तेरा है अभिनंदन

ऐ वीर जवान
ऐ सैनिक! फौजी, जवान, है तेरा नित अभिनंदन।
अमन-चैन का तू पैगंबर, तेरा है अभिवंदन॥
गरमी, जाड़े, बारिश में भी, तू सच्चा सेनानी
अपनी माटी की रक्षा को, तेरी अमर जवानी,
तेरी देशभक्ति लखकर के, माथे तेरे चंदन
अमन-चैन का तू पैगंबर, तेरा है अभिवंदन।
आँधी-तूफाँ खाते हैं भय, हरदम माथ झुकाते
रिपु तो तुझको देख सिहरता, घुसपैठी थर्राते,
सीमाओं के प्रहरी तू तो, वीर शिवा का नंदन
अमन-चैन का तू पैगंबर, तेरा है अभिवंदन।
तू सीमा पर डटा हुआ पर, हम त्योहार मनाते
तू जगता, मौसम से लड़ता, हम नींदों में जाते,
तेरे कारण खुशहाली है, किंचित् भी ना क्रंदन
अमन-चैन का तू पैगंबर, तेरा है अभिवंदन।
मात-पिता, बहना-भाई सब, तेरे भी हैं नाते
तू पति है, तो पुत्र भी चोखा, तुझको सभी सुहाते,
पर अपने मुल्क़ की ख़ातिर, छोड़े तू सब बंधन
अमन-चैन का तू पैगंबर, तेरा है अभिवंदन।
तुझसा कोई और न दूजा, सैनिक तू यशगानी
केवल इस माटी की सेवा की, तूने मन में ठानी,
बोले नित जयहिंद का नारा, तेरा पावन तन-मन
अमन-चैन का तू पैगंबर, तेरा है अभिवंदन।
लोकतंत्र है तुझसे रक्षित, सेवा में तू हर पल
लिए समर्पण, त्याग, निष्ठा, तू गंगा की कल-कल,
परमवीर तू, महाबली भी, गाता है जन-गण-मन
अमन-चैन का तू पैगंबर, तेरा है अभिवंदन।
मेरा भारत महान्
चंद्रयान पहुँचा चंदा पर, तीन रंग फहराए।
शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाए॥
जीरो को खोजा था हमने, आर्यभट्ट पहुँचाया
छोड़ मिसाइल शक्ति बने हम, सबका मन लहराया,
सबने मिल जयनाद गुँजाया, जन-गण-मन सब गाए
शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाए।
मैं महान् हूँ, कह सकते हम, हमने यश को पाया
एक महागौरव हाथों में, आज हमारे आया,
जिनको नहीं सुहाते थे हम, उनको हम हैं भाए
शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाए।
जो कहते थे वे महान् हैं, उनको धता बताया
भारत गुरु है दुनिया भर का, यह हमने जतलाया,
शान तिरंगा-आन तिरंगा, गीत लबों पर आए
शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाए।
अंधकार में किया उजाला, ताक़त को बतलाया
जो समझे थे हमको दुर्बल, उन पर भय है आया,
जोश लिए हर जन उल्लासित, हम हर दिल पर छाए
शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाए।
ज्ञान और विज्ञान रचे हम, हमने शशि को पाया
आशाओं का सूरज दमका, हमने नवल रचाया,
नया और अनुपम-मंगलमय, विजय-ध्वजा फहराए
शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाए।
सरस्वती-वंदना
मातु शारदे नमन कर रहा, तेरा तो अभिनंदन है।
ज्ञानमातु, हे हंसवाहिनी! बार-बार पग-वंदन है॥
वाणी तुझसे ही जनमी है, तुझसे ही सुर बिखरे हैं
तू विवेक को देने वाली, जड़-चेतन सब निखरे हैं,
यश पाता हर कोई तुझसे, लगता माथे चंदन है
ज्ञानमातु, हे हंसवाहिनी! बार-बार पग-वंदन है॥
सत्य सभी पाते हैं तुझसे, धर्म-चेतना मिलती है
सद् आचारों की रौनक हो, बगिया नित ही खिलती है,
जिस पर माँ करती हैं करुणा, बन जाता सद् नंदन है
ज्ञानमातु, हे हंसवाहिनी! बार-बार पग-वंदन है।
गहन तिमिर से आप बचाकर, राह प्रगति की देती हैं
अच्छाई-सच्चाई को नित, आप सदा ही सेती हैं,
जिस पर दया मातु करती हैं, वहाँ नहीं फिर क्रंदन है
ज्ञानमातु, हे हंसवाहिनी! बार-बार पग-वंदन है।
कलम हाथ है, पुस्तक शोभित, शांतचित्त नित माता है
जिसने वैचारिकता पाई, वह माता को भाता है,
हर्षित करतीं मातु महकता, उसका जीवन-उपवन है
ज्ञानमातु, हे हंसवाहिनी! बार-बार पग-वंदन है।
है वसंत की मधुर पंचमी, सारे जग में रौनक है
मौसम भी तो हर्षाता है, खुशियों की नित दस्तक है,
हुईं अवतरित मातु शारदे, उल्लसित जन-जन है
ज्ञानमातु, हे हंसवाहिनी! बार-बार पग-वंदन है।
मातु शारदे आप धन्य हैं, हर जन को वर देती हो
जहाँ शिथिलता, कर्महीनता, दुर्विकार हर लेती हो,
धरा और नभ में रहती हो, यह जग तुमसे पावन है
ज्ञानमातु, हे हंसवाहिनी! बार-बार पग-वंदन है।


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