गरमागरम दूध पी ले। और...अभी तू यहाँ खड़ा किससे बातें कर रहा था?
गोलू : (हड़बड़ाकर) कि...किसी से तो नहीं, माँ। बस ऐसे ही होमवर्क के बारे में सोच रहा था। याद कर रहा था कि क्या-क्या काम करना है अभी। माँ, हम बच्चों पर पढ़ाई का कितना बोझ बढ़ गया है। क्या आप लोगों को भी हमारी तरह भारी-भरकम बस्ता उठाना पड़ता था, इतना अधिक पढ़ना पड़ता था?  
माँ : (हँसते हुए) बिल्कुल नहीं बेटे। हम तुम्हारी तरह टेंशन का सामना नहीं करते थे। हमारा बस्ता हल्का होता था। लेकिन अब मजबूरी है। कॉम्पिटीशन का जमाना है, इसलिए कोर्स भी बढ़ गया है। हमारे समय कंप्यूटर नहीं था। अब कंप्यूटर आ गया है। लेकिन फिक्र मत कर बेटे। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। चल, थोड़ी देर टी.वी. में कार्टून वगैरह देख ले। फिर खाकर पढ़ना और उसके बाद सो जाना।
गोलू : हाँ माँ। सोना है, क्योंकि सुबह जल्दी उठकर स्कूल के लिए तैयार भी तो होना है।
माँ : (मुसकराते हुए) वाह बेटे, तू तो बड़ी समझदारी की बातें कर रहा है!
गोलू : (दर्शकों की तरह देखकर हँसता है और कहता है) आखिर बेटा किसका हूँ!
(दोनों हँसते हैं। फिर प्रस्थान। फौरन गोलू का प्रवेश। 
अँगड़ाई लेते हुए कुछ गुनगुनाता है। फिर दो चक्कर लगाता है)
गोलू : चलूँ। अब सोया जाए। माँ ने बिस्तर लगा दिया है। थक गया हूँ। अच्छी नींद आएगी। सुबह जल्दी उठना भी है। उफ, ये उँगलियाँ भी दर्द कर रही हैं। कितना सारा होमवर्क करना पड़ा। (दर्शकों की ओर देखकर हाथ फैलाता है) इत्ता सारा। स्कूल में इतनी पढ़ाई है तो पता नहीं कॉलेज में कितनी होगी? (हँसकर) मेरा तो कचूमर ही निकल जाएगा। हाय, ये सुबह रोज क्यों आ जाती है। काश, दो दिन बाद आती। (हँसता है) हफ्ते में तीन दिन ही स्कूल जाना पड़ता। फिर डटकर सोने का मजा  लेते। खैर, यह तो होने से रहा।
(गोलू मंच के बीचोबीच लेट जाता है। अब मंच पर हल्की-सी लाल रोशनी हो जाती है। कुछ देर में सफेद वस्त्र में भूत का प्रवेश। वह गोलू के पास आता है। उसे झुककर देखता है और हँसता है। फिर मंच के किनारे खड़ा होकर कहता है)
भूत : हाँ...हाँ...हाँ...यही है। बिल्कुल यही है वह बच्चा। इसी ने इंटरनेट के माध्यम से अपनी समस्या हम तक पहुँचाई थी। अभी जगाता हूँ इसे। बेचारा, चैन से सो रहा है। जगाऊँ या न जगाऊँ? जगा देता हूँ, तभी तो बात हो पाएगी। (गोलू के पास जाकर मधुर आवाज में कहता है) गोलू, अरे गोल-मटोल गोलू बेटे। देखो कौन आया है?
(भूत गोलू को हिलाता है। गोलू हड़बड़ाकर उठ बैठता है। सामने एक व्यक्ति को देखकर चौंकते हुए पूछता है)
गोलू : (हकलाते हुए)  क...कौन हैं आप? इतनी रात को यहाँ? मेरे कमरे में? (जोर से चीखता है) चो...चोर। माँ...पिताजी, घर में चोर घुस गया है। जल्दी आइए।
भूत : (हँसते हुए) हा...हा...हा। हम चोर नहीं हैं गोलू! हम भूत हैं, भूत।
गोलू : (रोने का अभिनय करते हुए) भू...भूत...? बाप रे! पिताजी, जल्दी आओ।
भूत : घबराओ नहीं। मैं सीधा-सादा भूत हूँ। तुमको कुछ नहीं करूँगा।
गोलू : मैंने भूतों के बारे में सुना है। वे बहुत डरावने होते हैं। (भूत का चेहरा देखते हुए) मगर...तुम तो वैसे नहीं हो? (हँसकर) तुम भूत नहीं हो। तुम मजाक कर रहे हो न?
भूत : मैं भूत ही हूँ। दिखाऊँ चमत्कार? देखो (ताली बजाए, तो सफेद लाइट जल जाए। फिर ताली बजाए, तो लाल लाइट जल जाए) देखा मेरा चमत्कार। मैं होमवर्क का भूत हूँ।
गोलू : (खुश होकर) तो फिर तुम मेरा होमवर्क निपटा दो न? मैं तुम्हें चॉकलेट खिलाऊँगा।
भूत : (नाराज होकर) तुम मुझे रिश्वत देना चाहते हो? यह बुरी बात है। मैं तुमसे बिना कुछ लिए तुम्हारी मदद करने आया हूँ।
गोलू : सच...? भूत अंकल आप मेरी मदद करेंगे? आप कितने अच्छे हैं।
(इतना बोलकर गोलू उसकी पीठ पर सवार हो जाता है। भूत उसे अलग करता है)
भूत : भूत से मजाक नहीं करते बेटा। मैं वापस चला जाऊँगा।
गोलू : सॉरी भूत अंकल। (अलग होकर) अच्छा, अब बोलिए, आप कैसी मदद करेंगे?
भूत : तुम जैसा बोला, वैसी मदद।
गोलू : तो फिर ऐसा कुछ कीजिए न कि कल से होमवर्क मिलना ही बंद हो जाए। मजा आ जाएगा।
भूत : नहीं, यह नहीं हो सकता। मैं तो होमवर्क का भूत हूँ। अगर होमवर्क नहीं रहेगा, तो मैं कहाँ रहूँगा। इसलिए होमवर्क जरूरी है। यही मेरी मजबूरी है।
गोलू : (रूठते हुए) तो फिर तुम मेरी मदद क्या करोगे? जाओ, मुझे चैन से सोने दो। पूरा मूड चौपट कर दिया। हाँ नहीं तो। हुँह। (सोने लगता है)
भूत : (हँसकर) नाराज हो गए बालक? अरे, तुम चिंता क्यों करते हो? होमवर्क से घबराते क्यों हो? तुम्हारा सारा-का-सारा होमवर्क मैं कर दिया करूँगा। अब तो खुश?
गोलू : वाव? क्या ऐसा हो सकता है? तब तो मजा आ जाएगा। अब मिले जितना होमवर्क मिलना है। आप मेरा बोझ हल्का कर देंगे, तो मैं आपको रोज थैंक्यू बोला करूँगा। माँ कहती है कि कोई तुम्हारी मदद करे तो उसे थैंक्यू बोलना चाहिए। तो भूत अंकल, आपको एडवांस में थैंक्यू।
भूत : हे...हे...हे। मेंशन नॉट। लेकिन मेरी एक शर्त है।
गोलू : बोलो, क्या शर्त है?
भूत : यह कि जब मैं तुम्हारा होमवर्क करूँगा, तब तक तुम अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ोगे। आजकल के बच्चे केवल टी.वी. देखते हैं। चैनल बदलते रहते हैं। पढ़ते नहीं। हमारे लेखकों ने कितनी अच्छी-अच्छी किताबें लिखी हैं। बच्चों के लिए खूब सारा साहित्य है। उसे पढ़ना होगा।
गोलू : मैं कोर्स की किताबें तो रोज पढ़ता हूँ। उसके अलावा भी किताबें पढ़नी पड़ेंगी।
भूत : बिल्कुल...और वे इसलिए कि कोर्स की किताबों के बाहर भी एक सुंदर दुनिया है...किताबों की। तुम उनको देखो, पढ़ो और अपना जीवन गढ़ो। बोलो, मंजूर है?
गोलू : (चेहरा लटकाकर) मंजूर है। इसमें क्या तकलीफ होगी। मैं रोज नई-नई किताबें पढ़ा करूँगा। तुम जो किताब कहोगे, उसे पढ़ूँगा।
भूत : शाबाश, मेरे शेर। तो लाओ, अपने होमवर्क। उन्हें मैं निबटाता हूँ और लो ये पुस्तकें। (भूत मंच के पीछे जाता है और कुछ किताबों के साथ लौटता है) तुम इन्हें पढ़ो। मैं होमवर्क कर रहा हूँ। ध्यान रहे, अगर तुम सोने लगोगे तो मैं भी सोने लगूँगा, हाँ।
गोलू : (पुस्तकें लेकर उन्हें देखता है) बिल्कुल नहीं सोऊँगा। पढ़ूँगा। (मंच के किनारे आकर दर्शकों की ओर देखते हुए) अरे देवा-रे-देवा, कहाँ फँस गया? होमवर्क से छूटा तो इन किताबों ने घेर लिया? मतलब ये है कि पढ़ने से पीछा नहीं छूटने वाला? खैर, होमवर्क से बचना है तो इनको पढ़ना ही पड़ेगा, बाबा।
(गोलू एक किताब खोलकर पढ़ रहा है। दूसरे कोने में भूत बना पात्र गोलू का बस्ता खोलकर होमवर्क कर रहा है। गोलू और भूत पर रोशनी पड़ रही है। बाकी मंच पर अँधेरा या लाल प्रकाश। गोलू को बीच-बीच में नींद आ रही है। वह बार-बार इधर-उधर लुढ़कता है, फिर सँभल जाता है। आँखें मलते हुए किताब पढ़ रहा है। भूत उसे गौर से देख रहा है और मुसकरा रहा है। कुछ देर बाद गोलू हाथ में रखी किताब को बंद करके दूसरी तरफ रख देता है। भूत भी लिखना बंद करके गोलू का बस्ता बंद कर देता है)
भूत : (अँगड़ाई लेते हुए) बाप रे, बहुत मेहनत करते हो तुम लोग। तुम लोगों का तो तेल निकल जाता होगा। बच्चों को इतना होमवर्क देना उनके साथ अन्याय है। बेचारे स्कूल भी जाएँ और घर लौटकर इतना अधिक होमवर्क भी करें? बहुत बेइनसाफी है। मैं इसके खिलाफ आवाज उठाऊँगा। मगर मेरी आवाज सुनेगा कौन? मैं तो भूत हूँ। हा...हा...हा...हा।
गोलू : थैंक्यू भूत अंकल। आपने मेरा काम कर दिया। आप कितने अच्छे हैं। रोज आया कीजिए। मैं रोज किताबें पढ़ूँगा और आप मेरा होमवर्क कर दिया करना।
भूत : वाह बेटे, मुझे बकरा समझ लिया है क्या? मैं देख रहा था, तुम पढ़ नहीं रहे थे, पन्ने पलट रहे थे। खैर, चलो, इसी बहाने तुमने कोर्स के बाहर की किसी पुस्तक को उठाया, पलटाया तो सही। मुझे विश्वास है कि तुम टी.वी. से चिपकने के बजाय ऐसी ही किताबों से चिपकोगे। इससे तुम्हारा ज्ञान बढ़ेगा। समझ बढ़ेगी।
गोलू : ठीक कहते हैं अंकल आप। मैं मन लगाकर पढ़ूँगा। पिताजी के पास ऐसी अनेक पुस्तकें रखी हैं। अब मैं उनको रोज पढ़ा करूँगा। टी.वी. कम देखूँगा, प्रॉमिस।
भूत : ये हुई न बात। तो चलता हूँ। कल फिर आऊँगा। तुम्हारा होमवर्क करने। मगर पूरा-का-पूरा नहीं करूँगा। तुमको भी साथ देना होगा और ध्यान रखो, अपना काम खुद करना चाहिए। मैं जानता हूँ कि आजकल बहुत सी माताएँ बच्चों के होमवर्क करती हैं और बच्चे टी.वी. देखते रहते हैं। ऐसा करने से बच्चे का विकास कैसे होगा? बच्चों का काम बच्चों को ही करने दो। (गोलू के कंधे पर हाथ रखकर) अच्छा गोलू, अब मैं चलूँ। तुम चैन से सो जाओ अब।
गोलू : जी, बहुत नींद आ रही है।
(हाथ हिलाकर भूत का प्रस्थान। गोलू अपनी निर्धारित जगह पर 
लेट जाता है। कुछ देर बाद उसकी माँ की 
आवाज गूँजती है और माँ का प्रवेश)
माँ : अरे गोलू बेटे, अब तक सो रहा है। कितनी देर से आवाज लगा रही हूँ। आज तू बड़ी गहरी नींद में था। कहीं कोई सपना तो नहीं देख रहा था। (मुसकरा कर बोलती है) सपने में कोई परी आई थी क्या?
गोलू : परी नहीं, भूत अंकल आए थे माँ। वे मेरा होमवर्क कर रहे थे। देखो, मेरा होमवर्क उन्होंने ही किया है।
(गोलू बस्ता खोलता है। अपनी एक कॉपी देखता है और चेहरा लटकाकर) अरे, यह तो कोरी-की-कोरी है। भूत अंकल ने कहा था कि मैंने तुम्हारा होमवर्क पूरा कर दिया है।
माँ : (हँसकर) बेटा, तुमने सपना देखा था और यह मत भूलो कि हमें अपना काम खुद करना पड़ता है। कोई दूसरा नहीं आएगा करने। दूसरे के भरोसे रहने वाले कभी आगे नहीं बढ़ते। समझे न? चलो, फटाफट तैयार हो जाओ। तुम्हारी बस तो छूट गई है। आज तुम्हारे पापा को ही तुम्हें स्कूल छोड़ना पड़ेगा।
गोलू : (मंच के इधर-उधर घूमकर बोला) कितना प्यारा सपना था।...काश, ये सपना सच हो जाता। सचमुच कोई भूत होता और वह आता, फिर मेरा होमवर्क पूरा कर देता।
माँ : बेटा, यह होमवर्क का भूत है। हर बच्चे के दिमाग में सवार रहता है। इसलिए उनको सपना आता है कि कोई उनका होमवर्क पूरा कर रहा है। लेकिन सच्चाई कुछ और होती है। हमें अपना काम खुद करना पड़ता है। बड़ा आदमी बनना है तो खुद लगना होता है। चलो, अब तैयार हो जाओ।
गोलू : ठीक है माँ। जा रहा हूँ। लेकिन मेरे होमवर्क का क्या होगा?
माँ : (हँसकर) वह मैं नहीं करने वाली। आएँगे तेरे भूत अंकल, वही करेंगे। जा बेटे, स्कूल में डाँट खाने के लिए तैयार रहो।
गोलू : (हँसते हुए) इसमें कौन सी नई बात है। आज फिर खा लूँगा।
माँ : शैतान कहीं का। मारूँगी, हाँ।
 
(इतना बोलकर माँ हँसकर गोलू के पीछे दौड़ती है। 
गोलू भी हँसते हुए मंच के एक-दो चक्कर लगाता है।)
(परदा गिरता है)
 
 
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