RNI NO - 62112/95
ISSN - 2455-1171
देवलोक में मंत्रिमंडल की बैठक![]() अश्विनीकुमार दुबे: सुपरिचित व्यंग्य-लेखक एवं उपन्यासकार। ‘घूँघट के पट खोल’, ‘शहर बंद है’, ‘अटैची संस्कृति’, ‘अपने-अपने लोकतंत्र’, ‘फ्रेम से बड़ी तसवीर’, ‘कदंब का पेड़’ (व्यंग्य-संग्रह), ‘जाने-अनजाने दु:ख’ (उपन्यास)। उत्कृष्ट लेखन के लिए भारतेंदु पुरस्कार, अखिल भारतीय अंबिका प्रसाद दिव्य पुरस्कार प्राप्त।
देवलोक के राजा इंद्र को हमेशा अपनी कुरसी खतरे में दिखाई देती है। जहाँ भी असुर दल मिल-जुलकर कोई यज्ञ करता हुआ दिखाई दिया कि इंद्र की चिंता बढ़ जाती। कई बार असुरों ने उनकी कुरसी हिला दी थी। वह तो पार्टी हाईकमान विष्णु अपने साम-दाम-दंड-भेद इस्तेमाल करते हुए किसी प्रकार देवलोक की लाज बचाए हुए हैं। एक बार असुर राजा बलि ने इंद्र को लगभग अपदस्थ कर दिया था, वह तो ऐनवक्त पर विष्णु को उसकी कमजोरी समझ में आ गई कि यह राजा बड़ा दानवीर है। घर आए किसी भी याचक को खाली हाथ नहीं जाने देता। इस लिहाज से यह बड़ा मूर्ख है। विष्णु ने उसकी सहज मूर्खता का फायदा उठाया। बन गए वामन अवतार और पहुँच गए उसके यहाँ याचक का रूप धरकर। जैसी कि उस असुर राजा की आदत थी। उसने कहा, ‘क्या चाहिए भिक्षुक?’ वामन ने भोलेपन को ओढ़ते हुए कहा, ‘बस, तीन कदम जमीन।’ राजा हँसा कि यह बित्ताभर का आदमी तीन कदम जमीन माँगता है। उन्होंने बिना सोच-विचार के कहा, ‘नाप ले, जहाँ तुम्हें चाहिए तीन पग जमीन।’ विष्णु ने अपना विराट् रूप धरकर धरती, आसमान, पाताल सब नाप लिया। बाद में राजा की विनती सुनकर उसे पाताल में रहने की जगह दे दी। इस प्रकार इंद्रासन बचाया पार्टी हाईकमान ने अपनी कूटनीति से। माना कि विष्णु कूटनीति में कुशल हैं। वक्त-जरूरत पर अपने छल-बल से देवताओं की रक्षा करते रहते हैं, परंतु देवताओं को पूरी तरह उन पर निर्भर नहीं होना चाहिए। देवताओं को भी अपना काम मुस्तैदी से करते रहना चाहिए। बार-बार विष्णु की शरण में जाना ठीक नहीं है। उनकी नींद में खलल पड़ता है। वे ठीक से सो भी नहीं पाते कि देवता अपनी समस्याएँ लेकर उन्हें जगाने पहँुच जाते हैं। यह बात ठीक नहीं है। अब हमें अपने मंत्रिमंडल में चुस्ती लानी होगी। सभी मंत्रियों के कार्य-व्यवहार पर हमें नजर रखनी होगी। ऐसा सोचकर इंद्र ने पार्टी नेताओं और देवलोक के मंत्रियों की एक समीक्षा बैठक बुलाने का निर्णय लिया। बैठक की तारीख तय हुई। जैसा कि होता है, सभी मंत्रियों और नेताओं को सूचना भिजवाई गई कि अपने-अपने विभाग के विकास कार्यों का विवरण लेकर निश्चित तारीख को बैठक में अवश्य उपस्थित हों। कागज एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय दौड़ने लगे। सचिव, उप-सचिव और संयुक्त सचिव सहित विभिन्न मंत्रालयों के सभी मातहत प्रगति-पत्रक बनाने में जुट गए। देवलोक के देवताओं और उनके स्टाफ में सुरापान का बहुत चलन है। होता है, सत्ता में रहने के कारण सुरापान की आदत सहज ही पड़ जाती है। फिर इंद्र का दरबार आए दिन सजता ही रहता है, जिसमें नए-नए ब्रांड की मदिरा पीने को मिलती रहती है। मेनका, रंभा और उर्वशी का तो कहना ही क्या! उनके यहाँ रहने से ही देवलोक की शान है। मौका पड़ने पर वे शक्तिशाली असुर नेताओं को अपनी अदाओं से परास्त कर देती हैं। इंद्र को उनका बड़ा आसरा है। वे हैं तो इंद्रासन है। न जाने कितनी बार उन्होंने ही अपने रूप जाल में बड़े-बड़े असुर नेताओं को फँसाकर उनकी मिट्टी पलीत कर दी। इस प्रकार इंद्रासन की सुरक्षा में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। परंतु इन दिनों इंद्र सहित पूरा देवलोक मदिरापान और इन नर्तकियों के नाच-गान में ही खोया हुआ है। किसी परेशानी का अंदेशा हुआ होगा, इसलिए इंद्र ने आपातकालीन समीक्षा बैठक आहूत की है। निश्चित तिथि में समीक्षा बैठक आयोजित की गई। इंद्र कुछ चिंतित दिखाई दिए। जल संसाधन विभाग तो उन्हीं के पास है। उन्होंने अपने राज्यमंत्री वरुण को आदेश दे दिया था कि सभी जरूरी फाइलों सहित वे सभास्थल में समय से पहुँच जाएँ। असुरों की विपक्षी पार्टी जमीनी स्तर पर बहुत काम कर रही थी। उनकी लोकप्रियता भी दिनोदिन बढ़ती जा रही थीं, जिसके कारण इंद्रासन डोलने का खतरा बढ़ता देखकर ही यह आपात बैठक बुलाई गई थी। बहुत दिनों से इंद्र को यह पता ही नहीं चल पा रह था कि उनके मंत्रिगण अपने-अपने विभाग में क्या गुल खिला रहे हैं। कुछ प्रगति वगैरह हो रही है कि ऐसेई मीडिया में हल्ला-गुल्ला होता रहता है। हर विभाग के पास विकास कार्यों से ज्यादा बजट तो उनके प्रचार-प्रसार का होता है। यह इस मंत्रिमंडल की नीति है, जिससे जनता में अच्छी छवि बनी रहती है और मीडियावाले भी खुश रहते हैं। बड़ा खराब जमाना आ गया है। आजकल जनता से ज्यादा मीडियावालों को खुश रखना पड़ता है। इनका कोई भरोसा नहीं, न जाने किस बात पर रिसा जाएँ और जिस सरकार का माल खाते हैं, उसी की आलोचना करने में जुट जाएँ। कम-से-कम नमक की तो बजाओ, भई। नहीं बजाते बहुत लोग। माल भी खाएँगे और आलोचना भी करेंगे। भलाई का तो जमाना नहीं रहा अब। अधिकांश माननीय मंत्रिगण अपनी-अपनी फाइलें लेकर बैठक में उपस्थित हो गए। इंद्र ने भूमिका बाँधी, ‘आप सब लोगों को पता ही होगा कि हमारे विपक्षी लोग इन दिनों ज्यादा सक्रिय हो गए हैं। वे आए दिन तपस्या, यज्ञ और पूजापाठ करते हुए शक्ति अर्जित करते जा रहे हैं। उनकी लोकप्रियता भी इसी कारण दिनोदिन बढ़ती जा रही है। इसमें कोई दो मत नहीं कि हमारी सरकार काम कर रही है। बहुत काम कर रही है, परंतु प्रचार-प्रसार का पर्याप्त फंड होने के बावजूद जनता में हमारी लोकप्रियता कम होती रही है, यह चिंता का विषय है। मेरा यह कहना है कि काम हो या बिल्कुल न हो, इससे हमारा कोई सरोकार नहीं, परंतु जनता में हमारी लोकप्रियता कम नहीं होनी चाहिए। जनता की मुश्किलें दूर हों, न हों, इससे हमें कोई मतलब नहीं। हमें मतलब है अपनी उदार छवि से। यह छवि हमें येन-केन-प्रकारेण जनता के दिलों में बनाए रखनी है। विरोधी बहुत सक्रिय हो रहे हैं। जनता आए दिन विकास कार्यों में धाँधली के प्रश्न उठाती है। मीडिया भी यदा-कदा हमारे सुस्त प्रशासन की चर्चा करता रहता है। इसलिए हमें अपने विकास कार्यों की समीक्षा करना आवश्यक प्रतीत हुआ, इस कारण आज की यह बैठक बुलाई गई है, जिसमें विभिन्न विभागों के प्रगति कार्यों का विवरण आप लोग प्रस्तुत करेंगे, जिस पर सदन में चर्चा होगी। सुझाव और नीतियों पर अमल किया जाएगा। सबसे पहले हम स्वास्थ्य मंत्री धन्वंतरिजी से अनुरोध करेंगे कि वे अपने विभाग का प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत करें।’ इतना कहकर इंद्र बैठ गए। धन्वंतरिजी ने बोलना प्रारंभ किया, ‘हम अपनी प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के लिए कटिबद्ध हैं। इसके प्रचार-प्रसार के लिए हर जगह आयुर्वेदिक औषधालय खोले जा रहे हैं, जिसमें पंचकर्म सहित सभी आयुर्वेदिक चिकित्सा की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। आयुर्वेदिक दवाओं का भी पिछले दिनों उत्पादन काफी बढ़ा है। इस प्रकार मेरे विभाग का काम ठीक-ठाक चल रहा है।’ इंद्र ने कुछ अखबारों की कटिंग दिखाते हुए कहा, ‘आयुर्वेदिक दवाओं में भी इन दिनों मिलावट हो रही है। आयुर्वेदिक दवाओं के प्रति लोगों की अच्छी धारणाएँ नहीं हैं। लोग कहते हैं कि आयुर्वेदिक और प्राकृतिक चिकित्सा वाले बातें तो खूब ऊँची-ऊँची करते हैं, परंतु मामूली सा रोग भी ठीक होने में वहाँ सालों लग जाते हैं। इंतजार करते हुए आदमी इस पछतावे में मर जाते हैं कि काश, ऐलोपैथी दवाएँ खाते तो बच जाते। आपके विभाग में सिर्फ हल्ला-ही-हल्ला है। जनता आयुर्वेद को पूजती है, परंतु इलाज विदेशी चिकित्सा पद्धति से करती है। इस प्रकार आपके विभाग की जड़ें खोखली होती जा रही हैं। कृपा कर कुछ करिए धन्वंतरिजी।’ वे चुपचाप अपना कलश हाथ में लिये बैठे रहे। कुछ बोले नहीं। बेचारे बोलते भी क्या? सालोसाल से शोध और विकास पर उनके विभाग ने कोई ध्यान नहीं दिया। इसलिए लोग विदेशी चिकित्सा पद्धति की ओर जा रहे हैं। विश्वकर्माजी बुजुर्ग व्यक्ति हैं। सालों से निर्माण विभाग सँभाल रहे हैं। उनसे पूछा गया, ‘आपके विभाग में क्या प्रगति है?’ उन्होंने काँपते हुए हाथों से अपनी फाइलें सँभालीं और बोले, ‘आजकल किले और मंदिर निर्माण में लोगों की रुचि नहीं रह गई। अयोध्या में एक विशाल मंदिर बनाए जाने की घोषणा हुई थी, परंतु वहाँ का विवाद श्रीमान जानते ही हैं। ‘अक्षरधाम’ जैसे एक-दो विशाल मंदिर पिछले दिनों बनाए गए हैं। शेष जनता की रुचि और माँग पर निर्भर है।’ इंद्र ने कहा, ‘इन दिनों बड़े-बड़े होटल, बहुमंजिला इमारतें और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाए जाने का चलन है, इसमें सरेआम विदेशी तकनीक अपनाई जा रही है। यह हमारे पुरातन ज्ञान की अवहेलना है। किले और मंदिर बनाए जाने के जमाने अब गए। अब तो सर्वसुविधायुक्त विशाल भवनों के निर्माण की माँग जोर पकड़ रही है। इस दिशा में आपकी कोई उल्लेखनीय उपलब्धि दिखाई नहीं देती। विदेशी तकनीक के चलते एक दिन आपका ज्ञान नेपथ्य में चला जाएगा? कृपा कर आप भी कुछ नया करने का प्रयास करिए।’ वित्त मंत्रालय लक्ष्मीजी सँभालती हैं। क्योंकि वे पार्टी हाईकमान विष्णुजी की पत्नी हैं, इसलिए उनसे कोई कुछ नहीं बोलता। फिर वित्त विभाग उनके पास है। नाराज हो जाएँ तो किसी भी विभाग के बजट में कटौती कर दें। उन्हें विष्णु भगवान् के पैर दबाने से ही फुरसत नहीं मिलती। वे आज मीटिंग में भी नहीं आईं। उन्होंने अपने विभाग के राज्यमंत्री कुबेर को कुछ फाइलें देकर बैठक में भेज दिया। कुबेर ने खड़े होकर बोला, ‘इस समय हमारी वित्तीय स्थिति संतोषजनक है। देशी मुद्रा बढ़ाने के लिए हमने पिछले बजट में जो नए कर प्रस्तावित किए थे, उनके अच्छे परिणाम आए हैं। इस समय देश और विदेश में हमारे अध्यात्म का बाजार अच्छा चल रहा है। विदेशों में तो यह बहुत लोकप्रिय है। इससे विदेशी मुद्रा के बढ़ने की संभावनाएँ हैं। हम इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं।’ ‘विदेशों में जमा देशी धन निकालने की दिशा में आपके प्रयास नगण्य हैं। रुपए का अवमूल्यन हो रहा है। सोने के भाव आसमान छू रहे हैं। मुझे मालूम है कि यह सब विपक्षियों की शरारत है। परंतु चिंता का विषय यह है कि इसी प्रकार यदि विपक्षी पार्टीवाले हमारी अर्थव्यवस्था में सेंध लगाते रहे तो हम अपना इंद्रासन कैसे बचा पाएँगे? कृपा कर इंद्रासन की रक्षा कीजिए।’ इंद्र ने कुबेर से कहा। हनुमानजी की गदा देखकर इंद्र को भी डर लगता है, परंतु खेल मंत्रालय उन्हीं के पास है और इस ओलंपिक में, जहाँ देवता जन्म लेते हैं, उस देश की बड़ी भद्द हुई है। इसलिए कैबिनेट में बहुत असंतोष था। खेलों के गिरते स्तर पर हनुमानजी से इंद्र ने संकोचपूर्वक पूछ ही लिया, ‘ओलंपिक में आपके विभाग की गिरती शाख के विषय में आपको कुछ कहना है?’ बजरंगबली ने गदा घुमाते हुए कहा, ‘आजकल देवताओं के देश में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन नहीं हो रहा है, इसलिए लोगों में स्टेमिना समाप्त होता जा रहा है। अब तो रामजी ही कृपा करें, तब कुछ संभव है। अफसोस है कि ये लोग रामजी की शरण छोड़कर आसुरी जीवनशैली अपना रहे हैं, इसलिए यह सब हो रहा है। मैं रामजी से इस संदर्भ में चर्चा करूँगा।’ बात रामजी पर आ गई, इसलिए इंद्र चुप रहे और मानव संसाधन मंत्री गणेशजी की ओर उन्मुख हुए, ‘गणेशजी, आजकल लोग देशी विश्वविद्यालयों को छोड़कर विदेशों में जाकर शिक्षा प्राप्त करने के लिए ज्यादा उन्मुख हैं। ऐसा क्यों गणेशजी अपनी सूँड़ पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘ये सब आसुरी विद्या का प्रभाव है। हमारी शिक्षा त्याग, तपस्या, चरित्र और सेवा पर आधारित है। इसकी ओर लोगों का झुकाव कम होता देखकर मैं भी चिंतित हूँ। हालाँकि हमने भी उनकी तरह के कई लुभावने फाॅर्मूले, जैसे ऊँचे पद और मोटे पैकेज आदि का लालच अपनी शिक्षा पद्धति में अपनाना शुरू कर दिया है। आगे चलकर उसके परिणाम आएँगे। हम यों ही असुरों को आगे नहीं बढ़ने देंगे। हमें इंद्रासन की पूरी चिंता है।’ सरस्वतीजी शुभ्र वस्त्रों में दूर शांत, गंभीर और मौन बैठी थीं। उनके पास संस्कृति मंत्रालय है। इंद्र ने उनसे पूछा, ‘आपके रहते हुए देवताओं के देश में अप-संस्कृति का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। आपका सत्साहित्य, शास्त्रीय गायन-वादन और पुरातन नत्य शास्त्र आदि में ज्यादा लोगों की रुचि नहीं रह गई है। इससे तो असर संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा और एक दिन वे यहाँ हमला करके हमें कहीं का नहीं छोड़ेंगे। आपने ही कभी कहा था कि किसी राज्य को कमजोर करना हो तो पहले उसकी संस्कृति को मिटा दो। इस प्रकार मुझे लगता है कि असुरों ने हमारी संस्कृति पर पीछे से हमला शुरू कर दिया है। आप क्या कहती हैं?’ सरस्वती ने गंभीर एवं अत्यंत मधुर वाणी में कहा, ‘एक तो संस्कृति विभाग को सबसे कम बजट आवंटित किया जाता है। दूसरे आधे से ज्यादा बजट तो आपके राजदरबार की नर्तकियों, मशखरों और चाटुकार लेखकों-कवियों पर खर्च हो जाता है। हमें अपने कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा धनाभाव से जूझते रहना पड़ता है, इसलिए लोगों ने यह अफवाह फैला रखी है कि सरस्वती और लक्ष्मीजी में बैर है। जबकि यह सरासर झूठ है। संस्कृति, साहित्य और कला के विकास में समय लगता है। यहाँ धैर्य और धन दोनों की जरूरत होती है। दुर्भाग्य से हमारे विभाग में दोनों की कमी है। ‘कृपया ध्यान दीजिए।’ सरस्वती ने इंद्र को एकदम चुप कर दिया। वैसे भी उनके सामने टिकता ही कौन है! इंद्र ने अब विदेश मंत्री नारजी की ओर देखा और पूछा, ‘आपके विभाग में क्या प्रगति है?’ नारदजी ने पहले नारायण-नारायण कहा, फिर बोले, ‘कई बड़े देशों से हमने मैत्री संबंधी स्थापित करने की कोशिश की है। इन दिनों सब असुर संस्कृति के प्रभाव में हैं। उनके देश में जाओ तो खूब स्वागत सत्कार करते हैं और हमारी हाँ में हाँ मिलाने से भी नहीं चूकते, परंतु पीठ फिरते ही वे अपना राग अलापने लगते हैं। इस स्थिति में समझ में नहीं आता कि किस पर भरोसा करें, किस पर न करें?’ इंद्र ने नारदजी को लगभग समझाते हुए कहा, ‘आसुरी ताकतें बहुत बढ़ रही हैं। वे गुप्त रूप से यज्ञ करते रहते हैं। जप, तप और पूजन भी बहुत करते हैं। इस प्रकार उन लोगों ने नए और शक्तिशाली आयुध तैयार कर लिये हैं। उनकी यह प्रगति देखकर मेरा सिंहासन स्वतः डाँवाँडोल होने लगता है। इंद्रासन की स्थिरता और सुरक्षा के लिए जरूरी है कि हमारी विदेशी नीति, कूटनीति से भरपूर हो। असुरों को स्वप्न में भी अंदेशा नहीं होना चाहिए कि हमारे हाथ कितने लंबे हैं और हमारे पक्ष में कौन सी मजबूत ताकतें खड़ी हैं। नारदजी, आप कूटनीति में माहिर हैं। अतीत में आपने बहुत लोगों को अपनी बातों से लड़वाया है। यही शैली अपना कर आप दुश्मनों को आपस में लड़वाते रहिए और इस बात का हमेशा ध्यान रखिए कि इंद्रासन पर किसी की कुदृष्टि न पड़ने पाए।’ ‘ऐसा ही होगा इंद्रदेव!’ इतना कहकर नारदजी नारायण-नारायण करते हुए बैठ गए। शाम घिर आई थी। अँधेरा उतरने लगा था। इंद्र ने घड़ी देखी तो उन्हें लगा कि दरबार सजाने का वक्त हो रहा है। अब यह मीटिंग जल्द समाप्त करनी चाहिए। ऐसा न हो कि मेनका, रंभा और उर्वशी अपना नृत्य प्रस्तुत करने के लिए दरबार में आ जाएँ और हम लोग यहीं मीटिंग करते बैठे रहें। उन्हें लगा कि अपने ‘जल संसाधन विभाग की समीक्षा पश्चात् मीटिंग समाप्त कर देनी चाहिए। उन्होंने अपने विभाग के राज्यमंत्री वरुण से प्रगति प्रतिवेदन पढ़ने को कहा।’ वरुण ने उत्साहपूर्वक बताया, ‘आसुरी प्रकृति के लोगों ने पिछले दिनों हमारी पवित्र नदियों को जिस प्रकार प्रदूषित कर दिया है, उसे देखकर श्रीमान ने जो नदी सफाई योजना का शुभारंभ किया था, उसका कार्य प्रगति पर है। लेकिन इधर हम सफाई करते हैं, उधर वे फिर प्रदूषित करते जाते हैं। इस प्रकार दोनों कार्य साथ-साथ चल रहे हैं। देखना है किसका काम ज्यादा प्रगति कर पाता है। हमारा या उनका? हमारे द्वारा इतना पानी बरसाया जाता है कि बाढ़ में कहीं-न-कहीं सैकड़ों गाँव बह जाते हैं, फिर भी जनता पानी की कमी का रोना रोती रहती है। यह विपक्ष की साजिश है। वे हमारे खिलाफ जनता को भड़काते रहते हैं। यही एक मात्र चिंता का विषय है।’ ‘हम एक दिन असुरों को पानी का महत्त्व समझा देंगे। हमारे स्नान, ध्यान, पूजा, पाठ और व्रत-उपवास में शुद्ध जल का कितना महत्त्व है, यह सर्वविदित है। जल हमारे जीवन की शक्ति है। असुर हमारी शक्ति को नष्ट करना चाहते हैं, इसीलिए वे हमारी पवित्र नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं। हम उनके मंसूबों पर पानी फेरकर ही दम लेंगे।’ इंद्र ने जोरदार शब्दों में अपने विभाग का पक्ष रखते हए बैठक समाप्ति की घोषणा की। किसी नए देवता ने अपने सीनियर से पूछा, ‘महादेव नहीं दिखे! क्या उन्हें ऐसी सभाओं में नहीं बुलाया जाता?’ सीनियर ने गुरु गंभीर शैली में कहा, ‘वे औघड़दानी है। निष्पक्ष हैं। सबको खरी-खरी सुना देते हैं, इसलिए सब लोग उन्हें राष्ट्रपिता जैसा सम्मान देते हैं, परंतु उनसे ज्यादा पूछताछ नहीं की जाती। जैसे नीचे देवताओं वाले देश में राष्ट्रपिता के साथ अंतिम दिनों में होने लगा था। देश के बँटवारे की फाइल लोगों ने अकेले-अकेले निपटा ली। उन्हें पता तक नहीं। दे दी उन्हें एक कुटिया कि वहीं रहो आप चुपचाप लँगोटी लगाकर। महादेव के साथ यहाँ बहुत पहले से ऐसा ही होता आया। रत्न निकले, सब देवताओं ने आपस में बाँट लिये। महादेव के हिस्से में आया विष! वह भी उन्होंने सबके कल्याण के लिए खुशी-खुशी पी लिया। वे अकसर असुरों के पक्ष में भी सही बात बोलते रहते हैं। जो भी साधना करता है। पूजा-पाठ में मन लगाकर कठिन तप करता है। उसे वे वरदान देने में नहीं हिचकिचाते। मुक्त हस्त से ऐसे लोगों को वरदान देते हैं, भले ही वह कोई भी हो। देवताओं को उनकी यह उदारता पसंद नहीं है। इसलिए दे दिया उन्हें एक वीरान पर्वत, वहाँ वे बाघांबर लपेटे हुए चुपचाप साधना में लीन रहते हैं। देवता इसी में खुश हैं। इधर इंद्र को अपने इंद्रासन के अलावा और कोई चिंता नहीं रहती। पार्टी हाईकमान क्षीरसागर में आराम से लक्ष्मीजी से पैर दबाते हुए प्रायः सोए रहते हैं। जब देवताओं पर कोई मुसीबत आती है, तब उनसे हाथ जोड़कर विनती करते हुए उन्हें जगाया जाता है। वे अपनी पार्टी के लिए प्रतिबद्ध हैं, इसलिए हर संकट में मदद करते हैं।’ नए देवता ने आगे पूछा, ‘और राष्ट्रपति ब्रह्माजी की क्या भूमिका है?’ ‘जो नीचे अपने देश में भूमिका होती है राष्ट्रपति की, वही भूमिका यहाँ ब्रह्माजी की है। वे हर अध्यादेश पर चुपचाप दस्तखत कर देते हैं। कमल पर बैठे हुए सबका कल्याण हो। ऐसी कामना करते रहते हैं। इसके अलावा उनके पास और कोई काम नहीं है। बुजुर्ग हैं, इसलिए सब लोग सम्मान करते हैं।’ सीनियर देवता ने कहा। इंद्र का दरबार सज गया था। नर्तकियों ने अपना नृत्य प्रारंभ कर दिया था। सुरापान करनेवाले देवता अपने सत्कर्म में संलग्न हो गए थे। इंद्र प्रसन्न हैं। आज की मीटिंग के पश्चात् उन्हें महसूस हुआ कि फिलहाल इंद्रासन सुरक्षित है। अभी कोई खतरा नहीं है। अश्विनीकुमार दुबे |
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