मेडम का डॉगी

मेडम का डॉगी

रमण मेकवानसुपरिचित लेखक श्री रमणभाई मेकवान का जन्म फरवरी १९४३ में गुजरात के आणंद जिले में हुआ। वे अमूल डेरी, आणंद में तकनीशियन रहे। पिछले पच्चीस वर्षों से वे साहित्य-साधना में रत हैं। उनके गुजराती भाषा में तीस उपन्यास व चार कहानी-संग्रह प्रकाशित हुए हैं। इसके अलावा विभिन्न गुजराती पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं। यहाँ उनकी एक चर्चित गुजराती कहानी का हिंदी रूपांतर प्रस्तुत कर रहे हैं।

राजेंद्र निगम: सुपरिचित लेखक। लेखन के अतिरिक्त गुजराती से हिंदी व अंग्रेजी से हिंदी के अनुवाद कार्य में प्रवृत्त। गुजराती से हिंदी में कई कहानियाँ देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। विभिन्न लेखकों व विषयों की गुजराती से हिंदी में अनुवादित बारह पुस्तकें प्रकाशित। संप्रति बैंक ऑफ महाराष्ट्र में प्रबंधक पद से स्वैच्छिक सेवा-निवृत्त‌ि।

 

मेडम रेणुका ने कार पार्क की, दरवाजा खोला और उसके साथ ही उनका डॉगी छलाँग लगाकर नीचे कूद गया और सीधा दौड़कर ऑफिस की दहलीज पर खड़ा हो गया। चपरासी मोहन, जो मेडम के केबिन के सामने ही बैठा था, उसने डॉगी को देखा और बिदक गया। वह खड़ा हुआ और केबिन की ओर चल दिया।

मोहन को मेडम का डॉगी बिल्कुल भी पसंद नहीं था। डॉगी आकर सीधे उसकी गोद में बैठ जाता। उसके गंदे पैरों से मोहन के सफेद कपड़ों पर काले-काले दाग पड़ जाते। डॉगी उसका हाथ व मुँह चाटता। उसके बदबूदार मुँह से मोहन को उबकाई आने लगती। एक बार तो उसकी चप्पल की नई पट्टी को डॉगी ने चबा डाला और तब मोहन को खुले पैर अपने घर जाना पड़ा। उसे डॉगी से बहुत घिन थी, लेकिन डॉगी मेडम का था। मेडम को खुश रखने के लिए मोहन यह सब सहन कर लेता।

डॉगी का बर्ताव नवीन के साथ भी वैसा ही था। लेकिन नवीन को डॉगी के साथ सामंजस्य था, बल्कि वह तो डॉगी के साथ मस्ती करता, उसे गोदी में बिठाता। नवीन उसके बच्चों के लिए जहाँ दो रुपए खर्च करने पर भी हिचकता था, वहीं मेडम के डॉगी के लिए वह विशेष बिस्कुट लाकर खिलाता। डॉगी के लंबे घने व रुई जैसे सफेद बालों पर अपने हाथ घुमाता तो वह कभी डॉगी के मुँह पर पप्पी भी करता। नवीन को ऐसा करते देख मोहन को सूग चढ़ती और उसे नवीन पर बहुत गुस्सा आता।

चपरासी मोहन सहित ऑफिस में कुल पंद्रह लोगों का स्टाफ था। इनमें मेडम सहित चार स्त्रियाँ थीं। नवीन सबसे पुराना था, इसलिए उसका स्टाफ पर रुआब रहता। वैसे यदि देखा जाए तो सबसे पुराना कर्मचारी मोहन था। लेकिन चपरासी मोहन पूरे ऑफिस और ऑफिस में आनेवाले मुलाकातियों को चाय आदि पेश करता था, फाइलों को एक मेज से दूसरी मेज पर रखता था और उसे मेडम सहित पूरे ऑफिस में दबकर रहना पड़ता था, अतः उसकी सीनियरिटी का कोई महत्त्व नहीं था। अन्यथा मेडम के पिताजी ने जब ऑफिस शुरू किया था, तब सबसे पहले उन्होंने मोहन को ही लिया था। मेडम के पिताजी ने ऑफिस की शुरुआत मोहन की मदद से ही की थी। लेकिन मोहन कम पढ़ा-लिखा था, इसलिए उसे चपरासी की तरह रखा। उसके बाद नवीन आया। नवीन के बाद तो कई आए और गए। परंतु इस समय सबसे पुरानों में मोहन व नवीन हैं। मेडम भी दो ही वर्ष से हैं, उनके पिताजी को घातक हृदयाघात हुआ और उसके बाद ऑफिस उन्होंने अपने हाथों में ले ली।

पासपोर्ट निकलवाना, विदेश जानेवालों के लिए वीजा दिलवाना और विदेशी मुद्रा के विनिमय से संबंधित सरकारी एजेंसी का काम इस ऑफिस के द्वारा होता था। नगर में इस तरह का काम करनेवाला अन्य कोई ऑफिस नहीं था। इसलिए दिन में लोगों की बहुत भीड़ रहती थी। पूरे दिन ऑफिस में बहुत काम रहता था।

मेडम रेणुका ने एम.काम. किया और फिर उसके लिए अच्छे जीवनसाथी की खोज उसके पिताजी ने आरंभ की। रेणुका की इच्छा विवाह करने की नहीं थी। पिता ने जब बहुत समझाया, तब किसी तरह वह सहमत हुई। नजदीक के एक नगर में रहनेवाले वसंत के साथ उसका रिश्ता तय किया। वसंत सुंदर था। ऊँचे वेतन के साथ उसकी सरकारी नौकरी थी। वसंत की वृद्ध माँ के अतिरिक्त उसकी कोई जवाबदारी नहीं थी। रेणुका ने वसंत के साथ घर बसाया। लेकिन रिश्ते मुश्किल से छह माह ही टिके। वसंत बहुत अधिक कामी था और उसकी इस प्रकृति से रेणुका परेशान हो गई। वैसे रेणुका स्वभाव से स्वमानी व स्वच्छंदी थी। पति के रूप में वसंत की पराधीनता सहन करने के लिए वह तैयार नहीं थी। पति के रूप में वसंत उसके हक को भोगने की जिद पर रहता और इसके फलस्वरूप दोनों के बीच कलह होती। वसंत बहुत गुस्सा होता और रेणुका पर हाथ भी उठा देता। एक रात उसने रेणुका को बहुत मारा और तब रात में ही उसने रोते-रोते अपने पिता को फोन किया। दूसरे ही दिन सुबह उसके पिताजी गाड़ी लेकर आए और रेणुका पहने हुए कपड़ों में ही गाड़ी में बैठ गई। करीब एक माह के बाद वसंत लेने के लिए आया, बहुत भावनाएँ व्यक्त कीं। उसने रेणुका व उसके पिता से माफी माँगी और तब पिता ने उसे पति-घर जाने के लिए समझाया। परंतु रेणुका टस-से-मस नहीं हुई और उसने कह दिया, ‘मैं अब इसके साथ नहीं जानेवाली हूँ। मैं यहीं रहूँगी और आपकी सेवा करूँगी।’ उसके कुछ समय बाद ही उसने तलाक ले लिया।

फिर रेणुका ऑफिस के काम में दिलचस्पी लेने लग गई। नवीन सीनियर, चतुर व ईमानदार था। रेणुका उससे प्रशिक्षित हुई। अपने पिता के साथ ऑफिस में बैठने लगी और ऑफिस के काम की अधिक जानकारी लेने लगी। उसके एक वर्ष बाद ही उसके पिता पर हृदयाघात हुआ, जिससे उनका निधन हो गया। पिता की असामयिक मृत्यु से रेणुका अंदर से टूट गई। वह बहुत रोई। उसके बाद जब दुःख कुछ कम हुआ, तब वह ऑफिस के काम में व्यस्त हो गई। अब रेणुका पूरे ऑफिस की सर्वेसर्वा ‘मेडम’ बन गई। अब उसे नवीन की जरूरत अधिक रहने लगी। पहले पिता थे, तो जब कुछ कठिनाई होती थी, वह उनसे पूछ लेती थी, लेकिन अब नवीन से पूछना पड़ता था। वैसे दूसरे भी थे, लेकिन वे उतना ही काम जानते थे, जो ऑफिस ने उन्हें सौंपा था, अन्य कामों के बारे में उन्हें सतही ज्ञान होता था। साथ ही नवीन भी चाहता था कि उसे मेडम का अधिक-से-अधिक सामीप्य मिले। लेकिन मेडम के तेवर देखते ही नवीन अदब की मुद्रा में आ जाता था। परंतु मेडम के लिए उसकी इच्छा कुछ अलग ही थी।

कुछ वर्ष पहले डेंगू बुखार फैलने के कारण नवीन की पत्नी की मौत हो गई थी। उसके दो बच्चे थे। वृद्ध माँ थी, जो अकसर बच्चों व घर के काम से त्रस्त रहती थी। इतनी थक जाती थी कि फिर उसे ठीक से साँस लेने में कठिनाई होती थी। रोज वह नवीन को दूसरी बहू लाने लिए कहती रहती थी और नवीन माँ को किसी तरह समझा लेता था। मेडम सिर्फ मोहन को ही मान देती थी। मोहन ऑफिस में सबसे पुराना व मेडम से उम्र में बड़ा था। हालाँकि नवीन भी मेडम से दो-चार वर्ष ही बड़ा था। लेकिन मेडम मन से उसे धिक्कारती थी। उसके साथ सिर्फ काम के अनुसार मतलब रखती थी; हालाँकि नवीन मेडम के नजदीक जाने की कोशिशें करता रहता था। मेडम को खुश रखने के लिए नवीन उनके डॉगी के प्रति प्रेम जताता। डॉगी के लिए महँगे बिस्कुट लाता, इस मंशा के साथ कि वह मेडम की नजरों में चढ़ जाए। वह डॉगी को गोद में लेकर खिलाता, मेडम देखतीं और फिर नजरें घुमा लेतीं और यह सब देखकर नवीन हताश हो जाता।

मोहन ने शादी नहीं की थी। वह ‘कुँवारा’ ही रह गया था। जब उसे ऑफिस में नौकरी मिली और उसी वर्ष उसके पिता का अवसान हो गया। मोहन का एक छोटा भाई है। मरते समय मोहन को पिता ने छोटे भाई की जवाबदारी सौंपी थी। उसने छोटे भाई को पढ़ाया और फिर उसे अच्छी नौकरी मिल गई, इसलिए उसकी शादी कर दी। उसके दो लड़के हुए। छोटे भाई का संसार बसाने में मोहन का खुद का संसार तिरोहित हो गया। मोहन जब ऑफिस से घर लौटता, तब छोटे भाई के बच्चे उसे ‘बड़े पापा, बड़े पापा!’ कहकर लिपट जाते। मोहन रोज बच्चों के लिए कुछ-न-कुछ ले जाता। बच्चे खुश हो जाते और मोहन को उसी में उसका संसार दिखाई देता। जब मेडम अच्छे मूड में होतीं, तब मोहन की ओर मुसकराकर कहती थीं, ‘क्यों मोहनजी, शादी नहीं करते? शादी कर लो, अभी बहुत देर नहीं हुई है’ और मोहन जवाब देने के स्थान पर अपनी नजरें झुका लेता। उसे यह कहने की इच्छा होती थी कि ‘मेडम! आपने शादी कर क्या निहाल कर दिया?’ लेकिन मेडम के लिए अपमानजनक होने के कारण मोहन यह नहीं कह पाता था। लेकिन नवीन को मन की बात मेडम को कहने की बहुत इच्छा होती थी, परंतु उसकी जीभ भी मोहन की तरह तलुए से चिपक जाती थी। मेडम दिन में दो से तीन बार नवीन को ऑफिस में बुलातीं। कभी ऐसा काम आ जाता कि नवीन को लंबे समय तक मेडम के पास ऑफिस में रहना पड़ता और तब फाइल लेते या देते समय मेडम के हाथों का स्पर्श हो जाता, तब उसे बहुत अच्छा लगता और उसकी इच्छा होती कि वह मेडम के सम्मुख अपने मन को खोलकर रख दे, लेकिन वह उस इच्छा को मन में ही दबा लेता, क्योंकि अभी तक उसका मेडम से पूरा परिचय नहीं हुआ था। मेडम के चेहरे से उनका मिजाज देखकर ही उसके मनोभाव ठंडे पड़ जाते थे। नवीन घर पर बुढ़िया की कलह से ही परेशान हो चुका था। उसे एकलता कचोटती रहती थी। रागिणी उसके साथ घर बसाने के लिए तैयार थी। उसने कई बार खुल्लमखुल्ला कहा भी था और उसके घर भी वह आती-जाती थी। रागिणी ने उसकी माँ व बालकों का मन भी जीत लिया था। नवीन की माँ ने तो कहा भी था, ‘वह जो तुम्हारे ऑफिस से अपने यहाँ आती है, वह क्या बुरी है? मुझे तो वह पसंद है और बच्चे भी उससे हिलमिल गए हैं।’ लेकिन रागिणी का चयन करने के लिए उसका दिल नहीं मानता था। रागिणी की शादी हुई थी, लेकिन उसका पति बहुत शराब पीता था और उसे बेहद मारता था, इसलिए उसने किसी तरह दो वर्ष बिताए और उसके बाद अपने मैके आ गई। नवीन उसे पसंद था, इसलिए नवीन को वह आकर्षित करने की कोशिश करती थी, लेकिन फिर उसे लगा कि नवीन के समक्ष उसकी दाल गलनेवाली नहीं है। इसलिए उसने सविता के द्वारा संदेश भिजवाया। सविता विधवा थी और कुछ पढ़ी-लिखी थी; उसे दो बालकों व खुद का पेट भरने की समस्या थी। वह नवीन के पास ही रहती थी, वह नवीन के सामने गिड़गिड़ाई। तब मेडम के पिताजी िजंदा थे। नवीन ने उनसे बात की। सांत्वना के तौर पर उन्होंने सविता को ऑफिस में रख लिया। नवीन ने सविता की बात पर भी कोई ध्यान नहीं दिया।

ऐसा लगने पर कि मेडम को वह अपनी बात नहीं कह सकेगा, उसने मोहन को साधने की कोशिश की। नवीन को पूरा विश्वास था कि मोहन मेडम से बात करेगा ही। उसने मोहन को लालच दिया और यदि बात पक्की हो गई तो वह उसे ‘कुछ’ देगा। बात सुनकर मोहन उसे तीखी नजरों से देखने लगा और कहने लगा, ‘साहब! मैं मेडम से ऐसी बात कैसे कह सकूँगा, भला मैं कौन और मेडम कौन? मुझे मरना नहीं है, मेडम मेरा तुरंत यहाँ से हिसाब-किताब पूरा कर देंगी।’ नवीन निराश हो गया।

मेडम के जन्मदिवस पर उनकी एक हमउम्र मित्र ने उसे भेंट में डॉगी दिया था। मोहक, सुंदर, लंबे-लंबे बालवाला डॉगी और छोटी-छोटी आँखें, जो उसके घने बालों में ढक जाती थीं। तीखी चीख जैसा वह भौंकता था। मेडम पहले दिन अपने बच्चे की तरह उसे ऑफिस में लेकर आईं, तब पूरा ऑफिस उसे हैरत से देखता रहा। मेडम ने डॉगी को अपनी बगल से उतारकर मोहन को दिया और कहा, ‘लो, इसे सँभालो और ध्यान रखना, कहीं यह बाहर न निकल जाए, नहीं तो कुत्ते इसे खा जाएँगे।’ मेडम डॉगी को सौंपकर अपने केबिन में चली गईं और तुरंत घंटी बजाई। मोहन हाँफने जैसा हो गया। ‘डॉगी को लेकर जाऊँ या...’। मोहन को भ्रम की स्थिति में देखकर नवीन उसके बचाव में आया, ‘लाओ, डॉगी को मेरे पास, तुम जाओ’ और नवीन ने डॉगी को अपने बगल में ले लिया। पास बैठी रागिणी बड़बड़ाने लगी, ‘मेडम का डॉगी’।

डॉगी फिर उस दिन से नवीन से घुल-मिल गया। मोहन ने राहत महसूस की और नवीन को मेडम के नजदीक जाने का एक सेतु मिल गया।

लेकिन ऑफिस में डॉगी की वजह से परेशानियाँ बढ़ गईं। मोहन की नई चप्पल की प‌िट्टयाँ डॉगी ने चबा लीं। रागिणी का दुपट्टा खींच लिया और डॉगी उसके साथ खेलने लगा। सविता की काली जूतियों पर उसने पेशाब कर दिया। जुबेदा के जीजा ने उसके लिए दुबई से एक महँगा पर्स भेजा था। जुबेदा जब कंधे पर पर्स लटकाकर ऑफिस आती थी, तो पूरा ऑफिस उसे देखता रहता था। कुरसी पर पर्स लटकाकर जुबेदा वाॅशरूम गई, डॉगी ने पर्स खींचा और दाँत गड़ाकर उसके टुकड़े कर दिए। पर्स की चीजों के इधर-उधर बिखर जाने से जुबेदा की आँखों में आँसू आ गए। उसने डॉगी को पर्स की पट्टी चबाते देखा। वह तो इस जुनून में आ गई थी कि वह भी उसके सिर पर पैर रखकर उसका हाल पर्स जैसा कर दे, लेकिन क्या करे, मजबूरी थी।

नवीन ने मेडम के साथ परिचय बढ़ाने के लिए मोहन का सहारा लेने की कोशिश की थी, लेकिन मोहन ने कोई प्रतिभाव नहीं दिया। इसलिए उसने मेडम के डॉगी पर प्रेम बरसाना शुरू किया। यह सब करने का उसका उद्देश्य मेडम से नजदीकियाँ बढ़ाना था। ऑफिस में मेडम के डॉगी से अधिकांश लोग नाराज थे। डॉगी पूरे ऑफिस में घूमता रहता था और शरीर के अन्य भागों को लबूरता रहता था, इसलिए ऑफिस में जगह-जगह उसके बाल पड़े रहते थे। अतः मोहन को दिन में कई बार बुहारना पड़ता था। इसलिए उसका भी मेडम के डॉगी के प्रति छद्म रोष था। रागिणी का महँगा दुपट्टा, सविता की जूतियाँ, जुबेदा का पर्स, डॉगी के कारण बेकार हो गए थे। इस तरह मोहन की तरह डॉगी के प्रति सबको रोष था। लेकिन नवीन डॉगी की बहुत देखरेख रखता था, इसलिए स्टाफ में नवीन के प्रति भी सबकी नाराजगी थी। रागिणी की इच्छा नवीन से विवाह करने की थी व नवीन की माँ को भी रागिणी पसंद थी, लेकिन नवीन की दिलचस्पी मेडम में थी। मेडम सुंदर तो थी ही, साथ में उनका लाखों का बँगला, ऑफिस व अन्य मिल्कियत पर भी नवीन की नजर थी। रागिणी सुंदर थी, लेकिन उससे क्या? उसका वेतन तो उससे भी कम था और फिर स्वयं के सजने-धजने में वह बहुत खर्च कर देती थी। यह सब सोचते हुए नवीन माँ की बातों को ध्यान में नहीं लेता था।

मेडम ने गाड़ी पार्क की, दरवाजा खोला और तुरंत डॉगी बाहर कूदा। सीधे ऑफिस की ओर गया, लेकिन रास्ते में दो कुत्ते बैठे थे। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ, लेकिन आज कुत्तों ने डॉगी को घेर लिया। पीछे आ रही मेडम घबरा गईं। कुत्तों ने डॉगी की गरदन दबोच ली। डॉगी बचने के लिए छटपटाने लगा। डॉगी की हालत देख मेडम की जान सूखने लगी। पत्थर फेंकने के लिए इधर-उधर नजर घुमाई, लेकिन कहीं पत्थर नजर नहीं आया। इसलिए वे सीधी दौड़कर ऑफिस गईं और ‘नवीन! मेरा डॉ...गीईई!’ कहते हुए उनकी आवाज रुँध गई। मोहन ने मेडम की आवाज सुनी, वह तुरंत बाहर आया। दो कुत्ते मेडम के डॉगी के अस्थि-पंजर ढीले कर रहे थे। मोहन ने तुरंत ऑफिस से लकड़ी ली और कुत्तों को मार भगाया। डॉगी लहूलुहान होकर निश्चेष्ट पड़ा था। बगैर एक पल का विलंब किए उसने कमीज उतारी, डॉगी को उसमें लपेटा और बगल में दबाकर साइकिल पर दवाखाने ले गया। नवीन भारी मन से मोहन को जाते हुए देखता रहा।

समय पर हुए इलाज के कारण मेडम का डॉगी बच गया। मेडम अब मोहन पर जी-जान से निछावर हो गईं और सबको आश्चर्यचकित करते हुए उन्होंने मोहन से विवाह कर लिया।

१०-११, श्री नारायण पैलेस,
शेल पेट्रोल पंप के सामने,
झायडस हाॅस्पिटल रोड,
थलतेज, अहमदाबाद-३८००५९
दूरभाष : ९३७४९७८५५६

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