दिल्लगी

हमारे बुजुर्ग बिना किसी को ठेस पहुँचाए अलग ही अंदाज में दिल्लगी करते थे। हमारे बुजुर्गों द्वारा की जानेवाली दिल्लगी जैसा मजा आजकल की दिल्लगी में कहाँ! फिर भी दिल्लगी करने का अपना अलग ही मजा है। किसी को अपनी मूर्खता पर हँसने के लिए मजबूर करना, नाराज होने पर उसके साथ कोई नई दिल्लगी कर डालना।

अपनी जिंदगी में मैंने कई बार दूसरों के साथ दिल्लगी की है, मेरे साथ भी कई बार दिल्लगी हुई है। कुछ तो बहुत ही मजेदार थीं। अक्सर मेरी दिल्लगी हँसी-ठिठोली तक ही सीमित होती थी, फिर भी कभी-कभी डरावनी भी हो जाती थी। एक बार तो मेरी दिल्लगी के शिकार की मौत ही हो गई थी। हालाँकि उसकी मौत से किसी का नुकसान नहीं हुआ था। उसके बारे में फिर कभी बात करूँगा। न तो वह अच्छी दिल्लगी थी, न ही उसके बारे में बताना आसान काम है। यह वाकया पेरिस की एक बस्ती का है, जिन लोगों ने इसे देखा था, वे उस वाकये को याद कर आज भी हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाते हैं, भले ही शिकार की मौत हो गई थी। ईश्वर! उसकी आत्मा को शांति प्रदान करे।

आज मैं दिल्लगी के ऐसे ही दो किस्से बताने जा रहा हूँ। एक दिल्लगी का शिकार मैं था, जबकि दूसरी दिल्लगी को मैंने अंजाम दिया था। मैं पहली दिल्लगी का किस्सा बताता हूँ। इसका शिकार मैं खुद था, इसलिए मुझे इसमें ज्यादा हँसनेवाली बात नहीं दिखाई देती है।

कुछ दोस्तों ने मुझे पिकार्डी में अपने साथ कुछ सप्ताह बिताने के लिए आमंत्रित किया था। वे सब भी दिल्लगी करने में मेरी ही तरह माहिर थे (इसी कारण से उनके साथ दोस्ती थी)।

पिकार्डी पहुँचने पर उन्होंने बड़ी गरमजोशी के साथ मेरा स्वागत किया। बंदूक से गोलियाँ दागीं, चुंबनों की भरमार कर दी, मेरे साथ खूब धींगा-मुस्ती की। यह देखकर मेरे मन में संदेह उत्पन्न हो गया। मन ही मन बोला, ‘बूढ़े लोमड़, होशियार! दाल में कुछ काला है।’

डिनर के समय वे सब बेतहाशा हँसते रहे। मैं समझ गया था, ‘बिना कारण नहीं हँस रहे हैं, दिमाग में जरूर कोई खुराफात चल रही है और वे सब मुझे अपना शिकार बनानेवाले हैं।’ मैं पूरी शाम अपने आपको उनसे बचाता रहा। प्रत्येक व्यक्ति, यहाँ तक कि नौकरों को भी, शक की नजर से देख रहा था।

रात को दोस्त मुझे बेडरूम तक छोड़ने आए और ‘गुडनाइट’ कहा। मैं हैरान और परेशान था। कमरे का दरवाजा बंद करने के बाद हाथ में मोमबत्ती लिये कमरे के बीचोबीच खड़ा था। बाहर हाल से आ रही उन लोगों की आवाजें सुनाई दे रही थीं। वे आपस में खुसुर-फुसुर कर रहे थे। बेशक वे मेरे ऊपर नजर रखे हुए थे। मैंने कमरे की दीवारें देखीं, फर्नीचर, छत, फर्श का कोना-कोना टटोला, परंतु कोई भी ऐसी-वैसी बात दिखाई नहीं दी। कमरे के बाहर चहलकदमी की आवाज आ रही थी। जरूर वे चाबी के छेद से अंदर झाँक रहे थे। अचानक खयाल आया कि कहीं मोमबत्ती न बुझ जाए और मैं अँधेरे में बैठा रहूँ। मैंने सारी मोमबत्तियाँ जला दीं। दोबारा चारों तरफ देखा, लेकिन कुछ नहीं मिला। खिड़कियों-दरवाजों का ध्यान से मुआयना करने के बाद मैंने सावधानी के साथ दरवाजे बंद कर दिए। पर्दे खींचकर एक कुरसी उनके आगे रख दी। कोई उस रास्ते से आने की कोशिश करेगा तो मुझे आवाज सुनाई देगी। बहुत ध्यान से कुरसी पर बैठ गया। डर रहा था कि बैठते ही कुरसी नीचे धँस जाएगी, लेकिन कुरसी ठोस, सही-सलामत थी। बिस्तर पर लेटने की हिम्मत नहीं हो रही थी। वक्त गुजर रहा था। मुझे लगा कि मैं खुद अपना मखौल उड़ा रहा हूँ। अगर वे मेरे ऊपर नजर रखे हुए हैं, जो कि मेरे विचार में वे रख रहे थे तो वे मेरी इन बेहूदी हरकतों पर दिल खोलकर हँस रहे होंगे। मैंने बिस्तर पर लेटने का फैसला कर लिया। मैं दीवार में बने आले के पास गया। मुझे बिस्तर पर खासतौर पर शक हो रहा था। हो सकता है मेरे ऊपर गिराने के लिए वहाँ पर पानी की बाल्टी रखी हुई हो या फिर मेरे लेटते ही बेड टूट जाए। भारी-भरकम परदों को खींचा, परंतु वे गिरे नहीं। अपने दिमाग में उन सब दिल्लगियों को दोहरा रहा था जो मैंने औरों के साथ की थीं। मेरे साथ क्या होने वाला था? मैं उससे बचना चाहता था।

तभी मेरे दिमाग में एक विशेष योजना आई। मैंने धीरे से बेड के ऊपर से गद्दों को खींचा। वे चादर-कंबल समेत नीचे आ गए। उन्हें खींचकर दरवाजे के साथ सटाकर बिछा दिया। अच्छी तरह से बिस्तर लगाया, सारी मोमबत्तियाँ बुझा दीं और बिस्तर में घुस गया। लेटने के बाद भी एक घंटा नींद नहीं आई। जरा सी आहट पर चौंक उठता था। सबकुछ शांत था। आखिरकार मुझे नींद आ गई। मैं कुछ देर तक गहरी नींद सोता रहा कि अचानक चौंककर उठ बैठा। मेरे ऊपर कोई भारी चीज आ गिरी थी, साथ ही गरम-गरम तरल पदार्थ मेरी गर्दन और छाती पर तैर रहा था। मैं दर्द से चिल्लाया। कानों में असहनीय शोर गूँजा, मानो बरतनों की पूरी अलमारी गिर गई हो। भारी वजन के नीचे मेरा दम घुटा जा रहा था। मैंने हाथ से उस भारी चीज को छूने की कोशिश की। हाथ में एक चेहरा, एक नाक और मूँछें आईं। धक्का मारकर बड़ी जोर से दूर धकेल दिया। जवाब में मेरे ऊपर ताबड़तोड़ घूँसे पड़ने लगे। तेजी से बिस्तर से उठकर बाहर हाल में भागा।

हैरानी के साथ देखा कि सूरज सिर पर चढ़ आया था। सब लोग शोर का कारण जानने के लिए ऊपर आ रहे थे। नौकर बिस्तर के ऊपर फैले टूटे बरतनों और ट्रे को उठाने की कोशिश कर रहा था। वह मेरे लिए नाश्ता लेकर आया था, लेकिन मेरे नए बिस्तर में अटककर नाश्ते के साथ-साथ वह भी मेरे ऊपर आ गिरा था।

दरवाजे बंद करने, परदे खींचने तथा कमरे के बीच में सोने की जो सावधानी बरती थी, वह सब बेकार गई। जिस बात से बच रहा था, वह होकर ही रही।

उस दिन वे सब मुझ पर खुलकर हँसे।

दूसरी दिल्लगी मेरी जवानी के दिनों की है। मैं पिकार्डी के पुराने किले में हमेशा की तरह अपने घर पर छु‌िट्ट‍याँ बिता रहा था। काॅलेज में मेरा दूसरा सिमेस्टर खत्म हुआ था। मुझे केमिस्ट्री विशेष रूप से फॉस्फोरस-द-कैल्सियम के मिश्रण में रुचि थी। यह पानी डालने पर धमाके के साथ आग पकड़ लेता था और फिर अजीब सी गंधवाली लपटें निकलने लगती थीं। मैं यह पाउडर अपने साथ थोड़ी मात्रा में ले आया था, ताकि छु‌िट्ट‍यों में किसी के साथ दिल्लगी कर सकूँ।

हमारे घर पर मादाम ड्यूफार नामक बूढ़ी औरत आया करती थी। वह गुस्सैल, झगड़ालू और चिड़चिड़े स्वभाव की थी। नहीं जानता क्यों? पता नहीं क्यों वह मुझसे नफरत करती थी। मैं जो भी करता या कहता, वह हमेशा उसका गलत मतलब निकालती। मेरी बुराई करने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देती थी। बूढ़ी खूसट! साठ साल से ज्यादा उम्र में भी वह ब्राउन बालों का खूबसूरत विग लगाती थी। गुलाबी रिबनवाली हास्यास्पद छोटी-सी कैप पहनती थी। अमीर होने के कारण सब उसकी इज्जत करते थे। मैं दिल में उससे नफरत करता था। बदला लेने के खयाल से उसके साथ दिल्लगी करने की ठानी।

मेरा हमउम्र चचेरा भाई हमारे पास आया हुआ था। मैंने अपनी योजना उसको बताई, परंतु वह डर गया। एक रात जब सब लोग नीचे थे, मैं धीरे से मादाम ड्यूफार के कमरे में घुस गया। एक डिबिया ढूँढ़कर उसमें थोड़ा सा कैल्सियम फॉस्फेट रख दिया। रखने से पहले यह अच्छी तरह से जाँच लिया था कि डिबिया एकदम सूखी थी। उसके बाद मैं दुछत्ती पर चढ़कर तमाशे का इंतजार करने लगा।

थोड़ी देर के बाद सब ऊपर अपने-अपने बेडरूम में चले गए। एकदम शांति छा जाने तक मैं वहाँ दम साधे खड़ा रहा। फिर बिना आवाज किए नंगे पाँव नीचे आ गया। मादाम ड्यूफार के कमरे के आगे खड़ा होकर चाभी के सूराख से अपने दुश्मन की हरकतें देखने लगा।

वह अपनी चीजें रख रही थी, ड्रेस उतारकर सफेद गाउन पहन लिया था। उसके बाद उसने एक गिलास में पानी डाला और अपने मुँह में पूरा हाथ डालकर, मानो अपनी जीभ बाहर खींच रही हो, कोई गुलाबी और सफेद चीज निकालकर गिलास में डाल दी। मैं बुरी तरह से डर गया था, लेकिन जल्दी ही समझ गया कि वे उसके नकली दाँत थे। उसके बाद उसने अपना विग उतारा। उसके सिर पर कुछ छितरे हुए सफेद बाल दिखाई दे रहे थे। यह सब देखकर मुझे जोर से हँसी आ रही थी। वह नीचे झुककर प्रार्थना करने लगी। उसके बाद उसने मेरी बदला लेनेवाली डिबिया उठा ली थी। मैं इंतजार कर रहा था, दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।

एक हलकी सी आवाज और फिर कई धमाके सुनाई दिए। मैंने मादाम ड्यूफार को देखा। उसका चेहरा देखनेवाला था। उसने अपनी आँखें खोलीं, बंद कीं, फिर दोबारा खोलकर देखा। सफेद पाउडर से चटपट धमाकों की आवाज आ रही थी। सफेद, घना धुआँ रहस्यात्मक ढंग से ऊपर छत की तरफ जा रहा था।

बेचारी बूढ़ी औरत सोच रही होगी कि यह किसी शैतान की कारगुजारी थी या फिर उसको अचानक किसी भयंकर बीमारी ने जकड़ लिया था। जो भी हो, वह वहाँ पर डरी हुई चुपचाप खड़ी थी। उसकी नजर उस जादुई दृश्य पर टिकी थी। अचानक वह चिल्लाकर फर्श पर गिरकर बेहोश हो गई। मैं अपने कमरे में भाग गया। बिस्तर में घुसकर आँखें बंद कर लीं। अपने आपको तसल्ली दे रहा था कि मैं कमरे से बाहर ही नहीं गया था, न ही मैंने कुछ देखा था।

‘वह मर गई है,’ मैंने अपने आप से कहा, ‘मैंने उसे मार दिया है।’ मैं बेचैनी से बाहर से आ रही कदमों की आहट सुन रहा था। बातें करने और हँसने की आवाज सुनाई दी। उसके बाद जाना कि मेरे पिताजी मेरे कान जोर से उमेठ रहे थे।

दूसरे दिन जब मादाम ड्यूफार नीचे आईं, तब उनका रंग पीला पड़ा हुआ था। वे पानी के गिलास पर गिलास पिए जा रही थीं। शायद वे उस आग को बुझाने की कोशिश कर रही थीं, जो उनके खयाल में उनके अंदर लगी हुई थी। डॉक्टर ने उनको विश्वास दिलाया कि चिंता की कोई बात नहीं थी। उस दिन के बाद से जब भी कोई उनके सामने बीमारी के बारे में बात करता, वे लंबा साँस भरकर कहतीं, ‘‘काश! तुम जान पाते कि दुनिया में कैसी-कैसी अजीबोगरीब बीमारियाँ हैं।’’

मूल  : गाय द मोपासा
संपादक : प्रमिला गुप्‍ता

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